अध्ययन लेख 12
गीत 119 क्या ईमान हम में है खरा?
विश्वास से चलते रहिए
“हम आँखों-देखी चीज़ों से नहीं बल्कि विश्वास से चलते हैं।”—2 कुरिं. 5:7.
क्या सीखेंगे?
ज़िंदगी में ज़रूरी फैसले लेते वक्त हम कैसे विश्वास से चल सकते हैं?
1. पौलुस अपनी ज़िंदगी से क्यों खुश था?
प्रेषित पौलुस को बहुत जल्द मार डाला जाएगा। पर वह खुश है, क्योंकि उसने एक अच्छी ज़िंदगी जी है। वह कहता है, “मैंने अपनी दौड़ पूरी कर ली है, मैंने विश्वास को थामे रखा है।” (2 तीमु. 4:6-8) पौलुस ने यहोवा की सेवा करने का बढ़िया फैसला लिया था। उसे यकीन था कि उसके इस फैसले से यहोवा बहुत खुश है। हम भी अच्छे फैसले लेना चाहते हैं ताकि यहोवा हमसे खुश हो। पर हम यह कैसे कर सकते हैं?
2. विश्वास से चलने का क्या मतलब है?
2 पौलुस ने अपने बारे में और दूसरे वफादार मसीहियों के बारे में कहा, “हम आँखों-देखी चीज़ों से नहीं बल्कि विश्वास से चलते हैं।” (2 कुरिं. 5:7) पौलुस के कहने का क्या मतलब था? बाइबल में कई जगहों पर जब ‘चलने’ की बात की गयी है, तो उसका मतलब है कि एक इंसान कैसी ज़िंदगी जीता है। आँखों-देखी चीज़ों से चलनेवाला इंसान खुद पर भरोसा रखता है, यानी उसने जो देखा है, सुना है और उसे जो सही लग रहा है, वह उसी आधार पर फैसले लेता है। लेकिन विश्वास से चलनेवाला इंसान यहोवा पर भरोसा रखता है और कोई भी फैसला लेते वक्त ध्यान देता है कि उस बारे में यहोवा की क्या सोच है। उसे पूरा यकीन होता है कि बाइबल में यहोवा ने जो कहा है उसे मानने से उसे फायदा होगा। यही नहीं, आगे चलकर यहोवा उसे इनाम भी देगा।—भज. 119:66; इब्रा. 11:6.
3. अगर हम विश्वास से चलें, तो हमें क्या फायदे होंगे? (2 कुरिंथियों 4:18)
3 यह सच है कि कई बार हम इस आधार पर फैसले लेते हैं कि हमने क्या देखा है, क्या सुना है और हमें क्या सही लग रहा है। लेकिन अगर हम ज़िंदगी के ज़रूरी फैसले सिर्फ इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर लें, तो मुश्किल खड़ी हो सकती है। वह क्यों? क्योंकि हम जो देखते और सुनते हैं, वह हमेशा सही नहीं होता। और अगर हम सही हों भी, तब भी हमें सिर्फ आँखों-देखी चीज़ों से नहीं चलना चाहिए, वरना हम कुछ ऐसा कर बैठेंगे जो यहोवा की नज़र में गलत होगा। (सभो. 11:9; मत्ती 24:37-39) लेकिन जब हम विश्वास से चलते हैं, तो हम ऐसे फैसले ले पाते हैं जो ‘प्रभु को स्वीकार’ हों। (इफि. 5:10) परमेश्वर की सलाह मानने से हमें मन की शांति मिलती है और हम सच में खुश रहते हैं। (भज. 16:8, 9; यशा. 48:17, 18) और अगर हम विश्वास से चलते रहें, तो आगे चलकर परमेश्वर हमें हमेशा की ज़िंदगी भी देगा।—2 कुरिंथियों 4:18 पढ़िए।
4. एक इंसान कैसे जान सकता है कि वह विश्वास से चल रहा है या फिर आँखों-देखी चीज़ों से?
