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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
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खामोशी क्या कह रही थी?

बिट्रेयल—जर्मन चरचस एण्ड द होलोकॉस्ट किताब में खुलकर बताया गया है कि धर्म का हिटलर की सरकार के साथ कैसा नाता था। किताब दावे के साथ कहती है: “ईसाई लोग नात्ज़ी सरकार के हिमायती थे। जब नात्ज़ी लोग यहूदियों पर ज़ुल्म कर रहे थे तब ज़्यादातर ईसाई चुपचाप देखते रहे। उनकी यह खामोशी बहुत कुछ बता रही थी।”

लेकिन ईसाई लोग नात्ज़ी सरकार के हिमायती क्यों बन गए? वह किताब कहती है कि ‘हिटलर ने जर्मनी में कानून और व्यवस्था की जो नीति अपनायी थी, उसके बहकावे में बहुत-से लोग आ गए। उसने अपने राज्य में वैश्‍यावृत्ति और गर्भपात करने का, गंदी तस्वीरें और मूर्तियाँ बनाने का, साथ ही समलिंगकामुकता और हर तरह की अश्‍लीलता का विरोध किया था। इतना ही नहीं, वह ऐसी स्त्रियों को कांस्य, चाँदी और सोने के पदक इनाम में देता था, जो चार, छः या आठ बच्चे पैदा करती थीं। ऐसा करने में हिटलर का मकसद यही था कि स्त्रियाँ पारंपरिक तरीके से घर की चार-दीवारी के अंदर ही रहें। उसने समाज की परंपरा को बनाए रखने के इरादे से ऐसी नीतियाँ तैयार करके लोगों का दिल जीत लिया। इसके अलावा, हिटलर ने वरसाई संधि में जर्मनी पर लगाई गई पाबंदियों का खुलेआम विरोध करते हुए जर्मनी की सेना को बढ़ावा दिया। उसकी यह राजनीति भी लोगों को बहुत पसंद आयी, यहाँ तक कि ज़्यादातर ईसाइयों को भी।’

लेकिन एक समूह ऐसा भी था जो ईसाइयों से बिलकुल अलग था। उस किताब के मुताबिक वह समूह था, “यहोवा के साक्षियों का समूह, जिन्होंने सेना में भरती होने या हथियार उठाने से साफ इंकार कर दिया था।” इस वज़ह से नात्ज़ी इस छोटे-से समूह पर ज़ालिमों की तरह अत्याचार करने लगे। कई साक्षियों को तो उन्होंने कॉन्सनट्रेशन कैम्पों में डाल दिया। लेकिन इन ज़ुल्मों को देखकर भी, खुद को मसीह के चेले कहनेवाले उन ईसाइयों ने इसके खिलाफ आवाज़ तक नहीं उठाई। किताब आगे कहती है: “उन्होंने साक्षियों के साथ हमदर्दी जताने के बजाय दुश्‍मनी ज़ाहिर की और इसमें सबसे आगे थे, कैथोलिक और प्रोटेस्टैंट चर्च के लोग। उन्हें साक्षियों द्वारा दिए जा रहे शांति के संदेश से बढ़कर हिटलर की क्रूर राजनीति ज़्यादा पसंद आयीं।” ईसाइयों की खामोशी की वज़ह से ही नात्ज़ियों का हौसला बढ़ गया और उन्होंने साक्षियों पर अपना हमला तेज़ कर दिया।

ईसाइयों का इस तरह राजनीति को समर्थन देना सही था या गलत, इस बारे में आज भी गरमागरम बहस जारी है। लेकिन जहाँ तक यहोवा के साक्षियों का सवाल है, उनके बारे में बिट्रेयल किताब कहती है कि वे “राजनीति से बिलकुल परे रहे।”

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