फुटनोट
b “सत्य” के लिए यूनानी शब्द, एलीथीया (a·leʹthei·a), एक ऐसे शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है “छिपा न होना,” सो सत्य में अकसर उस बात का प्रकटन शामिल होता है जो पहले छिपा हुआ था।—लूका १२:२ से तुलना कीजिए।
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क्या सत्य कभी बदलता है?
यह दिलचस्प प्रश्न वी. आर. रूजेरो द्वारा अपनी पुस्तक सोचने की कला में उठाया गया था। उसका जवाब है, नहीं। वह विस्तार से कहता है: “यह शायद कभी-कभी बदलता प्रतीत हो, लेकिन नज़दीकी से जाँच करने पर यह पता चलेगा कि यह बदला नहीं है।”
वह कहता है, “बाइबल की पहली पुस्तक, उत्पत्ति की पुस्तक के कर्तृत्व के मामले पर विचार कीजिए। शताब्दियों तक मसीही और यहूदी समान रूप से विश्वास करते थे कि इस पुस्तक का एक ही लेखक था। कुछ समय बाद इस दृष्टिकोण को चुनौती दी गयी, और अंततः इसकी जगह इस विश्वास ने ले ली कि पाँच लेखकों ने उत्पत्ति के लेखन में सहयोग दिया। फिर, १९८१ में, उत्पत्ति के ५-वर्षीय भाषाई विश्लेषण के परिणाम प्रकाशित हुए, जिसमें लिखा था कि एकल कर्तृत्व की संभावना ८२ प्रतिशत थी, जैसे शुरू में सोचा गया था।
“क्या उत्पत्ति के कर्तृत्व के बारे में सत्य बदल गया है? जी नहीं। केवल हमारा विश्वास बदला है। . . . सत्य हमारे ज्ञान या हमारी अज्ञानता से नहीं बदलेगा।”
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सत्य के लिए श्रद्धा
“सत्य के लिए श्रद्धा हमारे युग की मात्र कूट-दोषदर्शिता नहीं है जो हर चीज़ को इस विश्वास से ‘बेनक़ाब’ करने की कोशिश करती है कि कोई भी व्यक्ति या चीज़ यथार्थता से यह दावा नहीं कर सकती है कि उसके पास सत्य है। सत्य के लिए श्रद्धा वह मनोवृत्ति है जो इस आनन्दमय विश्वास को कि सत्य वाक़ई पाया जा सकता है, सत्य को नम्रतापूर्वक स्वीकार करने के साथ जोड़ती है। सत्य के लिए यह श्रद्धा जब भी और जहाँ भी सत्य प्रकट होता है, तब सत्य को नम्रतापूर्वक स्वीकार करने के द्वारा दिखाया जाता है। सत्य के परमेश्वर की उपासना करनेवालों से सत्य के प्रति ऐसे खुलेपन की माँग की जाती है; जबकि सत्य के लिए उचित श्रद्धा अपने पड़ोसी के साथ एक व्यक्ति के बर्ताव में, दोनों कथनी और करनी में, ईमानदारी निश्चित करती है। यही मनोवृत्ति है, जो हमने देखा है, जिसके बारे में दोनों, पुराना नियम और नया नियम गवाही देता है।”—द न्यू इंटरनैशनल डिक्शनरी ऑफ न्यू टॆस्टामेंट थियॉलॉजी खण्ड ३, पृष्ठ ९०१.