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क्या उम्मीद करने का कोई फायदा है?सजग होइए!: हमें उम्मीद कहाँ से मिल सकती है?
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क्या उम्मीद करने का कोई फायदा है?
डैनियल सिर्फ दस साल का था। उसे एक साल पहले ही पता चला था कि उसे कैंसर है। उसकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी। डॉक्टरों और उसके घरवालों को लगा कि वह कभी ठीक नहीं होगा। वे पूरी तरह उम्मीद खो बैठे थे, लेकिन डैनियल ने हार नहीं मानी। उसे यकीन था कि वह ठीक हो जाएगा और बड़ा होकर कैंसर का इलाज ढूँढ़ेगा। कुछ दिनों बाद एक बड़ा डॉक्टर उसे देखने के लिए आनेवाला था। उसे लग रह था कि वह डॉक्टर उसे ज़रूर ठीक कर देगा। लेकिन उस दिन मौसम बहुत खराब था, इसलिए डॉक्टर उससे मिल नहीं पाया। डैनियल बहुत दुखी हो गया। उसकी हिम्मत टूट गयी। कुछ ही दिनों बाद उसकी मौत हो गयी।
यह किस्सा एक नर्स ने बताया था जो इस बात पर खोजबीन कर रही थी कि उम्मीद होने या न होने से हमारी सेहत पर क्या असर होता है। शायद आपने भी ऐसे कई किस्से सुने हों। जैसे, एक बुज़ुर्ग व्यक्ति की शायद आखिरी इच्छा हो कि वह किसी अज़ीज़ से मिले या किसी खास मौके में शरीक हो। जब तक उसे उम्मीद रहती है, तब तक उसकी साँसें चलती रहती हैं, लेकिन जब उसकी इच्छा पूरी हो जाती है, तो वह दम तोड़ देता है। ऐसा क्यों होता है? क्या उम्मीद होने या न होने से सच में हमारी सेहत पर फर्क पड़ता है?
कई डॉक्टरों का मानना है कि अगर हम खुश रहें और अच्छा सोचें, तो हमारी सेहत सुधर सकती है। लेकिन कुछ डॉक्टरों को यह बात बेतुकी लगती है। उनका मानना है कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अच्छी बातों की उम्मीद करने से या खुश रहने से हमें फायदा होगा।
पुराने ज़माने में भी कई लोगों को लगता था कि उम्मीद करने का कोई फायदा नहीं है। हज़ारों साल पहले अरस्तु नाम के एक जाने-माने व्यक्ति ने कहा कि उम्मीद करना ऐसा है मानो हम दिन में सपने देख रहे हों। करीब 200 साल पहले एक अमरीकी नेता बेंजमिन फ्रैंकलिन ने कहा, ‘सिर्फ उम्मीद पर जीओगे, तो भूखे मरोगे।’
तो क्या उम्मीद करने का कोई फायदा नहीं? क्या यह बस कहने की बात है? या फिर उम्मीद करने से वाकई हमारी सेहत सुधर सकती है, हम खुश रह सकते हैं?
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क्यों करें उम्मीद?सजग होइए!: हमें उम्मीद कहाँ से मिल सकती है?
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क्यों करें उम्मीद?
आपको क्या लगता है, अगर डैनियल ने उम्मीद नहीं छोड़ी होती, तो क्या होता? क्या उसका कैंसर ठीक हो जाता? क्या वह आज भी ज़िंदा होता? जो लोग मानते हैं कि उम्मीद रखने से सेहत अच्छी रहती है, शायद वे भी कहें कि ऐसा नहीं हो सकता। बेशक, सिर्फ उम्मीद रखने से सबकुछ ठीक नहीं हो जाता।
डॉक्टर नेथन चर्ने ने एक इंटरव्यू में कहा कि जो मरीज़ बहुत बीमार होते हैं, उनसे यह कहना गलत होगा कि अगर तुम अच्छा सोचोगे, तो ठीक हो जाओगे। डॉक्टर चर्ने ने कहा, “हमने ऐसा कई बार देखा है कि जब कोई पत्नी ठीक नहीं होती, तो उसका पति उसी पर दोष लगाता है और कहता है, ‘तुम ठीक से ध्यान नहीं करती और अच्छी बातों के बारे में नहीं सोचती। इसलिए तुम ठीक नहीं हो रही हो।’ इस तरह की सोच गलत है, क्योंकि इससे मरीज़ को लग सकता है कि बीमारी से ठीक होना या न होना उसके हाथ में है। यानी अगर वह ठीक नहीं होता, तो इसमें उसकी गलती है।”
जिन लोगों को कोई बड़ी बीमारी होती है, वे पहले से ही बहुत निराश रहते हैं और थके हुए होते हैं। ऊपर से अगर उनके परिवारवाले और दोस्त उन पर दोष लगाएँ, तो वे पूरी तरह टूट सकते हैं। तो क्या अच्छे कल की उम्मीद करने का कोई फायदा नहीं?
