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  • यहोवा का हाथ छोटा नहीं है!
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
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  • मूसा और इसराएलियों से सीखिए
  • जब हमें पैसों की तंगी झेलनी पड़े
  • जब हमें चिंता सताए कि हमारी ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
w25 मार्च पेज 26-31

अध्ययन लेख 13

गीत 4 “यहोवा मेरा चरवाहा है”

यहोवा का हाथ छोटा नहीं है!

“क्या यहोवा का हाथ इतना छोटा है कि वह लोगों को खिला न सके?”—गिन. 11:23.

क्या सीखेंगे?

इस लेख से आपका भरोसा बढ़ेगा कि यहोवा हमेशा आपकी ज़रूरतें पूरी करेगा।

1. जब मूसा ने इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाया, तब उसने कैसे यहोवा पर भरोसा रखा?

इब्रानियों की किताब में यहोवा के कई वफादार सेवकों के बारे में बताया गया है। उनमें से एक था मूसा जिसमें गज़ब का विश्‍वास था। (इब्रा. 3:2-5; 11:23-25) उसने इसराएलियों को मिस्र से छुड़ाया था। जब फिरौन और उसकी सेना उनके पीछे आयी तो वह डरा नहीं, बल्कि उसने यहोवा पर भरोसा रखा। उसने इसराएलियों को लाल सागर पार कराया और वीराने में उनकी अगुवाई की। (इब्रा. 11:27-29) जब ज़्यादातर इसराएलियों को लगा कि यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाएगा, तब भी मूसा ने यहोवा पर भरोसा रखा। और उसका भरोसा बेकार नहीं गया। यहोवा ने वीराने में इसराएलियों को चमत्कार करके खाना और पानी दिया और उन्हें सँभाला।a—निर्ग. 15:22-25; भज. 78:23-25.

2. यहोवा ने मूसा से यह क्यों कहा, “क्या यहोवा का हाथ इतना छोटा है कि वह लोगों को खिला न सके”? (गिनती 11:21-23)

2 मूसा का विश्‍वास बहुत मज़बूत था। लेकिन इसराएलियों को छुड़ाने के करीब एक साल बाद एक मौके पर उसे यहोवा पर शक होने लगा। हुआ यह कि इसराएली गोश्‍त माँगने लगे और मूसा ने सोचा कि यहोवा इस वीराने में लाखों लोगों के लिए गोश्‍त कहाँ से लाएगा। तब यहोवा ने मूसा से कहा, “क्या यहोवा का हाथ इतना छोटा है कि वह लोगों को खिला न सके?” (गिनती 11:21-23 पढ़िए।) इस आयत में ‘यहोवा के हाथ’ का मतलब है, उसकी पवित्र शक्‍ति या उसकी ज़ोरदार शक्‍ति जिससे वह अपनी मरज़ी पूरी करता है। तो यह सवाल करके यहोवा मानो मूसा से कह रहा था, ‘तुझे क्या लगता है, मैंने जो कहा है उसे मैं पूरा नहीं कर सकता?’

3. हमें मूसा और इसराएलियों के उदाहरण पर क्यों ध्यान देना चाहिए?

3 क्या आपके मन में कभी यह शक आया है, ‘पता नहीं यहोवा मेरी और मेरे परिवार की ज़रूरतें पूरी करेगा या नहीं?’ आइए मूसा और इसराएलियों के उदाहरण पर ध्यान दें जिनके मन में भी यही शक आया था। इस लेख में हम कुछ बाइबल सिद्धांतों पर भी ध्यान देंगे और जानेंगे कि हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा का हाथ इतना छोटा नहीं कि वह हमारी ज़रूरतें पूरी ना कर सके।

मूसा और इसराएलियों से सीखिए

4. बहुत-से इसराएली शायद क्यों शक करने लगे?

4 आइए देखें कि इसराएली क्यों शक करने लगे कि यहोवा उनकी ज़रूरतें पूरी कर सकता है या नहीं। वीराने में इसराएलियों के साथ गैर-इसराएलियों की “एक मिली-जुली भीड़” भी थी जो मिस्र से उनके साथ निकली थी। उन सबको वीराने में कुछ वक्‍त हो चुका था। (निर्ग. 12:38; व्यव. 8:15) पर फिर यह मिली-जुली भीड़ मन्‍ना खाकर परेशान होने लगी और उनकी तरह बहुत-से इसराएली भी उकता गए। (गिन. 11:4-6) वे खाने की उन चीज़ों के लिए तरसने लगे जो उन्हें मिस्र में मिलती थीं, इसलिए वे मूसा से शिकायत करने लगे। उनकी शिकायत सुनकर मूसा सोचने लगा कि वह उन सबके लिए गोश्‍त कहाँ से लाएगा।—गिन. 11:13, 14.

