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  • यरूशलेम “महाराजा का नगर”

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  • यरूशलेम “महाराजा का नगर”
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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  • सदा तक रहनेवाली शांति की झलक
  • अपने नाम जैसा यरूशलेम
    प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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यरूशलेम “महाराजा का नगर”

‘यरूशलेम की शपथ न खाना; क्योंकि वह महाराजा का नगर है।’—मत्ती ५:३४, ३५.

१, २. यरूशलेम के बारे में कुछ लोग ताज्जुब क्यों करते हैं?

यरूशलेम नाम के साथ कई धर्म के लोगों की गहरी भावनाएँ जुड़ी हुई हैं। सच तो यह है कि हममें से कोई भी इस प्राचीन शहर को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, क्योंकि समाचारों में भी अकसर इसका ज़िक्र होता रहता है। मगर बहुत-सी खबरें दिखाती हैं कि यरूशलेम में वैसी शांति नहीं है जैसी होनी चाहिए।

२ यह देखकर बाइबल पढ़नेवाले कुछ लोग शायद ताज्जुब करने लगें। प्राचीन समय में यरूशलेम का छोटा नाम शालेम था, जिसका मतलब होता है “शान्ति।” (उत्पत्ति १४:१८; भजन ७६:२; इब्रानियों ७:१, २) इसलिए, आप शायद सोचने लगें, ‘जिस शहर के नाम का मतलब शांति है उसमें आज इतनी अशांति क्यों है?’

३. यरूशलेम के बारे में सही-सही जानकारी हमें कहाँ मिल सकती है?

३ इस सवाल का जवाब पाने के लिए, हमें इतिहास में बहुत पीछे जाना होगा और प्राचीन समय के यरूशलेम के बारे में जानना होगा। पर कुछ लोग शायद सोचें, ‘किसके पास इतना वक्‍त है कि इतिहास लेकर बैठे।’ फिर भी, यरूशलेम का प्राचीन इतिहास सही-सही जानना हम सब के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा। वह कैसे, इसका जवाब बाइबल हमें देती है: “जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।” (रोमियों १५:४) यरूशलेम के बारे में बाइबल की जानकारी हमें तसल्ली दे सकती है, जी हाँ शांति की वह आशा दे सकती है कि एक दिन न सिर्फ इस नगर में बल्कि पूरी दुनिया में शांति कायम होगी।

“यहोवा के सिंहासन” का स्थान

४, ५. परमेश्‍वर के उद्देश्‍य को पूरा करने में यरूशलेम की अहम भूमिका में दाऊद का क्या हाथ था?

४ सामान्य युग पूर्व ११वीं सदी में, एक मज़बूत और शांतिपूर्ण राष्ट्र की राजधानी के नाम से यरूशलेम सारी दुनिया में मशहूर हो चुका था। यहोवा परमेश्‍वर ने इस्राएल की प्राचीन जाति पर राजा होने के लिए नौजवान दाऊद का अभिषेक करवाया। यरूशलेम से शासन चलाया जाता था, जहाँ दाऊद और उसके बाद उसके राजसी वंशज “यहोवा के राज्य की गद्दी” या “यहोवा के सिंहासन” पर विराजते थे।—१ इतिहास २८:५; २९:२३.

५ दाऊद, इस्राएल के यहूदा के गोत्र का था। वह परमेश्‍वर का भय मानता था और उसने यरूशलेम को मूर्तिपूजक जबूसियों से जीतकर अपने अधिकार में किया। उस वक्‍त यह शहर सिर्फ सिय्योन नामक एक पहाड़ी पर बसा था, इसलिए यरूशलेम का दूसरा नाम सिय्योन पड़ गया। कुछ समय बाद, इस्राएल के साथ परमेश्‍वर की वाचा के संदूक को दाऊद यरूशलेम ले आया जहाँ उसे एक तंबू में रखा गया। बहुत साल पहले, परमेश्‍वर ने इस पवित्र संदूक के ऊपर ठहरनेवाले एक बादल में से अपने भविष्यवक्‍ता मूसा से बात की थी। (निर्गमन २५:१, २१, २२; लैव्यव्यवस्था १६:२; १ इतिहास १५:१-३) वह संदूक परमेश्‍वर की मौजूदगी का निशान था, क्योंकि इस्राएल का असली राजा यहोवा था। इसलिए, दो मायने में कहा जा सकता था कि यहोवा परमेश्‍वर यरूशलेम नगर से राज करता था।

६. यहोवा ने दाऊद और यरूशलेम के बारे में कौन-सा वादा किया?

