अध्ययन लेख 30
गीत 97 ज़िंदगी टिकी याह के वचनों पे
बुनियादी शिक्षाओं में भी ढूँढ़िए कुछ नया
‘मैंने फैसला किया है कि मैं तुम्हें ये बातें याद दिलाता रहूँगा, हालाँकि तुम इन्हें जानते हो और सच्चाई में मज़बूती से खड़े हो।’—2 पत. 1:12.
क्या सीखेंगे?
आपने शुरू में बाइबल की जो बुनियादी शिक्षाएँ जानी थीं, उनसे आज भी आप कुछ ज़रूरी बातें सीख सकते हैं।
1. जब आपने शुरू में सच्चाई जानी, तो बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं से आपको कैसे फायदा हुआ?
बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ जानने से हमारी ज़िंदगी बदल गयी। जैसे, जब हमें पता चला कि परमेश्वर का नाम यहोवा है, तो हमें बहुत खुश हुई और उसे जानने का हमारा मन करने लगा। (यशा. 42:8) जब हमने जाना कि मरने पर असल में क्या होता है, तो हमारी यह चिंता दूर हो गयी कि हमारे अपने जो अब नहीं रहे वे कहीं तड़प रहे हैं। (सभो. 9:10) और जब हमने सीखा कि परमेश्वर इस धरती को फिरदौस बना देगा, तो हमने भविष्य के बारे में चिंता करना बंद कर दिया। यही नहीं, हमें यकीन हो गया कि हम सिर्फ 70-80 साल नहीं, बल्कि हमेशा-हमेशा तक जी सकते हैं।—भज. 37:29; 90:10.
2. 2 पतरस 1:12, 13 से कैसे पता चलता है कि प्रौढ़ मसीहियों को भी बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं पर ध्यान देने से फायदा हो सकता है?
2 हमें बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं को कभी हलके में नहीं लेना चाहिए। ध्यान दीजिए कि प्रेषित पतरस ने अपने दूसरे खत में उन मसीहियों को क्या लिखा जो “सच्चाई में मज़बूती से खड़े” थे। (2 पतरस 1:12, 13 पढ़िए।) पतरस ने उन्हें बाइबल की कुछ ऐसी बुनियादी शिक्षाएँ याद दिलायीं, जिनके बारे में वे पहले से जानते थे। उसने ऐसा क्यों किया? क्योंकि उस वक्त मंडली में कुछ दुष्ट लोग और झूठे शिक्षक उठ खड़े हुए थे, जो भाइयों को गुमराह करना चाहते थे। (2 पत. 2:1-3) पतरस अपने भाइयों का विश्वास मज़बूत करना चाहता था, ताकि वे उनकी बातों में ना आएँ। इसलिए उसने उन्हें ये बुनियादी शिक्षाएँ याद दिलायीं। उसे यकीन था कि इन पर ध्यान देने से वे अंत तक वफादार रह पाएँगे।
3. उदाहरण देकर समझाइए कि क्यों सभी मसीहियों को बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं पर मनन करते रहना चाहिए।
3 भले ही हम कई सालों से यहोवा की सेवा कर रहे हों, फिर भी हम बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं से नयी-नयी बातें सीख सकते हैं। एक उदाहरण पर ध्यान दीजिए। मान लीजिए कि दो बावर्ची हैं। एक खाना बनाने में बहुत माहिर है और दूसरे ने अभी-अभी खाना बनाना सीखा है। आप उन दोनों को एक ही तरह के मसाले और सब्ज़ी देते हैं और कहते हैं कि वे उनसे कुछ बनाएँ। जिसे बहुत तजुरबा है, वह शायद नए बावर्ची के मुकाबले एकदम नयी और ज़ायकेदार सब्ज़ी बना दे। उसी तरह अनुभवी मसीही नए लोगों के मुकाबले बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं से भी नयी-नयी बातें सीख लेते हैं। बपतिस्मा लेने के बाद उन्होंने अलग-अलग हालात का सामना किया है और शायद यहोवा की सेवा में अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ सँभाली हैं। इस वजह से वे बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं को नए तरीके से लागू कर पाते हैं। आइए बाइबल की तीन बुनियादी शिक्षाओं पर ध्यान दें और जानें कि प्रौढ़ मसीही उनसे क्या सीख सकते हैं।
यहोवा सृष्टिकर्ता है
4. यह सच्चाई जानने से कि यहोवा सृष्टिकर्ता है, हमें क्या फायदा हुआ है?
