वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • w25 नवंबर पेज 16-21
  • यीशु—हमदर्दी रखनेवाला महायाजक

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • यीशु—हमदर्दी रखनेवाला महायाजक
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • परमेश्‍वर का प्यारा बेटा धरती पर आया
  • यीशु ने लोगों का दर्द समझा
  • हम अपने महायाजक की तरह लोगों की मदद करते हैं
  • हमारा महायाजक आपकी मदद कर सकता है
  • फिरौती बलिदान से हम क्या सीखते हैं?
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
  • जाते-जाते भी यीशु हमें बहुत कुछ सिखा गया
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2024
  • नम्र बनिए और यह मानिए कि कुछ बातें आप नहीं जानते
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
  • यहोवा “टूटे मनवालों को चंगा करता है”
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2024
और देखिए
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2025
w25 नवंबर पेज 16-21

अध्ययन लेख 46

गीत 17 “मैं चाहता हूँ”

यीशु—हमदर्दी रखनेवाला महायाजक

“हमारा महायाजक ऐसा नहीं जो हमारी कमज़ोरियों में हमसे हमदर्दी न रख सके।”—इब्रा. 4:15.

क्या सीखेंगे?

हम जानेंगे कि यीशु लोगों का दर्द समझता है और उनसे हमदर्दी रखता है, जिस वजह से वह सबसे अच्छा महायाजक बन पाया। हम यह भी जानेंगे कि वह आज किस तरह हमारी मदद कर रहा है।

1-2. (क) यहोवा ने अपने बेटे को धरती पर क्यों भेजा? (ख) इस लेख में हम क्या जानेंगे? (इब्रानियों 5:7-9)

करीब 2,000 साल पहले यहोवा परमेश्‍वर ने अपने सबसे प्यारे बेटे यीशु को धरती पर भेजा। क्यों? एक वजह यह थी कि वह इंसानों को पाप और मौत से छुड़ाना चाहता था और शैतान की वजह से जो नुकसान हुए हैं, उन्हें ठीक करना चाहता था। (यूह. 3:16; 1 यूह. 3:8) पर यहोवा यह भी जानता था कि एक इंसान के तौर पर जीकर यीशु एक ऐसा महायाजक बन पाएगा जो लोगों का दर्द समझता है और उनसे हमदर्दी रखता है। ईसवी सन्‌ 29 में जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, तब से वह महायाजक के तौर पर सेवा करने लगा।a

2 इस लेख में हम जानेंगे कि धरती पर आने से किस तरह यीशु हमदर्दी रखनेवाला महायाजक बन पाया। जब हम इस बात को अच्छी तरह समझेंगे कि महायाजक के नाते सेवा करने के लिए यीशु कैसे पूरी तरह “परिपूर्ण” या योग्य बना, तो हम बिना हिचकिचाए यहोवा से प्रार्थना कर पाएँगे, उस वक्‍त भी जब हम पाप या अपनी कमज़ोरियों की वजह से निराश हो जाते हैं।—इब्रानियों 5:7-9 पढ़िए।

परमेश्‍वर का प्यारा बेटा धरती पर आया

3-4. जब यीशु धरती पर आया, तो उसकी ज़िंदगी में कौन-से बड़े-बड़े बदलाव हुए?

3 आज हमारे हालात कभी-भी बदल सकते हैं। हमें अपना घर, अपना परिवार और अपने दोस्तों को छोड़कर जाना पड़ सकता है। और ऐसा कई लोगों के साथ हुआ है। जब ऐसा होता है, तो हालात का सामना करना आसान नहीं होता। जब यीशु धरती पर आया, तो यह उसके लिए बहुत बड़ा बदलाव था। ऐसा बदलाव कभी किसी के साथ नहीं हुआ। स्वर्ग में वह यहोवा का सबसे खास बेटा था और उसकी “दायीं तरफ” रहता था। (भज. 16:11) हर वक्‍त उसे अपने पिता से प्यार मिलता था और वह हमेशा खुश रहता था, क्योंकि वह अपने पिता के साथ काम करता था। (नीति. 8:30) लेकिन जैसा फिलिप्पियों 2:7 में लिखा है, उसने खुशी-खुशी “अपना सबकुछ त्याग दिया।” वह स्वर्ग में एक ऊँचा पद छोड़कर धरती पर आया और पापी इंसानों के साथ रहा।

