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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
w25 जुलाई पेज 26-30
फिलिप ब्रमली।

जीवन कहानी

‘लड़ाई यहोवा की है’

फिलिप ब्रमली की ज़ुबानी

28 जनवरी, 2010 को मैं फ्रांस के एक खूबसूरत शहर स्ट्रासबर्ग में था। उस वक्‍त ठंड का मौसम था, पर मैं वहाँ घूमने नहीं आया था। मैं कानून विभाग के कुछ और भाइयों के साथ मानव अधिकारों की यूरोपीय अदालत में यहोवा के साक्षियों की तरफ से लड़ने आया था। मामला यह था कि फ्रांस की सरकार हमारे भाइयों से करीब 8 करोड़ 90 लाख डॉलर टैक्स भरने की माँग कर रही थी। यह एक बड़ी रकम थी और हमें यह साबित करना था कि यह माँग गैर-कानूनी है। हमारे लिए यह केस जीतना इसलिए ज़रूरी था क्योंकि इससे यहोवा के नाम की महिमा होती, उस इलाके में यहोवा के लोगों का नाम अच्छा बना रहता और हम फ्रांस में खुलकर यहोवा की सेवा करते रह पाते। उस दिन सुनवाई के दौरान जो हुआ उससे यह साबित हो गया कि ‘लड़ाई यहोवा की है।’ (1 शमू. 17:47) चलिए मैं आपको पूरी कहानी बताता हूँ।

1999 में फ्रांस की सरकार ने फ्रांस के शाखा दफ्तर से कहा कि उन्हें 1993 से 1996 के बीच दान में जो भी पैसे मिले, उसके लिए टैक्स भरना होगा। यह माँग गैर-कानूनी थी। हम फ्रांस की कई अदालतों में गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। जब हमने कोर्ट में अपील की और हम हार गए, तो फ्रांस की सरकार ने हमारे शाखा दफ्तर के अकाउंट से 63 लाख से भी ज़्यादा डॉलर ज़ब्त कर लिए। हमारी आखिरी उम्मीद यूरोपीय अदालत थी। पर मामले की सुनवाई होने से पहले इस अदालत ने हमसे कहा कि हम फ्रांस सरकार के वकीलों और इस अदालत के अधिकारियों से मुलाकात करें ताकि हो सके तो दोनों पार्टियों के बीच सुनवाई से पहले ही समझौता हो जाए।

हमें लगा कि कोर्ट के अधिकारी हम पर दबाव डालेंगे कि हम फ्रांस की सरकार को पूरे पैसे तो नहीं, पर कम-से-कम थोड़े पैसे देकर मामला सुलझा लें। पर हम जानते थे कि अगर हम उन्हें एक पैसा भी देते तो यह बाइबल सिद्धांतों के खिलाफ होता। भाई-बहनों ने ये पैसे राज के काम के लिए दिए थे। इसलिए इन पैसों पर सरकार का कोई हक नहीं था। (मत्ती 22:21) फिर भी हम यह मुलाकात करने के लिए तैयार थे क्योंकि हम अदालत की बात मानना चाहते थे।

2010 में यूरोपीय अदालत के सामने वकीलों की हमारी टीम

हम बातचीत के लिए कोर्ट के एक आलीशान कॉन्फ्रेंस हॉल में मिले। बातचीत शुरू ही हुई थी कि कोर्ट की एक अधिकारी ने हमसे कहा कि यहोवा के साक्षियों को फ्रांस की सरकार को कुछ-ना-कुछ टैक्स ज़रूर देना होगा। लेकिन अचानक फिर ऐसा लगा कि पवित्र शक्‍ति हमें उससे यह पूछने के लिए उभार रही है, “क्या आप जानती हैं कि सरकार ने हमारे बैंक अकाउंट से पहले ही 63 लाख से भी ज़्यादा डॉलर ज़ब्त कर लिए हैं?”

यह सुनकर वह अधिकारी दंग रह गयी। जब सरकारी वकीलों ने बताया कि उन्होंने क्या किया था तो उसका रवैया एकदम से बदल गया। उसने उन्हें डाँटा और मीटिंग वहीं खत्म कर दी। मैं देख पाया कि यहोवा ने हालात का रुख ऐसे मोड़ा जो हम सोच भी नहीं सकते थे। हम बहुत खुश थे, हमें यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह सब कैसे हुआ!

