यहोवा का प्रेममय पारिवारिक प्रबंध
“मैं इसी कारण उस पिता के साम्हने घुटने टेकता हूं, जिस से स्वर्ग और पृथ्वी पर, हर एक घराने का नाम रखा जाता है।”—इफिसियों ३:१४, १५.
१, २. (क) यहोवा ने किस उद्देश्य के लिए पारिवारिक इकाई की सृष्टि की? (ख) यहोवा के प्रबंध में आज परिवार का क्या भाग होना चाहिए?
यहोवा ने पारिवारिक इकाई की सृष्टि की। इसके द्वारा, उसने संगति, सहारे, या घनिष्ठता की मानवीय ज़रूरत को संतुष्ट करने से बढ़कर अधिक किया। (उत्पत्ति २:१८) परिवार वह ज़रिया था जिसके द्वारा पृथ्वी को भर देने का परमेश्वर का शानदार उद्देश्य पूरा होना था। उसने पहले विवाहित दम्पति को कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो।” (उत्पत्ति १:२८) आदम और हव्वा तथा उनके वंशज को बहुसंख्या में पैदा होनेवाली संतानों के लिए परिवार का वह स्नेह और पालन-पोषण का वातावरण लाभदायक साबित होता।
२ परन्तु, उस पहली दम्पति ने अनाज्ञाकारिता का मार्ग चुना—अपने और अपनी संतानों के लिए सर्वनाशी परिणाम के साथ। (रोमियों ५:१२) इस प्रकार, परमेश्वर ने जो चाहा था, आज पारिवारिक जीवन उसकी विकृति है। फिर भी, मसीही समाज की बुनियादी इकाई के तौर पर, यहोवा के प्रबन्ध में परिवार का अभी भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। ऐसे कहने का यह अर्थ नहीं कि हम हमारे बीच में बहुत सारे अविवाहित मसीहियों द्वारा किये गये अच्छे काम के प्रति कम मूल्यांकन दिखाते हैं। इसके बजाय, पूरे मसीही संगठन के आध्यात्मिक स्वास्थ्य की ओर परिवारों द्वारा भी दिए गए उस बड़े सहयोग को हम स्वीकार करते हैं। मज़बूत परिवारों से मज़बूत कलीसियाएँ बनती हैं। परन्तु, आपका परिवार आज के दबावों के आगे कैसे सफ़ल हो सकता है? आइये, जवाब के लिए हम जांच करें कि पारिवारिक प्रबंध के सम्बन्ध में बाइबल क्या कहती है।
बाइबल के समय में परिवार
३. पितृतंत्रीय परिवार में पति और पत्नी क्या भूमिका अदा करते थे?
३ आदम और हव्वा दोनों ने परमेश्वर के सरदारी प्रबन्ध को ठुकराया। परन्तु नूह, इब्राहीम, इसहाक, याकूब, और अय्यूब, जैसे विश्वासी व्यक्तियों ने उचित रीति से पारिवारिक सिर के तौर पर, अपना स्थान लिया। (इब्रानियों ७:४) पितृतंत्रीय परिवार एक छोटे सरकार की तरह था, जहाँ पिता ही धार्मिक अगुआ, शिक्षक, और न्यायी का काम करता था। (उत्पत्ति ८:२०; १८:१९) पत्नियों की भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, दासियों के तौर पर नहीं बल्कि सहायक पारिवारिक प्रबंधकों के तौर पर।
४. मूसा की व्यवस्था के अधीन पारिवारिक जीवन कैसे बदला, परन्तु माता-पिता कौनसी भूमिका अदा करते रहे?
४ जब इस्राएल सा.यु.पू. १५१३ में एक जाति बनी, तब पारिवारिक नियम मूसा द्वारा दिये गये राष्ट्रीय व्यवस्था के अधीन हो गया। (निर्गमन २४:३-८) निर्णय करने का अधिकार, यहाँ तक कि जीवन और मरण के भी मामलों में, अब नियुक्त न्यायियों को दिया गया था। (निर्गमन १८:१३-२६) लेवीय याजक-समाज ने उपासना के बलिदान सम्बन्धी कार्यों को संभाल लिया। (लैव्यव्यवस्था १:२-५) फिर भी, पिता की एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। मूसा ने पिताओं को उपदेश दिया: “ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” (व्यवस्थाविवरण ६:६, ७) माताओं का काफ़ी प्रभाव था। नीतिवचन १:८ युवकों को आज्ञा देती है: “हे मेरे पुत्र, अपने पिता की शिक्षा पर कान लगा, और अपनी माता की शिक्षा को न तज।” जी हाँ, अपने पति के अधिकार के प्रबन्ध के अन्दर, इब्रानी पत्नी पारिवारिक नियम को बना सकती—और लागू कर सकती थी। वृद्ध होने के बाद भी उसे अपने बच्चों से आदर मिलना चाहिये था।—नीतिवचन २३:२२.
५. मूसा की व्यवस्था ने पारिवारिक प्रबंध में बच्चों के स्थान की व्याख्या कैसे की?
