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क्या सभी मसीही सच में मसीही हैं?प्रहरीदुर्ग: सच्चे मसीही धर्म को कैसे पहचानें?
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क्या सभी मसीही सच में मसीही हैं?
पूरी दुनिया में ईसाइयों या मसीहियों की गिनती कितनी है? एट्लस ऑफ ग्लोबल क्रिस्चियानिटी नाम की किताब में बताया गया है कि 2010 में दुनिया-भर में मसीहियों की गिनती करीब दो अरब थी। उसी किताब में यह भी बताया गया है कि ये मसीही 41,000 से ज़्यादा गुटों में बँटे हुए हैं और हर गुट की अपनी-अपनी शिक्षाएँ और परंपराएँ हैं। इतने सारे गुटों को देखकर लोग चकरा जाते हैं। उन्हें समझ में नहीं आता कि किस पर विश्वास करें। वे सोचते हैं, ‘ये सभी लोग जो खुद को मसीही कहते हैं, क्या वे सच में मसीही हैं?’
इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। आप हवाई-जहाज़ या ट्रेन से सफर कर रहे हैं। जब आप अपना टिकट दिखाते हैं तो यह बोलना काफी नहीं होता कि यह टिकट आपके नाम पर है। आपको साथ में कोई पहचान-पत्र या आइडी कार्ड भी दिखाना होता है। उसी तरह एक व्यक्ति का यह बोलना काफी नहीं कि वह मसीही है या यीशु पर विश्वास करता है। उसे कुछ करना भी होगा जिससे साबित हो कि वह सच्चा मसीही है। आइए देखें कि उसे क्या करना होगा।
शब्द “मसीही” ईसवी सन् 44 के बाद से इस्तेमाल होने लगा यानी यीशु की मौत के लगभग 10 साल बाद। इस बारे में बाइबल के एक लेखक लूका ने कहा, “परमेश्वर के मार्गदर्शन से अंताकिया में ही पहली बार चेले ‘मसीही’ कहलाए।” (प्रेषितों 11:26) इससे हमें समझ आता है कि मसीही उन्हें कहा जाता था जो यीशु के चेले या शिष्य थे। और एक व्यक्ति यीशु का शिष्य कैसे बन सकता है? किताब द न्यू इंटरनैशनल डिक्शनरी ऑफ न्यू टेस्टामेंट थियोलॉजी के मुताबिक, “यीशु का शिष्य होने का मतलब है [अपनी] इच्छाओं को त्याग देना, हर हाल में उसके पीछे चलना . . . और ऐसा ज़िंदगी-भर करना।” तो एक सच्चा मसीही वही है जो हर हाल में यीशु की सभी शिक्षाओं और आदेशों को माने और ऐसा ज़िंदगी-भर करे।
क्या आज सच में ऐसे लोग हैं जो यीशु की सभी शिक्षाओं को मानते हैं? यीशु ने खुद क्या बताया, उसके सच्चे चेले कैसे पहचाने जाएँगे? आइए बाइबल से इन सवालों के जवाब जानें। आगे के लेखों में हम ऐसी पाँच बातों के बारे में जानेंगे जो खुद यीशु ने कहीं और जिनसे पता चलता है कि उसके सच्चे चेलों की पहचान क्या होगी। हम यह भी देखेंगे कि क्या पहली सदी के मसीही उन बातों पर खरे उतरे? और क्या आज भी ऐसे लोग हैं जो उन पाँचों बातों को मानते हैं?
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‘हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानो’प्रहरीदुर्ग: सच्चे मसीही धर्म को कैसे पहचानें?
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‘हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानो’
“अगर तुम हमेशा मेरी शिक्षाओं को मानोगे, तो तुम सचमुच मेरे चेले ठहरोगे। तुम सच्चाई को जानोगे और सच्चाई तुम्हें आज़ाद करेगी।”—यूहन्ना 8:31, 32.
