अध्ययन लेख 47
गीत 38 वह तुम्हें मज़बूत करेगा
आप परमेश्वर के लिए बहुत अनमोल हैं!
“तू परमेश्वर के लिए बहुत अनमोल है।”—दानि. 9:23.
क्या सीखेंगे?
जिन लोगों को लगता है कि वे किसी लायक नहीं हैं, उन्हें इस लेख में यकीन दिलाया गया है कि वे यहोवा की नज़र में अनमोल हैं।
1-2. हम खुद को कैसे यकीन दिला सकते हैं कि हम यहोवा की नज़र में अनमोल हैं?
यहोवा अपने सेवकों से बहुत प्यार करता है। लेकिन दुख की बात है कि उसके कुछ सेवक खुद को बहुत गया-गुज़रा समझते हैं। क्यों? हो सकता है, लोगों ने उनके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया हो, उन्हें दुतकारा हो। और इस वजह से वे ऐसा महसूस करते हों। क्या आपको भी लगता है कि आप किसी लायक नहीं? अगर हाँ, तो आप खुद को कैसे यकीन दिला सकते हैं कि आप यहोवा की नज़र में अनमोल हैं?
2 यहोवा ने बाइबल में ऐसी घटनाएँ लिखवायी हैं जिनसे पता चलता है कि वह लोगों को किस नज़र से देखता है। इसलिए उन घटनाओं को पढ़िए और उनके बारे में गहराई से सोचिए। परमेश्वर का बेटा यीशु भी हमेशा लोगों के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आया। इस तरह उसने दिखाया कि जो लोग खुद को बहुत बेकार समझते हैं, वे उसके और उसके पिता की नज़र में बहुत अनमोल हैं। (यूह. 5:19; इब्रा. 1:3) इस लेख में हम जानेंगे कि (1) यीशु ने कैसे लोगों को इस बात का यकीन दिलाया कि वे यहोवा की नज़र में अनमोल हैं और (2) हम किस तरह खुद को यकीन दिला सकते हैं कि यहोवा हमसे बहुत प्यार करता है।—हाग्गै 2:7.
यीशु ने लोगों को कैसे यकीन दिलाया कि वे अनमोल हैं?
3. यीशु गलील के लोगों के साथ किस तरह पेश आया?
3 जब यीशु तीसरी बार गलील में प्रचार करने गया, तो भीड़-की-भीड़ उसकी बातें सुनने के लिए और ठीक होने के लिए उसके पास आयी। यीशु ने उन लोगों के बारे में कहा, ‘वे ऐसी भेड़ों की तरह हैं जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो।’ (मत्ती 9:36; अध्ययन नोट देखें।) उस ज़माने के धर्म गुरु उन लोगों को बहुत ही तुच्छ समझते थे और उन्हें “शापित लोग” कहते थे। (यूह. 7:47-49) लेकिन यीशु उनकी बहुत इज़्ज़त करता था। वह उनके लिए वक्त निकालता था, उन्हें सिखाता था और उनकी बीमारियाँ दूर करता था। (मत्ती 9:35) वह ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों की मदद करना चाहता था, इसलिए उसने अपने प्रेषितों को भी प्रचार करना सिखाया और उन्हें बीमारियाँ और शरीर की कमज़ोरियाँ दूर करने का अधिकार दिया।—मत्ती 10:5-8.
4. यीशु मामूली लोगों के साथ जिस तरह पेश आया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?
4 जो लोग यीशु की बातें सुनने आते थे, वह उनके साथ बहुत ही प्यार से पेश आता था और उनका लिहाज़ करता था। इस तरह उसने दिखाया कि वह और उसका पिता उन लोगों को कितना अनमोल समझते हैं जिन्हें समाज में नीची नज़रों से देखा जाता है। क्या आप यहोवा के एक सेवक हैं और आपको लगता है कि आपका कोई मोल नहीं? अगर हाँ, तो सोचिए कि यीशु उन मामूली लोगों के साथ कैसे पेश आया जो उसके पास आते थे। अगर आप इस बारे में सोचें, तो आपको यकीन हो जाएगा कि आप यहोवा की नज़र में बहुत अनमोल हैं।
5. गलील में यीशु जिस औरत से मिला, उसके बारे में हम क्या जानते हैं?