4 हम कैसे पता लगा सकते हैं कि हम विश्वास से चल रहे हैं या फिर आँखों-देखी चीज़ों से? यह जानने के लिए खुद से पूछिए, ‘मैं किस आधार पर फैसले लेता हूँ? क्या मैं सिर्फ उन्हीं बातों को ध्यान में रखता हूँ जो मुझे दिखायी दे रही हैं? या फिर मैं यहोवा पर भरोसा रखता हूँ और उसकी सलाह मानता हूँ?’ अब आइए तीन मामलों पर ध्यान दें और देखें कि हम कैसे विश्वास से चल सकते हैं: (1) जब हमें कोई नौकरी लेनी हो, (2) जब हमें जीवन-साथी चुनना हो और (3) जब हमें संगठन से कोई निर्देश मिले। हरेक मामले पर चर्चा करते वक्त हम जानेंगे कि अच्छे फैसले लेने के लिए हमें किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
जब नौकरी लेने की बात हो
5. जब नौकरी लेने की बात हो, तो हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
5 हम सब अपनी और अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी करना चाहते हैं। (सभो. 7:12; 1 तीमु. 5:8) कुछ नौकरियों में अच्छे-खासे पैसे मिलते हैं, एक व्यक्ति अपने रोज़मर्रा के खर्च भी पूरे कर पाता है और दो पैसे भी बचा पाता है। लेकिन कुछ नौकरियों में इतना पैसा नहीं मिलता, एक व्यक्ति बस अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी कर पाता है। एक नौकरी लेते वक्त हम यह तो देखेंगे कि हमें कितना पैसा मिलेगा। लेकिन अगर हम सिर्फ यही देखकर नौकरी ले लें, तो यह ऐसा होगा मानो हम आँखों-देखी चीज़ों से चल रहे हैं।
6. जब नौकरी लेने की बात हो, तो हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम विश्वास से चलते हैं? (इब्रानियों 13:5)
6 विश्वास से चलनेवाला व्यक्ति कोई नौकरी लेने से पहले यह भी सोचेगा कि इसका यहोवा के साथ उसकी दोस्ती पर क्या असर पड़ेगा। वह खुद से पूछेगा, ‘अगर मैं यह नौकरी करूँगा, तो क्या मुझे कुछ ऐसा करना पड़ेगा जिससे यहोवा नफरत करता है?’ (नीति. 6:16-19) ‘क्या मैं हर सभा में जा पाऊँगा? क्या मुझे बाइबल पढ़ने और प्रचार करने के लिए वक्त मिलेगा? कहीं मुझे लंबे समय तक अपने परिवार से दूर तो नहीं रहना पड़ेगा?’ (फिलि. 1:10) अगर वह इन सवालों के जवाब “हाँ” में देता है, तो अच्छा होगा कि वह ऐसी नौकरी ना लें, फिर चाहे दूसरी नौकरी मिलना मुश्किल क्यों ना हो। अगर हम विश्वास से चलें, तो हमारे फैसलों से पता चलेगा कि हम यहोवा पर पूरा भरोसा करते हैं। और हमें यकीन है कि वह किसी-ना-किसी तरह हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा।—मत्ती 6:33; इब्रानियों 13:5 पढ़िए।
7-8. हावियेर ने कैसे दिखाया कि वह विश्वास से चलता है? (तसवीर भी देखें।)
7 दक्षिण अमरीका में रहनेवाले हावियेरa के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसे पता था कि विश्वास से चलना कितना ज़रूरी है। वह बताता है, “मैंने अपनी कंपनी में एक ऐसी नौकरी के लिए अर्ज़ी भरी जो मेरी पसंद की थी और जिसमें मुझे दुगनी तनख्वाह भी मिलती।” लेकिन उसे पायनियर सेवा करने का भी बहुत मन था। वह बताता है, “कंपनी के मैनेजर के साथ मेरा इंटरव्यू था। इंटरव्यू से पहले मैंने यहोवा से प्रार्थना की। मुझे यकीन था कि वह जानता है कि मेरी भलाई किसमें है। मैं यह नौकरी तो चाहता था, लेकिन अगर इसकी वजह से मैं यहोवा की सेवा में ज़्यादा नहीं कर पाता, तो मुझे यह नौकरी नहीं चाहिए थी।”
8 हावियेर कहता है, “इंटरव्यू में मैनेजर ने बताया कि मुझे अकसर ज़्यादा घंटे काम करना पड़ेगा। मैंने बड़े प्यार से उससे कहा कि मुझे प्रचार में जाना होता है, इसलिए मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगा।” हावियेर ने वह नौकरी नहीं ली। दो हफ्ते बाद उसने पायनियर सेवा शुरू कर दी। फिर कुछ महीनों बाद उसे एक पार्ट-टाइम नौकरी मिल गयी। वह बताता है, “यहोवा ने मेरी प्रार्थना सुनी और एक ऐसी नौकरी ढूँढ़ने में मेरी मदद की जिससे मैं पायनियर सेवा भी कर पाया। मैं बहुत खुश हूँ कि मैंने सही फैसला लिया। अब मैं यहोवा और भाई-बहनों के लिए और भी वक्त निकाल पाता हूँ।”
अगर आपको अपने काम की जगह तरक्की करने का मौका मिले, तो आप क्या करेंगे? क्या आपके फैसले से पता चलेगा कि आपको यहोवा पर भरोसा है? (पैराग्राफ 7-8)
9. आपने ट्रेज़ोर के अनुभव से क्या सीखा?