5-6. कई इसराएलियों पर मिली-जुली भीड़ का क्या असर हुआ और उससे हम क्या सीख सकते हैं?

5 यहोवा ने जो चीज़ें दी थीं, उनके लिए गैर-इसराएलियों के दिल में कोई कदर नहीं थी। ऐसा लगता है कि कई इसराएली भी उनके जैसे बन गए थे। आज हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है। हम ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं जो दूसरों का ज़रा भी एहसान नहीं मानते। उनकी तरह शायद हम भी यहोवा का एहसान मानना छोड़ दें और उन चीज़ों के लिए तरसने लगें जो हमने पीछे छोड़ दी हैं या फिर दूसरों के पास जो कुछ है उसे देखकर जलने लगें। लेकिन अगर हम संतोष करना सीखें, तो हालात चाहे जैसे भी हों हम खुश रहेंगे।

6 इसराएलियों को इस बारे में सोचना था कि यहोवा उन्हें क्या-क्या आशीषें देनेवाला है। लेकिन उन्हें याद रखना था कि ये आशीषें उन्हें वादा किए गए देश में मिलेंगी, ना कि वीराने में। उसी तरह, हमें भी इस बारे में सोचना चाहिए कि यहोवा नयी दुनिया में हमें क्या-क्या आशीषें देगा, ना कि इस बारे में कि आज हमारे पास क्या नहीं है। यही नहीं, हम बाइबल की उन आयतों पर भी मनन कर सकते हैं जिनसे यहोवा पर हमारा भरोसा बढ़ सके।

7. हम क्यों यकीन रख सकते हैं कि यहोवा का हाथ छोटा नहीं है?

7 आप शायद सोचें कि यहोवा ने मूसा से यह क्यों कहा, “क्या यहोवा का हाथ इतना छोटा है कि वह लोगों को खिला न सके?” यहोवा शायद मूसा को यह समझाना चाह रहा था कि वह बहुत ताकतवर है और अपने लोगों की मदद कर सकता है फिर चाहे वे कहीं भी हों। जी हाँ, यहोवा उस वीराने में भी इसराएलियों को ढेर सारा गोश्‍त दे सकता था। और यहोवा ने ऐसा ही किया। उसने “अपना शक्‍तिशाली हाथ बढ़ाकर” दिखाया कि वह कितना ताकतवर है। (भज. 136:11, 12) हम भी जब मुश्‍किल में होते हैं, तो यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हममें से हरेक की मदद कर सकता है, फिर चाहे हम कहीं भी हों।—भज. 138:6, 7.

8. अगर हम वह गलती नहीं दोहराना चाहते जो इसराएलियों ने की थी, तो हमें क्या करना होगा? (तसवीर भी देखें।)

8 यहोवा ने जैसा कहा था वैसा ही किया। कुछ ही समय में, उसने लोगों के लिए ढेर सारी बटेर भेजी। लेकिन इसराएलियों ने इस चमत्कार के लिए यहोवा का शुक्रिया अदा नहीं किया। इसके बजाय, वे लालची बन गए। उनमें से कई लोग सारा दिन और सारी रात जागकर बटेर इकट्ठा करते रहे। ‘खाने के लिए उनका लालच’ देखकर यहोवा को बहुत गुस्सा आया और उसने उन्हें सज़ा दी। (गिन. 11:31-34) इस किस्से से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। हमें ध्यान रखना है कि हम लालची ना बनें। और चाहे हम अमीर हों या गरीब, हमें “स्वर्ग में धन जमा” करना है। इसके लिए हमें यहोवा और यीशु के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करना होगा, दिनों-दिन उनके करीब आना होगा। (मत्ती 6:19, 20; लूका 16:9) अगर हम ऐसा करें, तो हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा।

वीराने में रात के वक्‍त इसराएली ढेर सारी बटेर इकट्ठा कर रहे हैं।

जब यहोवा ने वीराने में बटेर भेजी, तो कई लोगों ने क्या किया और हम इस किस्से से क्या सीखते हैं? (पैराग्राफ 8)


9. हम किस बात का पूरा भरोसा रख सकते हैं?