30 जून, 2011 को यूरोपीय अदालत ने हमारे पक्ष में एकमत फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि टैक्स भरने की यह माँग गैर-कानूनी है। और सरकार को आदेश दिया कि हमसे टैक्स के नाम पर जो पैसे ज़ब्त किए गए थे वे लौटा दिए जाएँ, वह भी ब्याज समेत! यह एक ऐतिहासिक फैसला था। इसकी बदौलत आज तक हम फ्रांस में बिना कोई दिक्कत के शुद्ध उपासना कर पा रहे हैं। हम पहले से उस सवाल के बारे में सोचकर नहीं गए थे। पर वह एक सवाल उस पत्थर की तरह था जो गोलियात के सिर पर लगा और पासा पलट गया। हम अपनी बुद्धि के दम पर नहीं जीते, बल्कि जैसा दाविद ने गोलियात से कहा था, असल में ‘लड़ाई यहोवा की है।’—1 शमू. 17:45-47.

यह बस एक बार की बात नहीं है कि हमने कोई मुकदमा जीता हो। राजनैतिक और धार्मिक संगठनों के विरोध के बावजूद, आज तक हमने 70 देशों की ऊँची अदालतों और कई अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में 1,225 मुकदमों में जीत हासिल की है। इन मुकदमों में जीत मिलने से हमारे अधिकारों की रक्षा हुई है। जैसे, कानून की नज़र में हमें एक धर्म के तौर पर पहचाना जाता है, हमारे पास सरेआम गवाही देने की छूट है, हम देश भक्‍ति के कार्यक्रमों में हिस्सा लेने से इनकार कर पाते हैं और खून ना चढ़वाने का फैसला ले पाते हैं।

मैं तो अमरीका में यहोवा के साक्षियों के विश्‍व मुख्यालय में सेवा कर रहा था, फिर एक कानूनी मामले के सिलसिले में मेरा यूरोप आना कैसे हुआ?

मिशनरी जज़्बे के साथ पला-बढ़ा

मेरे माता-पिता का नाम जॉर्ज और लूसील था। वे गिलियड की 12वीं क्लास से ग्रैजुएट हुए थे और इथियोपिया में सेवा कर रहे थे। वहीं मेरा जन्म 1956 में हुआ। उन्होंने मेरा नाम पहली सदी के प्रचारक फिलिप्पुस पर रखा। (प्रेषि. 21:8) उसके अगले ही साल सरकार ने हमारे काम पर रोक लगा दी। मैं छोटा ही था और मुझे याद है कि हमारा परिवार छिपकर उपासना करता था। मुझे ज़्यादा कुछ तो समझ में नहीं आता था, पर ऐसे छिपकर उपासना करने में मज़ा आता था! फिर 1960 में अधिकारियों ने हमें देश से निकाल दिया।

1959 में इथियोपिया के अदिस अबाबा शहर में भाई नेथन नॉर (एकदम बायीं तरफ) हमारे परिवार से मिलते हुए

इसके बाद हमारा परिवार कन्सास राज्य के विचिटा शहर में बस गया। यह अमरीका में है। मेरे माता-पिता अपने साथ एक बहुत खास चीज़ ले कर आए: मिशनरियों का जज़्बा! उन्हें सच्चाई से बहुत प्यार था। उन्होंने मेरी, मेरी बड़ी बहन जूडी की और मेरे छोटे भाई लेसली की बहुत अच्छी परवरिश की। उन दोनों का जन्म भी इथियोपिया में हुआ था। फिर 13 साल की उम्र में मैंने बपतिस्मा ले लिया और तीन साल बाद हमारा परिवार पेरू के अरेकीपा शहर चला गया, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत थी।