4 अब ज़रा ध्यान दीजिए कि जब यीशु पैदा हुआ और जब वह छोटा था, तो उस वक्‍त क्या हालात थे। उसके माता-पिता इतने गरीब थे कि यीशु के पैदा होने के कुछ समय बाद जब वे बलिदान चढ़ाने गए, तो वे फाख्ता या कबूतर का सिर्फ एक जोड़ा ही चढ़ा पाए। (लैव्य. 12:8; लूका 2:24) फिर जब राजा हेरोदेस को मसीहा के जन्म की खबर मिली, तो उसने यीशु को मार डालने की कोशिश की। हेरोदेस से बचने के लिए यीशु के माता-पिता उसे लेकर मिस्र भाग गए जहाँ वे कुछ समय के लिए शरणार्थी के तौर पर रहे। (मत्ती 2:13, 15) सोचिए यह यीशु के लिए कितना बड़ा बदलाव था। कहाँ वह स्वर्ग में था और अब उसे पनाह लेने के लिए इधर-उधर जाना पड़ रहा था!

5. धरती पर यीशु ने क्या देखा और इस वजह से वह किस तरह हमदर्दी रखनेवाला महायाजक बन पाया? (तसवीर भी देखें।)

5 धरती पर यीशु ने लोगों की तकलीफें देखीं। उसने अपनों को खोने का गम भी सहा। जैसे, शायद उसने अपने पिता यूसुफ को मरते हुए देखा था। अपनी सेवा के दौरान भी वह ऐसे कई लोगों से मिला जो बीमार थे, देख नहीं सकते थे, चल-फिर नहीं सकते थे और जिन्होंने अपने बच्चों को मौत में खोया था। उन्हें देखकर वह तड़प उठा। (मत्ती 9:2, 6; 15:30; 20:34; मर. 1:40, 41; लूका 7:13) यह सच है कि जब यीशु स्वर्ग में था, तब उसने लोगों की तकलीफें देखी थीं। लेकिन अब वह लोगों की तकलीफ और भी करीब से देख पाया। (यशा. 53:4) वह इंसानों की भावनाएँ, उनकी परेशानियाँ और उनका दर्द समझ पाया। इतना ही नहीं, उसने खुद भी उन भावनाओं को महसूस किया। जैसे कुछ मौकों पर वह परेशान हो उठा, बहुत थक गया और उसे गहरा दुख हुआ।

यीशु के आस-पास बहुत-से लोग उससे गुज़ारिश कर रहे हैं कि वह उन्हें ठीक कर दे। वह झुककर बड़े प्यार से एक बीमार बुज़ुर्ग आदमी के हाथ पकड़ रहा है।

यीशु लोगों से हमदर्दी रखता था और जो तकलीफ में थे, उनकी परवाह करता था (पैराग्राफ 5)


यीशु ने लोगों का दर्द समझा

6. यशायाह की भविष्यवाणी से कैसे पता चलता है कि मसीहा यानी यीशु लोगों से हमदर्दी रखता है और उनका दर्द समझता है? (यशायाह 42:3)

6 धरती पर अपनी सेवा के दौरान यीशु को उन लोगों से बहुत हमदर्दी थी जिन्हें समाज में नीची नज़रों से देखा जाता था और सताया जाता था। ऐसा करके उसने यशायाह की भविष्यवाणी को पूरा किया। इब्रानी शास्त्र में कभी-कभी अमीर और ताकतवर लोगों की तुलना सिंचे हुए बाग या बड़े-बड़े पेड़ों से की गयी है। (भज. 92:12; यशा. 61:3; यिर्म. 31:12) वहीं गरीबों की और जिन्हें सताया जाता है, उनकी तुलना कुचले हुए नरकट और टिमटिमाती बाती से की गयी है। (यशायाह 42:3 पढ़िए; मत्ती 12:20) यह तुलना करके भविष्यवक्‍ता यशायाह बता रहा था कि आनेवाला मसीहा यानी यीशु उन लोगों का दर्द समझेगा और उनसे हमदर्दी रखेगा जिन्हें समाज में बिलकुल गया-गुज़रा समझा जाता है।

7-8. यीशु ने किस तरह यशायाह की भविष्यवाणी पूरी की?