६ सिय्योन यानी यरूशलेम दाऊद के शाही घराने को दर्शाता था। यहोवा ने दाऊद से यह वादा किया था कि उसके शाही घराने के राज का अंत नहीं होगा। इसका मतलब था कि दाऊद का एक वंशज, परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त जन यानी मसीहा या ख्रिस्तसa की हैसियत से अनंतकाल तक राज करने का अधिकार विरासत में पानेवाला था। (भजन १३२:११-१४; लूका १:३१-३३) बाइबल यह भी दिखाती है कि “यहोवा के सिंहासन” का यह सनातन वारिस सिर्फ यरूशलेम पर ही नहीं बल्कि देश-देश और जाति-जाति पर राज करेगा।—भजन २:६-८; दानिय्येल ७:१३, १४.

७. राजा दाऊद ने सच्ची उपासना को कैसे बढ़ावा दिया?

७ परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त जन यानी राजा दाऊद का तख्ता पलटने की कोशिशें बेकार गयीं। इसके बजाय, दुश्‍मन राष्ट्रों को भी अधीन कर लिया गया और वादा किए हुए देश की सीमाएँ परमेश्‍वर द्वारा ठहरायी गयी हदों तक बढ़ायी गयीं। इन हालात का इस्तेमाल दाऊद ने सच्ची उपासना को बढ़ावा देने के लिए किया। और दाऊद के कई भजन भी सिय्योन के असली राजा यानी यहोवा की स्तुति करते हैं।—२ शमूएल ८:१-१५; भजन ९:१, ११; २४:१, ३, ७-१०; ६५:१, २; ६८:१, २४, २९; ११०:१, २; १२२:१-४.

८, ९. राजा सुलैमान के राज में यरूशलेम में सच्ची उपासना कैसे पूरे ज़ोरों पर थी?

८ दाऊद के बेटे सुलैमान के राज में यहोवा की उपासना फल-फूल रही थी और पूरे ज़ोरों पर थी। सुलैमान ने यरूशलेम का क्षेत्र उत्तर की ओर बढ़ाया ताकि मोरिय्याह पहाड़ (आज के डोम ऑफ द रॉक क्षेत्र) को भी इसमें ले ले। इसी ऊँचे पहाड़ पर उसे यहोवा की महिमा के लिए एक आलीशान मंदिर बनाने का सुअवसर मिला। उस मंदिर के परमपवित्र स्थान में वाचा का संदूक रखा गया।—१ राजा ६:१-३८.

९ यरूशलेम यहोवा की उपासना का केंद्र था। और जब तक इस्राएलियों ने यहोवा की उपासना को कायम रखने के लिए दिल से मेहनत की तब तक वहाँ शांति ही शांति थी। शास्त्र उन दिनों का वर्णन बहुत सुंदर रीति से करता है: “यहूदा और इस्राएल के लोग बहुत थे, वे समुद्र के तीर पर की बालू के किनकों के समान बहुत थे, और खाते-पीते और आनन्द करते रहे। . . . और अपने चारों ओर के सब रहनेवालों से [सुलैमान] मेल रखता था। . . . सब यहूदी और इस्राएली अपनी अपनी दाखलता और अंजीर के वृक्ष तले सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।”—१ राजा ४:२०, २४, २५.

१०, ११. बाइबल सुलैमान के राज में यरूशलेम की खुशहाली के बारे में जो कहती है उसे पुरातत्व-विज्ञान ने कैसे साबित किया है?

१० पुरातत्व-विज्ञान की खोजों से इस बात का सबूत मिलता है कि सुलैमान के राज की खुशहाली का यह बयान सच्चा है। अपनी किताब इस्राएल देश का पुरातत्व-विज्ञान (अंग्रेज़ी) में, प्रॉफॆसर योहानन आहारोनी कहता है: “शाही खज़ाने में चारों तरफ से लगातार बेशुमार दौलत आ रही थी और बढ़ते हुए व्यापार की खुशहाली से . . . सब क्षेत्रों में बहुत तेज़ी से होनेवाले भौतिक विकास और समृद्धि नज़र आने लगे। . . . इस भौतिक विकास से आया बदलाव . . . न सिर्फ सुख-विलास की चीज़ों में नज़र आया बल्कि चीनी-मिट्टी से बनायी चीज़ों में खासकर नज़र आता है। . . . बेहतरीन किस्म के चीनी-मिट्टी के बर्तन बनने लगे और उनको बनाने के तरीकों में बेमिसाल तरक्की हुई।”