नहीं, ऐसा नहीं है। डॉक्टर नेथन चर्ने ऐसे मरीज़ों का इलाज करते हैं जिन्हें कोई बड़ी बीमारी है। वे जिस विभाग में काम करते हैं, वह बीमारी का सीधा-सीधा इलाज नहीं करता, बल्कि इस बात का ध्यान रखता है कि मरीज़ का आखिरी वक्त आराम से कटे। इस विभाग में काम करनेवाले डॉक्टर इस तरह इलाज करते हैं कि मरीज़ खुश रहें और उनकी मानसिक स्थिति अच्छी रहे। उन डॉक्टरों का मानना है कि इस तरह का इलाज सच में फायदेमंद है। इस बात के कई सबूत हैं कि अगर हम अच्छी बातों की उम्मीद करें, तो हमारी सेहत अच्छी होगी और हम खुश रहेंगे।
उम्मीद होने के फायदे
डॉक्टर डब्ल्यू गिफर्ड-जोन्स ने कहा, “उम्मीद मरहम का काम करती है।” उन्होंने इस बात पर खोजबीन की कि जिन्हें जानलेवा बीमारी है, उनका हौसला बढ़ाने कितना ज़रूरी है। कई लोगों का मानना है कि जब ऐसे मरीज़ों की हिम्मत बँधाई जाए, तो वे खुश रहते हैं और उन्हें जीने की उम्मीद मिलती है। सन् 1989 में कुछ मरीज़ों का सर्वे किया गया। इससे पता लगाया गया कि जिन मरीज़ों का हौसला बढ़ाया गया, वे ज़्यादा लंबे समय तक जीए। लेकिन हाल ही में की गयी खोजबीन से पता चला कि ऐसा हर बार नहीं होता। लेकिन एक बात तो पक्की है, जिन मरीज़ों का हौसला बढ़ाया जाता है, वे इतने निराश नहीं होते और उन्हें दर्द भी कम होता है।
हमारी सोच का हमारी सेहत पर कैसा असर पड़ता है, इस पर एक बार फिर खोजबीन की गयी। करीब 1,300 आदमियों का सर्वे किया गया जिसमें पता लगाया गया कि अपनी ज़िंदगी के बारे में वे अच्छा सोचते हैं या बुरा। दस साल बाद देखा गया कि इनमें से 160 लोगों को दिल की बीमारी हो गयी। उन 160 में से ज़्यादातर लोग ऐसे थे, जो सोचते थे कि उनके साथ कुछ बुरा होगा। इस खोजबीन के बारे में डॉक्टर लॉरा कुब्ज़ांस्की ने, जो अमरीका की एक जानी-मानी यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं, कहा, “अब तक बस कुछ लोगों का कहना था कि अच्छा सोचने से हमारी सेहत अच्छी रहती है। लेकिन इस खोजबीन से पहली बार यह साबित हो गया कि अच्छा सोचने से दिल की बीमारी कम होती है।”
खोजबीन करने पर यह भी पता चला है कि जिन लोगों को लगता था कि उनकी सेहत अच्छी है, वे ऑपरेशन कराने के बाद जल्दी ठीक हो गए। लेकिन जिन लोगों को लगता था कि उनकी सेहत ठीक नहीं है, उन्हें ऑपरेशन के बाद ठीक होने में ज़्यादा वक्त लगा। यह भी देखा गया है कि जो लोग खुश रहते हैं, वे लंबी उम्र जीते हैं। एक खोज से यह भी पता चला है कि अच्छी और बुरी सोच का बुज़ुर्गों पर क्या असर पड़ता है। जब कुछ बुज़ुर्गों को बताया गया कि उम्र ढलने की वजह से उन्हें ज़्यादा तजुरबा है, वे बुद्धिमान हैं, तो उनमें जोश भर आया। उनमें इतनी फुर्ती आ गयी, जितनी 12 हफ्ते कसरत करने पर आती है!