7 मत्ती ने बताया कि यीशु ने किस तरह यशायाह की भविष्यवाणी पूरी की। उसने लिखा, “वह कुचले हुए नरकट को नहीं कुचलेगा, न ही टिमटिमाती बाती को बुझाएगा।” यीशु ने उन लोगों के लिए भी चमत्कार किए जिन्हें लोग तुच्छ समझते थे और जो खुद को कुचले हुए नरकट की तरह महसूस करते थे। यही नहीं, उसने उन लोगों की भी मदद की जिनके पास कोई उम्मीद नहीं थी, जो मानो टिमटिमाती बाती की तरह बुझनेवाले थे। जैसे एक बार यीशु एक ऐसे आदमी से मिला जिसका पूरा शरीर कोढ़ से भरा हुआ था। वह आदमी ठीक होने और अपने दोस्तों और परिवारवालों के साथ रहने की कभी सोच भी नहीं सकता था। (लूका 5:12, 13) एक और मौके पर यीशु एक बहरे आदमी से मिला जो ठीक से बोल भी नहीं पाता था। ज़रा सोचिए, जब वह आदमी लोगों को मज़े से बातें करते हुए देखता होगा और उसे कुछ समझ नहीं आता होगा, तो उसके दिल पर क्या गुज़रती होगी। (मर. 7:32, 33) पर अफसोस, ऐसे लोगों को एक और दुख झेलना पड़ता था।

8 उस ज़माने में बहुत-से यहूदी मानते थे कि जिन्हें कोई बीमारी है या जो चल-फिर नहीं सकते, वे अपने या अपने माता-पिता के पापों की सज़ा भुगत रहे हैं। (यूह. 9:2) इस गलत सोच की वजह से लोग उन बेचारों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करते थे और यह एहसास दिलाते थे कि वे किसी काम के नहीं हैं। लेकिन जैसे यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, यीशु ने उन्हें ठीक किया और उनकी तकलीफ दूर की। उसने उन्हें एहसास दिलाया कि यहोवा को उनकी बहुत परवाह है। इससे उन्हें जीने की उम्मीद मिली होगी। अब आइए देखें कि यीशु हमारे बारे में कैसा महसूस करता है।

9. इब्रानियों 4:15, 16 से कैसा पता चलता है कि हमारा महायाजक हम पापी इंसानों से हमदर्दी रखता है?

9 इब्रानियों 4:15, 16 पढ़िए। हम यकीन रख सकते हैं कि यीशु हमारे साथ भी हमदर्दी रखता है। यहाँ जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “हमदर्दी” किया गया है, उसका मतलब है किसी की तकलीफ देखकर तड़प उठाना, उसका दर्द अपने दिल में महसूस करना। (पौलुस ने इस यूनानी शब्द का इस्तेमाल इब्रानियों 10:34 में भी किया।) यीशु ने जो चमत्कार किए, उन किस्सों से पता चलता है कि लोगों को तकलीफ में देखकर उसने कैसा महसूस किया। उसने सिर्फ फर्ज़ समझकर लोगों को ठीक नहीं किया। उसे सच में लोगों की परवाह थी और वह दिल से उनकी मदद करना चाहता था। जैसे, जब उसने एक कोढ़ी को ठीक किया, तो वह उसे दूर से भी ठीक कर सकता था। लेकिन वह उस कोढ़ी के पास गया और उसने छूकर उसे ठीक किया। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस आदमी को कैसा लगा होगा? शायद बरसों बाद किसी ने उसे छुआ होगा। और ध्यान दीजिए कि यीशु ने उस आदमी को कैसे ठीक किया जो सुन नहीं सकता था। उसने उसका लिहाज़ किया, वह उसे भीड़ से दूर एक शांत जगह पर ले गया और वहाँ अकेले में उसे ठीक किया। अब उस औरत के बारे में भी सोचिए जिसने अपने पापों का पश्‍चाताप किया था। उसने अपने आँसुओं से यीशु के पैर धोए और अपने बालों से उन्हें पोंछा। फरीसी उसे नीची नज़रों से देख रहे थे, लेकिन यीशु ने फरीसियों की सोच सुधारी और उस औरत के पक्ष में बोला। (मत्ती 8:3; मर. 7:33; लूका 7:44) यीशु ने कभी पापी और बीमार लोगों को दुतकारा नहीं। इसके बजाय, उसने उन्हें अपने पास बुलाया और वह उनके साथ बहुत प्यार से पेश आया। हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि यीशु आज हमसे भी प्यार करता है और हमसे हमदर्दी रखता है।

