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“कौन है जो यहोवा का मन जान सका है?”प्रहरीदुर्ग—2010 | अक्टूबर 15
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14. यहोवा की बात का मूसा ने क्या जवाब दिया?
14 घटना आगे बताती है: “तब मूसा अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहके मनाने लगा, कि हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्यों भड़का है, जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? मिस्री लोग यह क्यों कहने पाएं, कि वह उनको बुरे अभिप्राय से, अर्थात् पहाड़ों में घात करके धरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? तू अपने भड़के हुए कोप को शांत कर, और अपनी प्रजा को ऐसी हानि पहुंचाने से फिर जा। अपने दास इब्राहीम, इसहाक, और याक़ूब को स्मरण कर, जिन से तू ने अपनी ही किरिया खाकर यह कहा था, कि मैं तुम्हारे वंश को आकाश के तारों के तुल्य बहुत करूंगा, और यह सारा देश जिसकी मैं ने चर्चा की है तुम्हारे वंश को दूंगा, कि वह उसके अधिकारी सदैव बने रहें। तब यहोवा अपनी प्रजा की हानि करने से जो उस ने कहा था पछताया।”—निर्ग. 32:11-14.a
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“कौन है जो यहोवा का मन जान सका है?”प्रहरीदुर्ग—2010 | अक्टूबर 15
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16 मूसा के जवाब से ज़ाहिर हुआ कि उसे यहोवा के न्याय पर पूरा भरोसा और विश्वास था। उसने अपना स्वार्थ नहीं बल्कि यहोवा के नाम के लिए चिंता ज़ाहिर की। वह नहीं चाहता था कि यहोवा का नाम बदनाम हो। इस तरह मूसा ने दिखाया कि इस मामले में वह “यहोवा का मन” समझ गया है। (1 कुरिं. 2:16) इसका क्या नतीजा हुआ? यहोवा का फैसला उसका आखिरी फैसला नहीं था इसलिए जैसा कि बाइबल कहती है, यहोवा “पछताया।” इब्रानी भाषा में शब्द “पछताया” का मतलब सिर्फ इतना है कि यहोवा पूरे राष्ट्र पर जो विपत्ति लाना चाहता था अब उसके बारे में उसने अपना फैसला बदल दिया।
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