9 आज यहोवा अपना हाथ बढ़ाकर अपने लोगों की मदद कर रहा है। पर इसका यह मतलब नहीं कि हमें कभी पैसों की दिक्कत नहीं होगी या कभी खाने की कमी नहीं होगी।b पर हाँ हम भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा कभी हमारा साथ नहीं छोड़ेगा। वह हर मुश्‍किल में हमें सँभालेगा। आइए दो हालात पर ध्यान दें जिनमें हम दिखा सकते हैं कि हमें पूरा भरोसा है कि यहोवा अपना हाथ बढ़ाकर हमारी ज़रूरतें पूरी करेगा: (1) जब हमें पैसों की तंगी झेलनी पड़े और (2) जब हमें चिंता सताए कि आगे चलकर हमारी ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी।

जब हमें पैसों की तंगी झेलनी पड़े

10. किन वजहों से हमें पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता है?

10 जैसे-जैसे इस दुनिया का अंत नज़दीक आ रहा है, लोगों को पैसों की और भी तंगी झेलनी पड़ेगी। राजनैतिक उथल-पुथल, युद्ध, कुदरती आफतों या नयी-नयी महामारियों की वजह से शायद हमारे खर्चे बढ़ जाएँ, हमारी नौकरी चली जाए, धन-संपत्ति लुट जाए या फिर हमें अपना घर छोड़कर जाना पड़े। ऐसे में हो सकता है कि हमें नयी नौकरी ढूँढ़नी पड़े या फिर गुज़ारा चलाने के लिए हमें अपने परिवार के साथ दूसरी जगह जाकर बसना पड़े। इन हालात में हम क्या फैसला लेंगे? कैसे दिखाएँगे कि हमें पूरा भरोसा है कि यहोवा का हाथ छोटा नहीं है?

11. जब पैसों को लेकर चिंता हो, तो हम क्या कर सकते हैं? (लूका 12:29-31)

11 जब हमें पैसों को लेकर चिंता होती है, तो यहोवा सबसे बढ़िया तरीके से हमारी मदद कर सकता है। (नीति. 16:3) इसलिए उसे अपनी चिंताएँ बताइए। अच्छे फैसले लेने के लिए उससे बुद्धि माँगिए और कहिए कि वह आपको एक शांत मन दे ताकि आप “हद-से-ज़्यादा चिंता” ना करें। (लूका 12:29-31 पढ़िए।) आप उससे यह बिनती भी कर सकते हैं कि अगर आपकी ज़रूरतें पूरी हो रही हैं, तो आप उसी में संतुष्ट रहें। (1 तीमु. 6:7, 8) इसके अलावा, आप हमारे प्रकाशनों में खोजबीन कर सकते हैं और ऐसे लेख पढ़ सकते हैं जिनमें बताया है कि आप पैसों की दिक्कत का कैसे सामना कर सकते हैं। हमारी वेबसाइट jw.org पर इस बारे में काफी जानकारी दी गयी है जिससे कई लोगों को बहुत फायदा हुआ है। आप उसे भी देख सकते हैं।

12. अगर आप अपने परिवार के लिए एक अच्छा फैसला करना चाहते हैं, तो आपको खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए?

