अध्याय 11
उपासना की जगह
यहोवा के सच्चे उपासकों को आज्ञा दी गयी है कि वे उससे शिक्षा पाने और एक-दूसरे का हौसला बढ़ाने के लिए इकट्ठा हुआ करें। (इब्रा. 10:23-25) परमेश्वर के चुने हुए लोग यानी इसराएली शुरू में “पवित्र डेरे” या “भेंट के तंबू” के पास उपासना करते थे। (निर्ग. 39:32, 40) बाद में दाविद के बेटे सुलैमान ने परमेश्वर की महिमा करने के लिए एक भवन या मंदिर बनवाया। (1 राजा 9:3) फिर जब ईसा पूर्व 607 में उस मंदिर का नाश कर दिया गया, तो उसके बाद यहूदी लोग परमेश्वर की उपासना करने के लिए सभा-घरों में इकट्ठा होने लगे। कुछ समय बाद मंदिर दोबारा बनाया गया और एक बार फिर यहाँ सच्ची उपासना की जाने लगी। यीशु इस मंदिर में और सभा-घरों में भी सिखाया करता था। (लूका 4:16; यूह. 18:20) यीशु ने एक पहाड़ पर भी सभा का इंतज़ाम किया।—मत्ती 5:1–7:29.
2 यीशु की मौत के बाद मसीही सार्वजनिक जगहों और घरों में इकट्ठा होने लगे ताकि शास्त्र से सिखा सकें और अपने विश्वासी भाई-बहनों की संगति कर सकें। (प्रेषि. 19:8, 9; रोमि. 16:3, 5; कुलु. 4:15; फिले. 2) कभी-कभी विरोधियों से बचने के लिए पहली सदी के मसीही ऐसी जगहों पर मिलते थे जहाँ लोगों की नज़र उन पर न पड़े। वाकई, बीते ज़माने में परमेश्वर के सेवक उपासना की जगह इकट्ठा होने के लिए उत्सुक रहते थे ताकि ‘यहोवा से सिखलाए’ जाएँ।—यशा. 54:13.
3 आज भी मसीहियों की सभाएँ सार्वजनिक जगहों पर और लोगों के घरों में होती हैं। प्रचार की सभाएँ अकसर घरों में रखी जाती हैं। जो लोग सभाएँ रखने के लिए अपने घर देते हैं, वे इसे एक बड़ा सम्मान समझते हैं। कई लोगों ने महसूस किया है कि ऐसा करने की वजह से वे यहोवा की उपासना और ज़ोर-शोर से कर पाते हैं।
राज-घर
4 यहोवा के साक्षी खास तौर से राज-घरों में अपनी सभाएँ रखते हैं। आम तौर पर ज़मीन खरीदकर नया राज-घर बनाया जाता है या कोई बनी-बनायी इमारत खरीदकर उसकी मरम्मत की जाती है और फिर वहाँ सभाएँ रखी जाती हैं। मुमकिन हो तो एक ही राज-घर में कई मंडलियों की सभाएँ रखी जाती हैं ताकि राज-घर का अच्छा इस्तेमाल हो और पैसों की बचत हो। कुछ जगहों पर किराए पर हॉल लेना पड़ता है। अगर एक नया राज-घर बनाया गया है या पुरानी इमारत की मरम्मत करके उसे बिलकुल नया रूप दिया गया है, तो समर्पण कार्यक्रम रखना सही होगा। लेकिन अगर एक राज-घर में सिर्फ छोटी-मोटी मरम्मत की गयी है, तो समर्पण कार्यक्रम रखने की ज़रूरत नहीं है।
5 राज-घर की इमारत इतनी आलीशान नहीं होनी चाहिए कि लोग उसे देखते ही रह जाएँ। राज-घरों में सभाएँ रखने के लिए अच्छी सुविधाएँ होनी चाहिए, फिर चाहे इनकी बनावट अलग-अलग हो। (प्रेषि. 17:24) राज-घर ऐसी जगह पर होना चाहिए कि वहाँ आने-जाने में भाई-बहनों को दिक्कत न हो और सभाएँ आराम से चलायी जा सकें।
6 एक राज-घर में जितनी मंडलियाँ सभाएँ रखती हैं, वे सभी मिलकर उसका खर्च उठाती हैं ताकि उसका रख-रखाव अच्छी तरह हो सके। किसी से चंदा नहीं माँगा जाता और न ही किसी और तरह से लोगों से पैसे लिए जाते हैं। राज-घर में एक दान-पेटी रखी जाती है। सभा में आनेवाले उसमें दान डाल सकते हैं। इसी से राज-घर का सारा खर्च उठाया जाता है। सभी लोग खुशी-खुशी और दिल से दान करते हैं।—2 कुरिं. 9:7.
7 मंडली के सब लोग राज-घर का खर्च उठाने और उसे साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रखने को एक सम्मान समझते हैं। आम तौर पर एक प्राचीन या सहायक सेवक को इन सब कामों का शेड्यूल बनाने के लिए नियुक्त किया जाता है। साफ-सफाई का काम अकसर प्रचार समूहों को दिया जाता है और समूह निगरान या उसका सहायक ध्यान रखता है कि सब काम ठीक से हो। राज-घर अंदर और बाहर से शालीन होना चाहिए, क्योंकि इससे यहोवा और उसके संगठन का नाम जुड़ा होता है।
मंडली के सब लोग राज-घर का खर्च उठाने और उसे साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रखने को एक सम्मान समझते हैं
8 जिस राज-घर में एक-से-ज़्यादा मंडलियों की सभाएँ होती हैं, वहाँ सभी मंडलियों के प्राचीन मिलकर एक राज-घर संचालन-समिति बनाते हैं। यह समिति राज-घर की देख-रेख का इंतज़ाम करती है ताकि इमारत की और बाड़े के अंदर जो कुछ है उसकी अच्छी देखभाल हो। सभी मंडलियों के प्राचीनों का निकाय एक भाई को इस समिति का संयोजक चुनता है। इन प्राचीनों के निर्देश में ही यह संचालन-समिति काम करती है और राज-घर की साफ-सफाई की देखरेख करती है। यह इस बात का ध्यान रखती है कि राज-घर अच्छी हालत में रहे और सफाई का सामान काफी मात्रा में हो। राज-घर की साफ-सफाई करने के लिए वहाँ इकट्ठा होनेवाली सभी मंडलियों को सहयोग देना चाहिए।
9 जब एक ही राज-घर में कई मंडलियाँ इकट्ठा होती हैं, तो हर मंडली की सभाओं का समय बारी-बारी से बदलना पड़ सकता है। इस बारे में फैसला करते वक्त प्राचीन सभी मंडलियों के भाई-बहनों के बारे में सोचते हैं, क्योंकि वे सबसे प्यार करते हैं। (फिलि. 2:2-4; 1 पत. 3:8) किसी एक मंडली को सभी मंडलियों के लिए फैसला नहीं करना चाहिए। जब सर्किट निगरान उस राज-घर की किसी एक मंडली का दौरा करता है, तो बाकी मंडलियाँ ज़रूरत के हिसाब से उस हफ्ते अपनी सभाओं का समय बदल देंगी।
10 राज-घर में शादी और शोक-सभा (फ्यूनरल) के भाषण भी दिए जा सकते हैं, मगर इसके लिए मंडली सेवा-समिति की इजाज़त लेना ज़रूरी है। इजाज़त देने से पहले प्राचीन ध्यान से देखेंगे कि उस कार्यक्रम में क्या-क्या करने की गुज़ारिश की गयी है। फिर वे शाखा दफ्तर के निर्देशों के मुताबिक फैसला करेंगे।
11 जिन भाई-बहनों को राज-घर में ऐसे कार्यक्रम रखने की इजाज़त दी जाती है, उनसे उम्मीद की जाती है कि वे उस मौके पर इस तरह पेश आएँ जो सच्चे मसीहियों को शोभा देता है। राज-घर में ऐसा कुछ नहीं किया जाना चाहिए जिससे मंडली के भाई-बहनों को ठेस पहुँचे या यहोवा और मंडली का नाम बदनाम हो। (फिलि. 2:14, 15) शाखा दफ्तर के निर्देश में राज-घर को संगठन के कुछ कामों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे राज-सेवा स्कूल और पायनियर सेवा स्कूल चलाने के लिए।
12 जहाँ मंडली की सभाएँ होती हैं, उस जगह के बारे में हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि वह परमेश्वर की उपासना की जगह है। इसलिए हमारे पहनावे और बनाव-सिंगार से गरिमा झलकनी चाहिए। (सभो. 5:1; 1 तीमु. 2:9, 10) इस मामले में जो सलाह दी जाती है उसे हमें मानना चाहिए, क्योंकि मसीही सभाएँ हमारे लिए बहुत खास होती हैं।
13 सभा के दौरान शांत माहौल होना ज़रूरी है। इस वजह से अच्छा होगा कि बच्चे माँ-बाप के साथ बैठें। जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, उन्हें ऐसी जगह बैठने के लिए कहा जा सकता है जहाँ बैठने से दूसरों को परेशानी न हो। तब अगर बच्चे शरारत भी करें, तो माता-पिता उन्हें बाहर ले जाकर समझा सकते हैं या उनकी ज़रूरतें पूरी कर सकते हैं।
14 राज-घर की सभाओं में योग्य भाइयों को मददगार (अटेंडंट) के तौर पर सेवा करने की ज़िम्मेदारी दी जाती है। इन भाइयों को सतर्क रहना चाहिए और सबके साथ प्यार से पेश आना चाहिए। उन्हें समझ-बूझ से भी काम लेना चाहिए। उनके कुछ काम हैं, नए लोगों का स्वागत करना, देर से आनेवालों को बैठने के लिए जगह दिखाना, हाज़िर लोगों की गिनती का रिकॉर्ड रखना, ताज़ी हवा के लिए खिड़कियाँ वगैरह खोलना, ठंड के मौसम में हीटर चलाना वगैरह। अगर मददगार भाई देखते हैं कि कोई बच्चा सभा से पहले या बाद में इधर-उधर दौड़ रहा है या स्टेज पर खेल रहा है, तो वे माता-पिता से कहेंगे कि वे अपने बच्चे पर नज़र रखें। जब कोई बच्चा सभा में बहुत शोर करता है और काबू में नहीं आता, तब कोई मददगार भाई माँ या पिता को प्यार से बता सकता है कि वह बच्चे को बाहर ले जाए ताकि बाकी लोगों का ध्यान ज़्यादा न भटके। मददगार भाई जो काम करते हैं, उसकी वजह से सब लोग सभाओं में ध्यान दे पाते हैं। अच्छा होगा कि मददगार की ज़िम्मेदारी प्राचीनों और सहायक सेवकों को दी जाए।
राज-घरों का निर्माण
15 पहली सदी में कुछ मसीही अमीर थे तो कुछ गरीब। इसलिए प्रेषित पौलुस ने लिखा, “इस वक्त तुम्हारी बहुतायत उनकी घटी को पूरा करे और उनकी बहुतायत भी तुम्हारी घटी को पूरा करने के काम आए ताकि बराबरी हो जाए।” (2 कुरिं. 8:14) आज भी इसी तरह की “बराबरी” की जा रही है। पूरी दुनिया की मंडलियाँ जो दान करती हैं, उसे इकट्ठा करके उन इलाकों में भेजा जाता है जहाँ राज-घर बनाने और उनकी मरम्मत करने के लिए पैसों की ज़रूरत है। हमारे भाई-बहन दिल खोलकर जो दान करते हैं, उसके लिए संगठन और वे सभी मंडलियाँ एहसानमंद हैं जिन्हें दान के पैसे से फायदा होता है।
16 शाखा दफ्तर एक इलाके के हिसाब से योजना बनाता है और बताता है कि किस मंडली को किस राज-घर में सभाएँ रखनी हैं। शाखा दफ्तर यह भी तय करता है कि उस शाखा के इलाके में कब और कहाँ नए राज-घर बनाने हैं और किन राज-घरों की मरम्मत करनी है। जब बाढ़ या भूकंप जैसे हादसों में राज-घरों का नुकसान होता है, तो उनकी मरम्मत की जाती है और कभी-कभी भाई-बहनों के घरों की भी मरम्मत की जाती है।
17 राज-घर बनाने का काम शाखा दफ्तर के निर्देश में किया जाता है। शाखा दफ्तर के निर्देश में स्वयंसेवक ये सारे काम करते हैं: ज़मीन खरीदना, नक्शा तैयार करना, इमारत बनाने के लिए अधिकारियों से इजाज़त लेना, इमारत खड़ी करना और उसका रख-रखाव करना। ज़्यादातर देशों में राज-घरों की बहुत ज़रूरत है, इसलिए बहुत-से स्वयंसेवक चाहिए। बपतिस्मा पाए हुए जिन प्रचारकों में इस काम के लिए योग्यताएँ हैं और जो इसे करने की इच्छा रखते हैं, उन्हें इसके लिए अर्ज़ी भरनी चाहिए। उन्हें यह अर्ज़ी अपनी मंडली की सेवा-समिति को देनी चाहिए। जिन प्रचारकों का बपतिस्मा नहीं हुआ है, वे अपने यहाँ राज-घर बनाने या उसकी मरम्मत करने में हाथ बँटा सकते हैं।
सम्मेलन भवन
18 पहली सदी के मसीही ज़्यादातर छोटे-छोटे समूहों में मिलते थे। लेकिन कभी-कभी सभाओं में बहुत “बड़ी भीड़” इकट्ठा होती थी। (प्रेषि. 11:26) उसी तरह आज यहोवा के लोग सर्किट सम्मेलनों और क्षेत्रीय अधिवेशनों के लिए बड़ी तादाद में इकट्ठा होते हैं। इसके लिए आम तौर पर कोई हॉल या स्टेडियम किराए पर लिया जाता है। लेकिन जहाँ ऐसे हॉल या स्टेडियम नहीं हैं या हैं भी तो सम्मेलन के लिए सही नहीं हैं, वहाँ कोई बड़ी इमारत खरीदी जा सकती है या बनायी जा सकती है। ऐसी इमारत को सम्मेलन भवन कहा जाता है।
19 कभी-कभार एक इमारत खरीदकर उसकी मरम्मत की जाती है और फिर उसे एक सम्मेलन भवन की तरह इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ज़्यादातर ऐसा होता है कि ज़मीन खरीदकर एक नयी इमारत बनायी जाती है। एक इलाके की ज़रूरतों के हिसाब से सम्मेलन भवन अलग-अलग आकार के हो सकते हैं। सम्मेलन भवन के लिए जगह खरीदने या उसका निर्माण करने का फैसला शाखा दफ्तर करता है। लेकिन फैसला करने से पहले शाखा दफ्तर बहुत सोच-समझकर तय करता है कि इसमें कितना खर्चा आएगा और इसका किस हद तक इस्तेमाल होगा।
20 शाखा दफ्तर कुछ भाइयों को यह ध्यान रखने की ज़िम्मेदारी देता है कि सम्मेलन भवन में हर चीज़ अच्छे से काम करे और उसका सही रख-रखाव हो। भवन की नियमित तौर पर हलकी साफ-सफाई और हर छ: महीने में अच्छी साफ-सफाई की जाती है। समय-समय पर देखा जाता है कि सबकुछ सही हालत में है या नहीं ताकि बाद में ज़्यादा मरम्मत की ज़रूरत न पड़े। यह सारी ज़िम्मेदारी अलग-अलग सर्किट को दी जाती है। अच्छा होगा कि भाई-बहन खुद आगे बढ़कर ये काम करें। इस वजह से मंडलियों को बढ़ावा दिया जाता है कि इस काम में वे पूरे दिल से हाथ बँटाएँ।—भज. 110:3; मला. 1:10.
21 कभी-कभी सम्मेलन भवन संगठन के कुछ और कामों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है। जैसे संगठन के कुछ स्कूलों के लिए, सर्किट निगरानों की खास सभाओं के लिए और एक सर्किट के सभी प्राचीनों की सभा के लिए। राज-घर की तरह सम्मेलन भवन भी उपासना के लिए समर्पित होता है। इसलिए जब हम सम्मेलन भवन में इकट्ठा होते हैं, तब हमारे व्यवहार, बनाव-सिंगार और कपड़ों से गरिमा झलकनी चाहिए, ठीक जैसे राज-घर में सभा के लिए जाते वक्त हम ध्यान रखते हैं।
22 आखिरी दिनों के इस आखिरी समय में बहुत-से नए लोग परमेश्वर के संगठन से जुड़ रहे हैं। यह सब यहोवा की आशीष से हो रहा है। (यशा. 60:8, 10, 11, 22) इसलिए उपासना के लिए अच्छी इमारतें हासिल करने और उन्हें साफ-सुथरा और सही हालत में रखने में हमें मदद करनी चाहिए। हम जानते हैं कि जैसे-जैसे यहोवा का दिन पास आ रहा है, हम इन्हीं जगहों पर मिलकर एक-दूसरे का और भी हौसला बढ़ाएँगे।