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  • प्रेरितिक समयों में प्रकाश-कौंधें
    प्रहरीदुर्ग—1995 | मई 15
    • प्रेरितिक समयों में प्रकाश-कौंधें

      “धर्मी के लिए प्रकाश कौंधा है, और खरे हृदयवालों के लिए आनन्द भी।” —भजन ९७:११, NW.

      १. यहोवा के साक्षी आज कैसे प्रारंभिक मसीहियों के सदृश हैं?

      सच्चे मसीहियों के तौर पर, हम भजन ९७:११ के शब्दों का कितना मूल्यांकन करते हैं! हमारे लिए बारंबार “प्रकाश कौंधा” है। वाक़ई, हममें से कुछ जनों ने दशकों तक यहोवा का कौंधता हुआ प्रकाश देखा है। यह सब हमें नीतिवचन ४:१८ की याद दिलाता है, जो यों कहता है: “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” परम्परा के बजाय शास्त्र के लिए हमारे मूल्यांकन में, हम यहोवा के साक्षी प्रारंभिक मसीहियों के सदृश हैं। उनकी मनोवृत्ति ईश्‍वरीय उत्प्रेरणा द्वारा लिखे गए मसीही यूनानी शास्त्र की ऐतिहासिक पुस्तकों से और उसकी पत्रियों से स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

      २. यीशु के अनुयायियों को प्रकाश की जो पहली कौंधें मिलीं वे क्या थीं?

      २ यीशु मसीह के प्रारंभिक अनुयायियों को प्रकाश की जो पहली कौंधें मिलीं, वे मसीहा के बारे में थीं। अन्द्रियास ने अपने भाई शमौन पतरस से कहा: ‘हम को मसीह मिल गया।’ (यूहन्‍ना १:४१) कुछ समय बाद, स्वर्ग के पिता ने प्रेरित पतरस को ऐसे तरीक़े से साक्ष्य देने में समर्थ किया जिससे वह दृष्टिकोण प्रतिबिंबित हुआ, जब उसने यीशु मसीह से कहा: “तू जीवते परमेश्‍वर का पुत्र मसीह है।”—मत्ती १६:१६, १७; यूहन्‍ना ६:६८, ६९.

      उनकी प्रचार नियुक्‍ति पर प्रकाश

      ३, ४. अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु ने अपने अनुयायियों को उनकी भविष्य की गतिविधि के बारे में कौन-सा प्रबोधन दिया?

      ३ अपने पुनरुत्थान के बाद, यीशु मसीह ने एक ऐसी बाध्यता के बारे में प्रकाश-कौंधें दीं जो उसके सभी अनुयायियों पर है। अति संभव है कि उसने गलील में एकत्रित ५०० शिष्यों से कहा: “तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ: और देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती २८:१९, २०; १ कुरिन्थियों १५:६) तत्पश्‍चात्‌, मसीह के सभी अनुयायियों को प्रचारक होना था, और उनकी प्रचार नियुक्‍ति को “इस्राएल के घराने ही की खोई हुई भेड़ों” तक सीमित नहीं होना था। (मत्ती १०:६) ना ही उन्हें पापों की क्षमा के लिए पश्‍चाताप के प्रतीक में यूहन्‍ना का बपतिस्मा देना था। इसके बजाय, उन्हें लोगों को “पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा” देना था।

      ४ यीशु के स्वर्ग जाने से कुछ ही समय पहले, उसके ११ विश्‍वासी प्रेरितों ने पूछा: “हे प्रभु, क्या तू इसी समय इस्राएल को राज्य फेर देगा?” इस प्रश्‍न का उत्तर देने के बजाय, यीशु ने उन्हें उनकी प्रचार नियुक्‍ति के बारे में अतिरिक्‍त निर्देशन दिए। उसने कहा: “जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा तब तुम सामर्थ पाओगे; और यरूशलेम और सारे यहूदिया और सामरिया में, और पृथ्वी की छोर तक मेरे गवाह होगे।” तब तक, वे मात्र यहोवा के साक्षी रहे थे, लेकिन अब वे मसीह के भी साक्षी होते।—प्रेरितों १:६-८.

      ५, ६. पिन्तेकुस्त के दिन यीशु के शिष्यों ने कौन-सी प्रकाश-कौंधें प्राप्त कीं?

      ५ मात्र दस दिन बाद, यीशु के अनुयायियों ने क्या ही चमकदार प्रकाश-कौंधें प्राप्त कीं! सामान्य युग ३३ में पिन्तेकुस्त के दिन, उन्होंने पहली बार योएल २:२८, २९ के अर्थ को पूरी तरह समझा: “मैं [यहोवा] सब प्राणियों पर अपना आत्मा उण्डेलूंगा; तुम्हारे बेटे-बेटियां भविष्यद्वाणी करेंगीं, और तुम्हारे पुरनिये स्वप्न देखेंगे, और तुम्हारे जवान दर्शन देखेंगे। तुम्हारे दास और दासियों पर भी मैं उन दिनों में अपना आत्मा उण्डेलूंगा।” यीशु के शिष्यों ने पवित्र आत्मा को आग की सी जीभों के रूप में देखा, जो यरूशलेम में एकत्रित—लगभग १२० पुरुष और स्त्री—सभी के सिर पर आ ठहरी थीं।—प्रेरितों १:१२-१५; २:१-४.

      ६ साथ ही पिन्तेकुस्त के दिन, शिष्यों ने पहली बार समझा कि भजन १६:१० के शब्द पुनरुत्थित यीशु मसीह पर लागू होते हैं। भजनहार ने कहा था: “तू [यहोवा परमेश्‍वर] मेरे प्राण को अधोलोक में न छोड़ेगा, न अपने पवित्र भक्‍त को सड़ने देगा।” शिष्यों ने समझा कि वे शब्द राजा दाऊद को लागू नहीं हो सकते थे, क्योंकि उसकी क़ब्र उस दिन तक उनके साथ थी। इसमें आश्‍चर्य नहीं कि लगभग ३,००० लोग, जिन्होंने इस नए प्रकाश की व्याख्या सुनी, इतने क़ायल हो गए कि उन्होंने उसी दिन बपतिस्मा प्राप्त किया!—प्रेरितों २:१४-४१.

      ७. रोमी सूबेदार कुरनेलियुस से अपनी मुलाक़ात के दौरान प्रेरित पतरस ने कौन-सा चमकदार प्रकाश प्राप्त किया?