12 कुछ लोगों ने अपने परिवार से दूर जाकर किसी दूसरे जगह नौकरी करने का फैसला किया है। लेकिन बाद में उन्हें एहसास हुआ कि वह अच्छा फैसला नहीं था। इसलिए कोई भी नयी नौकरी लेने से पहले सिर्फ यह मत सोचिए कि आप कितना पैसा कमा पाएँगे, बल्कि यह भी सोचिए कि क्या आप और आपका परिवार यहोवा के करीब बना रहेगा। (लूका 14:28) खुद से पूछिए: ‘अगर मैं अपने जीवन-साथी से दूर रहूँगा, तो इसका हमारे आपसी रिश्‍ते पर क्या असर पड़ेगा? क्या मैं हर सभा में जा पाऊँगा, प्रचार कर पाऊँगा और भाई-बहनों के साथ समय बिता पाऊँगा?’ अगर आपके बच्चे हैं, तो इस बारे में भी सोचिए: ‘परिवार से दूर रहकर क्या मैं “यहोवा की मरज़ी के मुताबिक सिखाते और समझाते हुए” अपने बच्चों की परवरिश कर पाऊँगा?’ (इफि. 6:4) कोई भी फैसला लेते वक्‍त अपने उन दोस्तों और रिश्‍तेदारों की मत सुनिए जो सच्चाई में नहीं हैं, बल्कि सोचिए कि यहोवा क्या चाहता है।c पश्‍चिमी एशिया के रहनेवाले टोनी को विदेश में नौकरी करने के कई मौके मिले जिससे वह अच्छा-खासा पैसा कमा सकता था। लेकिन उसने इस बारे में यहोवा से प्रार्थना की और अपनी पत्नी के साथ भी सलाह-मशविरा किया। फिर टोनी ने फैसला किया कि वह विदेश नहीं जाएगा, बल्कि अपने परिवार के साथ ही रहेगा और वे अपने खर्चे कम करेंगे। टोनी कहता है, “अपने इस फैसले की वजह से मैं कई लोगों को यहोवा के बारे में सिखा पाया। मेरे बच्चे भी आज जोश से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। हमारे पूरे परिवार ने सीखा कि अगर हम मत्ती 6:33 के हिसाब से जीएँ, तो यहोवा हमेशा हमारा खयाल रखेगा।”

जब हमें चिंता सताए कि हमारी ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी

13. बुढ़ापे में हमारा गुज़ारा चल सके, इसके लिए हम अभी क्या कर सकते हैं?

13 शायद हमें यह सोचकर भी चिंता हो कि कल को जब हम बूढ़े हो जाएँगे, तो हमारा गुज़ारा कैसे चलेगा। ऐसे में हमारी परख हो सकती है कि हमें यहोवा पर कितना भरोसा है। उसके वचन में बताया गया है कि हमें मेहनत करनी चाहिए ताकि आनेवाले कल के लिए हमारे पास कुछ हो। (नीति. 6:6-11) तो अपने भविष्य के लिए दो पैसे जोड़कर रखना अच्छा है, इसमें कोई बुराई नहीं है। क्योंकि ज़रूरत की घड़ी में ये पैसे हमारे काम आ सकते हैं। (सभो. 7:12) लेकिन हमें दिन-रात पैसा कमाने के बारे में नहीं सोचना है।

14. जब एक व्यक्‍ति भविष्य के लिए दो पैसे जोड़ने की सोचता है, तो उसे इब्रानियों 13:5 में लिखी बात क्यों ध्यान में रखनी चाहिए?

14 यीशु ने एक मिसाल में बताया था कि अगर एक व्यक्‍ति पैसा जमा करने में ही लगा रहे, लेकिन वह “परमेश्‍वर की नज़र में कंगाल” हो, तो यह समझदारी नहीं होगी। (लूका 12:16-21) हममें से कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा। (नीति. 23:4, 5; याकू. 4:13-15) इसके अलावा यीशु ने कहा था कि जो उसके चेले बनना चाहते हैं, उन्हें अपनी सारी संपत्ति ‘त्यागने’ के लिए तैयार रहना है। (लूका 14:33, फु.) पहली सदी में यहूदिया के मसीहियों ने खुशी-खुशी अपनी चीज़ों को त्याग दिया था। (इब्रा. 10:34) और आज भी कई भाई-बहनों को अपनी नौकरी और धन-संपत्ति से हाथ धोना पड़ा है। क्यों? क्योंकि उन्होंने राजनैतिक पार्टियों का साथ देने से इनकार किया। (प्रका. 13:16, 17) वे ऐसा इसलिए कर पाए, क्योंकि उन्हें यहोवा के इस वादे पर पूरा यकीन है: “मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।” (इब्रानियों 13:5 पढ़िए।) यह तो है कि हम भविष्य के लिए दो पैसे जोड़ेंगे, लेकिन अगर हमें अचानक बुरे हालात का सामना करना पड़े, तो हम भरोसा रखेंगे कि यहोवा हमें सँभालेगा।

15. मसीही माता-पिताओं को बच्चों की परवरिश के बारे में कैसी सोच रखनी चाहिए? (तसवीर भी देखें।)

