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पाठकों के प्रश्नप्रहरीदुर्ग—2000 | अक्टूबर 15
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हमें ज़िंदगी देनेवाले परमेश्वर यहोवा ने खुद यह आदेश दिया है कि हमें लहू नहीं खाना चाहिए। (उत्पत्ति 9:3, 4) इस्राएलियों को दी गई व्यवस्था में, परमेश्वर ने लहू के इस्तेमाल के बारे में सख्त कानून दिए थे क्योंकि लहू प्राण को सूचित करता है। उसने आज्ञा दी: “शरीर का प्राण लोहू में रहता है; और उसको मैं ने तुम लोगों को वेदी पर चढ़ाने के लिये दिया है, कि तुम्हारे प्राणों के लिये प्रायश्चित्त किया जाए।” लेकिन अगर कोई खाने के लिए किसी जानवर को मारता, तो उसे उसके लहू का क्या करना था? परमेश्वर ने कहा: “वह उसके लोहू को उंडेलकर धूलि से ढांप दे।”a (लैव्यव्यवस्था 17:11, 13) यहोवा ने यह आज्ञा उन्हें बार-बार याद दिलाई। (व्यवस्थाविवरण 12:16, 24; 15:23) यहूदियों की एक किताब सोनसीनो कुमॉश में लिखा है: “लहू को इकट्ठा करके नहीं रखना चाहिए और न ही उसे खाने-पीने में इस्तेमाल करना चाहिए बल्कि उसे ज़मीन पर उँडेल देना चाहिए।” इस्राएलियों के लिए किसी दूसरे प्राणी के खून को निकालना, फिर जमा करके उसका इस्तेमाल करना मना था, क्योंकि उसके प्राण पर परमेश्वर का हक था।
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पाठकों के प्रश्नप्रहरीदुर्ग—2000 | अक्टूबर 15
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ऐसे में डॉक्टर कभी-कभी अपने मरीज़ को ऑपरेशन के कुछ हफ्ते पहले ही अपना खून जमा करने की सलाह देते हैं (प्रीऑपरेटिव ऑटोलॉगस ब्लड डोनेशन, PAD) ताकि अगर मरीज़ को खून की ज़रूरत पड़े तो किसी और का खून चढ़ाने के बजाए उसका अपना ही जमा किया हुआ खून चढ़ाया जाए। मगर इस तरह लहू निकालकर जमा करना, और बाद में उसे चढ़ाना, लैव्यव्यवस्था और व्यवस्थाविवरण में लिखी हुई बातों के बिलकुल खिलाफ है। खून को जमा करके हरगिज़ नहीं रखना चाहिए बल्कि उसे उँडेल देना चाहिए, यह ऐसा है मानो जो परमेश्वर का है उसे हम परमेश्वर को लौटा रहे हैं। हाँ, यह बात सच है कि आज मूसा की व्यवस्था लागू नहीं होती। मगर उस व्यवस्था में परमेश्वर के जो सिद्धांत दर्ज़ हैं, हम यहोवा के साक्षी उन सिद्धांतों का सम्मान करते हैं, इसीलिए हमने ठाना है कि हम ‘लहू से परे रहेंगे।’ इसका मतलब यह है कि हम न तो दूसरों को खून देंगे और न ही अपना खून चढ़ाने के लिए उसे जमा करके रखेंगे, वरना यह परमेश्वर के इस नियम का उल्लंघन होगा कि लहू को ‘उँडेल देना’ चाहिए।
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पाठकों के प्रश्नप्रहरीदुर्ग—2000 | अक्टूबर 15
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a प्रॉफेसर फ्रैन्क एच. गोर्मन लिखते हैं: “लहू का उँडेलना परमेश्वर की भक्ति का एक कार्य समझा जा सकता है। इस कार्य के ज़रिए एक इंसान जानवर के प्राण के लिए इज़्ज़त दिखाता है और इस तरह परमेश्वर की इज़्ज़त करता है, जिसने जानवर को सृजा और जो उसका पालन-पोषण करता है।”
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