इसका क्या मतलब है? यीशु की शिक्षाएँ उसकी तरफ से नहीं बल्कि पिता की तरफ से थीं। उसने कहा, “पिता ने, जिसने मुझे भेजा है, मुझे आज्ञा दी है कि मैं क्या-क्या बताऊँ और क्या-क्या बोलूँ।” (यूहन्ना 12:49) अपने पिता यहोवा से प्रार्थना करते वक्त यीशु ने कहा, “तेरा वचन सच्चा है।” इसलिए वह जब भी कुछ सिखाता था, तो वह परमेश्वर के वचन से ही होता था। वह बार-बार कहता था, “यह लिखा है।” (यूहन्ना 17:17; मत्ती 4:4, 7, 10) तो फिर सच्चे मसीही मानते हैं कि परमेश्वर का वचन, बाइबल “सच्चा” है। और वे वही शिक्षाएँ मानते हैं और वैसी ही ज़िंदगी जीते हैं जो बाइबल के हिसाब से सही है।
शुरू के मसीही परमेश्वर के वचन का आदर करते थे: प्रेषित पौलुस ने बाइबल की कई सारी किताबें लिखीं। यीशु की तरह वह भी परमेश्वर के वचन का आदर करता था। इसलिए उसने लिखा, ‘पूरा शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से लिखा गया है और फायदेमंद है।’ (2 तीमुथियुस 3:16) मसीही मंडली में जिन भाइयों को सिखाने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उन्हें “विश्वासयोग्य वचन [यानी बाइबल] को मज़बूती से थामे” रहना था। (तीतुस 1:7, 9) शुरू के मसीहियों को सलाह दी गयी कि वे ‘दुनियावी फलसफों और छलनेवाली उन खोखली बातों से दूर रहें जो इंसानों की परंपराओं और दुनिया की मामूली बातों के मुताबिक हैं और मसीह के मुताबिक नहीं हैं।’—कुलुस्सियों 2:8.
आज कौन परमेश्वर के वचन का आदर करते हैं? कैटिकिज़्म ऑफ द कैथोलिक चर्च नाम की किताब में बताया गया है, “कैथोलिक चर्च की सभी शिक्षाएँ सिर्फ पवित्र शास्त्र पर आधारित नहीं होतीं। इसलिए पवित्र शास्त्र के साथ-साथ चर्च की पवित्र परंपराओं को भी पूरे दिल से मानना ज़रूरी है।” मैक्लेन्स नाम की पत्रिका के मुताबिक कनाडा की एक पास्टर ने कहा, ‘सिखायी होंगी यीशु ने अच्छी-अच्छी बातें लेकिन हमें पता है कि आज हमें कैसे जीना है, हमारे पास एक-से-बढ़कर-एक आइडिया हैं। तो फिर यीशु ने जो सिखाया और शास्त्र में जो लिखा है, वह सब जानकर हम क्या करेंगे?’
यहोवा के साक्षियों के बारे में न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया में बताया गया है, “उनका विश्वास सिर्फ और सिर्फ बाइबल पर आधारित होता है, उनका चालचलन भी उसी के हिसाब से होता है।” हाल ही में, कनाडा में यहोवा की एक साक्षी एक आदमी से बात कर रही थी। वह उसे अपना परिचय देने ही वाली थी कि उस आदमी ने कहा, “मैं जानता हूँ कि आप कौन हैं।” उस आदमी ने साक्षी के हाथ में जो बाइबल थी, उसकी तरफ इशारा करते हुए कहा, “इससे मैं आप लोगों को पहचान गया।”
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‘वे दुनिया के नहीं हैं’प्रहरीदुर्ग: सच्चे मसीही धर्म को कैसे पहचानें?
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‘वे दुनिया के नहीं हैं’
“दुनिया ने उनसे नफरत की है क्योंकि वे दुनिया के नहीं।”—यूहन्ना 17:14.
