-
सुहावनेपन के परादीस में शानदार मानवी प्रत्याशाएँप्रहरीदुर्ग—1990 | मार्च 1
-
-
२ “और यहोवा परमेश्वर भूमि में से सब जाति के बनैले पशुओं, और आकाश के सब भाँति के पक्षियों को रचकर मनुष्य के पास ले आया कि देखे, कि वह उनका क्या क्या नाम रखता है; और जिस जिस जीवित प्राणी का जो जो नाम मनुष्य ने रखा वही उसका नाम हो गया। सो मनुष्य ने सब जाति के घरेलू पशुओं, और आकाश के पक्षियों, और सब जाति के बनैले पशुओं के नाम रखे।”—उत्पत्ति २:१९, २०.
३. आदम और पशु सृष्टि की तरफ़ से कोई डर क्यों न था?
३ आदमी ने घोड़े को सुस कहा, साँड को शोर, भेड़ को सेह, बकरे को ʽएज़, परिंदे को ʽओफ़, फ़ाख़ते को यो·नाʹ, मोर को टुक्कीʹ, सिंह को ʼअर·येहʹ या ʼअरीʹ, भालू को डोव, कपि को क़ोफ़, कुत्ते को केʹलेव, सर्प को ना·ख़ाशʹ, इत्यादि।a जब वह अदन की बाटिका से बहनेवाली नदी के पास गया, उसने मछलियाँ देखी। मछलियों को उसने डा·गाहʹ नाम दिया। निरस्त्र मनुष्य को इन पालतू और जंगली जानवरों का, या परिंदों का, डर नहीं लगा, और उन्हें भी उस का डर नहीं लगा, जिसे वे सहज रूप से अपना उच्चाधिकारी मानते थे, एक उच्चतर प्रकार की सृष्टि। वे परमेश्वर के प्राणी थे, जिन्हें उसने जीवन की भेंट दी थी, और मनुष्य में उन्हें चोट पहुँचाने या उन्हें जान से मार डालने की कोई इच्छा या प्रवृत्ति न थी।
४. आदम के सारे जानवरों और परिंदों को नाम देने के बारे में हम क्या अंदाज़ा लगा सकते हैं, और यह किस तरह का अनुभव रहा होगा?
४ मनुष्य को कितनी देर तक पालतू और जंगली जानवर और आकाश के पक्षी दिखाए जा रहे थे, यह वृत्तांत हमें नहीं बताता। यह सभी ईश्वरीय मार्गदर्शन और व्यवस्था की देख-रेख में हुआ। संभवतः आदम ने हर अलग जानवर की आदतों और स्वभाव का निरीक्षण करते हुए, उसे ध्यान से देखने के लिए वक्त लिया; फिर वह एक ऐसा नाम चुनता जो उसके लिए खास तौर से उपयुक्त होता। इसका मतलब हो सकता था कि क़ाफ़ी समय बीत जाता। आदम के लिए, इस पृथ्वी के प्राणी जीवन से, उसके अनेक प्रकारों में, इस प्रकार परिचित होना एक बहुत ही दिलचस्प अनुभव था, और इस से उसकी ओर से बड़ी दिमाग़ी क़ाबिलियत और बोलने की क्षमताएँ आवश्यक हुईं, कि वह हर एक प्रकार के जीवित प्राणी को एक उपयुक्त नाम से पहचाने।
-
-
सुहावनेपन के परादीस में शानदार मानवी प्रत्याशाएँप्रहरीदुर्ग—1990 | मार्च 1
-
-
७ सृष्टि के उस भावोत्तेजक वृत्तांत के लिए आदम बहुत ही शुक्रगुज़ार रहा होगा। इस से अनेक बातें समझ में आयीं। जिस तरीक़े से उस वृत्तांत की शब्द रचना हुई, उस से उसने समझा कि ऐसी तीन लम्बी कालावधियाँ थीं, जिन्हें परमेश्वर ने समय मापने के अपने तरीक़े के अनुसार दिन कहा, और ये चौथे सृजनात्मक अवधि से पहले थीं, जिस में परमेश्वर ने मनुष्य के उस से बहुत ही कम समय के २४-घंटे के दिन प्रकट करने के लिए, आकाश के अन्तर में दो बड़ी ज्योतियाँ सृष्ट की। पृथ्वी पर यह अल्पकालिक मानवी दिन बड़ी ज्योति के अस्त होने से उसके अगले अवरोहण तक का समय था। आदम इस बात से भी अवगत हुआ कि