      ७ कई शताब्दियों तक, इस्राएलियों ने परमेश्‍वर द्वारा उनके बारे में कही गयी बातों का मूल्यांकन किया: “पृथ्वी के सारे कुलों में से मैं ने केवल तुम्हीं पर मन लगाया है।” (आमोस ३:२) सो यह वाक़ई एक चमकदार प्रकाश-कौंध थी जो प्रेरित पतरस और उसके साथ रोमी सूबेदार कुरनेलियुस के घर जानेवाले लोगों को प्राप्त हुई, जब ख़तनारहित अन्यजातीय विश्‍वासियों पर पवित्र आत्मा पहली बार उतरी। यह ध्यान देने योग्य है कि यह एकमात्र अवसर था कि पवित्र आत्मा बपतिस्मे से पहले दी गयी। लेकिन यह आवश्‍यक था। नहीं तो पतरस यह नहीं जान पाता कि ये ख़तनारहित अन्यजातीय लोग बपतिस्मा के लिए योग्य थे। इस घटना के अभिप्राय को पूरी तरह समझते हुए, पतरस ने पूछा: “क्या कोई जल की रोक कर सकता है, कि ये [अन्यजातीय लोग] बपतिस्मा न पांए, जिन्हों ने हमारी नाईं पवित्र आत्मा पाया है?” निश्‍चय ही, उपस्थित कोई भी जन उचित रूप से विरोध नहीं कर सकता था, और इसलिए इन अन्यजातीय लोगों का बपतिस्मा हुआ।—प्रेरितों १०:४४-४८. प्रेरितों ८:१४-१७ से तुलना कीजिए।

      और ख़तना नहीं

      ८. कुछ प्रारंभिक मसीहियों को ख़तने की शिक्षा को छोड़ना कठिन क्यों लगा?

      ८ ख़तने के प्रश्‍न से सम्बन्धित सत्य की एक और तेज़ कौंध प्रकट हुई। ख़तने के रिवाज़ की शुरूआत सा.यु.पू. १९१९ में इब्राहीम के साथ यहोवा की वाचा से हुई थी। तब परमेश्‍वर ने इब्राहीम को आदेश दिया कि उसे और उसके घराने के बाक़ी सारे पुरुषों को ख़तना करवाना था। (उत्पत्ति १७:९-१४, २३-२७) सो ख़तना इब्राहीम के वंशजों का पहचान चिन्ह बन गया। और वे इस रिवाज़ के बारे में कितना गर्व करते थे! परिणामस्वरूप, “ख़तनारहित” घृणा की अभिव्यक्‍ति बन गयी। (यशायाह ५२:१; १ शमूएल १७:२६, २७) यह देखना आसान है कि क्यों कुछ प्रारंभिक यहूदी मसीही इस प्रतीक को बनाए रखना चाहते थे। उन में से कुछ लोगों की पौलुस और बरनबास से इस विषय पर काफ़ी चर्चा हुई थी। इसे निपटाने के लिए, पौलुस और अन्य लोग मसीही शासी निकाय का परामर्श लेने के लिए यरूशलेम गए।—प्रेरितों १५:१, २.

      ९. जैसे कि प्रेरितों अध्याय १५ में अभिलिखित है, प्रारंभिक शासी निकाय को कौन-सी प्रकाश-कौंधें प्रकट की गयीं?

      ९ इस स्थिति में, प्रारंभिक मसीहियों को किसी स्पष्ट चमत्कार के ज़रिए यह प्रकाश प्राप्त नहीं हुआ कि ख़तना यहोवा के सेवकों के लिए अब एक माँग नहीं थी। इसके बजाय, उन्होंने शास्त्र की खोज करने, मार्गदर्शन के लिए पवित्र आत्मा पर भरोसा करने, और ख़तनारहित अन्यजातीय लोगों के धर्मपरिवर्तन के बारे में पतरस और पौलुस के अनुभव सुनने के द्वारा उस अधिक प्रकाश को प्राप्त किया। (प्रेरितों १५:६-२१) निर्णय एक पत्र में निकाला गया था जो अंशतः यों कहता है: “पवित्र आत्मा को, और हम को ठीक जान पड़ा, कि इन आवश्‍यक बातों को छोड़; तुम पर और बोझ न डालें; कि तुम मूरतों के बलि किए हुओं से, और लोहू से, और गला घोटे हुओं के मांस से, और व्यभिचार से, परे रहो।” (प्रेरितों १५:२८, २९) इस प्रकार प्रारंभिक मसीही ख़तना करवाने के आदेश से और मूसा की व्यवस्था की अन्य माँगों से मुक्‍त हो गए। अतः, पौलुस गलतिया के मसीहियों से कह सका: “मसीह ने स्वतंत्रता के लिये हमें स्वतंत्र किया है।”—गलतियों ५:१.

      सुसमाचार-पुस्तकों में प्रकाश

      १०. कौन-सी कुछ प्रकाश-कौंधें मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक में प्रकट की गयी हैं?

      १० इसमें कोई संदेह नहीं कि लगभग सा.यु. ४१ में लिखी गयी मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक में इसके पाठकों के फ़ायदे के लिए अनेक प्रकाश-कौंध हैं। पहली-शताब्दी के अपेक्षाकृत कुछ मसीहियों ने ही व्यक्‍तिगत रूप से यीशु को अपनी शिक्षाओं को समझाते हुए सुना था। विशेषकर, मत्ती के सुसमाचार ने ज़ोर दिया कि यीशु के प्रचार का विषय था राज्य। और कितने प्रभावशाली रूप से यीशु ने उचित हेतु रखने के महत्त्व पर ज़ोर दिया था! उसके पहाड़ी उपदेश में, उसके दृष्टान्तों में (जैसे कि वे दृष्टान्त जो अध्याय १३ में अभिलिखित हैं), और अध्याय २४ तथा २५ में उसकी महान भविष्यवाणियों में क्या ही प्रकाश-कौंधें थीं! ये सब बातें मत्ती के सुसमाचार वृत्तान्त में प्रारंभिक मसीहियों के ध्यान में लाई गयीं, जो सा.यु. ३३ के पिन्तेकुस्त के कुछ आठ साल बाद ही लिखा गया था।

      ११. लूका और मरकुस की सुसमाचार-पुस्तकों की अन्तर्वस्तु के बारे में क्या कहा जा सकता है?

      ११ लगभग १५ साल बाद, लूका ने अपनी सुसमाचार-पुस्तक लिखी। जबकि इसका अधिकांश भाग मत्ती के वृत्तान्त से मिलता-जुलता है, इसमें ५९ प्रतिशत अतिरिक्‍त जानकारी है। लूका ने यीशु के छः चमत्कारों को अभिलिखित किया और उसने उसके दुगने से भी ज़्यादा यीशु के ऐसे दृष्टान्तों को लिखा जिनका उल्लेख अन्य सुसमाचार लेखकों ने नहीं किया। स्पष्टतया मात्र कुछ साल बाद, मरकुस ने अपनी सुसमाचार-पुस्तक लिखी, और उसने यीशु मसीह को कार्यशील मनुष्य, एक चमत्कार करनेवाले के रूप पर ज़ोर दिया। जबकि मरकुस ने ज़्यादातर उन घटनाओं को बताया जिनका अभिलेख मत्ती और लूका पहले कर चुके थे, उसने एक ऐसे दृष्टान्त को अभिलिखित किया जो उन लोगों ने नहीं किया था। उस दृष्टान्त में, यीशु ने परमेश्‍वर के राज्य की तुलना बीज से की जो उगता, बढ़ता, और आहिस्ता-आहिस्ता फल लाता है।a—मरकुस ४:२६-२९.

      १२. यूहन्‍ना के सुसमाचार ने किस हद तक अतिरिक्‍त प्रबोधन प्रदान किया?