ऐसा क्यों होता है कि अच्छा सोचने से, उम्मीद होने से एक व्यक्ति की सेहत अच्छी रहती है? वैज्ञानिकों और डॉक्टरों को भी अभी तक इसका सही-सही जवाब नहीं पता है। लेकिन अब तक जो खोजबीन हुई है, उसके आधार पर जानकारों का यही मानना है। एक डॉक्टर ने कहा, “जो लोग खुश रहते हैं और अच्छी बातों की उम्मीद करते हैं, उन्हें तनाव नहीं होता। इस वजह से उनकी सेहत अच्छी रहती है। तो खुश रहना सेहतमंद रहने का एक अच्छा तरीका है।”
डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने हाल ही में इस बात का पता लगाया है। लेकिन बाइबल में यह बात सदियों पहले लिख दी गयी थी। आज से करीब 3,000 साल पहले राजा सुलैमान ने लिखा, “दिल का खुश रहना बढ़िया दवा है, मगर मन की उदासी सारी ताकत चूस लेती है।” (नीतिवचन 17:22) ध्यान दीजिए कि यहाँ यह नहीं लिखा है कि खुश रहने से सारी बीमारियाँ ठीक हो जाएँगी, बल्कि यह लिखा है कि “खुश रहना बढ़िया दवा है।”
वाकई, अगर उम्मीद सचमुच की कोई दवा होती, तो हर एक डॉक्टर अपने मरीज़ को यह दवा देता। उम्मीद रखने से सिर्फ हमारी सेहत पर ही असर नहीं पड़ता, इसके और भी कई फायदे हैं।
हमारी सोच का हम पर क्या असर पड़ता है?
वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया है कि जो अच्छी बातों की उम्मीद करते हैं, उन्हें बहुत फायदा होता है। वे स्कूल में, काम की जगह पर और खेल-कूद में भी अच्छा करते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ लड़कियों का सर्वे लिया गया, जो दौड़ में हिस्सा लेती थीं। उनके कोच ने बताया कि कौन-सी लड़की कितना अच्छा दौड़ती है। उन लड़ियों से भी पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है कि वह कितना अच्छा दौड़ेंगी। दौड़ के बाद देखा गया कि कोच की रिपोर्ट के बजाय लड़कियों ने जो अनुमान लगाया था, वह ज़्यादा सही था। आखिर उम्मीद रखने का इतना ज़बरदस्त असर क्यों होता है?
वैज्ञानिकों ने ऐसे लोगों का अध्ययन करके भी बहुत कुछ सीखा है, जो हमेशा सोचते हैं कि कुछ बुरा होगा। आज से करीब 50 साल पहले वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि कई बार हालात की वजह से जानवर और इंसान दोनों उम्मीद खो बैठते हैं। उन्होंने कुछ लोगों को एक कमरे में बंद किया जहाँ बहुत शोर था। उनसे कहा गया था कि अगर वे कुछ बटन दबाएँ, तो वह शोर बंद हो जाएगा। सभी लोग उस शोर को रोक पाए।
कुछ और लोगों से भी यही बात कही गयी, लेकिन जब उन्होंने बटन दबाए, तो वह आवाज़ बंद नहीं हुई। उनमें से कई लोगों को लगा कि अब कुछ नहीं हो सकता और वे उम्मीद खो बैठे। उसी दिन जब कुछ और प्रयोग किए गए, तो लोग हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहे। उन्हें लगा कि चाहे वे कुछ भी करें, कुछ फायदा नहीं होगा। लेकिन उनमें से कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने हार नहीं मानी और वे कोशिश करते रहे।
इनमें से कई प्रयोग डॉक्टर मार्टिन सेलिगमन ने तैयार किए थे। इन प्रयोगों के बाद उन्होंने इस बारे में खोजबीन करना जारी रखा कि लोगों की सोच का उन पर क्या असर होता है। उन्होंने इस बारे में भी अध्ययन किया कि क्यों कुछ लोग हिम्मत हार बैठते हैं। वे इस नतीजे पर पहुँचे कि जो लोग सोचते हैं कि उनके साथ बुरा होगा, वे डर के मारे पीछे हट जाते हैं और कभी कुछ हासिल करने की कोशिश ही नहीं करते। उन्होंने कहा, “मैं 25 सालों से इस विषय पर खोजबीन कर रहा हूँ। मैंने देखा है कि कुछ लोग मानते हैं कि अगर कुछ बुरा हुआ, तो वह उन्हीं की गलती थी। उन्हें लगता है कि बुरी बातें होती रहेंगी, फिर चाहे वे उन्हें रोकने की लाख कोशिश क्यों न कर लें। वे ऐसा सोचते हैं, शायद इसीलिए उनके साथ बुरा होता है। अगर वे अच्छा सोचें, तो शायद उनके साथ अच्छा ही हो।”
कुछ लोगों को शायद यह बात नयी लगे, लेकिन बाइबल में यह बात बहुत पहले से बतायी गयी थी। इसमें लिखा है, “मुश्किल घड़ी में अगर तू निराश हो जाए, तो तुझमें बहुत कम ताकत रह जाएगी।” (नीतिवचन 24:10) बाइबल में पहले से ही साफ-साफ बताया गया था कि अगर हम निराश हो जाएँ और बुरा सोचें, तो हममें कुछ करने की हिम्मत ही नहीं होगी। हम इस तरह की भावनाओं पर काबू कैसे पा सकते हैं?
[तसवीर]
अच्छे कल की उम्मीद करने से बहुत फायदा हो सकता है
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हार मत मानिए!सजग होइए!: हमें उम्मीद कहाँ से मिल सकती है?
