अध्ययन लेख 28
गीत 88 मुझे अपनी राहें सिखा
दूसरों से सलाह क्यों लें?
“बुद्धिमान वही है जो सलाह-मशविरा करता है।”—नीति. 13:10.
क्या सीखेंगे?
हम जानेंगे कि दूसरों की सलाह से पूरा फायदा पाने के लिए हमें क्या करना होगा।
1. अच्छे फैसले करने के लिए और अच्छी योजनाएँ बनाने के लिए हमें क्या करना होगा? (नीतिवचन 13:10; 15:22)
हम सब अच्छे फैसले करना चाहते हैं और चाहते हैं कि हम जो योजनाएँ बनाते हैं, उनमें हमें कामयाबी मिले। परमेश्वर के वचन में बताया गया है कि इसके लिए हमें दूसरों से सलाह लेनी होगी।—नीतिवचन 13:10; 15:22 पढ़िए।
2. यहोवा ने हमारे लिए क्या करने का वादा किया है?
2 इस दुनिया में हमें सबसे अच्छी सलाह हमारा पिता यहोवा ही दे सकता है। इसलिए हमें प्रार्थना करके उससे बुद्धि माँगनी चाहिए। उसने हमसे वादा किया है, “मैं तुझ पर हर पल नज़र रखकर तुझे सलाह दूँगा।” (भज. 32:8) इससे पता चलता है कि वह सबको एक जैसी सलाह नहीं देता, बल्कि हरेक पर ध्यान देता है और उसके हिसाब से उसे सलाह देता है। और फिर उस सलाह के मुताबिक काम करने में वह हमारी मदद भी करता है।
3. इस लेख में हम क्या जानेंगे?
3 इस लेख में हम परमेश्वर के वचन से चार सवालों के जवाब जानेंगे: (1) अगर मैं चाहता हूँ कि दूसरों की अच्छी सलाह से मुझे फायदा हो, तो मुझमें कौन-से गुण होने चाहिए? (2) मुझे अच्छी सलाह कौन दे सकता है? (3) क्या बात दिखाएगी कि मैं सच में सलाह लेना चाहता हूँ? और (4) यह क्यों अच्छा होगा कि मैं अपने फैसले खुद लूँ, ना कि दूसरे?
मुझमें कौन-से गुण होने चाहिए?
4. दूसरों की अच्छी सलाह से फायदा पाने के लिए हममें कौन-से गुण होने चाहिए?
4 हमें दूसरों की अच्छी सलाह से तभी फायदा होगा जब हम नम्र होंगे और अपनी मर्यादा में रहेंगे। हमें मानना होगा कि हमें हर बात का तजुरबा नहीं होता या उस बारे में पूरी-पूरी जानकारी नहीं होती। ऐसे में अच्छे फैसले करने के लिए हमें दूसरों से सलाह लेनी पड़ सकती है। अगर हम नम्र ना हों और अपनी मर्यादा में ना रहें, तो यहोवा हमारी मदद नहीं कर पाएगा। इस वजह से बाइबल पढ़ते वक्त अगर हमें उससे कोई सलाह मिले, तो उसका हमारे दिल पर कोई असर नहीं होगा, ठीक जैसे पत्थर पर पानी पड़ने से कोई असर नहीं होता। (मीका 6:8; 1 पत. 5:5) लेकिन अगर हम नम्र होंगे और अपनी मर्यादा में रहेंगे, तो जब भी हमें बाइबल से कोई सलाह मिलेगी, हम फौरन उस पर ध्यान देंगे और उसके मुताबिक कदम उठाएँगे।
5. राजा दाविद ने ऐसे कौन-से काम किए थे जिनकी वजह से वह घमंडी हो सकता था?