9 अगर आप फिलहाल एक ऐसी नौकरी कर रहे हैं जिसकी वजह से विश्वास से चलना आपके लिए मुश्किल हो रहा है, तब आप क्या कर सकते हैं? इस बारे में कांगो के रहनेवाले ट्रेज़ोर के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वह बताता है, “मैं एक ऐसी नौकरी कर रहा था जिसे पाने के लिए लोग तरसते हैं। मुझे वहाँ तीन गुना ज़्यादा पैसे मिल रहे थे और सब मेरी बहुत इज़्ज़त करते थे।” लेकिन उसे अकसर ज़्यादा घंटे काम करना पड़ता था और इस वजह से कई बार वह सभाओं में नहीं जा पाता था। उसके काम की जगह जो हेरा-फेरी होती थी, उसे छिपाने के लिए उसके साथ काम करनेवाले उसे झूठ बोलने को भी कहते थे। वह यह नौकरी छोड़ना चाहता था, लेकिन उसे चिंता थी कि उसे दूसरी नौकरी नहीं मिलेगी। तो फिर वह एक सही फैसला कैसे ले पाया? वह बताता है, “हबक्कूक 3:17-19 से मैं समझ पाया कि भले ही मुझे कम पैसों में गुज़ारा करना पड़े, पर यहोवा मेरा खयाल रखेगा। इसलिए मैंने वह नौकरी छोड़ दी।” उसने यह भी कहा, “कई मालिकों को लगता है कि अगर किसी को मोटी तनख्वाह दो, तो वह कुछ भी दाँव पर लगाने को तैयार हो जाएगा। वह अपने परिवार को और ईश्वर की सेवा को भी पीछे छोड़ देगा। लेकिन मैं खुश हूँ कि मैंने ऐसा नहीं किया। एक साल बाद यहोवा की मदद से मुझे एक ऐसी नौकरी मिल गयी जिससे मैं अपना गुज़ारा भी चला पाया और परमेश्वर की सेवा में ज़्यादा वक्त भी बिता पाया। जब हम यहोवा को अपनी ज़िंदगी में पहली जगह देते हैं, तो हो सकता है कि कुछ वक्त के लिए हमें पैसों की दिक्कत हो, लेकिन यहोवा हमारा खयाल रखेगा।” सच में, अगर हम यहोवा की सलाह मानें और उसके वादों पर भरोसा रखें, तो हम विश्वास से चल पाएँगे और हमें ढेरों आशीषें मिलेंगी।
जब जीवन-साथी चुनना हो
10. जीवन-साथी चुनते वक्त हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम आँखों-देखी चीज़ों से नहीं चल रहे?
10 शादी यहोवा परमेश्वर की तरफ से मिला एक तोहफा है। अगर एक लड़का-लड़की शादी करना चाहते हैं, तो यह एक अच्छी बात है। मान लीजिए, एक बहन शादी करने की सोच रही है। वह शायद यह देखे कि उस लड़के का स्वभाव कैसा है, वह कैसा दिखता है, लोग उसके बारे में क्या कहते हैं, पैसों के बारे में उसकी क्या सोच है या उस पर अपने परिवार की क्या ज़िम्मेदारियाँ हैं। वह शायद यह भी सोचे कि जब वह उसके साथ होती है, तो उसे कैसा लगता है।b इन बातों के बारे में सोचने में कोई बुराई नहीं है। लेकिन अगर वह बहन सिर्फ इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर फैसला ले, तो वह आँखों-देखी चीज़ों से चल रही होगी।
11. जीवन-साथी चुनते वक्त हम कैसे दिखा सकते हैं कि हम विश्वास से चल रहे हैं? (1 कुरिंथियों 7:39)
11 लेकिन परमेश्वर के जो सेवक विश्वास से चलते हैं, वे जीवन-साथी चुनते वक्त बाइबल की सलाह को ध्यान में रखते हैं। जैसे वे “जवानी की कच्ची उम्र” पार करने के बाद ही शादी के इरादे से किसी से मुलाकातें (डेटिंग) करते हैं। (1 कुरिं. 7:36) वे इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि वे जिससे शादी करने की सोच रहे हैं, उसमें वे गुण हों जो यहोवा के हिसाब से एक अच्छे पति या अच्छी पत्नी में होने चाहिए। (नीति. 31:10-13, 26-28; इफि. 5:33; 1 तीमु. 5:8) और अगर कोई ऐसा व्यक्ति उन्हें पसंद करने लगता है जो साक्षी नहीं है, तो वे 1 कुरिंथियों 7:39 में दी सलाह मानते हैं कि उन्हें “सिर्फ प्रभु में” शादी करनी चाहिए। (पढ़िए।) वे यह सब इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें पूरा यकीन है कि यहोवा उनके साथ है और वह उन्हें हर पल सँभालेगा। (भज. 55:22) सोचिए जब यहोवा अपने इन सेवकों को देखता होगा, तो उसे उन पर कितना नाज़ होता होगा!