इसका क्या मतलब है? जब यीशु धरती पर था, तो वह राजनैतिक और सामाजिक झगड़ों और विवादों से बिलकुल दूर रहता था। वह पूरी तरह निष्पक्ष था और इस तरह दुनिया का नहीं था। उसने कहा, “अगर मेरा राज इस दुनिया का होता तो मेरे सेवक लड़ते कि मुझे यहूदियों के हवाले न किया जाए। मगर सच तो यह है कि मेरा राज इस दुनिया का नहीं।” (यूहन्ना 18:36) यही नहीं, उसने अपने चेलों को ऐसी बातों, सोच और ऐसे व्यवहार से दूर रहने को कहा जो पवित्र शास्त्र के हिसाब से गलत है।—मत्ती 20:25-27.
शुरू के मसीही दुनिया का हिस्सा नहीं थे: जोनाथन डायमंड नाम के एक लेखक ने शुरू के मसीहियों के बारे में लिखा कि वे युद्ध करने से “इनकार करते थे, फिर चाहे इसका अंजाम बदनामी, कैद या सज़ा-ए-मौत क्यों न हो।” शुरू के मसीही हर हाल में निष्पक्ष रहना चाहते थे और इसके लिए वे कोई भी तकलीफ सहने को तैयार थे। यही नहीं, सही-गलत के मामले में वे बाइबल के स्तर मानते थे, इस वजह से भी वे दुनिया से बिलकुल अलग नज़र आते थे। पतरस ने उन मसीहियों से कहा, “अब क्योंकि तुमने उनके साथ बदचलनी के कीचड़ में लोटना छोड़ दिया है, इसलिए वे ताज्जुब करते हैं और तुम्हारे बारे में बुरा-भला कहते हैं।” (1 पतरस 4:4) इतिहासकार विल ड्यूरेंट ने लिखा कि मसीही ‘ऐसी दुनिया में जी रहे थे जहाँ लोग सिर्फ मौज-मस्ती और ऐयाशी करते थे। ऐसे लोगों के बीच रहकर भी उन्होंने खुद को बेदाग रखा। इसलिए वे लोगों की आँखों में खटकते थे।’
आज कौन दुनिया का हिस्सा नहीं हैं? मसीहियों के निष्पक्ष रहने के बारे में न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया का कहना है, “अगर कोई व्यक्ति हथियार उठाने और लड़ने से इनकार करता है तो यह गलत है।” वहीं दूसरी तरफ, ध्यान दीजिए कि मानव अधिकारों के एक संगठन ने एक रिपोर्ट में क्या बताया। रिपोर्ट के मुताबिक 1994 में रवांडा में जब जाति-भेद को लेकर चारों तरफ मार-काट मची थी तो उसमें सभी चर्चों का हाथ था, “सिर्फ यहोवा के साक्षी ऐसे थे जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं था।”
एक बार एक स्कूल टीचर पढ़ा रहा था कि कैसे नाज़ी हुकूमत के दौरान यहूदियों का कत्लेआम हुआ। उस टीचर ने बताया, “नाज़ियों ने बहुत सारे झूठ बोले और लोगों पर ज़ुल्म और अत्याचार किए। फिर भी ऐसा कोई समूह या संगठन नहीं था जिसने इसके खिलाफ आवाज़ उठायी हो।” और उस टीचर को इस बात का बहुत दुख था। लेकिन बाद में उसने कहा, ‘जैसा मैंने सोचा था वैसा नहीं था।’ दरअसल उस टीचर ने अमरीका के एक म्यूज़ियम में पूछताछ की जहाँ पर यहूदियों के कत्लेआम के बारे में बताया गया था। वहाँ से उसे पता चला कि नाज़ियों की हुकूमत में यहोवा के साक्षियों पर बहुत ज़ुल्म किए गए। फिर भी वे अपने विश्वास से नहीं मुकरे और डटे रहे।
क्या सच्चे मसीही शादी और सेक्स जैसे नैतिक मामलों में कोई स्तर मानते हैं? यू.एस. कैथोलिक पत्रिका बताती है, “चर्च तो सिखाते हैं कि शादी से पहले एक-साथ रहना गलत है, लेकिन आजकल ज़्यादातर कैथोलिक नौजवान इन शिक्षाओं को नहीं मानते।” उसी पत्रिका के मुताबिक चर्च के एक पादरी ने कहा, “मुझे तो लगता है, चर्च में जितने लोग शादी करने आते हैं, उनमें आधे से ज़्यादा लोग तो पहले से ही साथ में रहते हैं।” लेकिन यहोवा के साक्षियों के बारे में क्या? द न्यू इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका बताती है कि वे “नैतिक मामलों में बाइबल के स्तरों को मानते हैं और इसमें कोई समझौता नहीं करते।”
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‘तुम्हारे बीच प्यार हो’प्रहरीदुर्ग: सच्चे मसीही धर्म को कैसे पहचानें?
