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a प्रहरीदुर्ग के अक्‍तूबर १५, १९९१ के अंग्रेज़ी अंक, पृष्ठ ३१ में यह निर्देश दिया गया है: “सच्चे मसीही को इस पर विचार करना चाहिए: क्या अमुक रीति का पालन करने से दूसरों को यह संदेश मिलेगा कि मैंने अशास्त्रीय विश्‍वास या प्रथाएँ अपना ली हैं? इसका उत्तर समय और स्थान से प्रभावित हो सकता है। एक प्रथा (या चिन्ह) का सदियों पहले शायद झूठे धर्म से संबंध रहा हो या आज किसी दूर देश में ऐसा हो। लेकिन छानबीन में समय बरबाद करने के बजाय अपने आपसे पूछिए: ‘जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ आम धारणा क्या है?’—१ कुरिन्थियों १०:२५-२९ से तुलना कीजिए।”

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