हम अपने महायाजक की तरह लोगों की मदद करते हैं

10. जो देख-सुन नहीं सकते, उनकी मदद करने के लिए हम क्या सकते हैं? (तसवीरें भी देखें।)

10 हम यीशु के चेले उसकी तरह बनना चाहते हैं, इसलिए हम दूसरों से प्यार करते हैं, उनका दर्द महसूस करते हैं और उनसे हमदर्दी रखते हैं। (1 पत. 2:21; 3:8) यीशु की तरह हम चमत्कार करके लोगों को ठीक तो नहीं कर सकते, लेकिन हम यहोवा के करीब आने में उनकी मदद ज़रूर करते हैं। जैसे यहोवा का संगठन 100 से भी ज़्यादा साइन लैंग्वेज भाषाओं में बाइबल पर आधारित प्रकाशन तैयार करता है। जो देख नहीं सकते, उनके लिए संगठन 60 से भी ज़्यादा ब्रेल भाषाओं में किताबें निकालता है। और जिन्हें ठीक से दिखायी नहीं देता, उनके लिए 100 से भी ज़्यादा भाषाओं में ऑडियो डिसक्रिप्शन तैयार किए जाते हैं (ऑडियो डिसक्रिप्शन में बताया जाता है कि वीडियो में क्या सीन चल रहा है)। यह सब करने की वजह से जो लोग देख-सुन नहीं सकते, वे भी यहोवा और उसके बेटे के करीब आ पाते हैं।

तसवीरें: 1. राज-घर में साइन लैंग्वेज मंडली की सभा चल रही है और भाई-बहन इशारों में राज-गीत गा रहे हैं। 2. एक बहन जो देख नहीं सकती, ब्रेल भाषा में बाइबल पढ़ रही है।

बाइबल पर आधारित हमारे प्रकाशन 1,000 से भी ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं

बायीं तरफ: 100 से भी ज़्यादा साइन लैंग्वेज भाषाएँ

दायीं तरफ: 60 से भी ज़्यादा ब्रेल भाषाएँ

(पैराग्राफ 10)


11. हम क्यों कह सकते हैं कि यहोवा का संगठन यीशु की तरह सब लोगों से हमदर्दी रखता है? (प्रेषितों 2:5-7, 33) (तसवीरें भी देखें।)