1974 में जब मैं बस 18 साल का था तब पेरू शाखा दफ्तर ने मुझे और चार और भाइयों को खास पायनियर के तौर पर नियुक्‍त किया। हमें एंडीज़ पर्वतमाला के उन इलाकों में भेजा गया जहाँ अब तक प्रचार नहीं हुआ था। हमने केचुआ और ऐमारा भाषा बोलनेवाले लोगों को प्रचार किया। हम चार पहियोंवाले एक घर में रहते थे जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता था। वह एक डब्बे के जैसा दिखता था इसलिए हम उसे “नूह का जहाज़” कहते थे! मैं आज भी उन दिनों को याद करके खुश होता हूँ जब मैं उन लोगों को बाइबल से सिखाता था कि यहोवा बहुत जल्द गरीबी, बीमारी और मौत को खत्म कर देगा। (प्रका. 21:3, 4) बहुत खुशी की बात है कि वहाँ के कई लोगों ने सच्चाई अपनायी।

पानी के बीच से गुज़रता हुआ चार पहियोंवाला घर।

1974 में हमारा “नूह का ज़हाज़”

विश्‍व मुख्यालय के लिए रवाना हुआ

1977 में भाई अल्बर्ट श्रोडर, जो शासी निकाय के सदस्य थे, पेरू आए। उन्होंने मुझे बढ़ावा दिया कि मैं विश्‍व मुख्यालय में बेथेल सेवा करने के लिए अर्ज़ी भरूँ। इसलिए मैंने अर्ज़ी भर दी और फिर 17 जून, 1977 में मैंने ब्रुकलिन बेथेल में सेवा करना शुरू कर दिया। अगले चार सालों के दौरान मैंने साफ-सफाई विभाग और रख-रखाव विभाग में काम किया।

1979 में हमारी शादी के दिन

जून 1978 में न्यू ओरलीन्ज़ शहर में हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में, मैं एलीज़ाबेथ ऐवालोन नाम की एक बहन से मिला। मेरी तरह उसकी भी परवरिश सच्चाई में हुई थी। वह चार साल से पायनियर सेवा कर रही थी और ज़िंदगी-भर पूरे समय की सेवा करना चाहती थी। जैसे-जैसे हम एक-दूसरे को जानने लगे, हमें एक-दूसरे से प्यार हो गया। और फिर 20 अक्टूबर, 1979 को हमने शादी कर ली और एक-साथ बेथेल में सेवा करने लगे।

हम सबसे पहले ब्रुकलिन की स्पैनिश मंडली में थे। वहाँ के भाई-बहनों से हमें बहुत प्यार मिला। अगले कुछ सालों में हमें तीन और मंडलियों में सेवा करने का मौका मिला। वहाँ के भाई-बहनों ने भी हमारा दिल से स्वागत किया और बेथेल सेवा जारी रखने में हमारी मदद की। हम इन भाई-बहनों के बहुत शुक्रगुज़ार हैं। हम उन दोस्तों और रिश्‍तेदारों की भी बहुत कदर करते हैं जिन्होंने हमारे बुज़ुर्ग माता-पिता का खयाल रखने में हमारी मदद की।

मंडली की सभा में भाई फिलिप और बेथेल के कुछ और सदस्य।

1986 में ब्रुकलिन की स्पैनिश मंडली के वे भाई-बहन जो बेथेल में सेवा करते थे

कानूनी लड़ाइयाँ लड़ने का सिलसिला शुरू हुआ

जब जनवरी 1982 में मुझे बेथेल के कानून विभाग में सेवा करने के लिए कहा गया, तो मैं बहुत हैरान हुआ। तीन साल बाद मुझसे कहा गया कि मैं यूनिवर्सिटी जाकर कानून की पढ़ाई करूँ और एक वकील बन जाऊँ। पढ़ाई करते वक्‍त मुझे एक दिलचस्प बात पता चली। अमरीका और दूसरे कई देशों में लोगों के पास कुछ काम करने की जो आज़ादी है, वह इसलिए है क्योंकि यहोवा के साक्षियों ने कुछ अहम मुकदमे जीते हैं। इन अहम मुकदमों के बारे में हमने क्लास में कई बार चर्चा की।

