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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
w04 5/15 पेज 4-7

आप परमेश्‍वर को खुश कर सकते हैं

क्या हम इंसानों के लिए परमेश्‍वर की भावनाओं पर असर करना मुमकिन है? क्या परमेश्‍वर को भी खुशी महसूस होती है? कुछ लोगों को लगता है कि परमेश्‍वर बस एक निराकार शक्‍ति है। अगर ऐसा है, तो क्या एक निराकार शक्‍ति को खुशी महसूस हो सकती है? हरगिज़ नहीं। लेकिन गौर कीजिए कि बाइबल परमेश्‍वर के बारे में क्या कहती है।

यीशु मसीह ने कहा: “परमेश्‍वर आत्मा है।” (यूहन्‍ना 4:24) आत्मा एक ऐसा जीवन-स्वरूप है जो इंसानों से बिलकुल अलग है। हालाँकि आत्मा इंसान को नज़र नहीं आती मगर उसका एक शरीर होता है जो एक “आत्मिक देह” होती है। (1 कुरिन्थियों 15:44; यूहन्‍ना 1:18) अलंकारिक भाषा का इस्तेमाल करते हुए बाइबल परमेश्‍वर का ऐसा वर्णन करती है मानो उसकी आँख, कान और हाथ जैसे अंग हों।a परमेश्‍वर का एक नाम भी है—यहोवा। (भजन 83:18) तो बाइबल में बताया गया परमेश्‍वर एक आत्मिक व्यक्‍ति है। (इब्रानियों 9:24) वह ‘जीवित परमेश्‍वर और सदा का राजा है।’—यिर्मयाह 10:10.

यहोवा सच्चा और जीवित परमेश्‍वर है, इसलिए उसमें सोचने और काम करने की काबिलीयत है। उसमें बहुत-से गुण हैं, उसकी भावनाएँ हैं और पसंद-नापसंद भी हैं। दरअसल, बाइबल में ऐसी ढेरों जानकारी हैं जिनसे ज़ाहिर होता है कि वह किन बातों से खुश होता है और किनसे नाराज़। इंसान के बनाए देवी-देवता और मूरतें वैसे ही स्वभाव और गुण ज़ाहिर करते हैं जो उनकी ईजाद करनेवालों में होते हैं। मगर जहाँ तक सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा की बात है वह उन सब भावनाओं का दाता है जो उसने इंसानों को दिए हैं।—उत्पत्ति 1:27; यशायाह 44:7-11.

इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा “आनंदित परमेश्‍वर” है। (1 तीमुथियुस 1:11, NW) उसे न सिर्फ अपने सृष्टि के कामों से बल्कि अपने मकसद को अंजाम देने में भी खुशी मिलती है। यहोवा ने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए ऐलान किया: “मैं अपनी इच्छा [“ऐसी हर बात जो मुझे आनंद देती है,” NW] को पूरी करूंगा। . . . मैं ही ने यह बात कही है और उसे पूरी भी करूंगा; मैं ने यह विचार बान्धा है और उसे सुफल भी करूंगा।” (यशायाह 46:9-11) भजनहार ने अपने गीत में गाया: “यहोवा अपने कामों से आनन्दित होवे!” (भजन 104:31) लेकिन इसके अलावा एक और बात है जो परमेश्‍वर को खुशी देती है। वह कहता है: “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर।” (नीतिवचन 27:11) ज़रा इन शब्दों के मतलब पर गौर कीजिए—हम इंसान भी परमेश्‍वर को खुश कर सकते हैं!

