अध्ययन लेख 10
गीत 31 चल याह के साथ!
यहोवा और यीशु जैसी सोच रखिए
“जब मसीह ने शरीर में दुख झेला है तो तुम भी उसके जैसी सोच और नज़रिया रखते हुए तैयार रहो।”—1 पत. 4:1.
क्या सीखेंगे?
यीशु की सोच और नज़रिए से प्रेषित पतरस ने क्या सबक सीखे और हम क्या सीख सकते हैं?
1-2. (क) यहोवा से प्यार करने का क्या मतलब है? (ख) यीशु ने कैसे दिखाया कि वह अपने पूरे दिमाग से यहोवा से प्यार करता है?
यीशु ने साफ-साफ बताया था कि मूसा के कानून में सबसे बड़ी आज्ञा कौन-सी है। उसने कहा, “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान, अपने पूरे दिमाग और अपनी पूरी ताकत से प्यार करना।” (मर. 12:30) ध्यान दीजिए कि हमें यहोवा से पूरे दिल से प्यार करना है, यानी हमारी इच्छाएँ और भावनाएँ इसमें शामिल होनी चाहिए। हमें पूरी जान से उसकी भक्ति करनी चाहिए और उसकी सेवा में पूरी ताकत लगा देनी चाहिए। लेकिन हमें अपने पूरे दिमाग से भी यहोवा से प्यार करना है। इसका मतलब, हम जिस तरह मामलों के बारे में सोचते हैं, उससे भी दिखाएँ कि हम यहोवा से प्यार करते हैं। यह सच है कि हम कभी-भी यहोवा की सोच पूरी तरह नहीं समझ सकते। लेकिन अगर हम ‘मसीह की सोच’ जानने की कोशिश करें, तो हम परमेश्वर की सोच काफी अच्छी तरह समझ पाएँगे। वह इसलिए कि यीशु हू-ब-हू अपने पिता की तरह सोचता था।—1 कुरिं. 2:16.
2 यीशु अपने पूरे दिमाग से यहोवा से प्यार करता था। वह जानता था कि उसके लिए परमेश्वर की क्या मरज़ी है और उसे पूरा करने के लिए उसे बहुत दुख उठाना पड़ेगा। फिर भी वह ऐसा करने के लिए तैयार था। उसने अपना पूरा ध्यान अपने पिता की मरज़ी पूरी करने पर लगाए रखा और किसी भी चीज़ को इसके आड़े नहीं आने दिया।
3. पतरस ने यीशु से क्या सीखा और उसने दूसरे मसीहियों को क्या करने का बढ़ावा दिया? (1 पतरस 4:1)
3 पतरस और दूसरे प्रेषितों को यीशु के साथ वक्त बिताने का बढ़िया मौका मिला और वे सीख पाए कि यीशु किस तरह सोचता है। जब पतरस ने परमेश्वर की प्रेरणा से पहली चिट्ठी लिखी, तो उसने मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे मसीह के जैसी सोच और नज़रिया रखते हुए तैयार रहें। (1 पतरस 4:1 पढ़िए।) जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “तैयार रहो” किया गया है, वह एक ऐसे सैनिक के लिए इस्तेमाल होता था जो अपने हथियार बाँधे युद्ध में जाने के लिए तैयार है। इसलिए अगर एक मसीही यीशु के जैसी सोच और नज़रिया रखे, तो यह ऐसा है मानो वह हथियार लेकर अपनी पापी फितरत और दुनिया के राजा शैतान से लड़ने के लिए तैयार है।—2 कुरिं. 10:3-5; इफि. 6:12.
4. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
4 इस लेख में हम यीशु की सोच और नज़रिए पर गौर करेंगे और उससे सीखेंगे। हम यह भी जानेंगे: (1) हम कैसे यहोवा जैसी सोच रख सकते हैं ताकि हम सबकी सोच एक जैसी हो? (2) हम किस तरह नम्र रह सकते हैं? और (3) हम यहोवा पर निर्भर रहकर कैसे सही सोच बनाए रख सकते हैं?