12. आपने रोसा के अनुभव से क्या सीखा?
12 ज़रा रोसा के अनुभव पर ध्यान दीजिए जो कोलंबिया में पायनियर सेवा कर रही है। वह जो नौकरी कर रही थी, उसमें उसकी मुलाकात एक आदमी से हुई जो उसे पसंद करने लगा और वह भी उसे चाहने लगी। वह बताती है, “वह एक अच्छा इंसान था। उसमें कोई बुरी आदत नहीं थी, वह लोगों की मदद करता था और मेरे साथ भी बहुत अच्छे-से पेश आता था। मैं अपने साथी में जो बातें देखना चाहती थी, वह सब उसमें थीं। बस एक चीज़ की कमी थी, वह एक साक्षी नहीं था।” वह यह भी कहती है, “मैं सच में उसके साथ डेटिंग करना चाहती थी, इसलिए उसे ना कहना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। उस वक्त मैं बहुत अकेला भी महसूस कर रही थी। मैं शादी करना चाहती थी, पर मुझे कोई अच्छा भाई नहीं मिल रहा था।” लेकिन रोसा ने सिर्फ आँखों-देखी चीज़ों पर ध्यान नहीं दिया। उसने इस बारे में सोचा कि वह जो फैसला करेगी, उसका यहोवा के साथ उसकी दोस्ती पर क्या असर पड़ेगा। रोसा ने उस आदमी से बात करना पूरी तरह बंद कर दिया और अपना पूरा ध्यान यहोवा की सेवा में लगाने लगी। इसके कुछ ही समय बाद उसे राज प्रचारकों के लिए स्कूल में हाज़िर होने का न्यौता मिला। और आज वह खास पायनियर सेवा कर रही है। रोसा कहती है, “यहोवा ने मेरी ज़िंदगी खुशियों से भर दी है।” जब आप किसी को पसंद करने लगते हैं, तो विश्वास से चलना आसान नहीं होता। लेकिन अगर आप यहोवा की सलाह मानें, तो आपको हमेशा फायदा होगा।
जब संगठन से कोई निर्देश मिले
13. जब हमें संगठन से निर्देश मिलते हैं, तो हम किस तरह आँखों-देखी चीज़ों से चलने लग सकते हैं?
13 हमें अकसर यहोवा के संगठन से निर्देश मिलते हैं, जैसे प्राचीनों से, सर्किट निगरान से, शाखा दफतर से या शासी निकाय से। इन निर्देशों को मानने से हम और अच्छी तरह यहोवा की सेवा कर पाते हैं। लेकिन हो सकता है, कभी-कभी हमें समझ ना आए कि हमें जो निर्देश मिला है, उसके पीछे क्या वजह है। या फिर हमें लगे कि उस निर्देश को मानने से नुकसान होगा। यह भी हो सकता है कि जिन भाइयों ने हमें निर्देश दिए हैं, हम उनकी कमियों पर ध्यान देने लगें।
14. जब हमें संगठन से कोई निर्देश मिले, तो हम किस तरह विश्वास से चल सकते हैं? (इब्रानियों 13:17)
14 जब हम विश्वास से चलते हैं, तो हम भरोसा रखते हैं कि यहोवा ही संगठन को चला रहा है और वह जानता है कि हमारी भलाई किसमें है। इसलिए जब हमें कोई निर्देश मिलता है, तो हम तुरंत उसे मानते हैं और ऐसा खुशी-खुशी करते हैं। (इब्रानियों 13:17 पढ़िए।) हम यह भी याद रखते हैं कि ऐसा करने से मंडली में एकता बनी रहेगी। (इफि. 4:2, 3) यह सच है कि अगुवाई करनेवाले भाई परिपूर्ण नहीं हैं, लेकिन अगर हम उनकी बात मानें, तो हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा हमें आशीष देगा। (1 शमू. 15:22) और अगर कुछ फेरबदल की ज़रूरत है, तो यहोवा ज़रूर करेगा।—मीका 7:7.
