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a एमील शूरर की जर्मन पुस्तक यीशु मसीह के युग में यहूदी जाति का इतिहास (ई.पू. १७५-ई.स. १३५) के अनुसार, हालाँकि मिशना में ७१ सदस्यीय महासभा की संचालन प्रक्रिया के बारे में कुछ नहीं बताया गया है, लेकिन २३ सदस्यीय महासभा के बारे में हर बारीकी दी गयी है। व्यवस्था के छात्र छोटी महासभाओं में चल रहे मृत्युदंड के मुकद्दमों में उपस्थित हो सकते थे, लेकिन वहाँ उन्हें सिर्फ मुलज़िम के पक्ष में बोलने की अनुमति थी, उसके विरोध में नहीं। और जिन मुकद्दमों में मृत्युदंड की बात नहीं थी, उनमें वे मुलज़िम के पक्ष और विरोध दोनों में बोल सकते थे।

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