यहोवा जैसी सोच रखिए
5. एक मौके पर पतरस यहोवा जैसी सोच रखने से कैसे चूक गया?
5 आइए ध्यान दें कि एक मौके पर पतरस कैसे यहोवा जैसी सोच रखने से चूक गया। यीशु ने अपने प्रेषितों को बताया था कि उसे यरूशलेम जाना होगा, जहाँ उसे पकड़कर धर्म गुरुओं के हवाले कर दिया जाएगा, बुरी तरह तड़पाया जाएगा और फिर मार डाला जाएगा। (मत्ती 16:21) लेकिन पतरस के लिए यह मानना शायद मुश्किल रहा होगा कि यहोवा उसे इस तरह मरने देगा, क्योंकि वह जानता था कि यीशु वादा किया गया मसीहा है जो परमेश्वर के लोगों को छुड़ाएगा। (मत्ती 16:16) इस वजह से वह यीशु को अलग ले गया और उससे कहा, “प्रभु खुद पर दया कर, तेरे साथ ऐसा कभी नहीं होगा।” (मत्ती 16:22) इस मौके पर पतरस की सोच यहोवा जैसी नहीं थी, इसलिए यीशु उससे सहमत नहीं हुआ।
6. यीशु ने कैसे दिखाया कि उसकी सोच यहोवा जैसी है?
6 वहीं यीशु बिलकुल अपने पिता जैसी सोच रखता था। तभी उसने पतरस से कहा, “अरे शैतान, मेरे सामने से दूर हो जा! तू मेरे लिए ठोकर की वजह है क्योंकि तेरी सोच परमेश्वर जैसी नहीं, बल्कि इंसानों जैसी है।” (मत्ती 16:23) पतरस के इरादे शायद नेक थे, लेकिन यीशु ने उसकी सलाह ठुकरा दी। वह जानता था कि उसे अपने पिता यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए दुख उठाना होगा और मरना होगा। इस किस्से से पतरस ने एक ज़रूरी सबक सीखा कि उसे अपनी सोच परमेश्वर जैसी बनानी है। यह हमारे लिए भी एक बढ़िया सबक है!
7. आगे चलकर पतरस ने कैसे दिखाया कि वह यहोवा जैसी सोच रखना चाहता है? (तसवीर देखें।)
7 आगे चलकर पतरस ने दिखाया कि वह यहोवा जैसी सोच रखना चाहता है। ध्यान दीजिए उस वक्त क्या हुआ जब यहोवा ने खतनारहित गैर-यहूदियों को अपने सेवक बनने का मौका दिया। पतरस को कुरनेलियुस नाम के गैर-यहूदी को खुशखबरी सुनाने के लिए भेजा गया। कुरनेलियुस गैर-यहूदियों में ऐसा पहला व्यक्ति था जो परमेश्वर का उपासक बनता। लेकिन यहूदी आम तौर पर गैर-यहूदियों से कोई नाता नहीं रखते थे, इसलिए कुरनेलियुस को गवाही देने के लिए पतरस को अपनी सोच बदलनी थी। और जब उसने जाना कि गैर-यहूदियों के लिए परमेश्वर की क्या मरज़ी है, तो उसने अपनी सोच बदली। फिर जब कुरनेलियुस ने पतरस को अपने घर बुलाया, तो वह “बिना किसी एतराज़ के” उसके यहाँ गया। (प्रेषि. 10:28, 29) उसने कुरनेलियुस और उसके पूरे घराने को गवाही दी और उन्होंने बपतिस्मा लिया।—प्रेषि. 10:21-23, 34, 35, 44-48.