5 यीशु ने ना सिर्फ लोगों की भीड़ को सिखाया, बल्कि उसे हरेक इंसान की भी बहुत परवाह थी। जैसे जब वह गलील में प्रचार कर रहा था, तो एक ऐसी औरत उससे मिलने आयी जिसे 12 साल से खून बहने की बीमारी थी। (मर. 5:25) अपनी इस हालत की वजह से वह अशुद्ध थी और अगर कोई भी उसे छूता, तो वह अशुद्ध हो जाता। इस वजह से वह लोगों से मिल-जुल नहीं पाती थी और दूर-दूर रहती थी। यही नहीं, वह उपासना के लिए सभा-घर में नहीं जा सकती थी, ना ही लोगों के साथ मिलकर त्योहार मना सकती थी। (लैव्य. 15:19, 25) यह औरत ना सिर्फ अपनी बीमारी की वजह से तकलीफ में थी, बल्कि अंदर से भी पूरी तरह टूट गयी होगी।—मर. 5:26.
6. जिस औरत को खून बहने की बीमारी थी, वह किस तरह ठीक हुई?
6 वह दुखी औरत चाहती थी कि यीशु उसकी तकलीफ दूर कर दे। लेकिन वह सीधे यीशु से मदद माँगने नहीं गयी। क्यों नहीं? हो सकता है, वह अपनी हालत की वजह से शर्मिंदा महसूस कर रही हो। या उसे इस बात का डर हो कि अगर वह अशुद्ध हालत में भीड़ के बीच जाएगी, तो कहीं यीशु उसे डाँटकर भगा ना दे। इसलिए उसने बस उसके कपड़े को छूआ। उसे विश्वास था कि ऐसा करने से ही वह ठीक हो जाएगी। (मर. 5:27, 28) और ऐसा ही हुआ! वह ठीक हो गयी। फिर जब यीशु ने पूछा कि किसने उसे छूआ, तो उसने सबके सामने मान लिया कि उसी ने यीशु को छूआ था। तब यीशु उसके साथ कैसे पेश आया?
7. यीशु उस दुखी औरत के साथ कैसे पेश आया? (मरकुस 5:34)
7 यीशु उस औरत के साथ प्यार और इज़्ज़त से पेश आया। उसने देखा कि वह ‘डरी’ हुई है और ‘काँप’ रही है। (मर. 5:33) इसलिए उसने बहुत प्यार से उससे बात की और उसकी हिम्मत बँधायी। उसने उसे “बेटी” कहा। ऐसा कहकर यीशु ने दिखाया कि वह ना सिर्फ उसकी इज़्ज़त करता है, बल्कि उससे लगाव भी रखता है। (मरकुस 5:34 पढ़िए।) इस बारे में अध्ययन नोट में बताया है, “लिखित में यही एक घटना है जहाँ यीशु ने सीधे-सीधे एक औरत को ‘बेटी’ कहा, क्योंकि शायद उसके हालात बहुत नाज़ुक थे और वह ‘काँप रही थी।’” क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि यीशु की बात सुनकर उस औरत को कितना सुकून मिला होगा? अगर यीशु उसकी हिम्मत नहीं बँधाता, तो शायद वह ठीक तो हो जाती, लेकिन उसका ज़मीर हमेशा उसे कचोटता क्योंकि उसने अशुद्ध हालत में यीशु को छूआ था। इसलिए उस औरत के ठीक होने के बाद यीशु ने उसे यकीन दिलाया कि वह यहोवा की प्यारी बेटी है।
8. ब्राज़ील में रहनेवाली मारीया को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा?
8 आज भी परमेश्वर के कुछ सेवकों को बीमारियों से लड़ना पड़ता है, इसलिए वे खुद को बिलकुल बेकार समझते हैं। ज़रा ब्राज़ील में रहनेवाली मारीयाa के उदाहरण पर ध्यान दीजिए, जो पायनियर सेवा कर रही है। जब वह पैदा हुई थी, तो उसके दोनों पैर और बायाँ हाथ नहीं था। वह बताती है, “स्कूल के बच्चे हमेशा मुझे सताते थे और मेरा मज़ाक उड़ाने के लिए मुझे अलग-अलग नाम से बुलाते थे। मेरे घरवाले भी मुझे नीची नज़रों से देखते थे।”
9. मारीया को कैसे इस बात का यकीन हुआ कि वह यहोवा की नज़र में अनमोल है?