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‘तुम्हारे बीच प्यार हो’
“मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।”—यूहन्ना 13:34, 35.
इसका क्या मतलब है? यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे एक-दूसरे से वैसे ही प्यार करें जैसे वह उनसे करता है। यीशु ने किन तरीकों से उनसे प्यार किया? उसके दिनों में लोग दूसरी जाति के लोगों को पसंद नहीं करते थे और औरतों को नीचा समझते थे। यीशु को इस सबसे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह सबसे प्यार करता था और सबको बराबर समझता था। (यूहन्ना 4:7-10) उसने लोगों की मदद करने के लिए अपना समय दिया, अपना आराम भी त्याग दिया। (मरकुस 6:30-34) यही नहीं, उसने उनकी खातिर सबसे बड़ी कुरबानी दी। इस बारे में उसने कहा, “अच्छा चरवाहा मैं हूँ। अच्छा चरवाहा भेड़ों की खातिर अपनी जान दे देता है।”—यूहन्ना 10:11.
शुरू के मसीही एक-दूसरे से प्यार करते थे: पहली सदी में मसीही एक-दूसरे को ‘भाई-बहन’ कहकर बुलाते थे। (फिलेमोन 1, 2) मसीही मंडली में हर किस्म के लोगों का स्वागत किया जाता था। वह इसलिए कि मसीही मानते थे कि “यहूदी और यूनानी के बीच कोई फर्क नहीं क्योंकि सबके ऊपर एक ही प्रभु है।” (रोमियों 10:11, 12) ईसवी सन् 33 में पिन्तेकुस्त के बाद यरूशलेम में रहनेवाले चेलों ने ‘अपना सामान और अपनी जायदाद बेच दी और मिलनेवाली रकम सबमें बाँट दी। उन्होंने हरेक को उसकी ज़रूरत के मुताबिक दिया।’ उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि जिन्होंने अभी-अभी बपतिस्मा लिया था, वे यरूशलेम में कुछ समय और रह सकें और ‘प्रेषितों से लगातार सीखते रहें।’ (प्रेषितों 2:41-45) शुरू के मसीही सच में एक-दूसरे से प्यार करते थे। प्रेषितों की मौत के करीब 200 साल बाद इतिहासकार टर्टलियन ने लिखा कि दूसरे लोग मसीहियों के बारे में कहते थे कि “वे एक दूसरे से प्यार करते हैं . . और एक-दूसरे की खातिर मर-मिटने को भी तैयार हैं।”