4 “जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है।” (इब्रा. 3:4) हम जानते हैं कि हमारी धरती और इस पर जो भी जीव-जंतु हैं, उन सबको एक बहुत ही बुद्धिमान और सर्वशक्तिमान परमेश्वर ने बनाया है। उसने हम इंसानों को भी बनाया है, इसलिए वह हमें बहुत अच्छी तरह जानता है। यही नहीं, उसे हमारी बहुत परवाह है और वह जानता है कि हमारी भलाई किसमें है। सच में, यह बुनियादी सच्चाई जानने से कि यहोवा सृष्टिकर्ता है, हमारी ज़िंदगी की कायापलट हो गयी है। हमें जीने का एक मकसद मिल गया है।
5. किस सच्चाई पर ध्यान देने से हम नम्र होना सीख सकते हैं? (यशायाह 45:9-12)
5 यहोवा सृष्टिकर्ता है, इस सच्चाई पर ध्यान देने से हम नम्र होना सीख सकते हैं। ज़रा अय्यूब के बारे में सोचिए। एक वक्त ऐसा आया जब वह खुद पर और दूसरे इंसानों पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान देने लगा था। तब यहोवा ने अय्यूब को यह सच्चाई याद दिलायी कि वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर और सृष्टिकर्ता है। (अय्यू. 38:1-4) इससे अय्यूब को एहसास हुआ कि परमेश्वर की सोच और उसके तौर-तरीके इंसानों से कहीं बेहतर हैं। सालों बाद भविष्यवक्ता यशायाह ने कुछ ऐसा ही लिखा। उसने कहा, “क्या मिट्टी का लोंदा कुम्हार से कह सकता है, ‘यह क्या बना दिया तूने?’”—यशायाह 45:9-12 पढ़िए।
6. खासकर कब इस अहम सच्चाई के बारे में सोचना अच्छा होगा कि हमारा सृष्टिकर्ता बहुत बुद्धिमान और ताकतवर है? (तसवीरें भी देखें।)
6 जब एक मसीही को यहोवा की सेवा करते सालों हो जाते हैं, तो वह शायद यहोवा की ओर ताकने और उसके वचन से मार्गदर्शन लेने के बजाय खुद पर ज़्यादा भरोसा करने लगे और अपनी राय को ज़्यादा अहमियत देने लगे। (अय्यू. 37:23, 24) लेकिन अगर वह सृष्टिकर्ता के बारे में सोचे कि वह कितना ताकतवर और कितना बुद्धिमान है, तो इससे उसे क्या फायदा हो सकता है? (यशा. 40:22; 55:8, 9) वह नम्र रह पाएगा और समझ पाएगा कि यहोवा की सोच उसकी सोच से कहीं ऊँची है।
क्या बात याद रखने से हम कभी अपनी सोच को परमेश्वर की सोच से बेहतर नहीं समझेंगे? (पैराग्राफ 6)e
7. संगठन में हुआ एक बदलाव स्वीकार करने के लिए बहन रहेला ने क्या किया?