हम परमेश्‍वर के मन को कैसे आनंदित कर सकते हैं

आइए गौर करें कि कुलपिता नूह ने कैसे यहोवा के मन को आनंदित किया था। “यहोवा के अनुग्रह की दृष्टि नूह पर बनी रही,” क्योंकि वह “अपने समय के लोगों में खरा था।” नूह अपने ज़माने के दुष्ट लोगों से बिलकुल अलग था। उसने जो विश्‍वास दिखाया और जिस तरह आज्ञाओं का पालन किया उससे परमेश्‍वर बहुत खुश हुआ। इसलिए यह कहना गलत न होगा कि “नूह परमेश्‍वर ही के साथ साथ चलता रहा।” (उत्पत्ति 6:6, 8, 9, 22) “विश्‍वास ही से नूह ने . . . भक्‍ति के साथ अपने घराने के बचाव के लिये जहाज बनाया।” (इब्रानियों 11:7) यहोवा, नूह से बहुत खुश हुआ और इसलिए उसने इतिहास के उस भयानक दौर से उसकी और उसके परिवार की जान बचायी।

कुलपिता इब्राहीम ने भी हमेशा यहोवा की भावनाओं का ध्यान रखा। वह परमेश्‍वर के सोच-विचार के बारे में बखूबी जानता था। यह बात उस वाकए से साबित होती है जिसमें यहोवा ने इब्राहीम को बताया कि वह सदोम और अमोरा को उसकी बदचलनी की वजह से नाश करने जा रहा है। वह यहोवा को इतनी अच्छी तरह जानता था कि वह इस नतीजे पर पहुँचा कि परमेश्‍वर, बुरे इंसान के साथ धर्मी का नाश करने की कभी सोच भी नहीं सकता। (उत्पत्ति 18:17-33) इसके सालों बाद, परमेश्‍वर के कहने पर इब्राहीम ने “इसहाक को बलिदान चढ़ाया,” ‘क्योंकि उस ने विचार किया कि परमेश्‍वर उसे मरे हुओं में से जिलाने में समर्थ है।’ (इब्रानियों 11:17-19; उत्पत्ति 22:1-18) इब्राहीम, परमेश्‍वर की भावनाओं से इतना वाकिफ था और उसका विश्‍वास इतना मज़बूत था, साथ ही उसने इतनी वफादारी से उसकी आज्ञाओं को माना कि “वह परमेश्‍वर का मित्र कहलाया।”—याकूब 2:23.

एक और इंसान जिसने परमेश्‍वर का मन आनंदित करने की कोशिश की, वह था प्राचीन इस्राएल का राजा दाऊद। उसके बारे में यहोवा ने कहा: “मुझे एक मनुष्य यिशै का पुत्र दाऊद, मेरे मन के अनुसार मिल गया है; वही मेरी सारी इच्छा पूरी करेगा।” (प्रेरितों 13:22) दाऊद ने दानव जैसे गोलियत का मुकाबला करने के लिए परमेश्‍वर की मदद पर पूरा भरोसा रखा, तभी तो उसने इस्राएली राजा शाऊल से कहा: “यहोवा जिस ने मुझे सिंह और भालू दोनों के पंजे से बचाया है, वह मुझे उस पलिश्‍ती के हाथ से भी बचाएगा।” दाऊद का यह अटल भरोसा देखकर यहोवा ने उसे आशीष दी जिस वजह से वह गोलियत को मार गिराने में कामयाब हुआ। (1 शमूएल 17:37, 45-54) दाऊद चाहता था कि न सिर्फ उसके काम बल्कि ‘मुंह के वचन और हृदय का ध्यान भी यहोवा के सम्मुख ग्रहण योग्य हो।’—भजन 19:14.