9 मारीया को किस बात से मदद मिली? जब वह यहोवा की एक साक्षी बनी, तो भाई-बहनों ने उसकी हिम्मत बँधायी और उसकी मदद की ताकि वह खुद को उसी नज़र से देखे, जैसे यहोवा उसे देखता है। वह कहती है, “मैं बता नहीं सकती कि कितने सारे भाई-बहनों ने मेरी मदद की है। अगर मैं उन सबके नाम एक किताब में लिखूँ, तो वह भी कम पड़ जाएगी। यहोवा का बहुत शुक्रिया कि उसने मुझे इतना बढ़िया परिवार दिया है, जिसमें इतने प्यारे भाई-बहन हैं।” उन भाई-बहनों ने मारीया को यकीन दिलाया कि वह यहोवा की नज़र में बहुत अनमोल है।
10. मरियम मगदलीनी किस तकलीफ से गुज़र रही थी और इस वजह से उसे कैसा लगता होगा? (तसवीरें भी देखें।)
10 अब आइए एक और औरत के उदाहरण पर ध्यान देते हैं, जिसे यीशु ने ठीक किया था। वह थी मरियम मगदलीनी। उसमें सात दुष्ट स्वर्गदूत समाए हुए थे! (लूका 8:2) इस वजह से वह अजीबो-गरीब हरकतें करती होगी और लोग भी उससे दूर-दूर रहते होंगे। ज़रा सोचिए, अपनी इस हालत की वजह से वह कितना बेबस और अकेला महसूस करती होगी। उसे कितना बुरा लगता होगा कि लोग उसे दुतकारते हैं। ऐसा लगता है कि यीशु ने ही मरियम में से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला था और इसके बाद वह उसकी शिष्या बन गयी। यीशु ने मरियम को और किस तरह यकीन दिलाया कि वह यहोवा की नज़र में बहुत अनमोल है?
यीशु ने मरियम मगदलीनी को कैसे यकीन दिलाया कि वह यहोवा की नज़र में अनमोल है? (पैराग्राफ 10-11)
11. यीशु ने मरियम मगदलीनी को कैसे यकीन दिलाया कि वह यहोवा की नज़र में अनमोल है? (तसवीरें भी देखें।)
11 जब यीशु प्रचार के दौरों पर गया, तो उसने मरियम मगदलीनी को भी अपने साथ आने के लिए कहा।b इस वजह से वह यीशु से और भी बातें सीख पायी। और जिस दिन यीशु को ज़िंदा किया गया, उसी दिन वह मरियम से मिला। मरियम उन चेलों में से सबसे पहली थी, जिससे यीशु ने उस दिन बात की। यीशु ने उसे एक काम भी सौंपा। उसने उससे कहा कि वह जाकर प्रेषितों को बताए कि उसे ज़िंदा कर दिया गया है। यीशु मरियम के साथ जिस तरह पेश आया, उससे उसने दिखाया कि वह यहोवा की नज़र में कितनी अनमोल है।—यूह. 20:11-18.
12. लीडीया को ऐसा क्यों लगता था कि वह किसी के प्यार के लायक नहीं?
12 मरियम मगदलीनी की तरह आज भी ऐसे कई भाई-बहन हैं जिन्हें दुतकारा जाता है और नीचा दिखाया जाता है। स्पेन में रहनेवाली बहन लीडीया के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। जब वह अपनी माँ के पेट में ही थी, तो उसकी माँ उसे गिरा देना चाहती थी। और जब वह बड़ी हो रही थी, तो उसकी माँ उस पर कोई ध्यान नहीं देती थी। वह लीडीया को कोसती थी और बुरा-भला कहती थी। लीडीया कहती है, “मेरी माँ मुझसे प्यार नहीं करती थी, इसलिए मैं हमेशा यही चाहती थी कि लोग मुझसे प्यार करें और मेरे दोस्त बनें। लेकिन मुझे लगता था कि मैं किसी के प्यार के लायक नहीं। मम्मी की बातों से मुझे यकीन हो गया था कि मैं बहुत बुरी हूँ।”
13. लीडीया को कैसे यकीन हुआ कि वह यहोवा की नज़र में अनमोल है?
13 लेकिन फिर लीडीया बाइबल का अध्ययन करने लगी और यहोवा से प्रार्थना करने लगी। यही नहीं, वह भाई-बहनों के साथ मिलने-जुलने लगी जो हमेशा उससे प्यार से पेश आते थे और उसकी हिम्मत बँधाते थे। इन सब बातों की वजह से लीडीया को यकीन हो गया कि वह यहोवा की नज़र में अनमोल है। वह कहती है, “मेरे पति अकसर कहते हैं कि वे मुझसे बहुत प्यार करते हैं। वे हमेशा मुझे बताते हैं कि उन्हें मेरी कौन-सी बात पसंद है और उसके लिए मेरी तारीफ करते हैं। मेरे दोस्त भी ऐसा ही करते हैं।” क्या आपकी मंडली में कोई ऐसा भाई या बहन है जिसे आप यकीन दिला सकते हैं कि वह यहोवा की नज़र में बहुत अनमोल है?