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हार मत मानिए!
जब आप किसी मुश्किल में होते हैं, तब आप क्या करते हैं? क्या आप बहुत ज़्यादा निराश हो जाते हैं या फिर हिम्मत से उसका सामना करते हैं? यह सच है कि हम सबकी ज़िंदगी में मुश्किलें आती हैं, लेकिन कुछ लोगों की ज़िंदगी में तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। कई जानकारों का कहना है कि मुश्किल वक्त में एक व्यक्ति जिस तरह का रवैया रखता है, उससे पता चलता है कि उसकी सोच कैसी है। ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग बड़ी-से-बड़ी मुश्किल पार कर लेते हैं, लेकिन कुछ लोग छोटी-सी मुश्किल आने पर भी हिम्मत हार जाते हैं?
मान लीजिए कि आप नौकरी ढूँढ़ रहे हैं। आप एक इंटरव्यू देते हैं, लेकिन आपको नौकरी नहीं मिलती। तब आपको कैसा लगेगा? क्या आप यह सोचेंगे, ‘मुझ जैसे इंसान को कौन नौकरी पर रखेगा? मुझे कभी नौकरी नहीं मिलेगी’? या क्या आप ऐसा सोचेंगे, ‘मैं किसी काम का नहीं। मैं ज़िंदगी में कुछ भी हासिल नहीं कर पाऊँगा’? अगर आप ऐसा सोचेंगे, तो ज़रूर निराश हो जाएँगे।
गलत सोच को हावी मत होने दीजिए!
अगर आपके मन में बुरे खयाल आएँ, तो आप क्या कर सकते हैं? सबसे पहले आपको समझना होगा कि किस तरह की सोच आपको निराश कर सकती है। फिर ऐसी सोच को खुद पर हावी होने मत दीजिए। जब आपके साथ कुछ बुरा होता है, तो यह सोचने की कोशिश कीजिए कि उसकी क्या वजह रही होगी। उदाहरण के लिए सोचिए कि क्या आपको नौकरी इसलिए नहीं मिली कि कोई आपको पसंद नहीं करता या फिर आपके पास जो हुनर हैं, वह कंपनी की माँगों से अलग हैं।
एक पल के लिए ठंडे दिमाग से सोचिए कि क्या सच में हालात इतने बुरे हैं या फिर आप यूँ ही इतनी चिंता कर रहे हैं। जब आपके साथ कुछ बुरा होता है, तो यह मत सोचिए कि आप कभी कुछ अच्छा नहीं कर पाएँगे। इसके बजाय अच्छी बातों के बारे में सोचिए। जैसे आप सोच सकते हैं कि आपका घर अच्छे से चल रहा है या आपके अच्छे दोस्त हैं। अगर आपको नौकरी नहीं मिली, तो ऐसा मत सोचिए कि आपको कभी नौकरी नहीं मिलेगी। आप और क्या कर सकते हैं ताकि गलत सोच आप पर हावी न हो?
लक्ष्य रखिए
हाल ही के सालों में जानकारों ने बताया है कि उम्मीद रखने का क्या मतलब है। उन्होंने कहा कि उम्मीद रखने का मतलब है, खुद पर भरोसा होना कि आप अपने लक्ष्य हासिल कर लेंगे। ऐसा करने से आप अपनी सोच सुधार पाएँगे और अपने लक्ष्य हासिल कर पाएँगे। अगले लेख में हम उम्मीद के बारे में और भी बातें जानेंगे।
क्या आपको लगता है कि आप अपने लक्ष्य हासिल कर पाएँगे? अगर आप छोटे-छोटे लक्ष्य रखें और उन्हें हासिल कर लें, तो खुद पर आपका भरोसा बढ़ेगा। अगर आपने अब तक कोई लक्ष्य नहीं रखा है, तो आप एक लक्ष्य रखकर उसे पाने की कोशिश कर सकते हैं। कई बार हम ज़िंदगी की भाग-दौड़ में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि भूल जाते हैं कि ज़िंदगी में क्या बात सबसे ज़रूरी है और हमारे लक्ष्य क्या हैं। बाइबल में बहुत पहले ही इस बारे में सलाह दी गयी थी। इसमें लिखा है, ‘पहचानो कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं।’—फिलिप्पियों 1:10.