11 यहोवा का संगठन बहुत मेहनत कर रहा है, ताकि हर तरह के लोग यहोवा के करीब आ सकें। याद कीजिए कि यीशु के ज़िंदा होने के बाद उसने पिन्तेकुस्त के दिन पवित्र शक्‍ति उँडेली थी ताकि जो लोग त्योहार के लिए आए थे, वे सभी ‘अपनी भाषा’ में खुशखबरी सुन सकें। (प्रेषितों 2:5-7, 33 पढ़िए।) यीशु की निगरानी में आज संगठन 1,000 से भी ज़्यादा भाषाओं में बाइबल पर आधारित प्रकाशन तैयार कर रहा है, उन भाषाओं में भी जिन्हें बोलनेवाले बहुत ही कम लोग हैं। जैसे, उत्तर और दक्षिण अमरीका में ऐसी कई भाषाएँ (एमेरिन्डियन भाषाएँ) हैं जिन्हें बहुत कम लोग बोलते हैं। लेकिन इनमें से 160 से भी ज़्यादा भाषाओं में हमारे प्रकाशन तैयार किए गए हैं ताकि ज़्यादा-से-ज़्यादा लोग खुशखबरी सुन सकें। इसके अलावा, यूरोप में रहनेवाले रोमा लोगों की बिरादरी में कई भाषाएँ (रोमानी भाषाएँ) बोली जाती हैं। हमारे संगठन ने 20 से भी ज़्यादा भाषाओं में उनके लिए प्रकाशन निकाले हैं। इन भाषाओं को बोलनेवाले हज़ारों लोगों ने सच्चाई अपनायी है और यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

तसवीरें: 1. एक बहन ने अपनी भाषा में यानी एमेरिन्डियन भाषा में बाइबल को कसकर पकड़ा हुआ है और वे मुस्कुरा रही हैं। 2. रोमानी भाषा बोलनेवाली एक बहन और उनकी बेटी अधिवेशन में बैठे हैं और बहुत खुश नज़र आ रहे हैं।

बायीं तरफ: 160 से भी ज़्यादा एमेरिन्डियन भाषाएँ

दायीं तरफ: 20 से भी ज़्यादा रोमानी भाषाएँ

(पैराग्राफ 11)


12. यहोवा का संगठन और किस तरह लोगों की मदद करता है?

12 खुशखबरी को दूर-दूर तक पहुँचाने के अलावा, यहोवा का संगठन राहत काम भी करता है। जब भी कोई प्राकृतिक विपत्ति आती है, तो हज़ारों भाई-बहन ज़रूरतमंद भाई-बहनों की मदद करते हैं। हमारा संगठन जल्द-से-जल्द उपासना की जगहों को भी तैयार करता है ताकि लोग इकट्ठा होकर यहोवा के बारे में सीख सकें और उसका प्यार महसूस कर सकें।

हमारा महायाजक आपकी मदद कर सकता है

13. यीशु किन तरीकों से हमारी मदद करता है?

13 यीशु अच्छा चरवाहा है और वह हममें से हरेक का खयाल रखता है ताकि यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत बना रहे। (यूह. 10:14; इफि. 4:7) कभी-कभी हम इतना निराश हो जाते हैं कि हम टिमटिमाती बाती या कुचले हुए नरकट की तरह महसूस करते हैं। हो सकता है, हमें कोई बड़ी बीमारी हो जाए, हम कोई गलती या पाप कर बैठें या फिर किसी भाई या बहन के साथ हमारी अनबन हो जाए। ऐसे में शायद हम बस अपनी समस्या के बारे में ही सोचते रहें और भविष्य के लिए हमारे पास जो आशा है, उस पर ध्यान ही ना दें। लेकिन याद रखिए कि यीशु आपसे हमदर्दी रखता है। वह आपकी तकलीफ जानता है और उसे पता है कि आप कैसा महसूस कर रहे हैं। इसलिए वह ज़रूर आपकी मदद करेगा। जैसे, जब आप कमज़ोर महसूस करते हैं, तो पवित्र शक्‍ति देकर वह आपमें दम भर सकता है। (यूह. 16:7; तीतु. 3:6) इसके अलावा, वह ‘आदमियों के रूप में तोहफों’ यानी प्राचीनों के ज़रिए और दूसरे भाई-बहनों के ज़रिए आपको सहारा दे सकता है और आपकी हिम्मत बँधा सकता है।—इफि. 4:8.

