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d पत्रिका बिब्लिकल आर्कियॉलजी रिव्यू कहती है: “बाबुल के पंडितों के पास ऐसी किताबें थीं जिनमें ढेरों शकुन, अपशकुन और उनके अलग-अलग मतलब दिए गए थे। . . . जब बेलशस्सर ने दीवार की लिखाई को पढ़ने की आज्ञा दी होगी तब बाबुल के पंडितों ने ज़रूर इन्हीं बड़ी-बड़ी पोथियों को छान मारा होगा, ताकि वे उन शब्दों का मतलब बता सकें। लेकिन ऐसी सारी किताबें सिर्फ रद्दी साबित हुईं।”

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