उसके लिए समय वर्षों में होता, और बेशक उसने फ़ौरन अपनी ज़िन्दगी के वर्ष गिनना शुरू किए। आकाश के अन्तर में की बड़ी ज्योति उसे ऐसा करने देती। लेकिन जहाँ तक परमेश्वर की सृष्टि के अधिक लम्बे दिनों का सवाल था, पहले मनुष्य ने समझ लिया कि वह उस समय परमेश्वर के पार्थीव सृजनात्मक कार्य के छठे दिन में जी रहा था। अभी तक उस से उस छठे दिन की कोई समाप्ति का ज़िक्र नहीं किया गया, जिस दिन में उतने सारे ज़मीन के जानवरों को, और फिर अलग रूप से मनुष्य को सृष्ट किया गया था। अब वह वनस्पति जीवन, समुद्रीय जीवन, पक्षी जीवन, और ज़मीन के जानवरों को सृष्ट करने का क्रम समझ सकता। लेकिन अदन की बाटिका में अकेला, आदम, परमेश्वर के पार्थीव परादीस में मानव के लिए परमेश्वर के प्रेममय उद्देश्य की पूरी, संपूर्ण अभिव्यक्ति न था।
पहली स्त्री को सृष्ट करना
८, ९. (अ) पूर्ण मनुष्य ने पशु सृष्टि के बारे में क्या ग़ौर किया, लेकिन उसने खुद के विषय क्या निष्कर्ष निकाला? (ब) यह उचित क्यों था कि पूर्ण मनुष्य ने परमेश्वर से अपने लिए साथी नहीं माँगा? (क) बाइबल वृत्तांत पहली मानवी पत्नी की सृष्टि का वर्णन किस तरह करता है?
८ पहले मनुष्य ने, अपने पूर्ण दिमाग़ और अवलोकन की शक्तियों से, देखा कि परिंदों और जानवरों के क्षेत्र में, नर और मादा थे और उन्होंने मिलकर अपनी जाति के अनुसार बच्चे पैदा किए। लेकिन खुद मनुष्य के साथ, तब वैसा न था। अगर इस अवलोकन ने उसे किसी साथी का आनन्द उठाने का विचार रखने की ओर झुकाया, तो फिर उसने कोई उपयुक्त साथी जानवर क्षेत्र के किसी हिस्से में, कपियों में भी, नहीं पाया। आदम यह निष्कर्ष निकालता कि उसके लिए कोई साथी न थी, इसलिए कि अगर कोई होती, तो क्या परमेश्वर उसे उसके पास न ले आता? मनुष्य उन सभी जानवर जातियों से अलग सृष्ट किया गया था, और इरादा यही था कि वह अलग हो! वह खुद के लिए बातें तय करने और गुस्ताख़ होकर परमेश्वर अपने सृजनहार से साथी माँगने के लिए प्रवृत्त न था। यह उचित था कि पूर्ण मनुष्य सारे मामले को परमेश्वर के हाथों में रहने देता, इसलिए कि उसके थोड़ी ही देर बाद उसने पाया कि परमेश्वर ने स्थिति के बारे में खुद अपने निष्कर्ष निकाले थे। इसके बारे में, और अब जो कुछ घटित हुआ, वृत्तांत हमें बताता है:
९ “परन्तु मनुष्य के लिए कोई ऐसा सहायक न मिला जो उस से मेल खा सके। तब यहोवा परमेश्वर ने मनुष्य को भारी नीन्द में डाल दिया, और जब वह सो गया तब उस ने उसकी एक पसुली निकालकर उसकी सन्ती माँस भर दिया। और यहोवा परमेश्वर ने उस पसुली को जो उस ने मनुष्य में से निकाली थी, स्त्री बना दिया; और उसको मनुष्य के पास ले आया। और मनुष्य ने कहा: ‘आख़िरकार अब यह मेरी हड्डियों में की हड्डी और मेरे माँस में का माँस है: सो इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गयी है।’ इस कारण पुरुष अपने माता पिता को छोड़कर अपनी पत्नी से मिला रहेगा और वे एक ही तन बने रहेंगे। और मनुष्य और उसकी पत्नी दोनों नंगे थे, पर लजाते न थे।”—उत्पत्ति २:२०-२५, न्यू.व.
-