११ यही बात जॆरी एम. लैंडे ने लिखी: “इस्राएल का भौतिक विकास सुलैमान के राज के तीस सालों में जितना हुआ उतना पिछले दो सौ सालों में भी नहीं हुआ था। हम सुलैमान के समय के खंडहरों में बड़ी-बड़ी इमारतों, विशालकाय दीवारोंवाले बड़े-बड़े शहरों, अमीर परिवारों के ढेरों आलीशान मकानों, कुम्हार के काम में महारत पाने और बर्तन बनाने के तरीकों में भारी तरक्की के अवशेष पाते हैं। हम ऐसी चीज़ों के बचे-खुचे टुकड़े भी पाते हैं जो दूर-दूर के देशों में बनायी जाती थीं जिनसे हमें उस समय ज़ोर-शोर से चलनेवाले अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और लेन-देन का संकेत मिलता है।”—दाऊद का घराना। (अंग्रेज़ी)

शांति से बरबादी तक

१२, १३. यरूशलेम में सच्ची उपासना को किस वज़ह से छोड़ दिया गया?

१२ यरूशलेम नगर की शांति और खुशहाली के लिए प्रार्थना करना जायज़ था, क्योंकि वह यहोवा का पवित्रस्थान था। दाऊद ने लिखा: “यरूशलेम की शान्ति का वरदान मांगों, तेरे प्रेमी कुशल से रहें! तेरी शहरपनाह के भीतर शान्ति, और तेरे महलों में कुशल होवे! अपने भाइयों और संगियों के निमित्त, मैं कहूंगा कि तुझ में शान्ति होवे!” (भजन १२२:६-८) हालाँकि उस शांत नगर में सुलैमान को आलीशान मंदिर बनाने का सुअवसर मिला था, फिर भी बाद में उसने बहुत-सी विधर्मी स्त्रियों से शादी कर ली। बुढ़ापे में, इन स्त्रियों ने सुलैमान का मन बहका दिया और वह उस समय के झूठे देवताओं की उपासना को बढ़ावा देने लगा। इस धर्मत्याग का सारी जाति पर इतना बुरा असर पड़ा कि वह भ्रष्ट हो गयी, जिसकी वज़ह से उस देश के वासियों की सच्ची शांति छिन गयी।—१ राजा ११:१-८; १४:२१-२४.

१३ सुलैमान के बेटे रहूबियाम के राज की शुरूआत होते ही दस गोत्र बागी हो गए और उन्होंने अलग होकर इस्राएल का उत्तरी राज्य बना लिया। उनकी मूर्तिपूजा की वज़ह से, परमेश्‍वर ने अश्‍शूरियों के हाथों उस राज्य को उजाड़ दिया। (१ राजा १२:१६-३०) दो गोत्रों से बना दक्षिणी राज्य यहूदा कायम रहा, और यरूशलेम उसकी राजधानी बना रहा। लेकिन बाद में उन लोगों ने भी सच्ची उपासना को छोड़ दिया, इसलिए परमेश्‍वर ने सा.यु.पू. ६०७ में बाबुलियों के हाथों इस भ्रष्ट नगर का नाश होने दिया। ७० साल तक यहूदी बाबुल में बंधुए बनकर मातम मनाते रहे। उसके बाद, परमेश्‍वर ने उन पर दया दिखायी जिसकी वज़ह से उन्हें यरूशलेम लौटने और फिर से सच्ची उपासना कायम करने की इजाज़त मिली।—२ इतिहास ३६:१५-२१.

१४, १५. बाबुल की बंधुआई से छुटकारे के बाद यरूशलेम का महत्त्व फिर से कैसे बढ़ने लगा, लेकिन अब कौन-सा बदलाव आ चुका था?

१४ सत्तर साल तक उजाड़ पड़े रहने की वज़ह से, इमारतों के खंडहरों में झाड़-झंखाड़ उग आए थे। यरूशलेम की शहरपनाह टूट चुकी थी और जहाँ पहले फाटक और उनके गुम्मट हुआ करते थे वहाँ अब खाली जगह थी। इस सब के बावजूद, लौटनेवाले यहूदियों ने हिम्मत नहीं हारी। पुराने मंदिर की वेदी की जगह पर उन्होंने एक वेदी बनायी और हर दिन यहोवा को बलिदान चढ़ाने लगे।