आज किन लोगों में सच्चा प्यार देखा जा सकता है? रोमी साम्राज्य के पतन का इतिहास (1837) नाम की अँग्रेज़ी किताब में लिखा है कि कई सदियों के दौरान “ईसाइयों ने एक-दूसरे पर बहुत ज़ुल्म किए। इतना ज़ुल्म तो गैर-ईसाइयों ने भी उन पर नहीं किया।” हाल ही में अमरीका में एक अध्ययन किया गया। उससे पता चला कि धर्म को माननेवाले लोग, खासकर खुद को मसीही कहनेवाले लोग भेदभाव करते हैं और दूसरों को नीचा समझते हैं। आम तौर पर एक देश के ईसाई, दूसरे देश के ईसाइयों के लिए कोई प्यार और लगाव महसूस नहीं करते, भले ही वे एक ही गुट के हों। इसलिए ज़रूरत की घड़ी में वे एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे नहीं आते।
अमरीका के एक राज्य फ्लोरिडा की बात करें, तो 2004 में वहाँ एक-के-बाद-एक चार भयानक तूफान आए। और वह भी सिर्फ दो महीने के अंदर। इसके कुछ समय बाद सरकार की राहत कमेटी के अध्यक्ष ने इलाकों का मुआयना किया। वह देखना चाहता था कि जो राहत-सामग्री पहुँचायी गयी है, उसका सही से इस्तेमाल हो रहा है कि नहीं। उस अध्यक्ष ने यहोवा के साक्षियों के राहत काम पर ध्यान दिया और कहा कि उनके जैसा कोई समूह नहीं है जो राहत पहुँचाने के लिए इतने कायदे से काम करता हो। उसने यह भी कहा कि अगर साक्षियों को किसी चीज़ की ज़रूरत होगी, तो कमेटी खुशी-खुशी उनकी मदद करेगी। इससे पहले 1997 में यहोवा के साक्षियों ने कांगो के लोकतांत्रिक गणराज्य में अपने भाई-बहनों की मदद करने के लिए एक राहत टीम भेजी। वे अपने साथ खाने-पीने की चीज़ें, दवाइयाँ और कपड़े लेकर गए। इन चीज़ों के लिए यूरोप के भाई-बहनों ने दान किया था और अगर उनका हिसाब लगाया जाए, तो वे करीब साढ़े तीन करोड़ रुपए होते हैं।
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“मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है”प्रहरीदुर्ग: सच्चे मसीही धर्म को कैसे पहचानें?
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“मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है”
“मैंने तेरा नाम उन लोगों पर ज़ाहिर किया है जिन्हें तूने दुनिया में से मुझे दिया है। . . मैंने तेरा नाम उन्हें बताया है और आगे भी बताऊँगा।”—यूहन्ना 17:6, 26.
इसका क्या मतलब है? जब यीशु गवाही देता था, तो उसने लोगों को परमेश्वर का नाम बताया। और जब वह शास्त्र से पढ़कर सुनाता था, तो हम पूरा यकीन रख सकते हैं कि उसने परमेश्वर का नाम भी पढ़कर सुनाया होगा। (लूका 4:16-21) उसने अपने शिष्यों को यह प्रार्थना करना सिखाया, “हे पिता, तेरा नाम पवित्र किया जाए।”—लूका 11:2.