7 स्लोवीनिया में रहनेवाली बहन रहेला को हमारे सृष्टिकर्ता के बारे में सोचने से काफी मदद मिली। इससे वे संगठन में होनेवाले बदलाव स्वीकार कर पायीं। वे बताती हैं, “कभी-कभी संगठन में अगुवाई लेनेवाले भाई जो फैसला करते हैं, उसे स्वीकार करना मेरे लिए आसान नहीं होता। जैसे शासी निकाय की एक रिपोर्टa में बताया गया था कि अब से भाई चाहें तो दाढ़ी रख सकते हैं। लेकिन जब मैंने पहली बार एक दाढ़ीवाले भाई को भाषण देते देखा, तो मुझे बहुत अजीब लगा। इसलिए मैंने यहोवा से प्रार्थना की कि इस बदलाव को स्वीकार करने में वह मेरी मदद करे।” रहेला को एहसास हुआ कि जब यहोवा ज़मीन और आसमान को बना सकता है, तो अपने संगठन का अच्छी तरह मार्गदर्शन भी कर सकता है। क्या आपको भी हमारी समझ में हुआ कोई फेरबदल या कोई नयी हिदायत मानना मुश्किल लगता है? अगर हाँ, तो क्यों ना नम्र होकर इस बात पर मनन करें कि हमारा सृष्टिकर्ता कितना बुद्धिमान और ताकतवर है?—रोमि. 11:33-36.
परमेश्वर ने दुख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं?
8. यह जानने से कि परमेश्वर ने क्यों दुख-तकलीफें रहने दी हैं, हमें क्या फायदा हुआ है?
8 परमेश्वर ने दुख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं? जिन लोगों को अभी तक इस सवाल का जवाब नहीं मिला है, उन्हें परमेश्वर पर बहुत गुस्सा आता है या कुछ लोग सोचते हैं कि परमेश्वर है ही नहीं। (नीति. 19:3) लेकिन आपने सीखा है कि हम पर आनेवाली दुख-तकलीफों के लिए यहोवा कसूरवार नहीं है, बल्कि ये तकलीफें इसलिए आती हैं क्योंकि आदम से इंसानों को पाप और अपरिपूर्णता विरासत में मिली है। और आपने यह भी सीखा है कि यहोवा के सब्र रखने की वजह से कितना फायदा हुआ है। लाखों लोग उसे जान पाए हैं और यह सीख पाए हैं कि यहोवा हमेशा के लिए दुख-तकलीफें खत्म कर देगा। (2 पत. 3:9, 15) इन सच्चाइयों से आपको काफी दिलासा मिला है और आप यहोवा के करीब आ पाए हैं।
9. खासकर किन हालात में यह सोचना अच्छा होगा कि यहोवा ने दुख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं?
9 हम यह समझते हैं कि जब तक यहोवा दुख-तकलीफें दूर नहीं कर देता, तब तक हमें सब्र रखना है। लेकिन जब हम पर या हमारे किसी परिवारवाले या दोस्त पर मुसीबत आती है, कोई नाइंसाफी होती है या हमारे किसी अपने की मौत हो जाती है, तब शायद हम सोचें, ‘यहोवा सबकुछ ठीक क्यों नहीं कर देता? वह इतनी देर क्यों कर रहा है?’ (हब. 1:2, 3) ऐसे में अच्छा होगा कि हम इस बारे में सोचें कि यहोवा नेक लोगों पर मुसीबतें क्यों आने देता है।b (भज. 34:19) यही नहीं, हम इस बारे में भी सोच सकते हैं कि यहोवा ने वादा किया है कि वह दुख-तकलीफें हमेशा के लिए खत्म कर देगा।
10. बहन ऐन को अपनी मम्मी की मौत का गम सहने में किस बात से मदद मिली?
10 परमेश्वर ने क्यों दुख-तकलीफें रहने दी हैं, यह जानने से हमें मुसीबतों में धीरज रखने में मदद मिलती है। ज़रा हिंद महासागर के मायोट द्वीप पर रहनेवाली बहन ऐन के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। वे बताती हैं, “कुछ साल पहले मेरी मम्मी की मौत हो गयी। उस वक्त मैं टूटकर रह गयी थी। लेकिन मैं बार-बार खुद को याद दिलाती हूँ कि इसके लिए यहोवा ज़िम्मेदार नहीं है। वह तो हर तरह की दुख-तकलीफों से छुटकारा दिलाने और हमारे अज़ीज़ों को दोबारा ज़िंदा करने के लिए बेताब है। इन सच्चाइयों पर मनन करने से मुझे इतनी हिम्मत और सुकून मिलता है कि मैं बता नहीं सकती।”
11. यह जानने से कि परमेश्वर ने दुख-तकलीफें क्यों रहने दी हैं, हमें प्रचार करते रहने का बढ़ावा कैसे मिलता है?