हमारे बारे में क्या? हम यहोवा को कैसे खुश कर सकते हैं? हम, परमेश्‍वर की भावनाओं को जितनी अच्छी तरह जानेंगे उतना ही हमें एहसास होगा कि हम उसे खुश करने के लिए क्या कर सकते हैं। इसलिए जब हम बाइबल पढ़ते हैं तो हमें परमेश्‍वर की भावनाओं को समझने की पूरी कोशिश करनी चाहिए। तभी हम ‘सारे आत्मिक ज्ञान और समझ सहित परमेश्‍वर की इच्छा की पहिचान में परिपूर्ण होते जाएँगे, ताकि हमारा चाल-चलन प्रभु के योग्य हो, और वह सब प्रकार से प्रसन्‍न हो।’ (कुलुस्सियों 1:9, 10) और परमेश्‍वर के बारे में जो ज्ञान हम पाते हैं वह हमें विश्‍वास पैदा करने में मदद देता है। यह बेहद ज़रूरी है क्योंकि “विश्‍वास बिना [परमेश्‍वर को] प्रसन्‍न करना अनहोना है।” (इब्रानियों 11:6) जी हाँ, अगर हम मज़बूत विश्‍वास पैदा करेंगे और यहोवा की मरज़ी के मुताबिक जीने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे तो हम उसके दिल को खुश कर पाएँगे। इसके साथ-साथ, हमें ध्यान रखना होगा कि हम ऐसा कोई भी काम न करें जिससे उसके दिल को ठेस पहुँचे।

परमेश्‍वर का दिल मत दुखाइए

यहोवा की भावनाओं को कैसे ठेस पहुँच सकती है इसका एक उदाहरण हमें नूह के दिनों में हुई घटना से मिलता है। उस समय “[पृथ्वी] उपद्रव से भर गई थी। और परमेश्‍वर ने पृथ्वी पर जो दृष्टि की तो क्या देखा, कि वह बिगड़ी हुई है; क्योंकि सब प्राणियों ने पृथ्वी पर अपनी अपनी चाल चलन बिगाड़ ली थी।” लोग जिस तरह नीच काम कर रहे थे और हिंसा फैला रहे थे उसे देखकर परमेश्‍वर को कैसा महसूस हुआ? बाइबल कहती है: “यहोवा पृथ्वी पर मनुष्य को बनाने से पछताया, और वह मन में अति खेदित हुआ।” (उत्पत्ति 6:5, 6, 11, 12) जलप्रलय से पहले की पीढ़ी के लोग इतने गिर चुके थे कि उनके बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया बदल गया। इसी अर्थ में परमेश्‍वर पछताया। उनकी दुष्टता देखकर परमेश्‍वर इस कदर भड़क उठा कि उसने ठान लिया कि अब वह उनका बनानेवाला नहीं बल्कि नाश करनेवाला ठहरेगा।

यहोवा को उस समय भी बड़ी ठेस पहुँची, जब उसके अपने लोगों यानी इस्राएलियों ने जानबूझकर उसकी भावनाओं की कदर नहीं की और उसके निर्देशनों को बार-बार ठुकराते रहे। भजनहार ने बहुत दुःख के साथ कहा: “उन्हों ने कितनी ही बार जंगल में उस से बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! वे बार-बार ईश्‍वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।” फिर भी, परमेश्‍वर ‘जो दयालु है, उसने अधर्म को ढांपा और नाश नहीं किया; वह बारबार अपने क्रोध को ठण्डा करता रहा, और अपनी जलजलाहट को पूरी रीति से भड़कने नहीं दिया।’ (भजन 78:38-41) और बाइबल बताती है कि हालाँकि बगावती इस्राएलियों को अपने ही पापों की सज़ा भुगतनी पड़ी तब “उनके सारे संकट में [परमेश्‍वर] ने भी कष्ट उठाया।”—यशायाह 63:9.

इसके बावजूद कि परमेश्‍वर ने कितनी ही बार इस्राएलियों पर अपनी कोमल भावनाएँ ज़ाहिर कीं, वे “परमेश्‍वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे। निदान यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा।” (2 इतिहास 36:16) उन्होंने ढीठ होकर और बार-बार बगावत करके ‘यहोवा की पवित्र आत्मा को इतना खेदित’ किया कि आखिरकार वे उसका अनुग्रह खो बैठे। (यशायाह 63:10) नतीजा क्या हुआ? परमेश्‍वर ने न्याय के मुताबिक उन पर से अपना साया हटा लिया इसलिए उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। बाबुलियों ने आकर यहूदा देश पर कब्ज़ा कर लिया और यरूशलेम को खाक में मिला दिया। (2 इतिहास 36:17-21) जब लोग जान-बूझकर पाप का रास्ता इख्तियार कर लेते हैं और सिरजनहार के दिल को ठेस और दुःख पहुँचाते हैं, तो इसका अंजाम कितना दुःख भरा होता है!