15 कुछ देशों में लोग खासकर इसलिए बच्चे करते हैं, ताकि बूढ़े होने पर बच्चे उन्हें सँभाल सकें और उनका गुज़ारा चल सके। वे बच्चों को ऐसी जमा-पूँजी समझते हैं, जो आगे चलकर ब्याज समेत उन्हें वापस मिलेगी। लेकिन बाइबल में लिखा है कि माता-पिताओं को बच्चों की ज़रूरतें पूरी करनी चाहिए। (2 कुरिं. 12:14) यह सच है कि बूढ़े होने पर माता-पिताओं को मदद की ज़रूरत पड़ सकती है और बहुत-से बच्चे खुशी-खुशी अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं। (1 तीमु. 5:4) लेकिन यहोवा पर भरोसा रखनेवाले माता-पिता यह सोचकर अपने बच्चों की परवरिश नहीं करते कि बच्चे आगे चलकर पैसा कमाएँ और उनकी देखभाल करें। इसके बजाय, वे बच्चों को यहोवा का सेवक बनने में मदद देते हैं। और इससे उन्हें सबसे ज़्यादा खुशी मिलती है।—3 यूह. 4.

एक माता-पिता अपनी बेटी और उसके पति से वीडियो कॉल पर बात कर रहे हैं और बहुत खुश हैं। उनकी बेटी और उसके पति ने ऐसी जैकेट पहनी हुई है जो दूर से नज़र आती है।

जो पति-पत्नी यहोवा पर भरोसा रखते हैं वे अपने भविष्य के लिए कोई फैसला लेते वक्‍त बाइबल सिद्धांतों को ध्यान में रखते हैं (पैराग्राफ 15)d


16. माता-पिता किस तरह बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखा सकते हैं? (इफिसियों 4:28)

16 माता-पिताओ, बच्चों के लिए अच्छी मिसाल रखिए और उन्हें यहोवा पर भरोसा करना सिखाइए। उन्हें ट्रेनिंग दीजिए ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। उन्हें बचपन से ही मेहनत करना सिखाइए। (नीति. 29:21; इफिसियों 4:28 पढ़िए।) उन्हें बढ़ावा दीजिए कि वे स्कूल में अच्छी तरह पढ़ें-लिखें। इसके अलावा वे कितनी पढ़ाई करेंगे, यह फैसला लेने में भी उनकी मदद कीजिए। आप यह कैसे कर सकते हैं? इस बारे में बाइबल सिद्धांत ढूँढ़िए और फिर बच्चों के साथ उन पर चर्चा कीजिए। तब आपके बच्चे एक ऐसा फैसला ले पाएँगे जिससे वे आगे चलकर अपना गुज़ारा चला पाएँगे और प्रचार में ज़्यादा वक्‍त बिता पाएँगे, हो सके तो पायनियर सेवा करेंगे।

17. हम किस बात का भरोसा रख सकते हैं?

17 यहोवा के वफादार सेवक भरोसा रखते हैं कि यहोवा उनकी हर ज़रूरत पूरी कर सकता है और उसमें ऐसा करने की इच्छा भी है। लेकिन जैसे-जैसे इस दुनिया का अंत करीब आ रहा है, हमें उस पर और भी ज़्यादा भरोसा रखना होगा। तो आइए हम यहोवा पर भरोसा रखें कि वह हर हाल में हमारा खयाल रखेगा और अपना शक्‍तिशाली हाथ बढ़ाकर हमारी मदद करेगा। जी हाँ, यहोवा का हाथ छोटा नहीं है!

आपका जवाब क्या होगा?

  • मूसा और इसराएलियों के साथ जो हुआ, उससे हम क्या सीख सकते हैं?

  • जब हमें पैसों की तंगी झेलनी पड़े, तो हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें यहोवा पर भरोसा है?

  • जब हमें चिंता सताए कि हमारी ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी, तो हमें क्या बात याद रखनी चाहिए?

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a अक्टूबर 2023 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “आपने पूछा” पढ़ें।

b 15 सितंबर, 2014 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “आपने पूछा” पढ़ें।

c 15 अप्रैल, 2014 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “कोई भी दो मालिकों की सेवा नहीं कर सकता” पढ़ें।

d तसवीर के बारे में: यहोवा पर भरोसा रखनेवाले एक माता-पिता अपनी बेटी से बात कर रहे हैं जो अपने पति के साथ एक राज-घर के निर्माण काम में हाथ बँटा रही है।

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