अगर हम समझ जाएँ कि हमारी ज़िंदगी में क्या बात सबसे ज़रूरी है, तो हम उस हिसाब से लक्ष्य रख पाएँगे। लेकिन हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम शुरू-शुरू में बहुत ज़्यादा लक्ष्य न रखें। साथ ही, हमें ऐसे लक्ष्य रखने चाहिए जिन्हें हम आसानी से पूरा कर सकते हैं। अगर हम कोई ऐसा लक्ष्य रखें जो बहुत मुश्किल है, तो हम निराश होकर हार मान लेंगे। इसलिए अच्छा होगा कि हम छोटे-छोटे लक्ष्य रखें, जिन्हें हम आसानी से हासिल कर सकते हैं।
एक पुरानी कहावत है, जहाँ चाह, वहाँ राह। एक बार हमने लक्ष्य तय कर लिया, तो उसके बाद हमें ठान लेना चाहिए कि हम उसे पूरा करके ही रहेंगे। अगर हम सोचें कि वह लक्ष्य हासिल करने से हमें क्या-क्या फायदे होंगे, तो हम उसे पूरा करने में और भी मेहनत करेंगे। हो सकता है कि कुछ मुश्किलें आएँ, लेकिन हमें निराश होकर हार नहीं माननी चाहिए।
हमें पहले से ही सोचकर रखना चाहिए कि हम अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए क्या करेंगे। एक लेखक सी. आर. स्नाइडर ने सलाह दी कि अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें अलग-अलग तरीके सोचकर रखने चाहिए। अगर एक तरीका काम न आए, तो आप दूसरा तरीका अपना सकते हैं और अगर दूसरा नहीं, तो तीसरा।
इस लेखक ने यह भी कहा कि शायद कई बार हमें अपने लक्ष्य बदलने पड़ें। अगर हम कोई लक्ष्य हासिल नहीं कर पा रहे हैं, तो उसके बारे में सोचते रहने से हम परेशान हो जाएँगे। वहीं अगर हम अपना लक्ष्य बदल दें और ऐसा लक्ष्य रखें जिसे हम हासिल कर सकते हैं, तो हमारे मन में फिर से एक उम्मीद जाग जाएगी।
बाइबल के ज़माने में राजा दाविद ने भी कुछ ऐसा ही किया। उसने सोचा था कि वह अपने परमेश्वर यहोवा के लिए एक मंदिर बनाएगा। लेकिन परमेश्वर ने उससे कहा कि वह नहीं, बल्कि उसका बेटा मंदिर बनाएगा। इस पर निराश होने के बजाय, दाविद ने अपना लक्ष्य बदल दिया। उसने सोचा कि मंदिर बनाने में वह अपने बेटे की मदद करेगा और वह सोना-चाँदी और दूसरी चीज़ें इकट्ठा करने में लगा गया।—1 राजा 8:17-19; 1 इतिहास 29:3-7.
हो सकता है, हम अपनी ज़िंदगी में खुश रहना और उम्मीद रखना सीख जाएँ, लेकिन फिर भी हम कभी-कभी निराश हो सकते हैं। वह इसलिए कि कई चीजें हमारे बस में नहीं होतीं। आज लोग गरीबी, युद्ध, अन्याय और बीमारियों की वजह से निराश हैं। इन चीज़ों के बारे में सोचकर शायद हम उम्मीद खो बैठें। तो फिर सवाल उठता है, कौन हमें उम्मीद दे सकता है?
[तसवीर]
अगर आपको कोई नौकरी न मिले, तो क्या आप सोचेंगे कि आपको कभी नौकरी नहीं मिलेगी?
[तसवीर]
राजा दाविद ने अपना लक्ष्य बदला
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कौन हमें आशा दे सकता है?सजग होइए!: हमें उम्मीद कहाँ से मिल सकती है?
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कौन हमें आशा दे सकता है?
आपकी घड़ी खराब हो गयी है। आप बाज़ार जाते हैं, तो देखते हैं कि बहुत-सी दुकानें हैं जहाँ घड़ी ठीक की जाती है। हर दुकानदार कहता है कि वह आपकी घड़ी ठीक कर सकता है। कोई कहता है कि यह खराबी है, तो कोई कहता है कि वह खराबी है। आपको समझ में नहीं आता है कि आप किससे घड़ी ठीक करवाएँ। लेकिन फिर आपको पता चलता है कि जिस आदमी ने सालों पहले वह घड़ी बनायी थी, वह आपका पड़ोसी ही है। आप उससे बात करते हैं और वह घड़ी ठीक करने के लिए तैयार हो जाता है, वह भी बिना पैसे लिए। बेशक, आप उसी से घड़ी ठीक करवाएँगे, है कि नहीं?
घड़ी खराब हो जाए, तो आप उसे ठीक करवा सकते हैं। लेकिन मान लीजिए आप किसी वजह से उम्मीद खो बैठते हैं, तब आप किससे मदद माँग सकते हैं? हर कोई आपको सलाह देने लगता है। कोई आपसे कहता है कि ऐसा करो, तो आपकी समस्याएँ ठीक हो जाएँगी, तो कोई कहता है कि ऐसा बिलकुल भी मत करना। आपको समझ में नहीं आता कि आप क्या करें, किसकी सुनें। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसे में हमारा बनानेवाला ही हमें सबसे बढ़िया सलाह दे सकता है और हमें उम्मीद दे सकता है? पवित्र शास्त्र बाइबल में लिखा है कि “वह हममें से किसी से भी दूर नहीं” और वह हमारी मदद करना चाहता है।—प्रेषितों 17:27; 1 पतरस 5:7.