      १२ फिर यूहन्‍ना की सुसमाचार-पुस्तक थी, जो मरकुस द्वारा अपना वृत्तान्त लिखे जाने के ३० से अधिक साल बाद लिखी गयी। यूहन्‍ना ने विशेषकर यीशु के मानव-पूर्व अस्तित्व के अनेक उल्लेखों के ज़रिए, उसकी सेवकाई पर कितना प्रकाश डाला! केवल यूहन्‍ना ही लाजर के पुनरुत्थान का वृत्तान्त देता है, और केवल वही हमें यीशु द्वारा अपने विश्‍वासी प्रेरितों से कही गयी अनेक उत्तम टिप्पणियाँ, साथ ही साथ विश्‍वासघात किए जाने की रात को उसकी हृदयस्पर्शी प्रार्थना देता है, जैसा कि अध्याय १३ से १७ में अभिलिखित है। दरअसल, कहा जाता है कि यूहन्‍ना के सुसमाचार का ९२ प्रतिशत भाग अद्वितीय है।

      पौलुस की पत्रियों में प्रकाश-कौंधें

      १३. कुछ लोगों ने रोमियों के नाम पौलुस की पत्री को इस दृष्टिकोण से क्यों देखा मानो वह एक सुसमाचार-पुस्तक हो?

      १३ प्रेरितिक समयों में जी रहे मसीहियों को सत्य की प्रकाश-कौंध देने के लिए प्रेरित पौलुस को विशेषकर इस्तेमाल किया गया था। उदाहरण के लिए, रोमियों के नाम पौलुस की पत्री है, जो लगभग सा.यु. ५६ में लिखी गयी थी—तक़रीबन उसी वक़्त जब लूका ने अपना सुसमाचार लिखा। इस पत्री में पौलुस ने यह तथ्य विशिष्ट किया कि परमेश्‍वर के अपात्र अनुग्रह के परिणामस्वरूप और यीशु मसीह में विश्‍वास के ज़रिए धार्मिकता दी जाती है। सुसमाचार के इस पहलू पर पौलुस द्वारा बल दिया जाना, कुछ लोगों को रोमियों के नाम उसकी पत्री को इस दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित किया है मानो वह पाँचवीं सुसमाचार-पुस्तक हो।

      १४-१६. (क) कुरिन्थ के मसीहियों के नाम अपनी पहली पत्री में, पौलुस ने एकता की ज़रूरत पर कौन-सा प्रकाश डाला? (ख) पहले कुरिन्थियों में आचरण के बारे में कौन-सा अतिरिक्‍त प्रकाश है?

      १४ पौलुस ने कुछ ऐसे विषयों के बारे में लिखा जो कुरिन्थ के मसीहियों को परेशान कर रहे थे। कुरिन्थियों के नाम उसकी पत्री में अत्यधिक उत्प्रेरित सलाह सम्मिलित है जिसने हमारे दिन तक मसीहियों को लाभ पहुँचाया है। सबसे पहले, कुरिन्थ के लोग कुछ व्यक्‍तियों पर केंन्द्रित व्यक्‍ति-पूजक गुट बना रहे थे। सो उनकी इस ग़लती के बारे में पौलुस को उन्हें प्रबोधित करना था। प्रेरित ने उनकी मानसिक मनोवृत्ति को सुधारा। उसने उनसे निडरतापूर्वक कहा: “हे भाइयो, मैं तुम से यीशु मसीह जो हमारा प्रभु है उसके नाम के द्वारा बिनती करता हूं, कि तुम सब एक ही बात कहो; और तुम में फूट न हो, परन्तु एक ही मन और एक ही मत होकर मिले रहो।”—१ कुरिन्थियों १:१०-१५.

      १५ कुरिन्थ की मसीही कलीसिया में घोर अनैतिकता बरदाश्‍त की जा रही थी। वहाँ एक पुरुष ने अपने पिता की पत्नी को ले लिया था, और इस प्रकार ‘ऐसा व्यभिचार कर रहा था जो अन्यजातियों में भी नहीं पाया जाता’ था। स्पष्ट रूप से, पौलुस ने लिखा: “उस कुकर्मी को अपने बीच में से निकाल दो।” (१ कुरिन्थियों ५:१, ११-१३) वह मसीही कलीसिया के लिए कुछ नयी बात थी—बहिष्करण। एक और विषय जिस पर कुरिन्थ की कलीसिया को प्रबोधन की ज़रूरत थी वह यह तथ्य था कि उसके कुछ सदस्य मतभेदों से निपटने के लिए अपने आध्यात्मिक भाइयों को सांसारिक न्यायालयों में ले जा रहे थे। पौलुस ने उन्हें ऐसा करने के लिए ज़बरदस्त रूप से फटकारा।—१ कुरिन्थियों ६:५-८.

      १६ एक और बात जिससे कुरिन्थ की कलीसिया पीड़ित थी वह लैंगिक-सम्बन्धों के बारे में थी। पहला कुरिन्थियों ७ अध्याय में, पौलुस ने दिखाया कि लैंगिक अनैतिकता की व्यापकता के कारण, यह अच्छा होगा यदि प्रत्येक पुरुष की अपनी पत्नी हो और प्रत्येक स्त्री का अपना पति हो। पौलुस ने यह भी दिखाया कि जबकि अविवाहित व्यक्‍ति कम विकर्षणों से यहोवा की सेवा कर सकते हैं, सभी के पास अविवाहित रहने की देन नहीं है। और यदि एक स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती है, तो वह फिर से विवाह करने के लिए मुक्‍त होती “परन्तु केवल प्रभु में।”—१ कुरिन्थियों ७:३९.

      १७. पुनरुत्थान की शिक्षा पर पौलुस ने कौन-सा प्रकाश डाला?

      १७ पुनरुत्थान के बारे में प्रभु ने पौलुस को प्रकाश की क्या ही कौंधें प्रकट करने के लिए इस्तेमाल किया! किस प्रकार के शरीर में अभिषिक्‍त मसीही उठाए जाएँगे? “स्वाभाविक देह बोई जाती है, और आत्मिक देह जी उठती है,” पौलुस ने लिखा। कोई भी शारीरिक देह स्वर्ग को नहीं ले जायी जाएगी, क्योंकि “मांस और लोहू परमेश्‍वर के राज्य के अधिकारी नहीं हो सकते।” पौलुस ने आगे कहा कि सभी अभिषिक्‍त जन मृत्यु में नहीं सोएँगे लेकिन यीशु की उपस्थिति के दौरान कुछ जन मृत्यु से अमर जीवन के लिए क्षणभर में उठाए जाएँगे।—१ कुरिन्थियों १५:४३-५३.

      १८. थिस्सलुनीकियों के नाम पौलुस की पहली पत्री में भविष्य के बारे में कौन-सा प्रकाश है?

      १८ थिस्सलुनीका के मसीहियों के नाम उसकी पत्री में, भविष्य पर प्रकाश डालने के लिए पौलुस का इस्तेमाल किया गया। यहोवा का दिन, रात को चोर की नाईं आएगा। पौलुस ने यह भी समझाया: “जब लोग कह रहे होंगे, ‘शान्ति और सुरक्षा है,’ तब जैसे गर्भवती स्त्री पर सहसा प्रसव पीड़ा आ पड़ती है, वैसे ही उन पर भी विनाश आ पड़ेगा, और वे बच न सकेंगे।”—१ थिस्सलुनीकियों ५:२, ३, NHT.