शुरू के मसीहियों ने खुलकर परमेश्वर का नाम बताया: प्रेषित पतरस ने यरूशलेम के प्राचीनों को बताया कि परमेश्वर ने गैर-यहूदी राष्ट्रों से ‘ऐसे लोगों को इकट्ठा किया है जो परमेश्वर के नाम से पहचाने जाएँगे।’ (प्रेषितों 15:14) प्रेषितों और दूसरे मसीहियों ने प्रचार किया कि “जो कोई यहोवा का नाम पुकारता है वह उद्धार पाएगा।” (प्रेषितों 2:21; रोमियों 10:13) उन्होंने मसीही यूनानी शास्त्र की किताबें लिखते वक्त भी परमेश्वर का नाम नहीं हटाया। लेकिन विरोधी इन किताबों को जला रहे थे। इस बारे में यहूदी नियमों की एक पुरानी किताब, द तॉसेफ्ता में बताया गया है, “वे प्रचारकों की किताबों और मिनिम [यानी मसीही बननेवाले यहूदियों] की किताबों को जला देते थे। उन्हें यह छूट थी कि अगर उनके हाथों ये किताबें लग जाएँ, तो उनके साथ-साथ उनमें दिए परमेश्वर के नाम के हवालों को भी जला दें।”
आज कौन परमेश्वर का नाम लेते हैं और दूसरों को भी बताते हैं? रिवाइज़ स्टैंडर्ड वर्शन बाइबल के परिचय में लिखा है, “चर्च के लिए परमेश्वर का नाम लेना बिलकुल गलत था। वह इसलिए कि सच्चा परमेश्वर सिर्फ एक ही है और उसे दूसरे ईश्वरों से अलग दिखाने के लिए उसका नाम लेना ज़रूरी नहीं है। यहूदियों ने परमेश्वर का नाम लेना यीशु के जन्म से बहुत पहले बंद कर दिया था।” इसलिए इस अनुवाद में जहाँ-जहाँ परमेश्वर का नाम था, उसे हटाकर “प्रभु” शब्द डाल दिया गया। हाल ही में पोप ने सभी पादरियों को यह आदेश दिया कि अब से वे प्रार्थनाओं और गीतों में परमेश्वर का नाम याहवेa न लें।
आज कौन परमेश्वर का नाम लेते हैं और इसे दूसरों को भी बताते हैं? किर्गिस्तान में सरगे नाम का एक आदमी जब 15 साल का था, तो उसने एक फिल्म देखी जिसमें परमेश्वर का नाम यहोवा आया था। फिर अगले दस सालों तक उसने वह नाम नहीं सुना। कुछ समय बाद वह अमरीका जाकर बस गया। वहीं पर दो यहोवा के साक्षी उसके घर आए और बाइबल से दिखाया कि परमेश्वर का नाम यहोवा है। सरगे को यह जानकर बहुत खुशी हुई कि ऐसा एक समूह है जो परमेश्वर का नाम लेता है और इसे दूसरों को भी बताता है। वेबस्टर्स थर्ड न्यू इंटरनैशनल डिक्शनरी में शब्द “यहोवा परमेश्वर” के बारे में यह दिलचस्प बात बतायी गयी है, “एक ऐसा ईश्वर जिसे यहोवा के साक्षी सबसे महान ईश्वर मानते हैं और सिर्फ उसी की उपासना करते हैं।”
[फुटनोट]
a हिंदी में परमेश्वर के नाम को आम तौर पर “यहोवा” लिखा जाता है।
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‘राज की इस खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा’प्रहरीदुर्ग: सच्चे मसीही धर्म को कैसे पहचानें?
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‘राज की इस खुशखबरी का प्रचार किया जाएगा’
“राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए और इसके बाद अंत आ जाएगा।”—मत्ती 24:14.
इसका क्या मतलब है? बाइबल के एक लेखक लूका ने बताया कि “यीशु शहर-शहर और गाँव-गाँव गया और लोगों को प्रचार करता और परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनाता गया।” (लूका 8:1) यीशु ने खुद कहा, “[मुझे] परमेश्वर के राज की खुशखबरी सुनानी है क्योंकि मुझे इसीलिए भेजा गया है।” (लूका 4:43) उसने अपने शिष्यों को भी शहरों, गाँवों और कसबों में प्रचार करने भेजा। कुछ समय बाद उसने उनसे कहा, “[तुम] दुनिया के सबसे दूर के इलाकों में मेरे बारे में गवाही दोगे।”—प्रेषितों 1:8; लूका 10:1.