आशा करने का क्या मतलब है?
आजकल के डॉक्टर और वैज्ञानिक आशा के बारे में जो बताते हैं और बाइबल आशा के बारे में जो बताती है, उसमें बहुत फर्क है। आशा करने में दो बातें शामिल हैं। पहली, कुछ अच्छा होने की इच्छा करना और दूसरी, उस पर यकीन करने की ठोस वजह होना। बाइबल में जिस आशा के बारे में बताया गया है, वह सिर्फ कोरी कल्पना नहीं है। आशा करने की कोई ठोस वजह होती है।
देखा जाए तो आशा करना विश्वास रखने जैसा ही है, क्योंकि जिस तरह किसी बात पर विश्वास करने के लिए ठोस वजह होना चाहिए, उसी तरह आशा करने के लिए भी ठोस वजह होना चाहिए।—1 कुरिंथियों 13:13; इब्रानियों 11:1.
इसे समझने के लिए ज़रा सोचिए, आप अपने एक जिगरी दोस्त से मदद माँगते हैं। आपको उस पर पूरा भरोसा है, इसलिए आप उससे उम्मीद लगाए हुए हैं। आप उसे अच्छी तरह जानते हैं। वह बहुत उदार है और उसने पहले भी आपकी मदद की है। इससे पता चलता है कि जिस पर भरोसा या विश्वास होता है, उसी से उम्मीद की जाती है। साथ ही, अगर हमारे पास कोई ठोस वजह हो, तभी हम किसी से उम्मीद लगाते हैं या किसी पर भरोसा करते हैं। पर अब सवाल उठता है, क्या आप परमेश्वर पर इस तरह की आशा लगा सकते हैं? अगर हाँ, तो क्यों?
आशा करने की वजह
हम परमेश्वर पर आशा लगा सकते हैं, क्योंकि वह अपने सभी वादे पूरे करता है। बीते ज़माने में भी परमेश्वर यहोवा के लोग यानी इस्राएली, उसी पर आशा लगाते थे। शास्त्र में उसे “इसराएल की आशा” भी कहा गया है। (यिर्मयाह 14:8) इसराएली यहोवा पर इसलिए आशा लगाए हुए थे क्योंकि उन्हें उस पर पूरा भरोसा था। वह इसलिए कि यहोवा ने उनसे जितने भी वादे किए थे, वे सब पूरे किए। यही वजह थी कि इसराएलियों के नेता यहोशू ने उनसे कहा, “तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुम्हारे परमेश्वर यहोवा ने तुमसे जितने भी बेहतरीन वादे किए थे वे सब-के-सब पूरे हुए।”—यहोशू 23:14.
बाइबल में लिखा है कि परमेश्वर ने अपने लोगों से कौन-से वादे किए थे और वे सब-के-सब किस तरह पूरे हुए। दरअसल उसके कई वादे इस तरह लिखे गए थे मानो वे पूरे हो चुके हों। इसी वजह से आज हम भी परमेश्वर के वादों पर भरोसा रख सकते हैं।
बाइबल में लिखे सभी वादे ज़रूर पूरे होंगे, इसलिए बाइबल पढ़ने से हमें आशा मिलती है। जब आप बाइबल में पढ़ेंगे कि किस तरह यहोवा ने अपने लोगों से व्यवहार किया, तो आपका उस पर भरोसा बढ़ेगा और आपको पक्का यकीन हो जाएगा कि उसके वादे ज़रूर पूरे होंगे। बाइबल में लिखा है, “जो बातें पहले से लिखी गयी थीं, वे इसलिए लिखी गयीं कि हम उनसे सीखें और शास्त्र से हमें धीरज धरने में मदद मिले और हम दिलासा पाएँ ताकि हमारे पास आशा हो।”—रोमियों 15:4.
परमेश्वर से मिली एक बढ़िया आशा
जब हमारा कोई अज़ीज़ गुज़र जाता है, तब हमें आशा की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है। लेकिन उस वक्त बहुत-से लोगों को लगता है कि सबकुछ खत्म हो गया, कोई उम्मीद ही नहीं बची। वह इसलिए कि हम चाहे लाख कोशिश क्यों न कर लें, हम उन्हें वापस नहीं ला सकते और एक-न-एक दिन हम सबकी मौत हो जाती है। यही वजह है कि बाइबल मौत को “आखिरी दुश्मन” कहती है।—1 कुरिंथियों 15:26.