      १९, २०. इब्रानियों के नाम पौलुस की पत्री में यरूशलेम और यहूदिया के मसीहियों ने कौन-सी प्रकाश-कौंधें प्राप्त कीं?

      १९ इब्रानियों के नाम अपनी पत्री लिखने के द्वारा, पौलुस ने यरूशलेम और यहूदिया के प्रारंभिक मसीहियों से प्रकाश-कौंध का संचार किया। कितने प्रभावशाली रूप से उसने मूसा की उपासना-रीति पर मसीही उपासना-रीति की श्रेष्ठता दिखायी! स्वर्गदूतों द्वारा संचार की गयी व्यवस्था का पालन करने के बजाय, मसीहियों को इन स्वर्गदूतीय संदेशवाहकों से कहीं अधिक श्रेष्ठ, परमेश्‍वर के पुत्र द्वारा सर्वप्रथम बताए गए उद्धार में विश्‍वास है। (इब्रानियों २:२-४) मूसा परमेश्‍वर के भवन में मात्र सेवक था। लेकिन, यीशु मसीह पूरे भवन पर अध्यक्षता करता है। मसीह मलिकिसिदक जैसा महायाजक है, और हारून के याजकपद से कहीं अधिक श्रेष्ठ पद रखता है। पौलुस ने यह भी दिखाया कि इस्राएली विश्‍वास और आज्ञाकारिता की कमी के कारण परमेश्‍वर के विश्राम में प्रवेश करने में असमर्थ थे, लेकिन मसीही अपनी विश्‍वसनीयता और आज्ञाकारिता के कारण उसमें प्रवेश करते हैं।—इब्रानियों ३:१-४:११.

      २० फिर, नई वाचा व्यवस्था-वाचा से कहीं अधिक श्रेष्ठ भी है। जैसे कि यिर्मयाह ३१:३१-३४ में ६०० साल पहले भविष्यवाणी की गयी थी, जो लोग नई वाचा में हैं, उनके हृदयों पर परमेश्‍वर की व्यवस्था लिखी हुई है, और वे पापों की सच्ची क्षमा का आनन्द उठाते हैं। एक ऐसे महायाजक के होने के बजाय, जिसे अपने और लोगों के पापों के लिए सालाना बलिदान चढ़ाना पड़ता था, मसीहियों के पास अपने महायाजक के रूप में यीशु मसीह है, जो निष्पाप है और जिसने पापों के लिए एक ही बार बलिदान चढ़ा दिया। अपनी भेंट चढ़ाने के लिए हाथ के बनाए हुए पवित्र स्थान में प्रवेश करने के बजाय, उसने स्वर्ग ही में प्रवेश किया, ताकि वह यहोवा के सामने दिखाई दे। इसके अतिरिक्‍त, मूसा की वाचा व्यवस्था के अधीन जानवरों का बलिदान पूरी तरह से पापों को नहीं मिटा सकता था, नहीं तो वे प्रतिवर्ष नहीं चढ़ाए जाते। लेकिन मसीह का बलिदान, जो एक ही बार चढ़ाया गया वाक़ई पापों को मिटाता है। यह सब महान आत्मिक मन्दिर पर प्रकाश डालता है, जिसके आँगन में आज अभिषिक्‍त शेषजन और “अन्य भेड़ें” सेवा करती हैं।—यूहन्‍ना १०:१६, NW; इब्रानियों ९:२४-२८.

      २१. इस चर्चा ने प्रेरितिक समयों में भजन ९७:११ और नीतिवचन ४:१८ की पूर्ति के बारे में क्या दिखाया है?

      २१ जगह और अधिक उदाहरण देने की अनुमति नहीं देती है, जैसे कि उन प्रकाश-कौंधों के बारे में जो प्रेरित पतरस और शिष्य याकूब तथा यहूदा की पत्रियों में पायी जाती हैं। लेकिन पूर्ववर्ती जानकारी यह दिखाने के लिए पर्याप्त होगी कि प्रेरितिक समयों में भजन ९७:११ और नीतिवचन ४:१८ की उल्लेखनीय पूर्तियाँ हुईं। सत्य प्ररूपों और परछाइयों से पूर्तियों और वास्तविकताओं की ओर आगे बढ़ने लगा।—गलतियों ३:२३-२५; ४:२१-२६.

      २२. प्रेरितों की मृत्यु के बाद क्या हुआ, और अगला लेख क्या दिखाएगा?

      २२ यीशु के प्रेरितों की मृत्यु और पूर्वबताए गए धर्मत्याग के प्रारंभ के बाद, सत्य का प्रकाश बहुत कम हो गया। (२ थिस्सलुनीकियों २:१-११) लेकिन, यीशु की प्रतिज्ञा के अनुसार, कई शताब्दियों के बाद स्वामी लौटा और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” को “नौकर चाकरों” को सही समय पर उनका भोजन देते हुए पाया। परिणामस्वरूप, यीशु मसीह ने उस दास को “अपनी सारी संपत्ति” पर सरदार नियुक्‍त कर दिया। (मत्ती २४:४५-४७) उसके बाद कौन-सी प्रकाश-कौंधें हुईं? यह आगामी लेख में चर्चा किया जाएगा।

      [फुटनोट]

      a यहाँ ज़मीन उस वातावरण को सूचित करती है जिसमें एक मसीही, व्यक्‍तित्व के गुणों को विकसित करने का चुनाव करता है।—द वॉचटावर, जून १५, १९८०, पृष्ठ १८-१९ देखिए।

  • प्रकाश-कौंधें—ज़्यादा और कम (भाग एक)
    प्रहरीदुर्ग—1995 | मई 15
    • प्रकाश-कौंधें—ज़्यादा और कम (भाग एक)

      “धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।”—नीतिवचन ४:१८.

      १. सत्य क्यों आहिस्ता-आहिस्ता प्रकट किया गया है?

      यह ईश्‍वरीय बुद्धि का सबूत है कि नीतिवचन ४:१८ के सामंजस्य में, आध्यात्मिक सत्य का प्रकटन आहिस्ता-आहिस्ता प्रकाश-कौंधों के ज़रिए हुआ है। पिछले लेख में, हमने देखा था कि प्रेरितिक समयों में यह पाठ पूरा कैसे हुआ। यदि समस्त शास्त्रीय सत्य एक बार में ही प्रकट कर दिया गया होता, तो वह दोनों, चौंधिया देनेवाला और उलझन में डालनेवाला होता—ठीक वही प्रभाव जो एक अंधेरी गुफा से निकलकर तेज़ धूप में आने पर होता है। इसके अतिरिक्‍त, आहिस्ता-आहिस्ता प्रकट किया गया सत्य मसीहियों के विश्‍वास को सतत रूप से मज़बूत करता है। यह उनकी आशा को पहले से भी ज़्यादा उज्ज्वल करता है और जिस मार्ग पर उन्हें चलना है उसे पहले से भी ज़्यादा स्पष्ट करता है।

      “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास”

      २. यीशु ने सूचित किया कि वह अपने अनुयायियों तक आध्यात्मिक प्रकाश लाने में किसे इस्तेमाल करता, और वह माध्यम किन लोगों से बना है?