शुरू के मसीहियों ने खुशखबरी का प्रचार किया: यीशु ने अपने शिष्यों से जैसा कहा, उन्होंने वैसा ही किया। बाइबल में लिखा है, “वे बिना नागा हर दिन मंदिर में और घर-घर जाकर सिखाते रहे और मसीह यीशु के बारे में खुशखबरी सुनाते रहे।” (प्रेषितों 5:42) प्रचार का काम सिर्फ कुछ खास लोगों ने नहीं बल्कि मंडली के सब लोगों ने किया। और मसीहियों के दुश्मन भी इस बात से इनकार नहीं कर सकते थे। सेलसस उनमें से एक था। इतिहासकार नेआन्डर ने लिखा, “सेलसस मसीहियों का मज़ाक उड़ाता था और कहता था कि ऐसे-ऐसे लोग जोश से प्रचार कर रहे हैं जो मोची हैं, ऊन और चमड़े का काम करते हैं और बिलकुल अनपढ़ और मामूली हैं।” द अर्ली सेन्चरीज़ ऑफ द चर्च नाम की किताब में शौन बरनारडी ने लिखा, “मसीही हर जगह जाते थे और हर किसी को परमेश्वर का वचन सुनाते थे। सड़कों पर, चौराहों पर, शहरों में और घरों में जो कोई मिलता था उससे बात करते थे। लोग उनकी सुनें या न सुनें, उनका स्वागत करें या न करें इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था। . . वे दुनिया के कोने-कोने तक जाकर प्रचार करते थे।”
आज कौन खुशखबरी का प्रचार कर रहे हैं? ऐंग्लिकन चर्च का एक पादरी डेविड वॉट्सन बताता है, “परमेश्वर में लोगों की रुचि कम होती जा रही है और इसकी एक वजह यह है कि चर्च अपना काम सही से नहीं कर रहा। वह न तो परमेश्वर के वचन के बारे में सिखाता है और न ही इसका प्रचार करता है।” होसे लूइस पेरेस ग्वाडालूप ने अपनी किताब, वाय आर द कैथोलिक्स लीविंग? में इवैंजलिकल, ऐडवेंटिस्ट और ऐसे ही दूसरे मसीहियों के बारे में लिखा, “वे लोगों को परमेश्वर का वचन सुनाने के लिए उनके घरों में नहीं जाते।” जबकि यहोवा के साक्षियों के बारे में उसने कहा, “वे घर-घर जाकर लोगों को प्रचार करते हैं और पूरी कोशिश करते हैं कि एक भी घर न छूटे।”
एक प्रकाशन में यहोवा के साक्षियों के बारे में बहुत ही दिलचस्प बात बतायी गयी है और वह सच भी है। उसमें लिखा है, “यहोवा के साक्षी नाम सुनते ही कई लोग सोचने लगते हैं, ‘ये तो वही लोग हैं ना जो जब देखो तब हर दरवाज़ा खटखटाते हैं और कुछ प्रचार करते हैं।’ प्रचार करना यहोवा के साक्षियों के लिए बहुत ज़रूरी है। वह ऐसा सिर्फ अपने विश्वास का प्रचार-प्रसार करने के लिए नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं ताकि खुद उनका विश्वास बढ़ सके।”
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कौन सच्चे मसीही हैं?
अभी हमने इन लेखों में बाइबल से कुछ बातें देखीं कि हम सच्चे मसीहियों को कैसे पहचान सकते हैं। उन बातों को ध्यान में रखकर आपको क्या लगता है, आज कौन सच्चे मसीही हैं? यह सच है कि खुद को मसीही कहनेवाले बहुत सारे गुट हैं। लेकिन यीशु ने कहा था, “जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर सिर्फ वही दाखिल होगा जो स्वर्ग में रहनेवाले मेरे पिता की मरज़ी पूरी करता है।” (मत्ती 7:21) अगर आप पहचान लें कि आज कौन पिता की मरज़ी पूरी कर रहे हैं और उन सच्चे मसीहियों के साथ जुड़ जाएँ, तो आपको भी परमेश्वर के राज में हमेशा-हमेशा के लिए आशीषें मिल सकती हैं! क्यों न आप यहोवा के साक्षियों से इस बारे में और जानकारी लें कि परमेश्वर का राज क्या है और उसके राज में हमें क्या आशीषें मिलेंगी?—लूका 4:43.
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