क्या इसका मतलब है कि हमारे पास कोई आशा नहीं? नहीं, ऐसा नहीं है। बाइबल में लिखा है कि आखिरी दुश्मन यानी मौत को “मिटा दिया” जाएगा। परमेश्वर यहोवा ऐसा करने की ताकत रखता है। उसने कई बार मौत की नींद सो रहे लोगों को ज़िंदा किया है। बाइबल में ऐसी नौ घटनाओं का ज़िक्र किया गया है, जब यहोवा ने लोगों को ज़िंदा किया।
एक बार यहोवा ने अपने बेटे यीशु को एक व्यक्ति को दोबारा ज़िंदा करने की ताकत दी। वह यीशु का दोस्त लाज़र था, जिसे मरे हुए चार दिन हो चुके थे। यीशु ने अकेले में नहीं, बल्कि एक बड़ी भीड़ के सामने उसे ज़िंदा किया।—यूहन्ना 11:38-48, 53; 12:9, 10.
शायद आप सोचें, ‘जिन लोगों को दोबारा ज़िंदा किया गया, वे बूढ़े होकर फिर से मर गए। तो फिर उन्हें ज़िंदा करने का क्या फायदा हुआ?’ हाँ, यह बात सही है कि वे दोबारा मर गए। लेकिन इस किस्से से हमें इस बात का पक्का सबूत मिलता है कि हमारे अपने जो मर गए हैं, उन्हें दोबारा ज़िंदा किया जाएगा। इस वजह से हमें पक्की आशा है कि हम उनसे मिलेंगे।
यीशु ने कहा, “मरे हुओं को ज़िंदा करनेवाला और उन्हें जीवन देनेवाला मैं ही हूँ।” (यूहन्ना 11:25) परमेश्वर यहोवा यीशु को पूरी दुनिया में लोगों को ज़िंदा करने की ताकत देगा। बाइबल में लिखा है, “वह वक्त आ रहा है जब वे सभी, जो स्मारक कब्रों में हैं [यीशु मसीह] की आवाज़ सुनेंगे और बाहर निकल आएँगे।” (यूहन्ना 5:28, 29) हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि जो लोग मौत की नींद सो रहे हैं, उन्हें इस खूबसूरत धरती पर ज़िंदा किया जाएगा।
बीते ज़माने में परमेश्वर के एक भविष्यवक्ता यशायाह ने बहुत ही सुंदर शब्दों में कहा, “परमेश्वर कहता है, ‘तेरे जो लोग मर गए हैं, वे उठ खड़े होंगे, मेरे लोगों की लाशों में जान आ जाएगी। तुम जो मिट्टी में जा बसे हो, जागो! खुशी से जयजयकार करो! तेरी ओस सुबह की ओस जैसी है! कब्र में पड़े बेजान लोगों को धरती लौटा देगी कि वे ज़िंदा किए जाएँ।’”—यशायाह 26:19.
यह बात पढ़कर हमें सच में बहुत तसल्ली मिलती है। जिस तरह एक अजन्मा बच्चा माँ की कोख में महफूज़ रहता है, उसी तरह मरे हुए लोग यहोवा की याद में महफूज़ हैं। (लूका 20:37, 38) बहुत जल्द यहोवा उन्हें इस खूबसूरत धरती पर फिर से ज़िंदा करेगा, जहाँ उनका परिवार खुशी-खुशी उनका स्वागत करेगा। कितनी बढ़िया आशा है!
आशा होने से हम धीरज धर पाते हैं
परमेश्वर के एक सेवक पौलुस ने बताया कि आशा होना कितना ज़रूरी है। उसने कहा कि आशा एक टोप या हेलमेट जैसी है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:8) पुराने ज़माने में जब एक सैनिक युद्ध के लिए जाता था, तो वह अपने सिर पर धातु से बना एक टोप पहनता था। वह इसे कपड़े या चमड़े की टोपी के ऊपर पहनता था। टोप की वजह से सैनिक सिर पर हुए वार झेल पाता था और उसे ज़्यादा चोट नहीं पहुँचती थी। पौलुस के कहने का मतलब था कि जिस तरह टोप पहनने से सैनिक के सिर की रक्षा होती है, उसी तरह आशा रखने से हमारे मन की रक्षा होती है। हमें आशा है कि यहोवा के वादे ज़रूर पूरे होंगे। इस वजह से हम मुश्किलें आने पर भी निराश नहीं होते। सच में, हम सबको इस आशा के टोप की बहुत ज़रूरत है।
पौलुस ने एक उदाहरण देकर समझाया कि आशा करना कितना ज़रूरी है। उसने लिखा, “यह आशा हमारी ज़िंदगी के लिए एक लंगर है जो पक्की और मज़बूत है।” (इब्रानियों 6:19) पौलुस कई बार जहाज़ पर सफर कर चुका था। वह जानता था कि जहाज़ के लिए लंगर कितना ज़रूरी होता है। जब तूफान आता है, तो नाविक पानी में लंगर गिरा देते हैं। इस वजह से जहाज़ चट्टान से टकराकर तहस-नहस नहीं होता, बल्कि अपनी जगह टिका रहता है।