      २ प्रेरितिक समयों में यीशु मसीह ने अपने अनुयायियों को प्रकाश की सबसे पहली कौंध देने के लिए अलौकिक माध्यमों को इस्तेमाल करना ठीक समझा। हमारे पास इसके दो उदाहरण हैं: सा.यु. ३३ का पिन्तेकुस्त, और सा.यु. ३६ में कुरनेलियुस का धर्म-परिवर्तन। बाद में, मसीह ने मानवी माध्यम को इस्तेमाल करना ठीक समझा, जैसे कि उसने पूर्वबताया: “वह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास कौन है, जिसे स्वामी ने अपने नौकर चाकरों पर सरदार ठहराया, कि समय पर उन्हें भोजन दे? धन्य है, वह दास, जिसे उसका स्वामी आकर ऐसा ही करते पाए। मैं तुम से सच कहता हूं; वह उसे अपनी सारी संपत्ति पर सरदार ठहराएगा।” (मत्ती २४:४५-४७) यह दास केवल एक व्यक्‍ति नहीं हो सकता क्योंकि इसे तब से आध्यात्मिक भोजन प्रदान करना था जब से पिन्तेकुस्त के दिन मसीही कलीसिया शुरू हुई, और तब तक करना था जब तक स्वामी, अर्थात्‌ यीशु मसीह लेखा लेने के लिए न आए। तथ्य सूचित करते हैं कि यह विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग पृथ्वी पर किसी भी निश्‍चित समय पर सब अभिषिक्‍त मसीहियों को एक समूह के तौर पर समाविष्ट करता है।

      ३. दास वर्ग के पहले सदस्यों में कौन सम्मिलित थे?

      ३ विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग के पहले सदस्यों में कौन सम्मिलित थे? प्रेरित पतरस एक था, जिसने यीशु के आदेश: “मेरी भेड़ों को चरा,” का पालन किया। (यूहन्‍ना २१:१७) मत्ती, जिसने अपने नाम की सुसमाचार-पुस्तक लिखी, और पौलुस, याकूब, और यहूदा, जिन्होंने उत्प्रेरित पत्रियों को लिखा, दास वर्ग के अन्य प्रारंभिक सदस्यों में सम्मिलित थे। प्रेरित यूहन्‍ना, जिसने प्रकाशितवाक्य की पुस्तक, अपनी सुसमाचार-पुस्तक, और अपनी पत्रियों को लिखा, विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग का एक सदस्य भी था। इन मनुष्यों ने यीशु की नियुक्‍ति के अनुसार बाइबल की पुस्तकें लिखीं।

      ४. ‘नौकर चाकर’ कौन हैं?

      ४ यदि समूह के रूप में सभी अभिषिक्‍त जन, चाहे वे पृथ्वी पर कहीं भी क्यों न रहते हों, दास वर्ग के सदस्य हैं, तो ‘नौकर चाकर’ कौन हैं? ये वही अभिषिक्‍त जन हैं जिन्हें एक भिन्‍न दृष्टिकोण से—व्यक्‍तियों के रूप में—देखा गया है। जी हाँ, आध्यात्मिक भोजन देने या उसमें भागीदार होने पर निर्भर करते हुए, वे व्यक्‍तियों के रूप में या तो “दास” वर्ग के होते या ‘नौकर चाकर’ होते। उदाहरण के लिए: जैसे २ पतरस ३:१५, १६ में अभिलिखित है, प्रेरित पतरस पौलुस की पत्रियों का उल्लेख करता है। उन्हें पढ़ते वक़्त, पतरस नौकर चाकरों में से एक होता, जो दास वर्ग के एक प्रतिनिधि के तौर पर पौलुस द्वारा प्रदान किए गए आध्यात्मिक भोजन से पोषित हो रहा है।

      ५. (क) प्रेरितों के बाद की शताब्दियों के दौरान दास को क्या हुआ? (ख) उन्‍नींसवीं शताब्दी के परवर्ती भाग में कौन-से विकास हुए?

      ५ इस सम्बन्ध में, हज़ार साल का परमेश्‍वर का राज्य आ पहुँचा है (अंग्रेज़ी) पुस्तक ने कहा: “स्वामी यीशु मसीह के प्रेरितों की मृत्यु के बाद शताब्दियों तक ‘विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास’ वर्ग कैसे अस्तित्व में रहा और कार्य करता रहा, इसके बारे में हमारे पास एक विशिष्ट ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है। स्पष्टतया ‘दास’ वर्ग की एक पीढ़ी अगली अनुवर्ती पीढ़ी को पोषित करती थी। (२ तीमुथियुस २:२) लेकिन उन्‍नीसवीं शताब्दी के परवर्त्ती भाग में परमेश्‍वर का भय माननेवाले ऐसे व्यक्‍ति थे जो पवित्र बाइबल के आध्यात्मिक भोजन से प्रेम करते थे और जो उस से पोषित होने की इच्छा करते थे . . . बाइबल अध्ययन कक्षाएँ . . . बनायी गयीं और इन्होंने पवित्र शास्त्र की मूल सच्चाइयों की समझ में प्रगति की। इन बाइबल विद्यार्थियों में निष्कपट, निःस्वार्थ जन आध्यात्मिक भोजन के इन अत्यावश्‍यक भागों को दूसरों के साथ बाँटने के लिए लालायित थे। उनमें ‘दास’ की विश्‍वासी आत्मा थी जिसे ‘नौकर चाकरों’ को सही ‘समय पर’ आवश्‍यक आध्यात्मिक ‘भोजन’ देने के लिए नियुक्‍त किया गया था। वे यह समझने में ‘बुद्धिमान’ थे कि सही और उचित समय तब था तथा भोजन को परोसने के लिए सर्वोत्तम साधन क्या थे। उन्होंने उसे परोसने का प्रयास किया।”—पृष्ठ ३४४-५.a

      आधुनिक समयों में प्रारंभिक प्रकाश-कौंधें

      ६. सत्य के क्रमिक प्रकटन के सम्बन्ध में कौन-सा तथ्य सुस्पष्ट रूप से दिखाई देता है?

      ६ एक तथ्य जो उन लोगों के सम्बन्ध में सुस्पष्ट रूप से दिखाई देता है, जिन्हें यहोवा ने आध्यात्मिक प्रकाश की इस क्रमिक बढ़ोतरी को लाने के लिए इस्तेमाल किया है, यह है कि उन्होंने स्वंय कोई भी श्रेय नहीं लिया। वॉच टावर संस्था के पहले अध्यक्ष, सी. टी. रस्सल की मनोवृत्ति यह थी कि प्रभु उनकी साधारण क्षमताओं का प्रयोग करने में प्रसन्‍न था। ऐसे उपनामों के बारे में जिनका प्रयोग करने के लिए उसके दुश्‍मन प्रवृत्त थे, भाई रस्सल ने स्पष्ट रूप से बता दिया कि उसने कभी किसी “रस्सलाईट” से मुलाक़ात नहीं की थी और कि “रस्सलिस्‌म” जैसी कोई चीज़ नहीं थी। सारा श्रेय परमेश्‍वर को गया।

      ७. भाई रस्सल और उसके साथ काम करनेवालों ने क्या प्रमाण दिया कि वे वाक़ई विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास से सम्बद्ध हैं?