11 यह सच्चाई जानने से कि परमेश्वर ने क्यों दुख-तकलीफें रहने दी हैं, हमें प्रचार करते रहने का बढ़ावा मिलता है। पतरस ने बताया कि यहोवा के सब्र रखने की वजह से पश्चाताप करनेवाले लोगों को उद्धार पाने का मौका मिलता है। इसके बाद उसने लिखा, “तो सोचो कि आज तुम्हें कैसा इंसान होना चाहिए! तुम्हारा चालचलन पवित्र होना चाहिए और तुम्हें परमेश्वर की भक्ति के काम करने चाहिए।” (2 पत. 3:11) ‘परमेश्वर की भक्ति के कामों’ में से एक है, लोगों को खुशखबरी सुनाना। हम अपने पिता यहोवा की तरह लोगों से प्यार करते हैं और चाहते हैं कि वे परमेश्वर की नयी दुनिया में हमेशा जीएँ। आज भी यहोवा सब्र रख रहा है और आपके इलाके के लोगों को उसकी उपासना करने का मौका दे रहा है। सोचिए, उसके साथ मिलकर काम करना हमारे लिए कितनी बड़ी बात है! तो आइए अंत आने से पहले हम यहोवा को जानने में ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों की मदद करें।—1 कुरिं. 3:9.
हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं
12. यह जानने से कि हम “आखिरी दिनों” में जी रहे हैं, हमें क्या फायदा होता है?
12 बाइबल में साफ-साफ बताया गया है कि “आखिरी दिनों” में लोग कैसे होंगे। (2 तीमु. 3:1-5) आज अगर हम अपने आस-पास देखें, तो हम आसानी से समझ सकते हैं कि बाइबल की यह भविष्यवाणी पूरी हो रही है। लोगों का रवैया और उनका व्यवहार बद-से-बदतर होता जा रहा है। यह देखकर हमें और भी यकीन हो जाता है कि परमेश्वर के वचन में लिखी बातें एकदम सही हैं और हम उन पर भरोसा कर सकते हैं।—2 तीमु. 3:13-15.
13. लूका 12:15-21 में यीशु ने जो मिसाल दी, उसे ध्यान में रखते हुए हम खुद से कौन-से सवाल कर सकते हैं?
13 यह सच्चाई जानने से कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं, हम वक्त की नज़ाकत समझ पाते हैं और जान पाते हैं कि हमें किन बातों को ज़्यादा अहमियत देनी है। ध्यान दीजिए कि इस बारे में यीशु ने एक मिसाल में क्या बताया जो लूका 12:15-21 में दर्ज़ है। (पढ़िए।) इस मिसाल में जिस आदमी के बारे में बताया गया है, उसे “मूर्ख” कहा गया। वह क्यों? इसलिए नहीं कि वह आदमी बहुत अमीर था, बल्कि इसलिए कि वह उन बातों को ज़्यादा अहमियत दे रहा था जो उतनी ज़रूरी नहीं थीं। वह ‘धन-दौलत बटोरने में लगा हुआ था, मगर परमेश्वर की नज़र में कंगाल था।’ उसे क्यों इस बात पर ध्यान देना था कि वह किन बातों को अहमियत दे रहा है? क्योंकि परमेश्वर ने उससे कहा, “आज रात ही तेरी ज़िंदगी तुझसे छीन ली जाएगी।” इस मिसाल से हम क्या सीखते हैं? इस दुनिया का अंत बहुत करीब है, इसलिए हम खुद से सवाल कर सकते हैं, ‘क्या मेरे लक्ष्यों से पता चलता है कि मैं वक्त की नज़ाकत समझता हूँ? मैं किन बातों को ज़्यादा अहमियत देता हूँ? मैं अपने बच्चों को किस तरह के लक्ष्य रखने का बढ़ावा देता हूँ? क्या मैं अपनी ताकत, समय और अपने साधन सिर्फ धन-दौलत बटोरने में लगाता हूँ या फिर स्वर्ग में धन जमा करने में?’