१५ यह एक अच्छी शुरूआत थी, मगर फिर से बसाया गया यह यरूशलेम शहर ऐसे राज्य की राजधानी कभी-भी नहीं बनेगा जिसकी गद्दी पर राजा दाऊद का कोई वंशज बैठकर राज करे। इसके बजाय, बाबुल को हरानेवाले फारसियों द्वारा नियुक्‍त किया गया अधिपति यहूदियों पर राज करता था, इसके अलावा यहूदियों को अपने फारसी स्वामियों को कर भी अदा करना पड़ता था। (नहेमायाह ९:३४-३७) ‘रौंदे’ जाने के बावजूद, सारी दुनिया में यरूशलेम ही ऐसा नगर था जिस पर यहोवा परमेश्‍वर की खास कृपादृष्टि थी। (लूका २१:२४) सच्ची उपासना का केंद्र होने के नाते, यह शहर राजा दाऊद के वंशज के ज़रिये सारी दुनिया पर राज करने के परमेश्‍वर के अधिकार को भी सूचित करता था।

झूठा धर्म माननेवाले पड़ोसियों से विरोध

१६. बाबुल से लौटनेवाले यहूदियों ने यरूशलेम को फिर से बनाने का काम क्यों छोड़ दिया?

१६ बाबुल से लौटनेवाले यहूदियों ने जल्द ही नए मंदिर की नींव डाली। लेकिन झूठे धर्म को माननेवाले उनके पड़ोसियों ने फारस के राजा अर्तक्षत्र को एक खत लिखा जो झूठे इलज़ामों से भरा हुआ था और जिसमें चेतावनी दी गयी थी कि यहूदी विद्रोह करने की सोच रहे हैं। इसका नतीजा यह हुआ कि अर्तक्षत्र ने यरूशलेम के निर्माण के काम पर रोक लगा दी। आप कल्पना कर सकते हैं कि अगर आप उस वक्‍त यरूशलेम में होते तो यह सोचते कि न जाने अब इस शहर का क्या होगा। आखिरकार, यहूदियों ने मंदिर बनाना छोड़ दिया और अपने लिए धन-दौलत बटोरने में लग गए।—एज्रा ४:११-२४; हाग्गै १:२-६.

१७, १८. यहोवा ने कौन-सा ज़रिया इस्तेमाल किया ताकि यरूशलेम का फिर से निर्माण हो?

१७ यहूदियों को बाबुल से लौटे १७ साल बीत चुके थे। अपने इन लोगों का नज़रिया सुधारने के लिए परमेश्‍वर ने हाग्गै और जकर्याह भविष्यवक्‍ता को उनके पास भेजा। यहूदियों ने दिल से पछतावा किया और फिर से मंदिर बनाने के काम में लग गए। इस दौरान, दारा फारस का राजा बन चुका था। उसने राजा कुस्रू की आज्ञा पर अमल किया जिसमें कहा गया था कि यरूशलेम का मंदिर फिर से बनाया जाए। दारा ने यहूदियों के पड़ोसियों को एक खत भेजा, जिसमें उसने उन्हें ‘यरूशलेम से दूर रहने’ की चेतावनी दी और राजा के कर के पैसों से उनकी मदद करने का हुक्म दिया ताकि निर्माण का काम पूरा हो सके।—एज्रा ६:१-१३, NHT.

१८ यहूदियों ने अपने लौटने के २२वें साल में मंदिर बनाकर पूरा किया। आप समझ सकते हैं कि इस बड़ी कामयाबी को धूमधाम और बड़े आनंद के साथ मनाया जाना था। मगर, यरूशलेम और उसकी शहरपनाह का ज़्यादातर भाग अब भी खंडहर था। “नहेमायाह अधिपति और एज्रा याजक और शास्त्री के दिनों में” शहर पर खास ध्यान दिया गया। (नहेमायाह १२:२६, २७) नतीजा यह हुआ कि सा.यु.पू. पाँचवी सदी के अंत तक सारा यरूशलेम फिर से बन चुका था और एक बार फिर प्राचीन संसार के बड़े नगरों में उसका शुमार होने लगा था।

मसीहा प्रकट होता है!

१९. मसीहा ने भी यरूशलेम को खास अहमियत कैसे दी?