खुद को यहोवा की नज़र से देखिए—कैसे?
14. 1 शमूएल 16:7 से हमें खुद को यहोवा की नज़र से देखने में कैसे मदद मिलती है? (“यहोवा के लोग उसके लिए क्यों बहुत अनमोल हैं?” नाम का बक्स भी देखें।)
14 याद रखिए, यहोवा का देखना इंसानों के देखने जैसा नहीं है। (1 शमूएल 16:7 पढ़िए।) दुनिया में लोग देखते हैं कि आपकी शक्ल-सूरत कैसी है, आप अमीर हैं या गरीब, पढ़े-लिखे हैं या नहीं और इन्हीं बातों से वे आपकी कीमत आँकते हैं। (यशा. 55:8, 9) लेकिन यहोवा ऐसा नहीं करता। इसलिए खुद को दुनिया की नज़र से नहीं, बल्कि यहोवा की नज़र से देखिए। आप चाहें तो बाइबल में दी उन लोगों की कहानियाँ पढ़ सकते हैं जिन्हें एक वक्त पर लगा कि वे एकदम गए-गुज़रे हैं। जैसे आप एलियाह, नाओमी और हन्ना की कहानी पढ़ सकते हैं और यह देखने की कोशिश कर सकते हैं कि ये लोग यहोवा को कितने प्यारे थे। आप एक और चीज़ कर सकते हैं। आपके साथ ज़रूर कुछ ऐसे अनुभव हुए होंगे जब आपने महसूस किया होगा कि यहोवा आपसे बहुत प्यार करता है और आपको अनमोल समझता है। आप चाहें तो उन अनुभवों को लिखकर रख सकते हैं। इसके अलावा, हमारे प्रकाशनों में आत्म-सम्मान की कमी के बारे में जो लेख और वीडियो आए हैं, आप उन्हें भी देख सकते हैं।c
15. दानियेल क्यों “परमेश्वर के लिए बहुत अनमोल” था? (दानियेल 9:23)
15 याद रखिए, आप यहोवा के वफादार हैं, इसलिए उसकी नज़र में अनमोल हैं। एक वक्त पर दानियेल बहुत निराश और “पस्त” हो गया था। उस वक्त उसकी उम्र शायद 90 से भी ज़्यादा थी। (दानि. 9:20, 21) तब यहोवा ने कैसे उसकी हिम्मत बँधायी? उसने जिब्राईल स्वर्गदूत को उसके पास भेजा। जिब्राईल ने दानियेल से कहा कि यहोवा ने उसकी प्रार्थनाएँ सुनी हैं और वह “परमेश्वर के लिए बहुत अनमोल है।” (दानियेल 9:23 पढ़िए।) पर दानियेल यहोवा की नज़र में क्यों अनमोल था? उसके अंदर बहुत-से अच्छे गुण थे, पर सबसे बढ़कर वह एक नेक और वफादार इंसान था। (यहे. 14:14) यहोवा ने दानियेल की कहानी अपने वचन में लिखवायी है ताकि हमें उससे हिम्मत मिल सके। (रोमि. 15:4) यहोवा आज हमारी भी प्रार्थनाएँ सुनता है और हमें अनमोल समझता है, क्योंकि हम यहोवा के नेक स्तरों को मानते हैं और पूरी वफादारी से उसकी सेवा करते हैं।—मीका 6:8, फु.; इब्रा. 6:10.
16. आप कैसे खुद को यकीन दिला सकते हैं कि यहोवा आपका पिता है जो आपसे बहुत प्यार करता है?