पतरस कुरनेलियुस के घर पर आया है (पैराग्राफ 7)
8. हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमारी सोच यहोवा की सोच जैसी है? (1 पतरस 3:8)
8 सालों बाद पतरस ने मसीहियों को बढ़ावा दिया कि उन “सबकी सोच एक जैसी हो।” (1 पतरस 3:8 पढ़िए।) हम मसीही भाई-बहनों की सोच एक जैसी तभी हो सकती है, जब हम यहोवा जैसी सोच रखते हों जो हमें बाइबल से पता चलती है। उदाहरण के लिए, यीशु ने हमें बढ़ावा दिया कि हम परमेश्वर के राज को ज़िंदगी में पहली जगह दें। (मत्ती 6:33) हो सकता है, इस बात को ध्यान में रखकर एक भाई या बहन पूरे समय की सेवा करने की सोचे। ऐसे में हम उससे ऐसा कुछ नहीं कहेंगे जिससे उसका इरादा कमज़ोर पड़ जाए, बल्कि उसका हौसला बढ़ाएँगे और उसकी मदद करेंगे।
नम्र बने रहिए
9-10. यीशु ने कैसे दिखाया कि वह बहुत नम्र है?
9 यीशु ने अपनी मौत से पहलेवाली रात पतरस और दूसरे प्रेषितों को एक ज़रूरी सीख दी। उसने उन्हें सिखाया कि उन्हें नम्र होना है। यीशु अपने चेलों के साथ आखिरी बार फसह का खाना खाना चाहता था। इसलिए उसने पतरस और यूहन्ना को इसकी तैयारी करने के लिए भेजा। तैयारी करते वक्त उन्होंने ज़रूर एक बरतन और तौलिए का इंतज़ाम किया होगा, क्योंकि आम तौर पर खाने से पहले मेहमानों के पैर धोए जाते थे। लेकिन जब वक्त आया, तो किसने नम्र होकर यह मामूली काम किया?
10 यीशु ने आगे बढ़कर चेलों के पैर धोए। उसने अपना चोगा उतारा और तौलिया लेकर कमर में बाँधा। इसके बाद, उसने बरतन में पानी भरा और चेलों के पैर धोने लगा। (यूह. 13:4, 5) अपने 12 चेलों के पैर धोने में उसे काफी समय लगा होगा। इन चेलों में से एक यहूदा भी था जो धोखे से यीशु को पकड़वाता। सच में, यीशु ने क्या ही गज़ब की नम्रता दिखायी! यीशु को देखकर प्रेषित हैरान रह गए होंगे, क्योंकि पैर धोने का काम अकसर नौकर करते थे। इसके बाद यीशु ने अपने चेलों से कहा, “क्या तुम समझे कि मैंने तुम्हारे साथ क्या किया है? तुम मुझे ‘गुरु’ और ‘प्रभु’ बुलाते हो और तुम ठीक कहते हो क्योंकि मैं वही हूँ। इसलिए जब मैंने प्रभु और गुरु होते हुए भी तुम्हारे पैर धोए, तो तुम्हें भी एक-दूसरे के पैर धोने चाहिए।”—यूह. 13:12-14.