१९ आइए हम कुछ सदियाँ आगे निकल जाएँ और ऐसी घटना को देखें जो सारी दुनिया के लिए अहमियत रखती है, वह है यीशु मसीह का जन्म। यहोवा परमेश्‍वर के स्वर्गदूत ने एक कुँवारी से यानी यीशु की माँ से कहा था: “प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। . . . और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका १:३२, ३३) इसके कई साल बाद, यीशु ने अपना मशहूर पहाड़ी उपदेश दिया। उसमें उसने कई बातें बताकर लोगों को हौसला दिया और उन्हें कई सबक सिखाए। मिसाल के तौर पर, उसने अपने सुननेवालों को समझाया कि परमेश्‍वर के सामने ली गयी अपनी शपथ को पूरा करें, लेकिन हर छोटी-छोटी बात में शपथ न खाएँ। यीशु ने कहा: “तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि झूठी शपथ न खाना, परन्तु प्रभु के लिये अपनी शपथ को पूरी करना। परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि कभी शपथ न खाना; न तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्‍वर का सिंहासन है। न धरती की, क्योंकि वह उसके पांवों की चौकी है; न यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है।” (मत्ती ५:३३-३५) सदियों से यरूशलेम की एक खास जगह थी और यह ध्यान देने की बात है कि यीशु ने भी यरूशलेम को वही खास अहमियत दी। बेशक, वह “महाराजा का नगर,” यहोवा परमेश्‍वर का नगर था।

२०, २१. यरूशलेम के रहनेवालों के रवैये में कैसे कुछ ही दिनों में भारी बदलाव आ गया?

२० अपने जीवन के आखिरी दौर में यीशु ने अपने आप को यरूशलेम के निवासियों के सामने अभिषिक्‍त राजा के रूप में पेश किया। इस आनंदमय और रोमांचकारी मौके पर, बहुतों ने खुशी के मारे जय-जयकार करते हुए कहा: “धन्य है वह जो प्रभु के नाम से आता है। हमारे पिता दाऊद का राज्य जो आ रहा है; धन्य है।”—मरकुस ११:१-१०; यूहन्‍ना १२:१२-१५.

२१ लेकिन, एक ही हफ्ते के अंदर यही भीड़ यरूशलेम के धर्मगुरुओं के बहकावे में आकर यीशु के खिलाफ हो गयी। यीशु ने चेतावनी दी थी कि यरूशलेम का नगर और इस्राएल का पूरा राष्ट्र परमेश्‍वर के सामने अपनी खास अहमियत खो बैठेगा। (मत्ती २१:२३, ३३-४५; २२:१-७) मिसाल के तौर पर, यीशु ने कहा: “हे यरूशलेम, हे यरूशलेम; तू जो भविष्यद्वक्‍ताओं को मार डालता है, और जो तेरे पास भेजे गए, उन्हें पत्थरवाह करता है, कितनी ही बार मैं ने चाहा कि जैसे मुर्ग़ी अपने बच्चों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठे करती है, वैसे ही मैं भी तेरे बालकों को इकट्ठे कर लूं, परन्तु तुम ने न चाहा। देखो, तुम्हारा घर तुम्हारे लिये उजाड़ छोड़ा जाता है।” (मत्ती २३:३७, ३८) सामान्य युग ३३ के फसह के दिन, यीशु के विरोधियों ने बेइंसाफी से उसे यरूशलेम के बाहर मरवा डाला। लेकिन यहोवा ने अपने अभिषिक्‍त जन को पुनरुत्थित किया और स्वर्गीय सिय्योन में अमर आत्मिक जीवन पाने की महिमा दी, यह एक ऐसी कामयाबी थी जिससे हम सब को फायदा हो सकता है।—प्रेरितों २:३२-३६.

२२. यीशु की मौत के बाद, यरूशलेम का ज़िक्र ज़्यादातर किस अर्थ में किया जाता है?

२२ इसके बाद से, सिय्योन या यरूशलेम के बारे में जो भविष्यवाणियाँ पूरी नहीं हुई थीं वे अब स्वर्ग की सरकार या यीशु के अभिषिक्‍त चेलों पर पूरी होती हैं। (भजन २:६-८; ११०:१-४; यशायाह २:२-४; ६५:१७, १८; जकर्याह १२:३; १४:१२, १६, १७) यीशु की मौत के बाद “यरूशलेम” या “सिय्योन” का ज़िक्र बहुत बार लाक्षणिक अर्थ में किया गया है और इनका मतलब पृथ्वी पर बसे यरूशलेम नगर या स्थान से नहीं है। (गलतियों ४:२६; इब्रानियों १२:२२; १ पतरस २:६; प्रकाशितवाक्य ३:१२; १४:१; २१:२, १०) यरूशलेम अब “महाराजा का नगर” नहीं था, इसका आखिरी सबूत सा.यु. ७० में मिला जब दानिय्येल और यीशु मसीह की भविष्यवाणी के मुताबिक रोम की सेना ने उसे उजाड़ दिया। (दानिय्येल ९:२६; लूका १९:४१-४४) न तो बाइबल के लेखकों ने न ही खुद यीशु ने कभी भविष्यवाणी की कि आगे चलकर पृथ्वी का यरूशलेम फिर से बसाया जाएगा या फिर से यहोवा परमेश्‍वर की उस पर पहले की तरह खास कृपादृष्टि होगी।—गलतियों ४:२५; इब्रानियों १३:१४.