5 ज़रा राजा दाविद के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसने जो कामयाबियाँ हासिल की थीं, उन सबकी वजह से वह घमंडी हो सकता था। राजगद्दी पर बैठने से बहुत पहले ही वह एक संगीतकार के तौर पर मशहूर था, यहाँ तक कि उसे राजा के सामने संगीत बजाने के लिए कहा गया था। (1 शमू. 16:18, 19) फिर जब अगला राजा होने के लिए दाविद का अभिषेक किया गया, उसके बाद से यहोवा की पवित्र शक्ति ज़बरदस्त तरीके से उस पर काम करने लगी। (1 शमू. 16:11-13) उसने एक लंबे-चौड़े पलिश्ती गोलियात को और दूसरे कई दुश्मनों को मार गिराया था। इस वजह से अपने लोगों में उसका बहुत नाम था। (1 शमू. 17:37, 50; 18:7) एक घमंडी इंसान इन सारी कामयाबियों की वजह से सोच सकता था कि मुझे दूसरों से सलाह लेने की कोई ज़रूरत नहीं, पर दाविद ने ऐसा नहीं सोचा।
6. हम क्यों कह सकते हैं कि दाविद हमेशा दूसरों की सलाह पर ध्यान देता था? (तसवीर भी देखें।)
6 राजा बनने के बाद दाविद ऐसे आदमियों से दोस्ती करता रहा, जो उसे सलाह दे सकते थे। (1 इति. 27:32-34) और यह कोई हैरानी की बात नहीं है। वह पहले भी लोगों की सलाह पर ध्यान देता था। उसने सिर्फ आदमियों की सलाह पर नहीं, बल्कि अबीगैल नाम की एक औरत की सलाह पर भी ध्यान दिया। अबीगैल का पति नाबाल बहुत घमंडी और एहसान-फरामोश था, वह किसी की इज़्ज़त नहीं करता था। लेकिन दाविद नम्र था। उसने अबीगैल की बढ़िया सलाह पर ध्यान दिया और इस वजह से बहुत बड़ी गलती करने से बच गया।—1 शमू. 25:2, 3, 21-25, 32-34.
राजा दाविद नम्र था, इसलिए उसने अबीगैल की सलाह सुनी और उसे माना (पैराग्राफ 6)
7. दाविद के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं? (सभोपदेशक 4:13) (तसवीरें भी देखें।)
7 दाविद से हम काफी कुछ सीख सकते हैं। जैसे हो सकता है, हम कोई काम बहुत अच्छे-से करते हों या हमारे पास कुछ अधिकार या जिम्मेदारियाँ हों। फिर भी हमें कभी-भी यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें सब पता है और हमें दूसरों से सलाह लेने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसके अलावा, हमें दाविद की तरह हमेशा दूसरों की अच्छी सलाह पर ध्यान देना चाहिए, फिर चाहे सलाह देनेवाला कोई भी हो। (सभोपदेशक 4:13 पढ़िए।) अगर हम ऐसा करें, तो हम ऐसी बड़ी-बड़ी गलतियाँ करने से काफी हद तक बच पाएँगे जिनसे हमें और दूसरों को भी तकलीफ हो सकती है।
हमें अच्छी सलाह पर ध्यान देना चाहिए, फिर चाहे सलाह देनेवाला कोई भी हो (पैराग्राफ 7)c
मुझे अच्छी सलाह कौन दे सकता है?
8. योनातान क्यों दाविद को अच्छी सलाह दे पाया?
8 दाविद के उदाहरण से हम और क्या सीख सकते हैं? उसने उन लोगों की सलाह मानी जिनका यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता था और जो उसके मुश्किल हालात को भी अच्छी तरह समझते थे। जैसे, जब वह यह जानना चाहता था कि क्या शाऊल के साथ दोबारा उसका रिश्ता अच्छा हो पाएगा या नहीं, तो इस बारे में उसने शाऊल के बेटे योनातान की सलाह मानी। योनातान उसे अच्छी सलाह क्यों दे पाया? क्योंकि उसका ना सिर्फ यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता था, बल्कि वह शाऊल को भी अच्छी तरह जानता था। (1 शमू. 20:9-13) इस घटना से हम क्या सीख सकते हैं?
9. जब हमें किसी मामले में सलाह चाहिए हो, तो हमें किससे बात करनी चाहिए? समझाइए। (नीतिवचन 13:20)
9 अगर हमें किसी मामले में सलाह चाहिए, तो हमें ऐसे व्यक्ति से बात करनी चाहिए जिसका ना सिर्फ यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता है, बल्कि जिसे उस मामले की अच्छी समझ भी है।a (नीतिवचन 13:20 पढ़िए।) मान लीजिए एक जवान भाई लड़की ढूँढ़ रहा है। उसे बढ़िया सलाह कौन दे सकता है? अगर वह किसी ऐसे दोस्त से बात करे जिसकी शादी नहीं हुई है और वह उसे बाइबल सिद्धांतों के हिसाब से सलाह दे, तो उसकी सलाह फायदेमंद हो सकती है। लेकिन अगर वह जवान भाई किसी ऐसे पति-पत्नी से बात करे जो उसे अच्छी तरह जानते हैं और जो कई सालों से साथ मिलकर यहोवा की सेवा कर रहे हैं, तो वे उसे और भी अच्छी सलाह दे सकते हैं। वे उसे ना सिर्फ यह बता सकते हैं कि वह बाइबल की सलाह कैसे मान सकता है, बल्कि उन्होंने अपनी ज़िंदगी के तजुरबे से जो सीखा है, वह भी उसे बता सकते हैं।
10. अब हम क्या चर्चा करेंगे?