एक इंसान सच में नम्र है या नहीं, यह उसकी सोच से भी पता चलता है
11. पतरस ने कैसे दिखाया कि उसने नम्र रहना सीख लिया है? (1 पतरस 5:5 और फुटनोट) (तसवीर भी देखें।)
11 पतरस ने यीशु से नम्र रहना सीखा। यीशु के स्वर्ग लौटने के बाद, पतरस ने जन्म से लँगड़े एक आदमी को ठीक किया। (प्रेषि. 1:8, 9; 3:2, 6-8) यह चमत्कार देखकर पतरस के आस-पास लोग इकट्ठा हो गए। (प्रेषि. 3:11) वे शायद उसकी वाह-वाही करने लगे होंगे। लेकिन पतरस ने क्या किया? वह अपने ज़माने के यहूदियों जैसा नहीं था जो नाम, शोहरत और रुतबे को बहुत ज़्यादा अहमियत देते थे। पतरस नम्र था, इसलिए वाह-वाही लूटने के बजाय उसने चमत्कार का सारा श्रेय यहोवा और यीशु को दिया। उसने कहा, “हम [यीशु के] नाम पर विश्वास करते हैं और उसके नाम से ही यह आदमी ठीक हुआ है, जिसे तुम देख रहे हो और जानते भी हो।” (प्रेषि. 3:12-16) इसके अलावा, पतरस ने मसीहियों को जो चिट्ठी लिखी थी, उसमें उसने कहा कि वे नम्रता का पहनावा पहन लें। उसकी इस बात से हमें वह घटना याद आती है, जब यीशु ने कमर पर तौलिया बाँधकर चेलों के पैर धोए थे।—1 पतरस 5:5 और फुटनोट पढ़िए।
पतरस नम्र था, इसलिए उसने चमत्कार का सारा श्रेय यहोवा और यीशु को दिया; अगर हम भी नम्र होंगे तो हम सही इरादे से लोगों की मदद करेंगे, ना कि दूसरों की नज़रों में छाने या इनाम पाने के लिए (पैराग्राफ 11-12)
12. पतरस की तरह नम्र बने रहने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
12 हम भी पतरस की तरह नम्र बनना सीख सकते हैं। एक इंसान सच में नम्र है या नहीं, यह कुछ हद तक उसकी बातों से पता चल सकता है। लेकिन पतरस ने नम्रता के लिए जो शब्द इस्तेमाल किया, उससे पता चलता है कि एक इंसान की सोच से भी नम्रता ज़ाहिर होती है, जैसे वह अपने बारे में और दूसरों के बारे में कैसा सोचता है। हम दूसरों की मदद इसलिए करते हैं क्योंकि हम यहोवा और लोगों से प्यार करते हैं, ना कि इसलिए कि हम वाह-वाही लूटना चाहते हैं। चाहे कोई हमारी मेहनत पर ध्यान दे या ना दे, अगर हम खुशी-खुशी यहोवा की सेवा करें और भाई-बहनों की मदद करें, तो इससे पता चलेगा कि हम सच में नम्र हैं।—मत्ती 6:1-4.
“सही सोच” बनाए रखिए
13. समझाइए कि “सही सोच” बनाए रखने का क्या मतलब है।
13 “सही सोच” बनाए रखने का क्या मतलब है? (1 पत. 4:7) जब एक मसीही सही सोच बनाए रखता है, तो वह कोई भी फैसला लेने से पहले यह जानने की कोशिश करता है कि यहोवा उस बारे में क्या सोचता है। वह यहोवा के साथ अपने रिश्ते को सबसे ज़्यादा अहमियत देता है। वह अपने बारे में सही सोच रखता है और यह नहीं सोचता कि उसे सबकुछ पता है। इसके बजाय, वह हमेशा यहोवा पर निर्भर रहता है और प्रार्थना में उससे मदद माँगता है।
14. एक मौके पर पतरस यहोवा पर निर्भर रहने से कैसे चूक गया?
14 अपनी मौत से एक रात पहले यीशु ने अपने चेलों को खबरदार किया। उसने कहा, “आज की रात मेरे साथ जो होगा उसकी वजह से तुम सबका विश्वास डगमगा जाएगा।” लेकिन पतरस ने पूरे यकीन के साथ कहा, “तेरे साथ जो होगा उसकी वजह से चाहे बाकी सबका विश्वास डगमगा जाए, मगर मेरा विश्वास कभी नहीं डगमगाएगा।” उसी रात यीशु ने अपने कुछ चेलों से कहा, “जागते रहो और प्रार्थना करते रहो।” (मत्ती 26:31, 33, 41) अगर पतरस ने यीशु की यह सलाह मानी होती, तो वह पूरी हिम्मत से कबूल करता कि वह यीशु का चेला है। लेकिन पतरस ने अपने गुरु को जानने से इनकार कर दिया जिसका बाद में उसे बहुत अफसोस हुआ।—मत्ती 26:69-75.
15. धरती पर अपनी आखिरी रात यीशु ने कैसे सही सोच बनाए रखी?