14. जैसे बहन मिकी के अनुभव से पता चलता है, हमें क्यों इस बात पर मनन करना चाहिए कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं?
14 जब हम इस बारे में सोचते हैं कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं, तो हमारा पूरा नज़रिया ही बदल जाता है। बहन मिकी के साथ भी ऐसा ही हुआ। वह बताती है, “स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं यूनिवर्सिटी से एक ऐसा कोर्स करना चाहती थी जिसमें मैं जानवरों के बारे में अध्ययन कर सकती थी। और साथ ही मैं पायनियर सेवा भी करना चाहती थी और ऐसी जगह जाकर सेवा करना चाहती थी जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। तब मेरे कुछ अच्छे दोस्तों ने मुझे सलाह दी कि मैं इस बारे में ध्यान से सोचूँ कि अगर मैं यह पढ़ाई करूँगी, तो क्या साथ-साथ पायनियर सेवा भी कर पाऊँगी। उन्होंने मुझे याद दिलाया कि बहुत जल्द इस दुनिया का अंत होनेवाला है। और नयी दुनिया में हमारे पास वक्त-ही-वक्त होगा। तब मैं जितने चाहे उतने जानवरों के बारे में अध्ययन कर सकती हूँ। इसलिए मैंने एक छोटा कोर्स करने की सोची जिससे मैं कुछ हुनर सीख पाऊँ। फिर मुझे एक ऐसी नौकरी मिल गयी जिससे मैं पायनियर सेवा कर पायी। और कुछ समय बाद मैं इक्वाडोर में जाकर सेवा कर पायी जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है।” अब बहन मिकी और उसके पति उसी देश में सर्किट काम कर रहे हैं।
15. जिन लोगों ने अब तक हमारे संदेश में दिलचस्पी नहीं दिखायी है, उन्हें दोबारा गवाही देने से हमें पीछे क्यों नहीं हटना चाहिए? एक उदाहरण दीजिए। (तसवीरें भी देखें।)
15 जब लोग हमारा संदेश नहीं सुनते, तो हमें निराश नहीं होना चाहिए। लोगों का मन बदल सकता है। ज़रा यीशु के भाई याकूब के बारे में सोचिए। वह यीशु के साथ ही पला-बढ़ा था और समझ गया था कि यीशु ही मसीहा है और वह इस तरह सिखाता है जैसे आज तक किसी इंसान ने नहीं सिखाया। फिर भी कई सालों तक उसने यीशु पर विश्वास नहीं किया। जब यीशु की मौत हुई और उसे दोबारा ज़िंदा किया गया, उसके बाद ही वह यीशु का चेला बना और उसका जोश देखने लायक था!c (यूह. 7:5; गला. 2:9) इसलिए अगर आपके किसी रिश्तेदार ने या जान-पहचानवाले ने अब तक बाइबल के संदेश में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी है, तो उन्हें दोबारा गवाही देने से पीछे मत हटिए। याद रखिए, हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं, इसलिए लोगों को खुशखबरी सुनाना बहुत ज़रूरी है। आज आप लोगों से जो कहते हैं, शायद वे उस बारे में सोचें और बाद में जाकर कोई कदम उठाएँ। हो सकता है, महा-संकट शुरू होने के बाद!d
क्या बात याद रखने से हम अपने रिश्तेदारों को गवाही देना बंद नहीं करेंगे? (पैराग्राफ 15)f
यहोवा जो बातें याद दिलाता है, उनकी कदर करते रहिए