15-16. जब निर्देश मानना मुश्किल था, तब भी एक भाई कैसे विश्वास से चलता रहा? (तसवीर भी देखें।)
15 ज़रा एक अनुभव पर ध्यान दीजिए जिससे पता चलता है कि विश्वास से चलने से फायदा होता है। पेरू देश में हर जगह स्पेनी भाषा बोली जाती है। लेकिन कई लोग वहाँ की अपनी भाषाएँ भी बोलते हैं जिनमें से एक है केचुआ। कई साल तक केचुआ बोलनेवाले भाई-बहन अपने प्रचार के इलाके में केचुआ बोलनेवाले लोगों को ढूँढ़ते थे। लेकिन फिर लोगों को ढूँढ़ने के तरीके में फेरबदल किया गया ताकि सरकारी नियमों का अच्छी तरह पालन किया जा सके। (रोमि. 13:1) तब कुछ भाई-बहनों को लगा कि अब केचुआ बोलनेवालों को ढूँढ़ना बहुत मुश्किल हो जाएगा। लेकिन भाइयों ने संगठन से मिले निर्देश माने, इसलिए यहोवा ने उनकी मेहनत पर आशीष दी और वे बहुत-से लोगों को ढूँढ़ पाए।
16 केचुआ बोलनेवाली एक मंडली के प्राचीन, भाई कैविन को भी इस बारे में चिंता हो रही थी। वे बताते हैं, “मेरे मन में यही चल रहा था कि अब हम केचुआ बोलनेवालों को कैसे ढूँढ़ पाएँगे!” तब उन्होंने क्या किया? वे कहते हैं, “मैंने नीतिवचन 3:5 पर मनन किया। मैंने मूसा के बारे में भी सोचा। यहोवा ने उससे कहा था कि वह इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाकर लाल सागर की तरफ ले जाए। उसे ऐसा लग सकता था कि यहोवा की बात मानने से वे फँस जाएँगे और मिस्री उन्हें आसानी से पकड़ लेंगे। फिर भी मूसा ने यहोवा का निर्देश माना और यहोवा ने उसे आशीष दी। यहोवा ने बहुत ही शानदार तरीके से इसराएलियों को बचाया।” (निर्ग. 14:1, 2, 9-11, 21, 22) भाई कैविन ने प्रचार करने का तरीका बदला। इसका क्या नतीजा हुआ? वे कहते हैं, “यहोवा ने जिस तरह हमें आशीष दी, उसे देखकर मैं दंग रह गया। पहले जब हम प्रचार के लिए निकलते थे, तो हमें खूब चलना पड़ता था और हमें केचुआ बोलनेवाले एक-दो लोग ही मिलते थे। लेकिन अब हम ऐसे इलाकों में प्रचार करते हैं जहाँ केचुआ बोलनेवाले बहुत-से लोग रहते हैं। इसलिए अब हम कई लोगों से बात कर पाते हैं और हमारे पास पहले से ज़्यादा वापसी भेंट और बाइबल अध्ययन हैं। सभाओं में भी ज़्यादा लोग आने लगे हैं।” सच में, जब हम विश्वास से चलते हैं, तो यहोवा हमेशा हमें इनाम देता है।
कई लोगों ने भाई-बहनों को बताया कि केचुआ बोलनेवाले लोग कहाँ रहते हैं (पैराग्राफ 15-16)
17. इस लेख से आपने क्या सीखा?
17 इस लेख में हमने तीन ज़रूरी मामलों पर ध्यान दिया जिनमें हमें विश्वास से चलते रहना है। लेकिन हमें ज़िंदगी के दूसरे मामलों में भी विश्वास से चलना चाहिए। जैसे जब हमें यह फैसला करना हो कि हम किस तरह का मनोरंजन करेंगे, खाली समय में क्या करेंगे, कितनी पढ़ाई करेंगे या बच्चों की परवरिश कैसे करेंगे। चाहे हमें किसी भी मामले में फैसला लेना हो, आइए हम आँखों-देखी चीज़ों से ना चलें। इसके बजाय आइए हम विश्वास से चलें, यानी यहोवा के साथ अपने रिश्ते के बारे में सोचें, उसकी सलाह मानें और उसके इस वादे पर पूरा भरोसा रखें कि वह हमारा खयाल रखेगा। अगर हम ऐसा करेंगे, तो “हम अपने परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर हमेशा-हमेशा तक चलते रहेंगे।”—मीका 4:5.
गीत 156 अनदेखी साफ देखूँ
a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।
b पैराग्राफ में बताया गया है कि एक बहन जीवन-साथी ढूँढ़ रही है। लेकिन यहाँ दी सलाह भाइयों के लिए भी है।