      ७ परिणाम को देखने पर, इसमें कोई शंका नहीं हो सकती कि यहोवा की पवित्र आत्मा भाई रस्सल और उससे सम्बद्ध उसके साथियों के प्रयासों को निर्दिष्ट कर रही थी। उन लोगों ने विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास के साथ सम्बद्ध होने का प्रमाण दिया। हालाँकि उस समय के अनेक पादरियों ने यह विश्‍वास करने का दावा किया कि बाइबल परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन है और कि यीशु परमेश्‍वर का पुत्र है, उन्होंने त्रियेक, मानव प्राण के अमरत्व और अनन्त यातना जैसे झूठे, बाबुल के सिद्धान्तों का समर्थन किया। यीशु की प्रतिज्ञा के सामंजस्य में, इसका श्रेय सचमुच पवित्र आत्मा को दिया जाना चाहिए कि भाई रस्सल और उसके साथियों के विनीत प्रयासों के कारण सत्य पहले से कहीं ज़्यादा चमका। (यूहन्‍ना १६:१३) उन अभिषिक्‍त बाइबल विद्यार्थियों ने प्रमाण दिया कि वे वाक़ई विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास वर्ग का भाग हैं, जिनकी नियुक्‍ति स्वामी के नौकर चाकरों को आध्यात्मिक भोजन प्रदान करना है। अभिषिक्‍त जनों को इकट्ठा करने में उनके प्रयास बड़े सहायक थे।

      ८. यहोवा, बाइबल, यीशु मसीह, और पवित्र आत्मा के बारे में कौन-से मूलभूत तथ्यों को बाइबल विद्यार्थियों ने स्पष्ट रूप से समझा?

      ८ यह देखना उल्लेखनीय है कि यहोवा ने पवित्र आत्मा के ज़रिए कितना अधिक इन प्रारंभिक बाइबल विद्यार्थियों पर प्रकाश-कौंध से अनुग्रह किया है। सबसे पहले, उन्होंने दृढ़तापूर्वक स्थापित किया कि सृष्टिकर्ता अस्तित्व में है और कि उसका एक बेजोड़ नाम है यहोवा। (भजन ८३:१८; रोमियों १:२०) उन्होंने देखा कि यहोवा के चार मूलभूत गुण हैं—शक्‍ति, न्याय, बुद्धि, और प्रेम। (उत्पत्ति १७:१; व्यवस्थाविवरण ३२:४; रोमियों ११:३३; १ यूहन्‍ना ४:८) इन अभिषिक्‍त मसीहियों ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया कि बाइबल परमेश्‍वर का उत्प्रेरित वचन है और सत्य है। (यूहन्‍ना १७:१७; २ तीमुथियुस ३:१६, १७) इसके अतिरिक्‍त, उन्होंने विश्‍वास किया कि परमेश्‍वर का पुत्र, यीशु मसीह सृष्ट किया गया था और कि उसने अपना जीवन सारी मानवजाति के लिए छुड़ौती के रूप में दे दिया। (मत्ती २०:२८; कुलुस्सियों १:१५) ऐसा देखा गया कि पवित्र आत्मा परमेश्‍वर की सक्रिय शक्‍ति है, न कि त्रियेक का तीसरा व्यक्‍ति।—प्रेरितों २:१७.

      ९. (क) बाइबल विद्यार्थियों ने पाप के कारण मनुष्य के स्वभाव और बाइबल में दी गयी प्रत्याशाओं के बारे में कौन-से सत्य को स्पष्ट रूप से समझा? (ख) यहोवा के सेवकों ने और कौन-सी अन्य सच्चाइयों को स्पष्ट रूप से देखा?

      ९ बाइबल विद्यार्थियों ने स्पष्ट रूप से देखा कि मनुष्य में एक अमर प्राण नहीं है बल्कि वह ख़ुद एक मरणशील प्राण है। उन्होंने समझा कि “पाप की मजदूरी तो मृत्यु है,” अनन्त यातना नहीं और जलते हुए नरक जैसी कोई जगह नहीं है। (रोमियों ५:१२; ६:२३; उत्पत्ति २:७; यहेजकेल १८:४) इसके अतिरिक्‍त, उन्होंने स्पष्ट रूप से देखा कि विकासवाद न केवल ग़ैर-शास्त्रीय है बल्कि पूर्ण रूप से बिना वास्तविक आधार के है। (उत्पत्ति, अध्याय १ और २) उन्होंने यह भी समझा कि बाइबल दो प्रत्याशाएँ प्रस्तुत करती है—मसीह के १,४४,००० अभिषिक्‍त पदचिन्ह अनुयायियों के लिए एक स्वर्गीय प्रत्याशा और ‘अन्य भेड़ों’ की एक अनगिनत “बड़ी भीड़” के लिए एक परादीस पृथ्वी। (प्रकाशितवाक्य ७:९; १४:१; यूहन्‍ना १०:१६, NW) उन प्रारंभिक बाइबल विद्यार्थियों ने समझा कि पृथ्वी सर्वदा के लिए बनी रहेगी और जलाई नहीं जाएगी, जैसा कि अनेक धर्मों द्वारा सिखाया जाता है। (सभोपदेशक १:४; लूका २३:४३) उन्होंने यह भी सीखा कि मसीह की वापसी अदृश्‍य होगी और कि वह तब राष्ट्रों पर न्याय कार्यान्वित करेगा और एक पार्थिव परादीस की शुरूआत करेगा।—प्रेरितों १०:४२; रोमियों ८:१९-२१; १ पतरस ३:१८.

      १०. बपतिस्मा, पादरी-अयाजक वर्ग भिन्‍नता, और मसीह की मृत्यु के स्मारक के बारे में बाइबल विद्यार्थियों ने कौन-सी सच्चाइयाँ सीखीं?

      १० बाइबल विद्यार्थियों ने सीखा कि शास्त्रीय बपतिस्मा शिशुओं पर पानी छिड़कना नहीं है बल्कि मत्ती २८:१९, २० में दिए गए यीशु के आदेशानुसार, यह ऐसे विश्‍वासियों का निमज्जन है, जिन्हें सिखाया गया है। उन्होंने यह देखा कि पादरी-अयाजक वर्ग की भिन्‍नता के लिए कोई शास्त्रीय आधार नहीं है। (मत्ती २३:८-१०) इसकी विषमता में, सभी मसीहियों को सुसमाचार के प्रचारक होना है। (प्रेरितों १:८) बाइबल विद्यार्थियों ने समझा कि मसीह की मृत्यु के स्मारक को निसान १४ के दिन, हर साल केवल एक बार मनाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्‍त, उन्होंने देखा कि ईस्टर एक विधर्मी त्योहार है। इसके अतिरिक्‍त, वे अभिषिक्‍त जन इतने आश्‍वस्त थे कि परमेश्‍वर उनके कार्य का समर्थन कर रहा था कि उन्होंने कभी चन्दा इकट्ठा नहीं किया। (मत्ती १०:८) प्रारंभिक समयों से, उन्होंने समझा कि मसीहियों को बाइबल सिद्धान्तों के अनुसार जीना ज़रूरी है, जिसमें परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा के फल विकसित करना सम्मिलित है।—गलतियों ५:२२, २३.