15 यीशु हमेशा यहोवा पर निर्भर रहा। वह परिपूर्ण था, फिर भी अपनी आखिरी रात वह बार-बार यहोवा से प्रार्थना करता रहा। इस वजह से उसे हिम्मत मिली और वह यहोवा की मरज़ी पूरी कर पाया। (मत्ती 26:39, 42, 44; यूह. 18:4, 5) पतरस ने इस बात पर ध्यान दिया होगा कि यीशु किस तरह प्रार्थना में लगा हुआ था और यह बात वह कभी नहीं भूला होगा।
16. पतरस ने कैसे दिखाया कि उसने सही सोच रखना सीख लिया है? (1 पतरस 4:7)
16 जैसे-जैसे समय बीता, पतरस यहोवा से और भी प्रार्थना करने लगा और उस पर निर्भर रहने लगा। ज़िंदा किए जाने के बाद यीशु ने पतरस और दूसरे प्रेषितों को यकीन दिलाया कि वह उन्हें पवित्र शक्ति देगा, जिससे वे खुशखबरी का प्रचार कर पाएँगे। लेकिन यीशु ने उनसे यह भी कहा कि तब तक उन्हें यरूशलेम में रहकर इंतज़ार करना है। (लूका 24:49; प्रेषि. 1:4, 5) इंतज़ार करते वक्त पतरस ने क्या किया? पतरस और दूसरे चेले “प्रार्थना करते रहे।” (प्रेषि. 1:13, 14) बाद में उसने अपनी पहली चिट्ठी में भी मसीहियों को बढ़ावा दिया कि वे सही सोच बनाए रखें, प्रार्थना में लगे रहें और यहोवा पर निर्भर रहें। (1 पतरस 4:7 पढ़िए।) इन बातों से पता चलता है कि पतरस ने यहोवा पर निर्भर रहना सीखा था और वह मंडली के लिए एक मज़बूत खंभा बन गया था।—गला. 2:9.
17. चाहे हममें कोई भी काबिलीयत या हुनर हो, हमें क्या करते रहना चाहिए? (तसवीर भी देखें।)
17 सही सोच बनाए रखने के लिए हमें लगातार यहोवा से प्रार्थना करनी होगी। हमें समझना होगा कि चाहे हममें कोई भी काबिलीयत या हुनर हो, हमें हमेशा यहोवा पर निर्भर रहना है। जब हमें कोई ज़रूरी फैसला लेना हो, तब हमें यहोवा से और भी ज़्यादा प्रार्थना करनी चाहिए और मदद माँगनी चाहिए। हमें भरोसा रखना चाहिए कि वह जानता है कि हमारे लिए सबसे अच्छा क्या है।
पतरस ने यहोवा पर निर्भर रहना सीखा और वह उससे प्रार्थना करता रहा; जब हमें कोई ज़रूरी फैसला लेना हो, तो हमें भी मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए, इस तरह हम भी सही सोच बनाए रख पाएँगे (पैराग्राफ 17)a
18. हमारी सोच यहोवा जैसी हो, इसके लिए हमें क्या करना होगा?
18 हम यहोवा के बहुत एहसानमंद हैं कि उसने हमें इस तरह बनाया है कि हम उसके जैसे गुण ज़ाहिर कर सकते हैं। (उत्प. 1:26) यह सच है कि हम पूरी तरह यहोवा जैसे नहीं बन सकते। (यशा. 55:9) लेकिन हम पतरस की तरह यहोवा जैसी सोच रखने की पूरी कोशिश कर सकते हैं। तो आइए हम हमेशा परमेश्वर की तरह सोचने की कोशिश करें, नम्र रहें और हमेशा सही सोच बनाए रखें।
गीत 30 यहोवा, मेरा परमेश्वर, पिता और दोस्त
a तसवीर के बारे में: एक बहन नौकरी के लिए इंटरव्यू देने आयी है। इंटरव्यू से पहले वह मन में प्रार्थना कर रही है।