10 अब तक हमने गौर किया कि सलाह से पूरा-पूरा फायदा पाने के लिए हममें कौन-से दो गुण होने चाहिए और हमें अच्छी सलाह कौन दे सकता है। अब आइए चर्चा करें कि क्या बात दिखाएगी कि हम सच में सलाह लेना चाहते हैं और यह क्यों अच्छा होगा कि हम अपने फैसले खुद करें।
क्या बात दिखाएगी कि मैं सच में सलाह लेना चाहता हूँ?
11-12. (क) कभी-कभी हम शायद क्या करें? (ख) जब राजा रहूबियाम को एक ज़रूरी फैसला लेना था, तो उसने क्या किया?
11 कभी-कभी एक व्यक्ति शायद दूसरों से सलाह ले। पर हो सकता है, उसने पहले से ही सोच लिया हो कि वह क्या करेगा और अब वह बस यह जानना चाहता है कि दूसरे उसके फैसले से सहमत हैं या नहीं। वह असल में किसी की सलाह नहीं लेना चाहता। ऐसे व्यक्ति को ध्यान देना चाहिए कि राजा रहूबियाम के साथ क्या हुआ था।
12 रहूबियाम अपने पिता सुलैमान की मौत के बाद राजा बना था। वह एक ऐसे राष्ट्र पर राज कर रहा था जो बहुत फल-फूल रहा था। लेकिन लोगों को लग रहा था कि सुलैमान ने उनके साथ बहुत ज़्यादती की है। इसलिए लोग रहूबियाम के पास आए और उन्होंने उससे बिनती की कि वह उनका बोझ थोड़ा हलका कर दे। रहूबियाम ने लोगों से कहा कि वे उसे थोड़ा वक्त दें, ताकि वह इस बारे में सोचकर कोई फैसला करे। उसने उन बुज़ुर्ग आदमियों से सलाह ली, जो सुलैमान के सलाहकार हुआ करते थे। (1 राजा 12:2-7) और ऐसा करके उसने अच्छा किया। लेकिन फिर उसने उन बुज़ुर्गों की सलाह ठुकरा दी। उसने ऐसा क्यों किया? क्या उसने इस मामले में पहले से ही मन बना लिया था कि वह क्या करेगा और अब बस यह चाहता था कि कोई उसकी हाँ-में-हाँ मिलाए? उसने अपने जवान दोस्तों से सलाह ली और उन्होंने उसे वही सलाह दी, जो शायद वह सुनना चाहता था। इसलिए उनकी सलाह उसे अच्छी लगी। (1 राजा 12:8-14) फिर उसने लोगों से वही बात कही, जो उसके दोस्तों ने उसे बतायी थी। इसका अंजाम यह हुआ कि वह राष्ट्र दो हिस्सों में बँट गया और ज़्यादातर लोगों ने अपना एक अलग राजा चुन लिया। इसके बाद से रहूबियाम को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।—1 राजा 12:16-19.
13. हम कैसे जान सकते हैं कि हम सच में दूसरों से सलाह लेना चाहते हैं?