परमेश्वर ने हमें भविष्य की जो पक्की आशा दी है, वह एक लंगर की तरह है। यह हमें मुसीबतों के तूफान का सामना करने के लिए मज़बूत कर सकती है। यहोवा ने वादा किया है कि वह बहुत जल्द इस दुनिया से युद्ध, दुख-तकलीफें, अन्याय और मौत को मिटा देगा। (पेज 10 पर दिया बक्स देखें।) अगर हम अपनी आशा को मज़बूती से थामे रहें, तो हम मुश्किलों का सामना कर पाएँगे और इस दुष्ट दुनिया में भी परमेश्वर की आज्ञा मान पाएँगे।
यहोवा चाहता है कि आपके पास भी यह आशा हो और आप खुशी से ज़िंदगी जीएँ। उसकी तो इच्छा है कि “सब किस्म के लोगों का उद्धार हो।” लेकिन हमारा उद्धार तभी होगा जब हम “सच्चाई का सही ज्ञान” लेंगे। (1 तीमुथियुस 2:4) हम चाहते हैं कि आप बाइबल से परमेश्वर के बारे में सच्चाई जानें और हमेशा की ज़िंदगी पाएँ। यह आशा जो परमेश्वर ने हमें दी है बहुत लाजवाब है। ऐसी आशा हमें दुनिया में और कहीं नहीं मिल सकती!
इस आशा की वजह से हम फिर कभी निराश नहीं होंगे। परमेश्वर की मदद से हम उन सभी लक्ष्यों को हासिल कर पाएँगे जो उसकी मरज़ी के मुताबिक हैं। (2 कुरिंथियों 4:7; फिलिप्पियों 4:13) यह आशा सच में लाजवाब है। यकीन मानिए, यह आशा आपको भी मिल सकती है!
[बक्स। तसवीर]
हम क्यों आशा कर सकते हैं?
शास्त्र में लिखी इन बातों से आपकी आशा और पक्की हो जाएगी:
◼ ईश्वर ने एक अच्छे भविष्य का वादा किया है।
पवित्र शास्त्र में लिखा है कि यह धरती एक खूबसूरत बाग जैसी बन जाएगी और सभी इंसान एक साथ खुशी से जीएँगे।—भजन 37:11, 29; यशायाह 25:8; प्रकाशितवाक्य 21:3, 4.
◼ ईश्वर झूठ नहीं बोल सकता।
उसे हर तरह के झूठ से नफरत है। परमेश्वर यहोवा पवित्र है इसलिए उसका झूठ बोलना नामुमकिन है।—नीतिवचन 6:16-19; यशायाह 6:2, 3; तीतुस 1:2; इब्रानियों 6:18.
◼ ईश्वर में गज़ब की ताकत है।
परमेश्वर यहोवा सर्वशक्तिमान है, कोई भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता। उसे अपने वादे पूरे करने से कोई नहीं रोक सकता।—निर्गमन 15:11; यशायाह 40:25, 26.
◼ ईश्वर चाहता है कि आप हमेशा जीएँ।
—यूहन्ना 3:16; 1 तीमुथियुस 2:3, 4.
◼ ईश्वर को उम्मीद है कि हम उसकी बात मानेंगे।
ईश्वर हमारी कमियों और कमज़ोरियों पर ध्यान नहीं देता, बल्कि हमारी अच्छाइयों पर ध्यान देता है। वह इस बात पर ध्यान देता है कि हम अच्छे काम करने के लिए कितनी मेहनत करते हैं। (भजन 103:12-14; 130:3; इब्रानियों 6:10) वह उम्मीद करता है कि हम सही काम करेंगे और जब हम ऐसा करते हैं, तो उसे खुशी होती है।—नीतिवचन 27:11.
◼ ईश्वर अच्छे लक्ष्य हासिल करने में आपकी मदद करेगा।
जो ईश्वर से प्यार करते हैं, उन्हें वह कभी अकेला नहीं छोड़ता। वह उन्हें शक्ति देता है और उनकी मदद करता है।—फिलिप्पियों 4:13.
◼ ईश्वर आपका भरोसा कभी नहीं तोड़ेगा।
आप ईश्वर पर पूरा भरोसा कर सकते हैं, वह हमेशा आपका साथ देगा।—भजन 25:3.
[तसवीर]
जैसे टोप से सिर की रक्षा होती है, वैसे ही आशा से मन की रक्षा होती है
[तसवीर]
आशा एक लंगर की तरह है, जिससे हम मुश्किलों में भी डटे रह पाते है
[चित्र का श्रेय]
Courtesy René Seindal/Su concessione del Museo Archeologico Regionale A. Salinas di Palermo
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