16. यहोवा हमें जो बातें याद दिलाता है, उनसे आपको क्या फायदा हुआ है? (“आपके लिए जानी-पहचानी, पर दूसरों के लिए नयी” नाम का बक्स भी देखें।)
16 हमारा संगठन बाइबल पर आधारित जो जानकारी देता है, उसमें से कुछ खासकर उन लोगों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है जो बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ भी नहीं जानते। जैसे हर हफ्ते होनेवाला जन भाषण, jw.org पर दिए कुछ लेख और वीडियो और जनता के लिए हमारी पत्रिकाएँ खासकर उन लोगों के लिए तैयार की जाती हैं जो यहोवा के साक्षी नहीं हैं। हालाँकि हम वे बातें जानते हैं, लेकिन जब हमें वे याद दिलायी जाती हैं, तो हम सबको उनसे फायदा होता है। इससे यहोवा के लिए हमारा प्यार गहरा होता है, उसके वचन पर हमारा विश्वास मज़बूत होता है और हम लोगों को बाइबल की बुनियादी शिक्षाएँ और भी अच्छी तरह सिखाने के काबिल बन पाते हैं।—भज. 19:7.
17. किन हालात में आप बाइबल की बुनियादी शिक्षाओं के बारे में गहराई से सोच सकते हैं?
17 जब बाइबल की किसी सच्चाई का मतलब हमें और खुलकर समझाया जाता है, तो हम यहोवा के साक्षी बहुत खुश होते हैं। लेकिन हम बाइबल की उन बुनियादी शिक्षाओं की भी बहुत कदर करते हैं जिनके बारे में सीखकर हम यहोवा की तरफ खिंचे चले आए थे। अगर कभी ऐसा हो कि यहोवा के संगठन से मिली कोई हिदायत मानने के बजाय हम खुद की राय को बहुत ज़्यादा अहमियत देने लगें, तो हमें नम्र होना चाहिए और सोचना चाहिए कि इस संगठन को हमारा सृष्टिकर्ता चला रहा है जो सबसे ताकतवर और बुद्धिमान है। अगर कभी हमें या हमारे किसी दोस्त या रिश्तेदार को किसी मुश्किल का सामना करना पड़े, तो आइए हम सब्र रखें और इस बारे में सोचें कि यहोवा ने क्यों दुख-तकलीफें रहने दी हैं। और जब हमें यह तय करना हो कि हम अपना समय और अपने साधन किन कामों में लगाएँगे, तो हम याद रख सकते हैं कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं और हमारे पास बहुत कम वक्त बचा है। तो आइए यहोवा हमें जो बातें याद दिलाता है, उन पर हम ध्यान दें और बुद्धिमान बनें और वफादारी से उसकी सेवा करते रहें।
गीत 95 बढ़ती है रौशनी सच्चाई की
a 2023 शासी निकाय की तरफ से रिपोर्ट #8
b 1 जून, 2007 की प्रहरीदुर्ग, पेज 12-16 पर दिया लेख, “बहुत जल्द सारे दुःख क्यों दूर होनेवाले हैं” देखें।
d मई 2024 की प्रहरीदुर्ग, पेज 8-13 पर दिया लेख, “यहोवा भविष्य में लोगों का किस तरह न्याय करेगा?” देखें।
e तसवीर के बारे में: एक प्राचीन कोई सुझाव देता है, पर बाकी प्राचीन उसे नहीं मानते। बाद में वह प्राचीन तारों से भरे आसमान को देखता है और सोचता है कि उसकी सोच यहोवा की सोच से बेहतर नहीं है।
f तसवीर के बारे में: एक बहन निजी अध्ययन के दौरान उन सबूतों पर गौर करती है, जिनसे पता चलता है कि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं। फिर वह अपनी सगी बहन को फोन लगाती है और उसे गवाही देती है।