बाइबल, इसमें शक की कोई गुँजाइश नहीं छोड़ती कि अधर्म के काम देखकर परमेश्‍वर का कलेजा फट जाता है। (भजन 78:41) जिन बातों से परमेश्‍वर नाराज़ होता है, यहाँ तक कि नफरत भी करता है उनकी कुछ मिसालें हैं—घमंड, झूठ, कत्ल, जादू-टोना, ज्योतिष-विद्या, पूर्वजों की उपासना, बदचलनी, समलैंगिकता, पति-पत्नी के बीच बेवफाई, परिवार के सदस्यों के बीच लैंगिक संबंध, और गरीबों पर ज़ुल्म।—लैव्यव्यवस्था 18:9-29; 19:29; व्यवस्थाविवरण 18:9-12; नीतिवचन 6:16-19; यिर्मयाह 7:5-7; मलाकी 2:14-16.

यहोवा मूर्तिपूजा के बारे में कैसा महसूस करता है? निर्गमन 20:4, 5 कहता है: “तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उनको दण्डवत्‌ न करना, और न उनकी उपासना करना।” क्यों? क्योंकि मूर्तियाँ “यहोवा की दृष्टि में घृणित हैं।” (व्यवस्थाविवरण 7:25, 26) प्रेरित यूहन्‍ना ने यह चेतावनी दी: “हे बालको, अपने आप को मूरतों से बचाए रखो।” (1 यूहन्‍ना 5:21) और प्रेरित पौलुस ने लिखा: “हे मेरे प्रियो, मूर्तिपूजा से भागो।”—1 कुरिन्थियों 10:14, NHT.

परमेश्‍वर की मंज़ूरी पाने की कोशिश कीजिए

परमेश्‍वर “सदाचारियों को अपने मित्र बना लेता है।” “वह खरी चालवालों से प्रसन्‍न रहता है।” (नीतिवचन 3:32, बुल्के बाइबिल; 11:20) दूसरी तरफ, जो लोग हठीले बनकर उसकी भावनाओं को नज़रअंदाज़ करते या उसे ठेस पहुँचाने से बाज़ नहीं आते, उन्हें बहुत जल्द उसके क्रोध का सामना करना पड़ेगा। (2 थिस्सलुनीकियों 1:6-10) जल्द ही वह समय आएगा जब परमेश्‍वर दुनिया में फैली सारी दुष्टता को मिटा डालेगा।—भजन 37:9-11; सपन्याह 2:2, 3.

मगर बाइबल यह भी साफ बताती है कि यहोवा “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9) जो लोग सुधरना नहीं चाहते उनको सज़ा देने से ज़्यादा, उसे उन धर्मी लोगों पर स्नेह दिखाने में ज़्यादा खुशी मिलती है जो उससे प्रेम करते हैं। यहोवा “दुष्ट के मरने से” नहीं बल्कि इस बात से खुश होता है कि “दुष्ट अपने मार्ग से फिरकर जीवित रहे।”—यहेजकेल 33:11.

इसलिए यहोवा जानबूझकर किसी को अपने क्रोध का निशाना नहीं बनाता। ‘यहोवा अत्यन्त करुणामय और दयालु है।’ (याकूब 5:11, NHT) यहोवा के इन गुणों पर पूरा भरोसा रखते हुए आप “अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल” सकते हैं, “क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।” (1 पतरस 5:7) यकीन रखिए कि जो लोग परमेश्‍वर का दिल खुश करते हैं, उन्हें उसकी मंज़ूरी पाने और उसके दोस्त बनने का बढ़िया मौका है। इसलिए आज पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम ‘परखते रहें कि प्रभु को क्या भाता है।’—इफिसियों 5:10.