14. जब हम निराश महसूस करते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

14 अगर आप कुचला हुए महसूस कर रहे हैं और टिमटिमाती बाती की तरह आपका जोश कम होने लगा है, तो याद रखिए कि यीशु हमारा महायाजक है। यहोवा ने उसे धरती पर सिर्फ फिरौती देने के लिए नहीं भेजा था, बल्कि इसलिए भी भेजा था कि वह हम इंसानों की तकलीफें अच्छी तरह समझ सके। तो जब हम अपनी किसी कमज़ोरी या पाप की वजह से निराश हो जाते हैं, तो हमें याद रखना है कि यीशु हमारी मदद करने के लिए तैयार है और वह “सही वक्‍त पर” ऐसा करेगा।—इब्रा. 4:15, 16.

15. मंडली में वापस लौट आने में एक भाई की कैसे मदद की गयी?

15 यहोवा की जो भेड़ें उससे दूर चली जाती हैं, यीशु उन्हें ढूँढ़ने में और उनकी मदद करने में भी अपने लोगों का मार्गदर्शन करता है। (मत्ती 18:12, 13) ज़रा भाई स्टेफानोb के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उन्हें मंडली से निकाल दिया गया था, लेकिन 12 साल बाद उन्होंने सोचा कि वे एक सभा में जाएँगे। वे बताते हैं, “मुझे बहुत अजीब लग रहा था, लेकिन फिर भी मैं सभा में गया। मैं दोबारा यहोवा के परिवार के साथ मिलकर उसकी सेवा करना चाहता था। जो प्राचीन मुझसे मिलने आए थे, उन्होंने बहुत प्यार से मेरा स्वागत किया। लेकिन इसके बाद भी कभी-कभी मुझे लगता था कि मैं कितना गया-गुज़रा इंसान हूँ और मैं हिम्मत हारने लगता था। लेकिन प्राचीनों ने मुझे याद दिलाया कि यहोवा और यीशु चाहते हैं कि मैं कोशिश करता रहूँ। जब मुझे बहाल किया गया, तो पूरी मंडली ने मेरा और मेरे परिवार का दिल से स्वागत किया। आगे चलकर मेरी पत्नी ने भी बाइबल अध्ययन शुरू किया और आज हमारा पूरा परिवार मिलकर यहोवा की सेवा कर रहा है।” ज़रा सोचिए, जब हमारा महायाजक यीशु यह देखता है कि पश्‍चाताप करनेवालों की किस तरह मदद की जा रही है, तो उसे कितनी खुशी होती होगी!

16. आप क्यों एहसानमंद हैं कि यहोवा ने हमारे लिए ऐसा महायाजक चुना है जो हमसे हमदर्दी रखता है?

16 जब यीशु धरती पर था, तो उससे लोगों का दुख देखा नहीं गया और उसने तुरंत उनकी मदद की। आज हम भी यकीन रख सकते हैं कि ज़रूरत की घड़ी में वह हमारी भी मदद करेगा। इतना ही नहीं, नयी दुनिया में भी वह वफादार लोगों की मदद करेगा और पाप और अपरिपूर्णता से जो भी नुकसान हुए हैं, उन्हें ठीक कर देगा। हम यहोवा के कितने एहसानमंद हैं कि उसने हमसे इतना प्यार किया है कि अपने बेटे को हमारा महायाजक चुना, ऐसा महायाजक जो हमसे हमदर्दी रखता है!

आपका जवाब क्या होगा?

  • धरती पर आने की वजह से यीशु किस तरह एक अच्छा महायाजक बन पाया?

  • यीशु ने यशायाह 42:3 में लिखी बात कैसे पूरी की?

  • हमारा महायाजक आज कैसे हमारी मदद करता है?

गीत 13 मसीह, हमारा आदर्श

a यीशु ने किस तरह मंदिर में सेवा करनेवाले महायाजक की जगह ली, इस बारे में और जानने के लिए “यहोवा के महान मंदिर में सेवा करना—एक अनोखी आशीष” नाम के लेख का पेज 26, पैरा. 7-9 पढ़ें। यह लेख अक्टूबर 2023 की प्रहरीदुर्ग में आया था।

b यह नाम भाई का असली नाम नहीं है।

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें