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1 प्रार्थना क्यों करें?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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1 प्रार्थना क्यों करें?
प्रार्थना एक ऐसा विषय है जिसमें दुनिया-भर में लोगों को बहुत रुचि है। इस शृंखला में प्रार्थना से जुड़े सात सवालों के बारे में बताया गया है और पवित्र शास्त्र बाइबल से इनके जवाब दिए गए हैं। इन लेखों से आप जानेंगे कि आप किस तरह प्रार्थना कर सकते हैं और अगर आप पहले से ही प्रार्थना करते आए हैं, तो आप कैसे इन्हें और अच्छी तरह कर सकते हैं।
हर कहीं लोग प्रार्थना करते हैं, फिर चाहे वे किसी भी जाति या धर्म के हों। लोग अकेले प्रार्थना करते हैं और दूसरों के साथ मिलकर भी। लोग मंदिर, चर्च, मस्जिद या गुरुद्वारे में जाकर प्रार्थना करते हैं। कुछ लोग अपने देवी-देवताओं की तसवीरों के आगे झुककर प्रार्थना करते हैं, तो कुछ लोग किताबों से प्रार्थनाएँ पढ़ते हैं। कई लोग प्रार्थना-चक्के के ज़रिए या फिर जनमाज़ पर घुटने टेककर दुआ करते हैं। कई लोग तो अपनी दुआएँ लकड़ी की पटियों पर लिख देते हैं और फिर उन्हें टाँग देते हैं।
सिर्फ इंसान ही प्रार्थना करते हैं। हालाँकि जानवरों की तरह हम भी खाना खाते हैं, साँस लेते हैं और पानी पीते हैं, उनकी तरह हम भी पैदा होते हैं और एक दिन मर जाते हैं, लेकिन जहाँ तक प्रार्थना की बात है, तो वह सिर्फ इंसान ही कर सकते हैं। (सभोपदेशक 3:19) वह क्यों?
प्रार्थना करके लोग किसी अदृश्य व्यक्ति से बात करते हैं, एक ऐसे व्यक्ति से जो उनसे बहुत महान और पवित्र है। बाइबल बताती है, हम इंसानों को इस तरह बनाया गया है कि हमें प्रार्थना करने की ज़रूरत महसूस होती है। (सभोपदेशक 3:11) यीशु मसीही ने इस बारे में कहा था, “सुखी हैं वे जिनमें परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।”—मत्ती 5:3.
हममें “परमेश्वर से मार्गदर्शन पाने की भूख है।” तभी इंसान उपासना की जगह बनाते हैं और ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि उन्हें दूसरों से मार्गदर्शन लेने की कोई ज़रूरत नहीं, वे अपने फैसले खुद ले सकते हैं। वहीं कुछ लोगों को लगता है कि दूसरे इंसान उन्हें सही राह दिखा सकते हैं। लेकिन क्या वाकई दूसरे इंसान हमें सही राह दिखा सकते हैं? आखिर एक-न-एक दिन तो उनकी भी मौत हो जाती है और भला कौन-सा इंसान ठीक-ठीक बता सकता है कि भविष्य में क्या होगा। सिर्फ ईश्वर हमें सही राह दिखा सकता है, क्योंकि वह हमसे ज़्यादा बुद्धिमान और ताकतवर है और वह हमेशा तक रहेगा। लेकिन हमें मार्गदर्शन की कब ज़रूरत होती है?
ज़रा सोचिए, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आपको कोई फैसला लेना था और आपको समझ में नहीं आ रहा था कि आप क्या करें? या क्या आपके मन में कोई ऐसे सवाल थे जिनका कोई भी जवाब नहीं दे पा रहा था? जब आपके किसी अज़ीज़ की मौत हो गयी थी, तब क्या आपको दिलासे की ज़रूरत थी? क्या आपसे कभी कोई गलती हो गयी थी और आप चाहते थे कि आपको माफी मिल जाए?
बाइबल बताती है कि हम ऐसे वक्त में प्रार्थना कर सकते हैं। प्रार्थना के बारे में बाइबल में बहुत कुछ बताया गया है। इसमें परमेश्वर के कई सेवकों की प्रार्थनाएँ दर्ज़ हैं। उन्होंने दिलासा पाने के लिए, माफी माने के लिए, मार्गदर्शन पाने के लिए और अपने सवालों के जवाब जानने के लिए प्रार्थना की थी।—भजन 23:3; 71:21; दानियेल 9:4, 5, 19; हबक्कूक 1:3.
इन लोगों ने अलग-अलग वजह से प्रार्थना की, लेकिन वे सब जानते थे कि उन्हें किससे प्रार्थना करनी चाहिए। आज कई लोग इस बात पर ध्यान नहीं देते कि उन्हें किससे प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन यह बात जानना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि सिर्फ तभी हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिलेगा।
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2 प्रार्थना किससे करें?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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2 प्रार्थना किससे करें?
कई लोगों का मानना है कि आप चाहे किसी से भी प्रार्थना करें, ऊपरवाला हर किसी की प्रार्थनाएँ सुनता है। उन्हें लगता है कि आप किसी भी धर्म को मानें, सारे रास्ते ईश्वर की ओर ले जाते हैं। लेकिन क्या यह बात सच है?
बाइबल में बताया गया है कि बहुत-से लोगों की प्रार्थनाएँ नहीं सुनी जातीं। बीते ज़माने में लोग मूर्तियों से प्रार्थना करते थे। लेकिन यह बात परमेश्वर को बिलकुल भी नहीं पसंद थी। बाइबल में लिखा है, ‘उनके कान हैं पर वे सुन नहीं सकतीं।’ (भजन 115:4-6) तो आपको क्या लगता है, क्या ऐसे ईश्वरों से प्रार्थना करने का कोई फायदा है जो हमारी सुन ही नहीं सकते?
बाइबल के एक किससे से यह बात हम और भी अच्छी तरह समझ पाते हैं। यह उस वक्त की बात है जब कुछ लोग बाल नाम के देवता को पूजने लगे थे। सच्चे परमेश्वर के भविष्यवक्ता एलियाह ने बाल देवता के भविष्यवक्ताओं से कहा कि वे अपने देवता को पुकारें और एलियाह अपने परमेश्वर को पुकारेगा। एलियाह ने उनसे कहा कि जो उनकी प्रार्थना सुनेगा वही सच्चा परमेश्वर है। बाल देवता के भविष्यवक्ताओं ने दिन-भर चिल्ला-चिल्लाकर उसे पुकारा। मगर कोई फायदा नहीं हुआ। बाइबल में लिखा है, ‘उन्हें कोई जवाब नहीं मिला, उन पर ध्यान देनेवाला कोई न था।’ (1 राजा 18:29) अब एलियाह की बारी थी। क्या परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना सुनी?
जब एलियाह ने प्रार्थना की, तो परमेश्वर ने उसकी प्रार्थना तुरंत सुनी। परमेश्वर ने स्वर्ग से आग भेजी और एलियाह की भेंट को कबूल किया। उसकी प्रार्थना क्यों सुनी गयी? हालाँकि एलियाह की प्रार्थना बहुत छोटी थी, इब्रानी भाषा में उसने सिर्फ 30 शब्द ही कहे, लेकिन गौर कीजिए कि उसने अपनी प्रार्थना में तीन बार परमेश्वर का नाम यहोवा लिया।—1 राजा 18:36, 37.
बाल कनान देश का देवता हुआ करता था। बाल शब्द का मतलब है, “मालिक।” उस ज़माने के अलग-अलग इलाकों के छोटे-मोटे देवताओं को भी बाल कहा जाता था। लेकिन जहाँ तक परमेश्वर यहोवा की बात है, पूरे जहान में सिर्फ एक ही शख्स का नाम यहोवा है। उसने अपने लोगों से कहा था, “मैं यहोवा हूँ, यही मेरा नाम है। मैं अपनी महिमा किसी और को न दूँगा।”—यशायाह 42:8.
ऐसा क्यों हुआ कि एलियाह की प्रार्थना सुनी गयी, लेकिन बाल के भविष्यवक्ताओं की नहीं सुनी गयी? बाल की उपासना करते वक्त उसके भक्त अनैतिक काम करते थे और इंसानों की बलि भी चढ़ाते थे। लेकिन यहोवा नहीं चाहता था कि उसके सेवक गलत काम करें। वह चाहता था कि उसके सेवक अच्छे काम करें, तभी वह उनकी उपासना कबूल करता। हमारी प्रार्थनाएँ सिर्फ तभी सुनी जाएँगी जब हम परमेश्वर यहोवा का नाम लेकर उससे प्रार्थना करेंगे। ज़रा सोचिए, अगर आप अपने एक खास दोस्त को चिट्ठी लिखना चाहते हैं, तो क्या आप किसी और के नाम पर चिट्ठी भेजेंगे? बिलकुल नहीं। ऐसे तो आपकी चिट्ठी कभी पहुँचेगी ही नहीं।
एलियाह और बाल के भविष्यवक्ताओं के किस्से से पता चलता है कि अगर हम सच्चे परमेश्वर से प्रार्थना करें, तभी हमारी प्रार्थनाएँ सुनी जाएँगी
अगर आप यहोवा से प्रार्थना करें, तो दरअसल आप इस पूरे जहान के मालिक और सृष्टिकर्ता से प्रार्थना कर रहे होंगे।a परमेश्वर के एक सेवक यशायाह ने प्रार्थना में कहा, “हे यहोवा, तू हमारा पिता है।” (यशायाह 63:16) यीशु भी यहोवा को अपना पिता कहता था। जब यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि “मैं अपने पिता और तुम्हारे पिता और अपने परमेश्वर और तुम्हारे परमेश्वर के पास ऊपर जा रहा हूँ,” तो वह यहोवा की ही बात कर रहा था। (यूहन्ना 20:17) यीशु यहोवा से ही प्रार्थना करता था और उसने अपने शिष्यों को भी सिखाया कि वे यहोवा से प्रार्थना करें।—मत्ती 6:9.
क्या हमें यीशु, मरियम, संतों या स्वर्गदूतों से प्रार्थना करनी चाहिए? नहीं। बाइबल कहती है कि हमें सिर्फ परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए। वह इसलिए कि प्रार्थना उपासना का भाग है और बाइबल कहती है कि हमें सिर्फ और सिर्फ यहोवा की ही उपासना करनी चाहिए। (निर्गमन 20:5) इसकी एक और वजह यह है कि बाइबल में यहोवा को ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ कहा गया है। (भजन 65:2) हालाँकि यहोवा ने दूसरों को बहुत-सी ज़िम्मेदारियाँ दी हैं, लेकिन हमारी प्रार्थनाएँ सुनने का काम उसने किसी और को नहीं दिया है। वह खुद हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है।
अगर आप चाहते हैं कि परमेश्वर आपकी प्रार्थनाएँ सुने, तो शास्त्र में लिखी इस बात का हमेशा ध्यान रखिए, “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।” (प्रेषितों 2:21) लेकिन क्या यहोवा सभी प्रार्थनाएँ सुनता है? अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुने, तो हमें किस बात का ध्यान रखना होगा?
a कुछ धर्म गुरु सिखाते हैं कि परमेश्वर का नाम लेना गलत है। वे कहते हैं कि हमें प्रार्थना करते वक्त भी परमेश्वर का नाम नहीं लेना चाहिए। लेकिन जब शुरू में बाइबल लिखी गयी थी, तो परमेश्वर ने उसमें अपना नाम 7,000 से भी ज़्यादा बार लिखवाया था। बाइबल में परमेश्वर के कई सेवकों की प्रार्थनाएँ और भजन दर्ज़ हैं जिनमें परमेश्वर का नाम यहोवा पाया जाता है।
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3 प्रार्थना कैसे करें?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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3 प्रार्थना कैसे करें?
कई धर्मों में इस बात पर बहुत ज़्यादा ध्यान दिया जाता है कि हम घुटने टेककर, खड़े होकर या बैठकर प्रार्थना करें या कोई खास शब्द कहें। लेकिन हमें प्रार्थना कैसे करनी चाहिए इस बारे में बाइबल और भी ज़रूरी बातें बताती है।
बाइबल में बताया गया है कि परमेश्वर के सेवकों ने अलग-अलग जगहों पर परमेश्वर से प्रार्थना की। कुछ लोगों ने मन में प्रार्थना की, तो कुछ लोगों ने ज़ोर से की। कुछ लोगों ने आसमान की ओर देखकर प्रार्थना की, तो कुछ लोगों ने सिर झुकाकर की। लेकिन उनमें से किसी ने भी किसी तसवीर के सामने प्रार्थना नहीं की, न ही उन्होंने प्रार्थना करते वक्त कोई माला जपी या फिर किसी किताब से पढ़कर प्रार्थना की। इसके बजाय उन्होंने ईश्वर को अपने दिल की बात बतायी, अपने शब्दों में प्रार्थना की। लेकिन सवाल उठता है, उनकी प्रार्थनाएँ किस वजह से सुनी गयीं?
जैसे पिछले लेख में बताया गया था, उन सभी ने परमेश्वर यहोवा से प्रार्थना की थी, इसीलिए उनकी प्रार्थनाएँ सुनी गयीं। बाइबल इसकी एक और वजह बताती है। पहला यूहन्ना 5:14 में लिखा है, “हमें परमेश्वर पर भरोसा है कि हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” इससे पता चलता है कि हमें परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन इसका क्या मतलब है?
परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करने के लिए हमें पहले जानना होगा कि उसकी मरज़ी क्या है। उसकी मरज़ी जानने के लिए हमें बाइबल पढ़नी होगी, उसका अध्ययन करना होगा। लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि हमें बाइबल का बहुत ज़्यादा ज्ञान होना चाहिए। परमेश्वर बस इतना चाहता है कि हम उसकी मरज़ी जानें और उस मरज़ी के मुताबिक जीएँ। (मत्ती 7:21-23) फिर जब हम उससे प्रार्थना करेंगे, तो वह हमारी ज़रूर सुनेगा।
अगर हम परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करें, विश्वास रखें और यीशु के नाम से प्रार्थना करें तो परमेश्वर हमारी ज़रूर सुनेगा
यहोवा के बारे में और उसकी मरज़ी के बारे में जानने से उस पर हमारा विश्वास बढ़ेगा। यह बहुत ज़रूरी है। हमें परमेश्वर पर विश्वास होगा, तभी वह हमारी प्रार्थनाएँ सुनेगा। यीशु ने कहा था, “तुम विश्वास के साथ प्रार्थना में जो कुछ माँगोगे, वह तुम्हें मिल जाएगा।” (मत्ती 21:22) लेकिन विश्वास का मतलब यह नहीं है कि हम आँख बंद करके किसी भी बात पर भरोसा कर लें। पर इसका मतलब यह है कि हम किसी बात पर इसलिए भरोसा करें क्योंकि उसके होने के हमारे पास पक्के सबूत हैं, भले ही हम उसे देख नहीं सकते। (इब्रानियों 11:1) हम यहोवा को भी देख नहीं सकते। लेकिन बाइबल में इस बात के ढेरों सबूत हैं कि वह सच में है और उन लोगों की प्रार्थनाएँ सुनता है जो उस पर विश्वास रखते हैं। हम परमेश्वर से यह प्रार्थना भी कर सकते हैं कि वह हमारा विश्वास बढ़ाए और वह हमारी ज़रूर सुनेगा।—लूका 17:5; याकूब 1:17.
प्रार्थना करते वक्त हमें एक और बात का ध्यान रखना चाहिए। यीशु ने कहा था, “कोई भी पिता के पास नहीं आ सकता, सिवा उसके जो मेरे ज़रिए आता है।” (यूहन्ना 14:6) अगर हम चाहते हैं कि यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुने, तो हमें यीशु के ज़रिए प्रार्थना करनी होगी। यीशु ने अपने चेलों से भी कहा था कि वे उसके नाम से प्रार्थना करें। (यूहन्ना 14:13; 15:16) इसका मतलब यह नहीं था कि उन्हें यीशु से प्रार्थना करनी थी। उन्हें यहोवा से ही प्रार्थना करनी थी। लेकिन उन्हें कहना था कि वे यीशु के नाम से प्रार्थना कर रहे हैं। उन्हें यह बात याद रखनी थी कि यीशु की वजह से ही वे अपने पिता से बात कर पा रहे हैं।
यीशु के शिष्यों ने एक बार उससे कहा, ‘प्रभु, तू हमें प्रार्थना करना सिखा।’ (लूका 11:1) वे यह नहीं पूछ रहे थे कि उन्हें किससे प्रार्थना करनी चाहिए या किस तरह प्रार्थना करनी चाहिए। वे यह जानना चाहते थे कि उन्हें प्रार्थना में क्या कहना चाहिए।
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4 प्रार्थना में क्या कहें?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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4 प्रार्थना में क्या कहें?
जब यीशु धरती पर था, तो उसने अपने शिष्यों को प्रार्थना करना सिखाया था। लोग इसे प्रभु की प्रार्थना भी कहते हैं। बहुत-से लोगों को यह प्रार्थना मुँह-ज़बानी याद है। वे दिन में इसे कई बार शब्द-ब-शब्द दोहराते हैं। लेकिन यीशु ऐसा बिलकुल भी नहीं चाहता था कि हम इसे रट लें और इसे दोहराते रहें। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं?
अपने शिष्यों को यह प्रार्थना सिखाने से पहले यीशु ने कहा था, ‘प्रार्थना करते वक्त एक ही बात बार-बार मत दोहराओ।’ (मत्ती 6:7) इससे पता चलता है कि यीशु नहीं चाहता था कि लोग उसकी बतायी प्रार्थना रट लें और उसे दोहराते रहें। यीशु तो बस यह सिखा रहा था कि कुछ ज़रूरी बातें क्या हैं जिनके बारे में हम प्रार्थना कर सकते हैं। यह प्रार्थना बाइबल में मत्ती 6:9-13 में लिखी है। आइए इस पर ध्यान दें।
“हे हमारे पिता तू जो स्वर्ग में है, तेरा नाम पवित्र किया जाए।”
यीशु ने अपने शिष्यों को सिखाया कि उन्हें सिर्फ उसके पिता यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर का नाम पवित्र किया जाना क्यों इतना ज़रूरी है?
जब से पहले आदमी और पहली औरत को बनाया गया, तब से परमेश्वर के दुश्मन शैतान ने उसके पवित्र नाम को बदनाम किया है। शैतान का कहना है कि यहोवा झूठा है, स्वार्थी है और उसे इंसानों पर राज करने का कोई हक नहीं है। (उत्पत्ति 3:1-6) बहुत-से लोग शैतान की बात को सच मान बैठे हैं। उन्हें लगता है कि परमेश्वर क्रूर है और उसे इंसानों की कोई परवाह नहीं है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि भगवान है ही नहीं। कई लोगों ने तो परमेश्वर का नाम बाइबलों से हटा दिया है और वे कहते हैं कि हमें परमेश्वर का नाम नहीं लेना चाहिए।
हालाँकि परमेश्वर के नाम का अपमान किया गया, लेकिन बाइबल में बताया गया है कि परमेश्वर अपने नाम को पवित्र करेगा। (यहेजकेल 39:7) इसके साथ-साथ वह इंसानों की सभी समस्याएँ दूर कर देगा। वह यह कैसे करेगा? यीशु की प्रार्थना से हमें इसका जवाब मिलता है।
“तेरा राज आए।”
आज बहुत-से धर्म गुरु नहीं जानते कि परमेश्वर का राज क्या है। इस बारे में वे अलग-अलग बातें मानते हैं। लेकिन यीशु के शिष्य जानते थे कि परमेश्वर का राज एक सरकार है। बीते ज़माने के भविष्यवक्ताओं ने कहा था कि इस राज का राजा मसीहा होगा, जिसे खुद परमेश्वर चुनेगा। (यशायाह 9:6, 7; दानियेल 2:44) परमेश्वर का राज शैतान के झूठ का परदाफाश करेगा और परमेश्वर के नाम पर लगा कलंक मिटाएगा। वह शैतान को भी खत्म कर देगा। जब परमेश्वर का राज आएगा तब कोई बुराई नहीं रहेगी, युद्ध नहीं होंगे, कोई बीमार नहीं होगा, खाने-पीने की कमी नहीं होगी और किसी की मौत भी नहीं होगी। (भजन 46:9; 72:12-16; यशायाह 25:8; 33:24) जब आप प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर का राज आए, तो दरअसल आप यह दुआ कर रहे होते हैं कि परमेश्वर के ये सभी वादे पूरे हों।
“तेरी मरज़ी जैसे स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे धरती पर भी पूरी हो।”
यीशु के शब्दों से पता चलता है कि जैसे परमेश्वर की मरज़ी स्वर्ग में पूरी होती है, उसी तरह धरती पर भी उसकी मरज़ी ज़रूर पूरी होगी। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? यीशु ने शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को स्वर्ग से नीचे धरती पर फेंक दिया था। तब से परमेश्वर की मरज़ी स्वर्ग में पूरी हो रही है। इसीलिए हम यकीन रख सकते हैं कि परमेश्वर की मरज़ी धरती पर भी पूरी होगी। (प्रकाशितवाक्य 12:9-12) यीशु ने अपनी प्रार्थना में जो तीन बिनतियाँ कीं, उससे हम सीखते हैं कि क्या बात सबसे ज़्यादा ज़रूरी है। यह ज़रूरी नहीं कि हमारी इच्छाएँ पूरी हों, बल्कि परमेश्वर की मरज़ी पूरी हो। परमेश्वर की मरज़ी पूरी होने से हम सबका भला होगा। यही वजह है कि यीशु ने अपने पिता यहोवा से कहा, “मेरी मरज़ी नहीं बल्कि तेरी मरज़ी पूरी हो।”—लूका 22:42.
“आज के दिन की रोटी हमें दे।”
यीशु के इन शब्दों से पता चलता है कि हम खुद के लिए भी प्रार्थना कर सकते हैं। हर दिन की ज़रूरतों के लिए प्रार्थना करके हम ज़ाहिर कर रहे होंगे कि यहोवा ही हमारी ज़रूरतें पूरी करता है। वही “सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है।” (प्रेषितों 17:25) जिस तरह माता-पिता खुशी-खुशी अपने बच्चों की ज़रूरतें पूरी करते हैं, उसी तरह यहोवा भी अपने सेवकों की ज़रूरतें पूरी करता है। लेकिन माता-पिता अपने बच्चों की हर बात नहीं मानते, उसी तरह यहोवा हमारी वह बात नहीं सुनता जो हमारी लिए ठीक नहीं या जिससे हमें नुकसान हो सकता है।
“हमारे पाप माफ कर।”
क्या आपको लगता है कि आपको अपने पापों के लिए परमेश्वर से माफी माँगनी चाहिए? आज कई लोग नहीं समझते कि पाप क्या होता है और इसके कितने बुरे अंजाम होते हैं। बाइबल बताती है कि हम जन्म से ही पापी हैं। इसी वजह से हम कई बार कुछ ऐसा कह देते हैं या कोई ऐसा काम कर देते हैं जो गलत है। पाप की वजह से ही हम एक दिन बूढ़े होकर मर जाते हैं। अगर परमेश्वर हमें माफ करे, तभी हमें आगे चलकर हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है और वह हमें माफ करता भी है। (रोमियों 3:23; 5:12; 6:23) इसीलिए उसके बारे में बाइबल में लिखा है, “हे यहोवा, तू भला है और माफ करने को तत्पर रहता है।”—भजन 86:5.
“हमें शैतान से बचा।”
कुछ बाइबलों में लिखा है, “हमें बुराई से बचा।” लेकिन जब बाइबल लिखी गयी थी, तो इस आयत में शैतान का ज़िक्र किया गया था। हम सबको परमेश्वर की मदद चाहिए। वही हमें शैतान से बचा सकता है। कई लोगों को लगता है कि शैतान-वैतान कुछ नहीं होता। लेकिन यीशु ने बताया कि शैतान सच में है। उसने तो शैतान को “इस दुनिया का राजा” भी कहा। (यूहन्ना 12:31; 16:11) शैतान दुनिया को तो यहोवा से दूर ले जा ही चुका है, वह आपको भी उससे दूर ले जाना चाहता है। वह नहीं चाहता कि आपका यहोवा के साथ एक रिश्ता हो। (1 पतरस 5:8) लेकिन यहोवा शैतान से कहीं ज़्यादा ताकतवर है और वह उन लोगों की रक्षा करता है, जो उससे प्यार करते हैं।
यीशु की प्रार्थना से हमने सीखा कि हमें किन बातों के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए। लेकिन हम दूसरी बातों के बारे में भी प्रार्थना कर सकते हैं। पहला यूहन्ना 5:14 में परमेश्वर के बारे में लिखा है, “हम उसकी मरज़ी के मुताबिक चाहे जो भी माँगें वह हमारी सुनता है।” कभी ऐसा मत सोचिए, ‘यह तो इतनी छोटी-सी बात है, मैं इस बारे में कैसे प्रार्थना करूँ।’ आप उसे अपने दिल की हर बात बता सकते हैं।—1 पतरस 5:7.
लेकिन हमें किस वक्त और कहाँ प्रार्थना करनी चाहिए?
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5 प्रार्थना कब और कहाँ करें?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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5 प्रार्थना कब और कहाँ करें?
आपने ज़रूर देखा होगा कि ज़्यादातर धर्मों के लोग किसी खास जगह या खास वक्त पर प्रार्थना करते हैं। लेकिन क्या बाइबल भी यही सिखाती है कि हमें किसी खास जगह या वक्त पर प्रार्थना करनी चाहिए?
बाइबल में लिखा है कि ऐसे कुछ वक्त हैं जब हम प्रार्थना कर सकते हैं। जैसे यीशु ने खाना खाने से पहले अपने शिष्यों के साथ प्रार्थना की थी और परमेश्वर का धन्यवाद किया था। (लूका 22:17) जब यीशु के शिष्य उपासना के लिए इकट्ठा होते थे, तब भी वे प्रार्थना करते थे। ऐसा करके वे उस रिवाज़ को मान रहे थे, जो यहूदियों के सभा-घरों और यरूशलेम के मंदिर में सालों से माना जा रहा था। परमेश्वर चाहता था कि जहाँ लोग उपासना के लिए इकट्ठा होते हैं, वह “सब राष्ट्रों के लिए प्रार्थना का घर” हो।—मरकुस 11:17.
जब परमेश्वर के सेवक इकट्ठा होते हैं और उसकी मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना करते हैं, तो परमेश्वर उनकी ज़रूर सुनता है। वे प्रार्थना में जो माँगते हैं, यहोवा उन्हें वे देने के लिए तैयार हो जाता है, फिर शायद उसने ऐसा करने की सोची न हो। (इब्रानियों 13:18, 19) यहोवा के साक्षी अपनी सभा की शुरूआत और आखिर में प्रार्थना करते हैं। आप भी उनकी सभा में जाकर देख सकते हैं कि वे किस तरह प्रार्थना करते हैं।
बाइबल में यह नहीं लिखा है कि हमें किसी खास जगह या किसी खास वक्त पर परमेश्वर से बिनती करनी चाहिए। इसमें लिखा है कि परमेश्वर के सेवकों ने अलग-अलग जगह और अलग-अलग वक्त पर उससे प्रार्थना की। यीशु ने कहा था, “जब तू प्रार्थना करे, तो अकेले अपने घर के कमरे में जा और दरवाज़ा बंद कर और अपने पिता से जिसे कोई नहीं देख सकता, प्रार्थना कर। तब तेरा पिता जो तेरा हर काम देख रहा है, तुझे इसका फल देगा।”—मत्ती 6:6.
हम कहीं भी और किसी भी वक्त प्रार्थना कर सकते हैं
ज़रा सोचिए, आप सारे जहान के मालिक यहोवा से किसी भी वक्त बात कर सकते हैं! अगर आप उससे अकेले में भी बात करें, तब भी वह आपकी सुनेगा। यीशु ने भी कई बार अकेले में परमेश्वर से प्रार्थना की। एक बार जब उसे एक अहम फैसला लेना था, तब उसने पूरी रात परमेश्वर से बात की।—लूका 6:12, 13.
बाइबल में लिखा है कि जब परमेश्वर के सेवकों को कोई बड़ा फैसला लेना था या वे किसी मुश्किल हालात से गुज़र रहे थे, तो उन्होंने प्रार्थना की। कई बार उन्होंने ज़ोर से प्रार्थना की, तो कई बार मन में। कई बार उन्होंने दूसरों के साथ मिलकर प्रार्थना की, तो कई बार अकेले में। यह बात मायने नहीं रखती कि उन्होंने किस तरह प्रार्थना की, बल्कि यह बात मायने रखती है कि उन्होंने परमेश्वर से बात की। परमेश्वर चाहता है कि हम उससे प्रार्थना करें, इसलिए उसने बाइबल में लिखवाया है, “लगातार प्रार्थना करते रहो।” (1 थिस्सलुनीकियों 5:17) परमेश्वर के सेवक चाहे कितनी ही बार उससे प्रार्थना क्यों न करें, वह खुशी-खुशी उनकी सुनता है। सच में, परमेश्वर हमसे कितना प्यार करता है!
कई लोग सोचते हैं कि क्या प्रार्थना करने का कोई फायदा है। क्या आप भी ऐसा सोचते हैं?
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6 प्रार्थना करने का क्या कोई फायदा है?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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6 प्रार्थना करने का क्या कोई फायदा है?
क्या ईश्वर से प्रार्थना करने का कोई फायदा है? बाइबल में लिखा है कि जब परमेश्वर के सेवक प्रार्थना करते हैं, तो उन्हें बहुत फायदा होता है। (लूका 22:40; याकूब 5:13) प्रार्थना करने से परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होता है, हमें हिम्मत मिलती है, हम खुश रहते हैं और हमारी सेहत भी अच्छी रहती है। वह कैसे?
मान लीजिए कोई आपके बेटे या बेटी को कोई तोहफा देता है। जब ऐसा होता है तो अकसर हम उनसे कहते हैं, “बेटा, उनको थैंक्यू कहो।” हम छुटपन से ही अपने बच्चों को सिखाते हैं कि जब वे किसी के एहसानमंद हों, तो वे थैंक्यू कहकर उसे ज़ाहिर भी करें। वह इसलिए कि जब बच्चे दूसरों को थैंक्यू कहते हैं, तो वे उनका और भी एहसान मानते हैं। जब हम किसी बात के लिए परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं, तब भी कुछ ऐसा ही होता है। आइए देखें कैसे।
धन्यवाद की प्रार्थना जब हम किसी बात के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करते हैं, तो हमारा ध्यान अच्छी बातों पर लगा रहता है। इससे हम खुश रहते हैं और उसका और भी एहसान मानते हैं।—फिलिप्पियों 4:6.
उदाहरण: यहोवा ने यीशु की प्रार्थनाएँ सुनीं। इसलिए यीशु ने उसका धन्यवाद किया।—यूहन्ना 11:41.
माफी के लिए प्रार्थना जब हमसे कोई भूल हो जाती है और हम परमेश्वर से माफी माँगते हैं, तो हमें अपनी गलती का और भी एहसास होता है। हमें बहुत बुरा लगता है कि हमने परमेश्वर का दिल दुखाया और हम ठान लेते हैं कि हम दोबारा वह गलती नहीं करेंगे। परमेश्वर से माफी माँगने के बाद हम अपनी गलतियों की वजह से बहुत ज़्यादा निराश नहीं होते।
उदाहरण: जब दाविद ने पाप किया तो उसे बहुत दुख हुआ और उसने परमेश्वर से प्रार्थना करके माफी माँगी।—भजन 51.
मार्गदर्शन और बुद्धि के लिए प्रार्थना जब हमें कोई फैसला लेना होता है और हम परमेश्वर से बुद्धि माँगते हैं, तो हम और भी नम्र हो जाते हैं। क्योंकि हमें एहसास होता है कि हम अपने बल पर कुछ नहीं कर सकते, हमें परमेश्वर की मदद चाहिए। इस तरह हम परमेश्वर पर भरोसा करना सीखते हैं।—नीतिवचन 3:5, 6.
उदाहरण: राजा सुलैमान ने परमेश्वर से बुद्धि माँगी ताकि वह इसराएल राष्ट्र पर अच्छी तरह राज कर सके।—1 राजा 3:5-12.
मदद के लिए प्रार्थना जब हम किसी तकलीफ में होते हैं और हमें समझ में नहीं आता कि हम क्या करें, तो हमें परमेश्वर को अपने दिल का हाल बताना चाहिए। इस तरह हमें मन की शांति मिलेगी और हम खुद पर नहीं, बल्कि परमेश्वर पर भरोसा रखेंगे।—भजन 62:8.
उदाहरण: जब दुश्मन सेना इसराएल राष्ट्र पर हमला करने आयी, तो राजा आसा ने परमेश्वर यहोवा से मदद माँगी।—2 इतिहास 14:11.
दूसरों के लिए प्रार्थना जब हम दूसरों के लिए प्रार्थना करते हैं, तब हम खुद के बजाय दूसरों के बारे में सोचते हैं और हमें एहसास होता है कि उन पर क्या बीत रही है।
उदाहरण: यीशु अपने शिष्यों के लिए प्रार्थना करता था।—यूहन्ना 17:9-17.
तारीफ की प्रार्थना अगर हम परमेश्वर के लाजवाब कामों और उसके गुणों के लिए उसकी तारीफ करें, तो हमारे मन में उसके लिए प्यार और आदर बढ़ेगा। साथ ही, हम उसके और भी करीब आ जाएँगे।
उदाहरण: दाविद ने यहोवा की सृष्टि के लिए उसकी दिल से तारीफ की।—भजन 8.
कई बार हम हालात की वजह से परेशान हो जाते हैं। लेकिन प्रार्थना करने से हमें ‘परमेश्वर की वह शांति मिलेगी जो समझ से परे है।’ (फिलिप्पियों 4:7) तब हमारी सेहत भी अच्छी रहेगी। (नीतिवचन 14:30) लेकिन क्या सिर्फ प्रार्थना करना काफी है या हमें कुछ और भी करना होगा?
प्रार्थना करने से परमेश्वर के साथ हमारा रिश्ता मज़बूत होता है, हमें हिम्मत मिलती है, हम खुश रहते हैं और हमारी सेहत भी अच्छी रहती है
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7 क्या परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुनेगा?प्रहरीदुर्ग: प्रार्थना के बारे में 7 सवाल
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7 क्या परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुनेगा?
बहुत-से लोग यह जानना चाहते हैं कि आखिर परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है कि नहीं। बाइबल बताती है कि यहोवा परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है। लेकिन वह हमारी सुनेगा या नहीं, यह हम पर भी निर्भर करता है।
यीशु ने अपने ज़माने के धर्म गुरुओं को फटकारा, क्योंकि वह दिल से नहीं बल्कि लोगों की नज़रों में छाने के लिए प्रार्थना करते थे। इसीलिए यीशु ने उनके बारे में कहा, “वे अपना पूरा फल पा चुके हैं,” यानी उन्हें लोगों की तारीफ तो मिल जाती, लेकिन परमेश्वर उनकी नहीं सुनता। (मत्ती 6:5) उसी तरह आज कई लोग परमेश्वर की मरज़ी के मुताबिक प्रार्थना नहीं करते। वे सिर्फ अपनी इच्छाएँ पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं। लेकिन जैसे हमने सीखा, परमेश्वर ऐसी प्रार्थनाएँ नहीं सुनता।
क्या परमेश्वर आपकी प्रार्थनाएँ सुनेगा? परमेश्वर यह नहीं देखता कि आप किस देश या जाति के हैं या लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं। बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर वह इंसान जो उसका डर मानता है और सही काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी राष्ट्र का क्यों न हो, उसे वह स्वीकार करता है।” (प्रेषितों 10:34, 35) क्या आप परमेश्वर का डर मानते हैं और सही काम करते हैं? परमेश्वर का डर मानने का मतलब है, उसका आदर करना और ऐसा कुछ न करना जिससे वह नाराज़ हो। सही काम का मतलब ऐसे काम नहीं, जो हमारी नज़र में सही हों या दूसरे इंसानों की नज़र में सही हों, बल्कि ऐसे काम जो परमेश्वर की नज़र में सही हों। अगर हम परमेश्वर का डर मानें और सही काम करें, तो परमेश्वर हमारी प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनेगा।a
कई लोग चाहते हैं कि परमेश्वर कोई चमत्कार करके उनकी प्रार्थनाओं का जवाब दे। लेकिन हमें इसकी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। पुराने ज़माने में भी परमेश्वर ने सिर्फ कुछ ही बार चमत्कार करके प्रार्थनाओं का जवाब दिया। कई बार तो ऐसा हुआ कि सदियाँ बीत गयीं, लेकिन परमेश्वर ने कोई चमत्कार नहीं किया। और-तो-और प्रेषितों की मौत के बाद चमत्कार होने बंद हो गए। (1 कुरिंथियों 13:8-10) तो क्या इसका मतलब है कि परमेश्वर आज हमारी प्रार्थनाएँ नहीं सुनता? नहीं, ऐसा नहीं है। आइए देखें कि परमेश्वर किस तरह की प्रार्थनाएँ सुनता है।
परमेश्वर बुद्धि देता है। बाइबल बताती है कि यहोवा ही बुद्धि का स्रोत है। जो लोग उससे बुद्धि माँगते हैं और उसकी बतायी राह पर चलते हैं, उन्हें यहोवा बुद्धि ज़रूर देता है।—याकूब 1:5.
परमेश्वर हमें अपनी ताकत यानी पवित्र शक्ति देता है। इस ताकत से बढ़कर और कोई ताकत नहीं। इसकी मदद से हम मुश्किलों का सामना कर पाते हैं और जब हम निराश होते हैं, तो हमें हिम्मत मिलती है, मन की शांति मिलती है। परमेश्वर की पवित्र शक्ति से हम अपने अंदर अच्छे गुण भी बढ़ा पाते हैं। (गलातियों 5:22, 23) यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था कि अगर वे परमेश्वर से पवित्र शक्ति माँगे, तो वह उन्हें ज़रूर देगा।—लूका 11:13.
जो परमेश्वर के बारे में जानना चाहते हैं, उनकी वह मदद करता है। (प्रेषितों 17:26, 27) दुनिया-भर में कई लोग जानना चाहते हैं कि परमेश्वर का नाम क्या है, उसने इंसानों को क्यों बनाया और वे ऊपरवाले के दोस्त कैसे बन सकते हैं। (याकूब 4:8) यहोवा के साक्षी लोगों को बाइबल से इन सवालों के जवाब देते हैं।
क्या आप भी परमेश्वर के बारे में जानना चाहते थे? शायद ऊपरवाले ने आपकी सुन ली और इस पत्रिका के ज़रिए आपकी प्रार्थना का जवाब दिया!
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