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c जब हम “सूर्योदय” या “सूर्यास्त” कहते हैं तो दरअसल हम वैज्ञानिक तौर पर गलत कह रहे होते हैं। लेकिन रोज़मर्रा की बातचीत में इसे कबूल भी किया गया और सही भी माना गया क्योंकि धरती से देखने पर हमें ऐसा ही लगता है। उसी तरह यहोशू भी खगोल-विज्ञान की चर्चा नहीं कर रहा था; वह सिर्फ आँखों देखी घटना बयान कर रहा था।

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