परमेश्‍वर ने अपने शानदार गुणों और भावनाओं के बारे में बताकर हम पर सचमुच बड़ी कृपा की है! यकीकन आप उसके दिल को खुश कर सकते हैं। अगर आप ऐसा करना चाहते हैं तो हमारी गुज़ारिश है कि आप अपने इलाके के यहोवा के साक्षियों से संपर्क करें। वे आपको खुशी-खुशी बताएँगे कि वे किन कारगर तरीकों से परमेश्‍वर को आनंदित करते हैं और इसमें कामयाब हुए हैं।

[फुटनोट]

a “परमेश्‍वर का वर्णन करने के लिए बाइबल इंसानी रंग-रूप की मिसाल क्यों देती है?” यह बक्स देखिए।

[पेज 7 पर बक्स]

परमेश्‍वर का वर्णन करने के लिए बाइबल इंसानी रंग-रूप की मिसाल क्यों देती है?

“परमेश्‍वर आत्मा है,” इसलिए हम उसे अपनी आँखों से नहीं देख सकते। (यूहन्‍ना 4:24) इस वजह से परमेश्‍वर की शक्‍ति, उसके प्रताप और कामों के बारे में समझाने के लिए बाइबल कई तरह के अलंकारों का इस्तेमाल करती है जैसे उपमा, रूपक और इंसानी रंग-रूप की मिसालें। हालाँकि हम नहीं जानते कि परमेश्‍वर का आत्मिक शरीर देखने में कैसा है, फिर भी बाइबल परमेश्‍वर का वर्णन ऐसे करती है जैसे उसकी आँख, कान, हाथ, बाहें, उँगलियाँ, पैर और दिल हो।—उत्पत्ति 8:21, किताब-ए-मुकद्दस; निर्गमन 3:20; 31:18; अय्यूब 40:9; भजन 18:9; 34:15.

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि परमेश्‍वर के आत्मिक शरीर में सचमुच वह सारे अंग हैं जो एक इंसान के शरीर में होते हैं। ऐसी तुलना सिर्फ इंसानों को परमेश्‍वर के बारे में बेहतर समझ देने के लिए की गयी है। इस तरह की अलंकारिक भाषा के बिना, आम इंसानों के लिए परमेश्‍वर को समझना नामुमकिन तो नहीं मगर मुश्‍किल ज़रूर होगा। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि इंसान ने खुद यहोवा परमेश्‍वर की शख्सियत का मनमाने ढंग से वर्णन किया है। बाइबल साफ समझाती है कि इंसान, परमेश्‍वर के स्वरूप में बनाया गया है, ना कि परमेश्‍वर, इंसान के स्वरूप में। (उत्पत्ति 1:27) बाइबल के लेखकों को ‘परमेश्‍वर से प्रेरणा’ मिली थी, इसलिए उन्होंने परमेश्‍वर के गुणों के बारे में वही लिखा जो उसने उन पर ज़ाहिर किए। और ये गुण परमेश्‍वर ने ही इंसानों को दिए हैं, ये किसी में कम होते हैं तो किसी में ज़्यादा। (2 तीमुथियुस 3:16, 17) इसलिए परमेश्‍वर में इंसान के गुण नहीं बल्कि इंसानों में उसके गुण हैं।

[पेज 4 पर तसवीर]

नूह ने यहोवा की दृष्टि में अनुग्रह पाया

[पेज 5 पर तसवीर]

इब्राहीम, परमेश्‍वर की भावनाओं को बखूबी समझता था

[पेज 6 पर तसवीर]

दाऊद ने यहोवा पर पूरा भरोसा रखा

[पेज 7 पर तसवीर]

बाइबल पढ़ने से आप सीख सकेंगे कि परमेश्‍वर को कैसे खुश कर सकते हैं

[पेज 4 पर चित्र का श्रेय]

Courtesy of Anglo-Australian Observatory, photograph by David Malin

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