16 याद रखिए, यहोवा आपका पिता है जो आपसे बहुत प्यार करता है। वह आपमें गलतियाँ नहीं ढूँढ़ता, बल्कि आपकी मदद करना चाहता है। (भज. 130:3; मत्ती 7:11; लूका 12:6, 7) इस बात पर मनन करने से ऐसे कई लोगों को मदद मिली है जो खुद को बेकार समझते थे। स्पेन में रहनेवाली बहन मिशेल के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। उसका पति सालों तक उसे ताने मारता था और बुरा-भला कहता था। इस वजह से उसे लगने लगा कि वह एकदम गयी-गुज़री है। वह कहती है, “जब भी मुझे लगता है कि मैं किसी काम की नहीं हूँ, तो मैं सोचती हूँ कि मैं यहोवा की गोद में हूँ और वह मुझसे प्यार करता है। यह सोचकर मुझे बहुत सुकून मिलता है।” (भज. 28:9) दक्षिण अफ्रीका में रहनेवाली लोरेन बताती है कि जब वह निराश हो जाती है, तो क्या सोचती है: “अगर यहोवा ने मुझे प्यार की डोर से अपनी तरफ खींचा है, इतने सालों से मुझे अपने करीब रखा है और मुझे मौका दिया है कि मैं दूसरों को भी उसके बारे में सिखाऊँ, तो मैं ज़रूर उसकी नज़र में अनमोल हूँ और उसके काम की हूँ।”—होशे 11:4.
17. हम कैसे जान सकते हैं कि हम पर यहोवा की मंज़ूरी है? (भजन 5:12) (तसवीर भी देखें।)
17 यकीन रखिए, यहोवा आपसे खुश है। (भजन 5:12 पढ़िए।) दाविद ने कहा कि यहोवा की मंज़ूरी “एक बड़ी ढाल” है, यानी वह नेक लोगों से खुश होता है और उनकी हिफाज़त करता है। जब आप यह याद रखते हैं कि यहोवा की मंज़ूरी आप पर है और वह आपका साथ देगा, तो इससे आपकी हिफाज़त होती है। आपको यह चिंता नहीं सताती कि आप किसी लायक नहीं हैं। पर आप कैसे जान सकते हैं कि आप पर यहोवा की मंज़ूरी है? जैसा हमने देखा था, यहोवा अपने वचन के ज़रिए हमें बताता है कि वह हमारे बारे में कैसा महसूस करता है। इसके अलावा, वह प्राचीनों, अच्छे दोस्तों और दूसरे भाई-बहनों के ज़रिए हमें यकीन दिलाता है कि हम उसकी नज़र में अनमोल हैं। पर जब दूसरे हमारी हिम्मत बँधाते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?
अगर हम याद रखें कि हम पर यहोवा की मंज़ूरी है, तो हम यह सोच-सोचकर परेशान नहीं होंगे कि हम किसी लायक नहीं हैं (पैराग्राफ 17)
18. जब कोई आपकी तारीफ करे, तो आपको क्यों उसे कबूल करना चाहिए?
18 जो लोग आपको जानते हैं और आपसे प्यार करते हैं, जब वे आपकी तारीफ करें, तो उसे कबूल कीजिए और खुश होइए। याद रखिए, यहोवा भाई-बहनों के ज़रिए भी हमें यकीन दिलाता है कि उसकी मंज़ूरी हम पर है। बहन मिशेल जिसके बारे में पहले बताया गया था, कहती है, “जब कोई मेरी तारीफ करता है, तो उसे कबूल करना मुझे बहुत मुश्किल लगता है। मेरा मन कहता है कि मैं उसके लायक नहीं हूँ। लेकिन यहोवा चाहता है कि मैं उस तारीफ को कबूल करूँ, इसलिए मैं ऐसा करने की कोशिश कर रही हूँ।” प्राचीनों ने भी मिशेल की बहुत मदद की है। आज वह पायनियर सेवा कर रही है और बेथेल के लिए भी काम कर रही है।
19. आप क्यों यकीन रख सकते हैं कि आप यहोवा की नज़र में अनमोल हैं?
19 यीशु ने हमें याद दिलाया कि हम यहोवा के लिए बहुत मायने रखते हैं। (लूका 12:24) इसलिए हम यकीन रख सकते हैं कि हम यहोवा के लिए अनमोल हैं। आइए हम इस बात को कभी ना भूलें और दूसरों को भी यकीन दिलाएँ कि वे यहोवा की नज़र में बहुत अनमोल हैं!
गीत 139 जब होंगे नयी दुनिया में!
a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।
b ऐसा मालूम होता है कि मरियम मगदलीनी उन औरतों में से थी जो यीशु और उसके चेलों के साथ सफर करती थीं। ये औरतें अपनी धन-संपत्ति से यीशु और प्रेषितों की सेवा करती थीं।—मत्ती 27:55, 56; लूका 8:1-3.
c उदाहरण के लिए यहोवा के करीब आओ किताब का अध्याय 24 और वचन जो दिखाएँ राह किताब में “खुद को नाकाबिल समझना” विषय में दी आयतें और बाइबल के किस्से पढ़िए।