1986 में जब मैं 30 साल का था तब मुझे कानून विभाग का निगरान ठहराया गया। मैं खुश था कि संगठन ने इतनी कम उम्र में मुझ पर भरोसा दिखाया। पर मुझे बहुत डर भी लग रहा था, क्योंकि मैं काफी कुछ नहीं जानता था और मुझे पता था कि इस ज़िम्मेदारी को सँभालना इतना आसान नहीं होगा।

1988 में मैं एक वकील बन गया। मगर मैं इस बात से अनजान था कि यह मुकाम हासिल करने से यहोवा के साथ मेरे रिश्‍ते पर क्या असर पड़ेगा। ऊँची शिक्षा लेने से एक व्यक्‍ति घमंडी बन सकता है और यह सोचने लग सकता है कि वह दूसरों से बेहतर है। इस मामले में मेरी पत्नी एलीज़ाबेथ ने मेरी मदद की। उसकी मदद से मैं फिर से उन कामों में लग पाया जिनसे यहोवा के साथ मेरा रिश्‍ता मज़बूत होता। इसमें थोड़ा वक्‍त लगा, लेकिन मैं फिर से यहोवा के करीब आ गया। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूँ कि दुनिया-भर का ज्ञान लेना ज़िंदगी में सबसे ज़रूरी चीज़ नहीं है। इसके बजाय हम सही मायनों में तभी खुश रह सकते हैं जब हमारा यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होगा और हम उससे और उसके लोगों से दिल से प्यार करेंगे।

खुशखबरी की पैरवी करना और उसे कानूनी मान्यता दिलाना

कानून की पढ़ाई खत्म करने के बाद मैं बेथेल के कानून विभाग के कामों में लग गया और प्रचार करने के हमारे अधिकार के लिए अदालतों में लड़ने लगा। उस वक्‍त हमारे संगठन में काफी कुछ बदल रहा था, बहुत सारे नए इंतज़ाम किए जा रहे थे इसलिए कभी-कभी कुछ मुश्‍किलें भी आती थी। लेकिन हमारा काम बहुत मज़ेदार था। जैसे, 1991 में कानून विभाग से कहा गया कि वह भाई-बहनों को एक नया निर्देश दे कि अब से हम लोगों को किताबें-पत्रिकाएँ देने के बाद दान में एक तय रकम नहीं माँगेंगे। इस निर्देश के बाद से यहोवा के साक्षी लोगों को मुफ्त में किताबें-पत्रिकाएँ देने लगे। इस वजह से बेथेल और प्रचार में हमारा काम आसान हो गया और हम बेवजह टैक्स देने से भी बच पाते हैं। कुछ लोगों को लगा कि इस वजह से हमारा संगठन घाटे में आ जाएगा और हमारा प्रचार काम धीमा पड़ जाएगा। पर इसका उल्टा हुआ! 1990 से लेकर अब तक यहोवा के साक्षियों की गिनती कई गुना बढ़ चुकी है और अब कोई भी मुफ्त में बाइबल से जुड़ी जानकारी ले सकता है। मैंने देखा कि हमारे संगठन में इतने सारे बदलाव इसलिए हो पाए क्योंकि यहोवा हमारी मदद कर रहा है और वही विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास को निर्देशन दे रहा है।—निर्ग. 15:2; मत्ती 24:45.

यह सच है कि हमारे संगठन में बहुत अच्छे वकील हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में हम सिर्फ इस वजह से मुकदमे नहीं जीतते। बल्कि जब अधिकारी देखते हैं कि यहोवा के साक्षियों का चालचलन कितना अच्छा है तब वे हमारे साथ अच्छे-से पेश आते हैं। इस बात का एक उदाहरण मैंने 1998 में देखा जब क्यूबा में खास अधिवेशन रखे गए। उन अधिवेशनों में तीन शासी निकाय के सदस्य अपनी पत्नियों के साथ आए थे। वैसे तो हमने वहाँ के अधिकारियों के साथ मीटिंग रखकर उन्हें समझाया था कि हम राजनैतिक मामलों में निष्पक्ष रहते हैं। लेकिन जब उन्होंने खुद देखा कि शासी निकाय के ये भाई और उनकी पत्नियाँ इतने प्यार से पेश आते हैं और दूसरों की इज़्ज़त करते हैं तब उनको इस बात पर और भी ज़्यादा यकीन हो गया।

