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यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ पानाप्रहरीदुर्ग—2002 | मई 15
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परमेश्वर की निरंतर प्रेम-कृपा से चैन मिलता है और हिफाज़त होती है
11, 12. (क) यहोवा ने यूसुफ की किन आज़माइशों के दौरान उसे निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी? (ख) परमेश्वर ने यूसुफ के लिए निरंतर प्रेम-कृपा कैसे ज़ाहिर की?
11 आइए अब हम उत्पत्ति अध्याय 39 पर एक नज़र डालें। इस अध्याय में खासकर इब्राहीम के पर-पोते यूसुफ के बारे में बताया गया है। उसे गुलामी करने के लिए मिस्र में बेच दिया गया था, फिर भी वह अकेला नहीं था, क्योंकि “यहोवा उसके संग था।” (आयतें 1, 2) और यही बात उसके मिस्री स्वामी, पोतीपर ने भी कबूल की कि यहोवा वाकई यूसुफ के संग था। (आयत 3) मगर, यूसुफ को एक बड़ी आज़माइश से गुज़रना पड़ा। पोतीपर की पत्नी ने यूसुफ पर झूठा इलज़ाम लगाया कि उसने उसका बलात्कार करने की कोशिश की। और इसलिए उसे बंदीगृह में डाल दिया गया। (आयतें 7-20) जब वह “कारागार में” था तो “लोगों ने उसके पैरों में बेड़ियां डालकर उसे दु:ख दिया; वह लोहे की सांकलों से जकड़ा गया।”—उत्पत्ति 40:15; भजन 105:18.
12 मगर क्या यहोवा ने इस कड़ी आज़माइश के दौरान यूसुफ को त्याग दिया था? बिलकुल नहीं, बल्कि “यहोवा यूसुफ के संग संग रहा, और उस पर करुणा [“निरंतर प्रेम-कृपा,” NW] की।” (आयत 21क) फिर यहोवा ने निरंतर प्रेम-कृपा दिखाते हुए उसकी खातिर ऐसा काम किया कि घटनाओं का एक सिलसिला शुरू हुआ और आखिरकार यूसुफ को अपने सारे दुःखों से छुटकारा मिला। यहोवा की बदौलत “बन्दीगृह के दारोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई।” (आयत 21ख) नतीजा यह हुआ कि दारोगा ने यूसुफ को एक ज़िम्मेदारी का पद सौंपा। (आयत 22) इसके बाद, यूसुफ की मुलाकात एक ऐसे आदमी से हुई जिसने आगे जाकर मिस्र के राजा, फिरौन को उसके बारे में बताया। (उत्पत्ति 40:1-4, 9-15; 41:9-14) फिर राजा ने उसे अपने अधीन मिस्र का दूसरा शासक बना दिया। इस बड़े ओहदे पर रहते हुए, यूसुफ ने एक ऐसा काम किया जिससे मिस्र में अकाल पड़ने पर लोगों की जान बची। (उत्पत्ति 41:37-55) यूसुफ ने 17 साल की उम्र से कितने दुःख झेले और उसके दुःखों का सिलसिला 12 से भी ज़्यादा साल तक चलता रहा! (उत्पत्ति 37:2, 4; 41:46) मगर दुःख और पीड़ा से भरे उन सालों के दौरान भी, यहोवा परमेश्वर ने यूसुफ को पूरी तरह से तबाह होने नहीं दिया और उसे बचाए रखा ताकि वह परमेश्वर का मकसद पूरा करने में एक अहम भूमिका निभा सके। इस तरह यहोवा ने यूसुफ के लिए निरंतर प्रेम-कृपा दिखायी।
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यहोवा की निरंतर प्रेम-कृपा से लाभ पानाप्रहरीदुर्ग—2002 | मई 15
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16. बाइबल, इब्राहीम और यूसुफ की तारीफ में क्या कहती है?
16 उत्पत्ति अध्याय 24 की कहानी से हमें साफ पता चलता है कि इब्राहीम और यहोवा के बीच कितना अटूट रिश्ता था। इस अध्याय की पहली आयत कहती है कि “यहोवा ने सब बातों में [इब्राहीम को] आशीष दी थी।” इब्राहीम के सेवक ने यहोवा को “मेरे स्वामी इब्राहीम का परमेश्वर” कहा। (आयतें 12, 27) और शिष्य याकूब ने कहा कि इब्राहीम को ‘धर्मी ठहराया’ (NHT) गया था और “वह परमेश्वर का मित्र कहलाया।” (याकूब 2:21-23) यूसुफ के मामले में भी यह बात सच थी। उत्पत्ति अध्याय 39 के पूरे अध्याय में यह खुलकर दिखाया गया है कि यहोवा के साथ उसका कैसे मज़बूत रिश्ता था। (आयतें 2, 3, 21, 23) उसके बारे में तो शिष्य स्तिफनुस ने कहा: “परमेश्वर उसके साथ था।”—प्रेरितों 7:9.
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