सदा तक रहनेवाली शांति की झलक

२३. हमें अब भी यरूशलेम में क्यों दिलचस्पी होनी चाहिए?

२३ यरूशलेम के प्राचीन इतिहास की चर्चा करने के बाद, कोई इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि यह नगर सुलैमान के शांतिपूर्ण राज में अपने नाम के अर्थ के अनुसार था, यानी “दोहरी शांति का निवास [या, बुनियाद]।” मगर, वह तो उस शांति और समृद्धि की महज़ एक झलक थी जिसका मज़ा जल्द ही परमेश्‍वर से प्रेम करनेवाले उठाएँगे। वे एक ऐसी पृथ्वी पर जीएँगे जिसकी कायापलट करके उसे खूबसूरत बगीचा यानी परादीस बना दिया गया होगा।—लूका २३:४३.

२४. सुलैमान के राज में जो हालात थे उनसे हम क्या सीख सकते हैं?

२४ राजा सुलैमान के राज में हालात कैसे थे इसका ब्यौरा हमें ७२वें भजन से मिलता है। लेकिन यह सुंदर गीत उन आशीषों की भविष्यवाणी भी करता है जो यीशु मसीह के स्वर्गीय राज के अधीन मानवजाति को मिलेंगी। उसके बारे में भजनहार ने गीत गाया: “उसके दिनों में धर्मी फूले फलेंगे, और जब तक चन्द्रमा बना रहेगा, तब तक शान्ति बहुत रहेगी। . . . वह दोहाई देनेवाले दरिद्र को, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा। वह कंगाल और दरिद्र पर तरस खाएगा, और दरिद्रों के प्राणों को बचाएगा। वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लोहू उसकी दृष्टि में अनमोल ठहरेगा। देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्‍न होगा।”—भजन ७२:७, ८, १२-१४, १६.

२५. हमें यरूशलेम के बारे में ज़्यादा जानने की इच्छा क्यों होनी चाहिए?

२५ आज यरूशलेम या दुनिया में कहीं भी रहनेवाले परमेश्‍वर के प्रेमियों के लिए ये शब्द क्या ही सांत्वना और आशा देते हैं! आप उन लोगों में हो सकते हैं जो परमेश्‍वर के मसीहाई राज्य के अधीन दुनिया भर में फैली शांति का मज़ा उठाएँगे। यरूशलेम के इतिहास की जानकारी मानवजाति के लिए परमेश्‍वर के उद्देश्‍य को समझने में हमारी मदद कर सकती है। बाकी दो लेखों में हम उन घटनाओं पर खास ध्यान देंगे जो यहूदियों के बाबुल से लौटने के बाद सातवें और आठवें दशकों में घटी थीं। इससे उन सभी को सांत्वना मिलती है जो महाराजाधिराज यहोवा परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक उसकी उपासना करना चाहते हैं।

[फुटनोट]

a “मसीहा” (इब्रानी शब्द का बदला हुआ रूप) और (यूनानी से) “ख्रिस्तस,” दोनों उपाधियों का मतलब है “अभिषिक्‍त जन।”

क्या आपको याद है?

◻ यरूशलेम “यहोवा के सिंहासन” की जगह कैसे बना?

◻ सच्ची उपासना को बढ़ाने में सुलैमान ने कैसे एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी?

◻ हम यह कैसे जानते हैं कि यरूशलेम यहोवा की उपासना का केंद्र न रहा?

◻ हम यरूशलेम के बारे में ज़्यादा जानने में दिलचस्पी क्यों रखते हैं?

[पेज 10 पर तसवीर]

दाऊदपुर पश्‍चिमी पहाड़ी पर बसा हुआ था, मगर सुलैमान ने इस शहर का क्षेत्र उत्तर की ओर बढ़ाया और मंदिर बनाया

[चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

[पेज 8 पर चित्र का श्रेय]

Pictorial Archive (Near Eastern History) Est.

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