13 रहूबियाम के उदाहरण से हम क्या सीख सकते हैं? जब सलाह-मशविरा लेने की बात आती है, तो ऐसा नहीं होना चाहिए कि हम पहले से कोई मन बना लें और फिर नाम के लिए दूसरों से सलाह लें। हमें हमेशा दूसरों की सलाह पर ध्यान देना चाहिए। हम कैसे जान सकते हैं कि हम सच में दूसरों से सलाह लेना चाहते हैं? हम सोच सकते हैं, ‘क्या ऐसा होता है कि मैं दूसरों से सलाह-मशविरा तो करता हूँ, लेकिन अगर वे ठीक वही सलाह नहीं देते जिसकी मैंने उम्मीद की थी, तो क्या मैं उसे तुरंत ठुकरा देता हूँ?’ आइए एक उदाहरण पर ध्यान दें।
14. जब कोई हमें सलाह देता है, तो हमें क्या याद रखना चाहिए? एक उदाहरण दीजिए। (तसवीर भी देखें।)
14 सोचिए कि एक भाई को अच्छी तनख्वाहवाली नौकरी मिल रही है। लेकिन वह नौकरी लेने से पहले एक प्राचीन से इस बारे में सलाह लेता है। वह बताता है कि उस नौकरी की वजह से उसे अकसर अपने परिवार से लंबे समय तक दूर रहना पड़ेगा। प्राचीन उसे बाइबल का सिद्धांत दिखाता है और उसे बताता है कि उसकी अहम ज़िम्मेदारी क्या है। यही कि वह परमेश्वर के वचन से अपने परिवारवालों को सिखाए और उन्हें मार्गदर्शन दे। (इफि. 6:4; 1 तीमु. 5:8) लेकिन मान लीजिए वह भाई फौरन उस प्राचीन की सलाह ठुकरा देता है क्योंकि उसे वह सही नहीं लगती। फिर वह एक-के-बाद-एक मंडली के कई भाई-बहनों से इस बारे में सलाह लेता है, जब तक कि उसे कोई ऐसी सलाह नहीं देता जो वह सुनना चाहता है। क्या वह भाई सच में सलाह लेना चाहता था या उसने अपना मन बना लिया था और बस चाहता था कि कोई उसकी हाँ-में-हाँ मिलाए? हमें याद रखना चाहिए कि हमारा दिल बड़ा धोखेबाज़ है। (यिर्म. 17:9) कभी-कभी जो सलाह हमें बिलकुल अच्छी नहीं लगती, उसी की हमें सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है।
क्या हम सच में सलाह लेना चाहते हैं या बस यह चाहते हैं कि कोई हमारी हाँ-में-हाँ मिलाए? (पैराग्राफ 14)
यह क्यों अच्छा होगा कि मैं अपने फैसले खुद करूँ?
15. फैसला लेने के मामले में हमें क्या नहीं करना चाहिए और क्यों?
15 यहोवा हमसे उम्मीद करता है कि हम अपने फैसले खुद करें। (गला. 6:4, 5) जैसा कि हमने अब तक चर्चा की, एक समझदार व्यक्ति कोई भी फैसला लेने से पहले परमेश्वर के वचन में उस विषय पर खोजबीन करेगा और प्रौढ़ मसीहियों से सलाह लेगा। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम फैसला लेने की अपनी ज़िम्मेदारी दूसरों पर ना डालें। कुछ लोग शायद सीधे-सीधे ऐसा करें। वे जिसकी इज़्ज़त करते हैं, उससे शायद कहें, ‘अगर आप मेरी जगह होते, तो क्या करते?’ वहीं कुछ लोग शायद सीधे-सीधे ऐसा ना करें। वे शायद दूसरों के फैसलों पर ध्यान दें और फिर बिना ज़्यादा सोचे-समझे उनकी देखा-देखी फैसला कर लें।
16. मूर्तियों को चढ़ाए गोश्त को लेकर कुरिंथ मंडली में कौन-से हालात खड़े हो गए थे? कोई मसीही ऐसा गोश्त खा सकता है या नहीं, यह किसे तय करना था? (1 कुरिंथियों 8:7; 10:25, 26)
16 पहली सदी की कुरिंथ मंडली के हालात पर ध्यान दीजिए। वहाँ के भाई-बहनों को तय करना था कि वे वह गोश्त खाएँगे या नहीं जो शायद मूर्तियों को चढ़ाया गया था। उन मसीहियों को पौलुस ने लिखा, “हम जानते हैं कि मूर्ति दुनिया में कुछ नहीं है और एक को छोड़ और कोई परमेश्वर नहीं है।” (1 कुरिं. 8:4) इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए मंडली के कुछ लोगों ने तय किया कि वे वह गोश्त खा सकते हैं जो शायद किसी मूर्ति को चढ़ाया गया था और बाद में बाज़ार में बिक रहा था। लेकिन कुछ मसीहियों ने तय किया कि वे ऐसा गोश्त नहीं खाएँगे, क्योंकि उनका ज़मीर उन्हें ऐसा करने की इजाज़त नहीं दे रहा था। (1 कुरिंथियों 8:7; 10:25, 26 पढ़िए।) यह हरेक का निजी फैसला था। पौलुस ने कुरिंथ के मसीहियों को कभी-भी यह सलाह नहीं दी कि वे दूसरों के लिए फैसले लें या दूसरों की देखा-देखी कोई फैसला करें। हरेक को “परमेश्वर को अपना हिसाब” देना था।—रोमि. 14:10-12.