      प्रकाश की बढ़ती कौंधें

      ११. मसीही कि नियुक्‍ति पर तथा भेड़ और बकरियों के दृष्टान्त पर कौन-सा प्रकाश चमका?

      ११ विशेषकर १९१९ से यहोवा के सेवकों को प्रकाश की बढ़ती कौंधों की आशिष मिली है। वर्ष १९२२ में सीडर पॉइंट अधिवेशन में क्या ही तेज़ प्रकाश-कौंध चमकी, जब वॉच टावर संस्था के दूसरे अध्यक्ष, जे. एफ़. रदरफर्ड ने अत्यधिक रूप से ज़ोर दिया कि यहोवा के सेवकों की मुख्य बाध्यता है ‘राजा और उसके राज्य की घोषणा करना, घोषणा करना, घोषणा करना’! उसके ठीक अगले साल, भेड़ और बकरियों के दृष्टान्त पर तेज़ प्रकाश चमका। यह देखा गया कि इस भविष्यवाणी की पूर्ति वर्तमान प्रभु के दिन में होनी थी, न कि भविष्य में सहस्राब्दि के दौरान जैसा कि पहले सोचा गया था। सहस्राब्दि के दौरान, मसीह के भाई बीमार नहीं होंगे, न ही वे क़ैद किए जाएँगे। इसके अलावा, सहस्राब्दि के अन्त में, यहोवा परमेश्‍वर, न कि यीशु मसीह, न्याय करेगा।—मत्ती २५:३१-४६.

      १२. अरमगिदोन के बारे में कौन-सी प्रकाश-कौंध थी?

      १२ वर्ष १९२६ में एक और चमकदार प्रकाश-कौंध ने प्रकट किया कि अरमगिदोन के युद्ध को एक सामाजिक क्रांति नहीं होना था, जैसा कि बाइबल विद्यार्थियों ने कभी सोचा था। इसके बजाय, यह एक ऐसा युद्ध होगा जिसमें यहोवा अपनी शक्‍ति को इतने स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करेगा कि सब लोग क़ायल हो जाएँगे कि वह परमेश्‍वर है।—प्रकाशितवाक्य १६:१४-१६; १९:१७-२१.

      बड़ा-दिन—एक विधर्मी त्योहार

      १३. (क) बड़े-दिन के उत्सव पर क्या प्रकाश डाला गया था? (ख) जन्मदिन मनाना क्यों बन्द कर दिया गया? (फुटनोट सम्मिलित कीजिए।)

      १३ उसके कुछ समय पश्‍चात्‌, एक प्रकाश-कौंध के कारण बाइबल विद्यार्थियों ने बड़ा-दिन (क्रिसमस) मनाना बन्द कर दिया। उस समय से पहले विश्‍वभर में बाइबल विद्यार्थियों द्वारा बड़ा-दिन हमेशा मनाया जाता था, और ब्रुकलिन मुख्यालय में इसका उत्सव बहुत आनन्दमय अवसर होता था। लेकिन यह तब समझा गया कि दिसम्बर २५ को मनाना वास्तव में विधर्मी था और धर्मत्यागी मसीहीजगत द्वारा चुना गया था ताकि विधर्मियों को धर्म-परिवर्तित करना आसान हो। इसके अतिरिक्‍त, यह पाया गया था कि यीशु जाड़े में पैदा नहीं हो सकता था, चूँकि उसके जन्म के वक़्त, चरवाहे खेत में अपने झुण्ड को चरा रहे थे—एक ऐसा काम जो वे दिसम्बर के अन्त में रात को नहीं कर रहे होते। (लूका २:८) इसके बजाय, शास्त्र सूचित करते हैं कि यीशु लगभग अक्‍तूबर १ को पैदा हुआ था। बाइबल विद्यार्थियों ने यह भी समझा कि जो तथा-कथित बुद्धिमान मनुष्य यीशु के जन्म के लगभग दो साल बाद उससे भेंट करने आए थे, वे विधर्मी मजूसी थे।b

      एक नया नाम

      १४. ‘बाइबल विद्यार्थी’ नाम यहोवा के लोगों का उचित रूप से प्रतिनिधित्व क्यों नहीं कर रहा था?

      १४ वर्ष १९३१ में सत्य की एक तेज़ कौंध ने उन बाइबल विद्यार्थियों पर एक उचित शास्त्रीय नाम प्रकट किया। यहोवा के लोग समझ चुके थे कि वे कोई दूसरा उपनाम नहीं स्वीकार सकते थे जो दूसरों ने उन्हें दिया था, जैसे कि रस्सलाईट, मिल्लेनियल डॉनिस्टस्‌, और “नो हॆल्लर्स्‌।”c लेकिन वे यह ख़ुद भी समझने लगे कि जो नाम उन्होंने ख़ुद ले लिया था—अन्तर्राष्ट्रीय बाइबल विद्यार्थी—वह उनका उचित रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा था। वे मात्र बाइबल विद्यार्थियों से कहीं ज़्यादा थे। इसके अलावा, कितने अन्य लोग थे जो बाइबल के विद्यार्थी थे लेकिन बाइबल विद्यार्थियों के समान बिलकुल भी न थे।

      १५. वर्ष १९३१ में बाइबल विद्यार्थियों ने कौन-सा नाम अपनाया, और यह क्यों उपयुक्‍त है?

      १५ बाइबल विद्यार्थियों को एक नया नाम कैसे मिला? कई सालों से द वॉच टावर यहोवा के नाम को विशिष्ट करती आई थी। इसलिए, यह सबसे उपयुक्‍त था कि बाइबल विद्यार्थी उस नाम को अपनाएँ जो यशायाह ४३:१० में पाया जाता है: “यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो, जिन्हें मैं ने इसलिये चुना है कि समझकर मेरी प्रतीति करो और यह जान लो कि मैं वही हूं। मुझ से पहिले कोई ईश्‍वर न हुआ और न मेरे बाद भी कोई होगा।”

      दोषनिवारण और “बड़ी भीड़”

      १६. पुनःस्थापना की भविष्यवाणियाँ पैलिस्टाइन को शारीरिक यहूदियों की वापसी पर क्यों लागू नहीं हो सकतीं, लेकिन वे किन पर लागू होती हैं?