लेकिन कभी-कभी जब हमें कोई और रास्ता नज़र नहीं आता तो “खुशखबरी की पैरवी करने और उसे कानूनी मान्यता दिलाने” के लिए हमें अदालत जाना पड़ता है। (फिलि. 1:7) जैसे कई सालों तक यूरोप और दक्षिण कोरिया के अधिकारी हमारा यह हक छीन रहे थे कि हम मिलिट्री सेवा करने से इनकार कर सकते हैं। इस वजह से यूरोप में लगभग 18 हज़ार भाइयों को और दक्षिण कोरिया में 19 हज़ार से ज़्यादा भाइयों को सेना में भर्ती होने से इनकार करने की वजह से जेल जाना पड़ा।

आखिरकार 7 जुलाई, 2011 को यूरोपीय अदालत ने बायातियान बनाम आर्मीनिया मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। तब से पूरे यूरोप में हर किसी को यह अधिकार मिल गया कि अगर कोई सेना में भर्ती नहीं होना चाहता तो वह गैर-फौजी लोक-सेवा कर सकता है। और फिर 28 जून, 2018 को दक्षिण कोरिया की संविधानिक अदालत ने भी इसी तरह का फैसला सुनाया। इन मुकदमों में हमारी जीत इसीलिए हो पायी क्योंकि इन देशों में हर एक जवान भाई निष्पक्ष बना रहा।

विश्‍व मुख्यालय और शाखा दफ्तरों के कानून विभाग, राज के कामों के पक्ष में लड़ने के लिए काफी मेहनत कर रहे हैं। जब सरकारें हमारे भाई-बहनों का विरोध करती हैं, तो भाई-बहनों की तरफ से लड़ना हमारे लिए एक सम्मान की बात है। भले ही हम कोई मुकदमा ना जीतें, लेकिन इससे राज्यपालों, राजाओं और राष्ट्रों को एक अच्छी गवाही मिलती है। (मत्ती 10:18) जब हम अदालत में अपना पक्ष रखते हैं या कुछ दस्तावेज़ पेश करते हैं तो उनमें बाइबल की आयतों का भी ज़िक्र करते हैं। जब मामले की सुनवाई होती है तो जजों, सरकारी वकीलों, मीडिया के लोगों और आम जनता को इन आयतों के बारे में जानना ही पड़ता है। इस तरह से नेकदिल लोग जान पाते हैं कि यहोवा के साक्षी कौन हैं और वे जो भी मानते हैं वह बाइबल पर आधारित होता है। कुछ लोगों ने इसी वजह से सच्चाई भी अपनायी है!

यहोवा, तेरा शुक्रिया!

पिछले 40 सालों के दौरान मुझे दुनिया-भर के शाखा दफ्तरों के साथ कानूनी मामलों पर काम करने का सम्मान मिला है। और इसी सिलसिले में मुझे कई बड़ी अदालतों में ऊँचे अधिकारियों के सामने जाने का भी मौका मिला है। मैं विश्‍व मुख्यालय और शाखा दफ्तरों के कानून विभाग में काम करनेवाले सभी प्यारे भाई-बहनों की बहुत इज़्ज़त करता हूँ। जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ तो मैं कह सकता हूँ कि यहोवा ने मुझे बहुत-सी आशीषें दी हैं और उसका काम करने से मुझे बहुत खुशी मिली है।

फिलिप और एलीज़ाबेथ ब्रमली।

एलीज़ाबेथ ने पिछले 45 सालों में हर अच्छे और बुरे वक्‍त में हमेशा मेरा साथ दिया है। मैं इस बात के लिए उसकी बहुत कदर करता हूँ क्योंकि वह खुद एक ऐसी बीमारी से जूझ रही है जिससे वह बहुत कमज़ोर हो गयी है।

हमने देखा है कि हम अपनी ताकत से या अपनी काबिलीयतों के दम पर कोई भी लड़ाई नहीं जीत सकते। क्योंकि जैसा दाविद ने कहा, “यहोवा अपने लोगों की ताकत है।” (भज. 28:8) सच में, ‘लड़ाई यहोवा की है!’

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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