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क्या परमेश्वर का नाम ज़ुबान पर लाना गलत है?सजग होइए!—1999 | अप्रैल
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सदियों से यहूदी धर्म की एक परंपरा में यह सिखाया गया है कि परमेश्वर का नाम यहोवा इतना पवित्र है कि इसे ज़ुबान पर नहीं लाया जा सकता।a (भजन ८३:१८) अनेक धर्मशास्त्रियों ने दलील दी है कि अपने महान सृष्टिकर्ता को नाम से पुकारकर उसके साथ अपनापन दिखाने का मतलब है कि हम उसका अनादर करते हैं। इसका मतलब यह भी लगाया जाता है कि हम परमेश्वर की दस आज्ञाओं में से तीसरी आज्ञा को तोड़ते हैं, जहाँ ‘परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेने’ से मना किया गया है। (निर्गमन २०:७) सा.यु. तीसरी सदी में मिशनाह ने बताया कि “जो कोई परमेश्वर के नाम को अपनी ज़ुबान पर लाता है,” उसका “आनेवाली दुनिया में कोई भाग नहीं होगा।”—सैनहॆड्रिन १०:१.
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क्या परमेश्वर का नाम ज़ुबान पर लाना गलत है?सजग होइए!—1999 | अप्रैल
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तीसरी आज्ञा
लेकिन दस आज्ञाओं की तीसरी आज्ञा में दी गयी मनाही के बारे में क्या? निर्गमन २०:७ ज़ोर देकर कहता है: “तू अपने परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा।”
असल में परमेश्वर का नाम ‘व्यर्थ में लेने’ का अर्थ क्या है? ज्यूइश पब्लिकेशन सोसाइटी द्वारा प्रकाशित द जेपीएस तोराह कमेंट्री (अंग्रेज़ी) समझाती है कि जिस इब्रानी शब्द को ऊपर ‘व्यर्थ में’ लेना (ला-शाव) अनुवादित किया गया है, उसका अर्थ “झूठे तरीके से” या “बेकार में, फज़ूल में” हो सकता है। वही पुस्तक आगे कहती है: इस इब्रानी शब्द का “मतलब हो सकता है कि किसी मुकदमे में विरोधी पक्षों द्वारा शपथ लेकर भी झूठ बोलने, झूठी शपथ खाने, और परमेश्वर का नाम बेवज़ह लेने या इसे तुच्छ जानने से मनाही।”
यह ज्यूइश कमेंट्री इस बात को सही-सही तरीके से बताती है कि ‘परमेश्वर का नाम व्यर्थ में लेने’ का एक मतलब है इस नाम को अनुचित तरीके से इस्तेमाल करना। लेकिन परमेश्वर के बारे में दूसरों को सिखाते वक्त उसका नाम लेने या फिर प्रार्थना करते वक्त अपने स्वर्गीय पिता का नाम लेने को क्या ‘बेवज़ह लेना या इसे तुच्छ जानना’ कह सकते हैं? यहोवा भजन ९१:१४ के शब्दों में अपने विचार व्यक्त करता है: “उस ने जो मुझ से स्नेह किया है, इसलिये मैं उसको छुड़ाऊंगा; मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूंगा, क्योंकि उस ने मेरे नाम को जान लिया है।”
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