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फुटनोट

a आस-पास की आयत से पता चलता है कि याकूब ने ये बातें कलीसिया के प्राचीनों या ‘उपदेशकों’ को ध्यान में रखकर लिखी थी। (याकू. 3:1) यह सच है कि प्राचीनों को सच्ची बुद्धि ज़ाहिर करने में एक मिसाल होना चाहिए। लेकिन याकूब की सलाह से हम भी बहुत कुछ सीख सकते हैं।

क्या आप समझा सकते हैं?

• एक मसीही सही मायनों में कैसे बुद्धिमान बनता है?

• हम और भी अच्छे तरीके से कैसे परमेश्‍वर की बुद्धि ज़ाहिर कर सकते हैं?

• उन लोगों की क्या निशानियाँ हैं, जो ‘ऊपर से आनेवाली बुद्धि’ नहीं दिखाते?

• आपने किन गुणों को और भी बढ़ाने की ठान ली है?

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