17. दूसरों की देखा-देखी कोई फैसला करने से क्या हो सकता है? एक उदाहरण दीजिए। (तसवीरें भी देखें।)
17 आज भी कुछ ऐसे ही हालात खड़े हो सकते हैं। खून के छोटे-छोटे अंशों की बात लीजिए। हर मसीही को खुद फैसला करना चाहिए कि वह खून के छोटे-छोटे अंश लेगा या नहीं।b इन बातों को समझना कभी-कभी मुश्किल हो सकता है। फिर भी इस तरह के मामलों में हर मसीही को खुद फैसला करना होगा, क्योंकि यहोवा के साथ अपना रिश्ता अच्छा रखना हम सबकी अपनी ज़िम्मेदारी है। (रोमि. 14:4) अगर हम दूसरों की देखा-देखी कोई फैसला करें, तो हम अपने ज़मीर को कमज़ोर कर रहे होंगे। अगर हम चाहते हैं कि हमारा ज़मीर अच्छे-से काम करे, तो हमें अपने ज़मीर को ध्यान में रखकर और बाइबल सिद्धांतों के हिसाब से खुद फैसले करने होंगे। (इब्रा. 5:14) तो हमें किसी प्रौढ़ मसीही से कब सलाह लेनी चाहिए? हमें जिस मामले में कोई फैसला करना है, उस बारे में पहले खुद खोजबीन करनी चाहिए। फिर भी अगर हमें समझ में ना आए कि बाइबल का कोई सिद्धांत कैसे लागू करना है, तब हम किसी से सलाह ले सकते हैं।
जिस मामले में हमें फैसला लेना है, उस बारे में खोजबीन करने के बाद ही हमें सलाह लेनी चाहिए (पैराग्राफ 17)
सलाह लेते रहें
18. यहोवा ने हमारे लिए क्या किया है?
18 यहोवा चाहता है कि हम अपने फैसले खुद लें। यह दिखाता है कि उसे हम पर कितना भरोसा है। उसने हमारी मदद के लिए अपना वचन बाइबल दिया है। साथ ही ऐसे अच्छे दोस्त दिए हैं जो हमें समझा सकते हैं कि बाइबल का कोई सिद्धांत कैसे लागू करना है। एक पिता होने के नाते उसने अपनी ज़िम्मेदारी बहुत अच्छी तरह निभायी है। (नीति. 3:21-23) हम उसके लिए अपनी कदर कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं?
19. हम कैसे हमेशा यहोवा का दिल खुश कर सकते हैं?
19 ज़रा इस बारे में सोचिए। जब माता-पिता देखते हैं कि उनके बच्चे बड़े हो रहे हैं और कैसे सोच-समझकर काम करते हैं, दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहते हैं और वफादारी से यहोवा की सेवा करते हैं, तो उन्हें बहुत खुशी होती है। उसी तरह यहोवा को यह देखकर बहुत खुशी होती है कि एक मसीही होने के नाते हम समझदार होते जा रहे हैं, हमेशा दूसरों से सलाह लेने के लिए तैयार रहते हैं और ऐसे फैसले करते हैं जिनसे उसकी महिमा हो।
गीत 127 यहोवा चाहे जैसा, बनूँ मैं वैसा
a मसीही कभी-कभी पैसों के मामले में, इलाज या दूसरे मामलों में उन लोगों से सलाह ले सकते हैं, जो यहोवा की उपासना नहीं करते।
b इस बारे में और जानने के लिए खुशी से जीएँ हमेशा के लिए! किताब का पाठ 39 मुद्दा 5 और “ये भी देखें” भाग पढ़ें।
c तसवीर के बारे में: एक प्राचीन ने हाल ही में एक सभा में जिस तरह बात की, उस बारे में दूसरा प्राचीन उसे सलाह दे रहा है।