      १६ वर्ष १९३२ में वॉच टावर संस्था द्वारा प्रकाशित दोषनिवारण के दूसरे खण्ड में, एक प्रकाश-कौंध ने प्रकट किया कि यशायाह, यिर्मयाह, यहेजकेल, और अन्य भविष्यवक्‍ताओं द्वारा अभिलिखित पुनःस्थापना की भविष्यवाणियाँ शारीरिक यहूदियों पर लागू नहीं होतीं (जैसे पहले सोचा गया था), जो पैलिस्टाइन को अविश्‍वास में और राजनैतिक अभिप्रेरणाओं के साथ लौट रहे थे। इसके बजाय, पुनःस्थापना की इन भविष्यवाणियों की एक छोटी पूर्ति तब हुई थी जब सा.यु.पू. ५३७ में यहूदी बाबुल की बन्धुआई से लौटे। इनकी महान पूर्ति आध्यात्मिक इस्राएल की रिहाई और १९१९ से होनेवाली पुनःस्थापना में और इसके परिणामस्वरूप आध्यात्मिक परादीस की समृद्धि में हुई जिसका आनन्द आज यहोवा के सच्चे सेवक उठा रहे हैं।

      १७, १८. (क) समय आने पर, एक प्रकाश-कौंध के ज़रिए किस बात को यहोवा का मुख्य उद्देश्‍य दिखाया गया? (ख) वर्ष १९३५ में प्रकाशितवाक्य ७:९-१७ के बारे में कौन-सी प्रकाश-कौंध हुई?

      १७ समय आने पर, प्रकाश-कौंधों ने प्रकट किया कि यहोवा का मुख्य उद्देश्‍य प्राणियों का उद्धार नहीं, बल्कि अपनी सर्वसत्ता का दोषनिवारण करना था। ऐसा देखा गया कि बाइबल का सबसे महत्त्वपूर्ण विषय छुड़ौती नहीं बल्कि राज्य था, क्योंकि यह यहोवा की सर्वसत्ता का दोषनिवारण करेगा। वह क्या ही प्रकाश-कौंध थी! समर्पित मसीही ख़ुद स्वर्ग जाने के लिए अब और मुख्यतः चिन्तित नहीं थे।

      १८ वर्ष १९३५ में प्रकाश की एक तेज़ कौंध ने प्रकट किया कि प्रकाशितवाक्य ७:९-१७ में उल्लिखित बड़ी भीड़ एक द्वितीय स्वर्गीय वर्ग नहीं था। ऐसा सोचा गया था कि उन आयतों में उल्लेख किए गए जन, अभिषिक्‍त जनों में से कुछ लोग थे जो पूरी तरह से विश्‍वासी नहीं रहे थे और इसलिए यीशु मसीह के साथ राजा और याजक के रूप में शासन करते हुए सिंहासनों पर बैठने के बजाय सिंहासन के सामने खड़े थे। लेकिन अंशतः विश्‍वासी रहने की धारणा वास्तविक नहीं है। एक व्यक्‍ति या तो विश्‍वासी हो सकता है या अविश्‍वासी। सो यह देखा गया कि इस भविष्यवाणी ने सब राष्ट्रों से उस अनगिनत बड़ी भीड़ का ज़िक्र किया जिन्हें अब इकट्ठा किया जा रहा है और जिनकी आशा पार्थिव है। वे मत्ती २५:३१-४६ की ‘भेड़’ हैं और यूहन्‍ना १०:१६ (NW) की “अन्य भेड़ें।”

      क्रूस—एक मसीही प्रतीक नहीं

      १९, २०. क्रूस सच्ची मसीहियत का प्रतीक क्यों नहीं हो सकता?

      १९ अनेक सालों तक बाइबल विद्यार्थियों ने क्रूस को मसीहियत के प्रतीक के रूप में प्रमुख बनाया। यहाँ तक कि उनके पास एक “क्रॉस-एण्ड-क्रॉउन” पिन था। हिन्दी बाइबल के अनुसार यीशु ने अपने अनुयायियों को अपना “क्रूस” उठाने के लिए कहा, और अनेक लोग यह विश्‍वास करने लगे कि उसे क्रूस पर मार दिया गया था। (मत्ती १६:२४; २७:३२) दशकों तक यह प्रतीक वॉच टावर पत्रिका के मुखपृष्ठ पर भी प्रकाशित होता था।

      २० वर्ष १९३६ में संस्था द्वारा प्रकाशित रिचॆस्‌ पुस्तक ने स्पष्ट किया कि यीशु मसीह को, क्रूस पर नहीं बल्कि एक सीधे खम्भे, या स्तंभ पर मारा गया था। एक अधिकारी के अनुसार, हिन्दी बाइबल में “क्रूस” अनुवाद किया गया यूनानी शब्द (स्टाउरोस) “मुख्यतः, एक सीधे खम्भे या स्तंभ का संकेत करता है। [इसे] गिरजे के दो दण्डीय क्रूस की आकृति से अलग किया जाना चाहिए। . . . परवर्ती का उद्‌गम प्राचीन कसदी में हुआ था, और ईश्‍वर तम्मूज के एक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया जाता था।” पूजा किए जाने के बजाय, जिस साधन पर यीशु को मारा गया था उसे घृणित समझा जाना चाहिए।

      २१. आगामी लेख में किस बात पर विचार किया जाएगा?

      २१ ज़्यादा प्रकाश-कौंधों का और उनका जिन्हें कम समझा जा सकता है, दोनों के अतिरिक्‍त उदाहरण हैं। इनकी चर्चा के लिए, कृपया आगामी लेख देखिए।

      [फुटनोट]

      a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।

      b समय आने पर, यह देखा गया कि यदि उस सबसे महत्त्वपूर्ण जन्म को, जो कभी हुआ, मनाया नहीं जा सकता, तो हमें किसी भी जन्मदिन को नहीं मनाना चाहिए। इसके अलावा, न इस्राएली ना ही प्रारंभिक मसीही जन्मदिन मनाया करते थे। बाइबल केवल दो जन्मदिनों का ज़िक्र करती है, एक फ़िरौन का और दूसरा हेरोदेस अन्तिपास का। प्रत्येक उत्सव पर एक हत्या का कलंक लगा। यहोवा के साक्षी जन्मदिन नहीं मनाते क्योंकि इन प्रथाओं के विधर्मी उद्‌गम हैं और जिनका जन्मदिन है उन्हें अधिक सम्मान देने के लिए प्रवृत्त हैं।—उत्पत्ति ४०:२०-२२; मरकुस ६:२१-२८.

      c यह एक ग़लती थी जो मसीहीजगत के अनेक पंथों ने की। लूथरन एक ऐसा उपनाम था जो मार्टिन लूथर के दुश्‍मनों ने उसके अनुयायियों को दिया, जिन्होंने तब इसे अपना लिया। उसी तरह, बैपटिस्टस्‌ ने उस उपनाम को अपनाया जो बाहरी लोगों ने उन्हें दिया था क्योंकि वे निमज्जन द्वारा बपतिस्मे का प्रचार करते थे। कुछ इसी तरह, मेथोडिस्ट लोगों ने वह नाम अपनाया जो उन्हें एक बाहरी व्यक्‍ति ने दिया था। सोसाइटी ऑफ फ्रेंडस्‌ कैसे क्वेकर्स्‌ कहलाने लगी, इसके सम्बन्ध में द वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया कहती है: “शब्द क्वेकर मूलतः फॉक्स [संस्थापक] की बेइज़्ज़ती के लिए था, जिसने एक अंग्रेज़ न्यायाधीश से ‘प्रभु के वचन पर काँपने’ के लिए कहा। न्यायाधीश ने फॉक्स को ‘क्वेकर’ कहा।”

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