५ परमेश्वर की व्यवस्था ने बच्चों के स्थान की भी स्पष्ट रूप से व्याख्या की। व्यवस्थाविवरण ५:१६ ने कहा: “अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जैसे कि तेरे परमेश्वर यहोवा ने तुझे आज्ञा दी है; जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए, और तेरा भला हो।” अपने माता-पिता के लिए निरादर, मूसा की व्यवस्था के अधीन एक सबसे गम्भीर अपराध था। (निर्गमन २१:१५, १७) “कोई क्यों न हो जो अपने पिता वा माता को शाप दे,” व्यवस्था ने कहा, “वह निश्चय मार डाला जाए।” (लैव्यव्यवस्था २०:९) अपने माता-पिता के विरुद्ध विद्रोह करना परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह करने के बराबर था।
मसीही पतियों की भूमिका
६, ७. इफिसियों ५:२३-२९ में दिए गए पौलुस के शब्द उसके पहली-सदी के पाठकों को क्यों क्रांतिकारी प्रतीत हुए?
६ मसीही धर्म ने पारिवारिक प्रबन्ध, ख़ासकर पति की भूमिका पर, रोशनी डाली। मसीही कलीसिया के बाहर, पहली सदी में यह आम बात थी कि पति अपनी पत्नियों के साथ कठोर, अत्याचारी व्यवहार करें। औरतों को बुनियादी अधिकार और सम्मान नहीं दिया जाता था। दी ऍकस्पॉसिटर्ज़ बाइबल (The Expositor’s Bible) कहती है: “एक सुसंस्कृत यूनानी आदमी बच्चे पैदा करने के लिए पत्नी लेता था। पत्नी का अधिकार उसकी लैंगिक अभिलाषा पर कोई रोक नहीं लगा सकता था। विवाह के अनुबन्ध में प्रेम था ही नहीं। . . . दासी का कोई अधिकार नहीं था। उसका देह उसके मालिक के वश में था।”
७ ऐसे वातावरण में, पौलुस ने इफिसियों ५:२३-२९ के शब्दों को लिखा: “पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है; और आप ही देह का उद्धारकर्त्ता है। . . . हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया . . . पति अपनी अपनी पत्नी से अपनी देह के समान प्रेम रखे, जो अपनी पत्नी से प्रेम रखता है, वह अपने आप से प्रेम रखता है। क्योंकि किसी ने कभी अपने शरीर से बैर नहीं रखा बरन उसका पालन-पोषण करता है।” पहली सदी के पाठकों के लिए ये शब्द क्रांतिकारी से कुछ कम नहीं थीं। दी ऍकस्पॉसिटर्ज़ बाइबल (The Expositor’s Bible) कहती है: “उस समय के दुराचारी नैतिक आचार की तुलना में, मसीही धर्म में और कुछ भी इतना अनूठा और सख़्त प्रतीत नहीं होता था, जितना कि विवाह के विषय में मसीही दृष्टिकोण। . . . [इससे] मानवजाति के लिए एक नया युग शुरू हुआ।”
८, ९. आदमियों में औरतों के प्रति कौनसी हानिकर मनोवृत्ति आम है, और यह क्यों ज़रूरी है कि मसीही आदमी ऐसे दृष्टिकोणों को ठुकराएं?
८ पतियों के लिए बाइबल की सलाह आज कुछ कम क्रांतिकारी नहीं है। स्त्री मुक्ति की इतनी बातों के बावजूद, बहुत से आदमी अभी भी औरतों को सिर्फ़ लैंगिक संतुष्टि की वस्तु समझते हैं। इस काल्पनिक कथा को मानकर कि औरतों पर हावी होना, उन्हें वश में रखना, या धमकाना, उन्हें अच्छा लगता है, बहुतेरे पुरुष अपनी पत्नियों से शारीरिक और भावात्मक दुर्व्यवहार करते हैं। यह कितनी बदनामी की बात होगी यदि एक मसीही आदमी सांसारिक विचारों के धोखे में आकर अपनी पत्नी से दुर्व्यवहार करे! “मेरा पति एक सहायक सेवक था और जन भाषण देता था,” एक मसीही औरत कहती है। फिर भी, वह प्रकट करती है, “मैं पत्नी पिटाई की शिकार थी।” स्पष्टतः, ऐसा व्यवहार परमेश्वर के प्रबन्ध के अनुकूल नहीं था। वह आदमी दुर्लभ अपवाद था; उसे अपने क्रोध को वश में करने के लिए सहायता मांगने की ज़रूरत थी यदि वह परमेश्वर का अनुग्रह पाना चाहता था।—गलतियों ५:१९-२१.
९ पतियों को परमेश्वर की आज्ञा है कि वे अपनी पत्नियों से अपनी देह के समान प्रेम करें। ऐसा करने से इन्कार करना परमेश्वर के ही प्रबन्ध के विरुद्ध विद्रोह करना होगा और यह एक व्यक्ति का परमेश्वर के साथ रिश्ते को ख़राब कर सकता है। प्रेरित पतरस के शब्द स्पष्ट हैं: “हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो, . . . जिस से तुम्हारी प्रार्थनाएं रुक न जाएं।” (१ पतरस ३:७) एक व्यक्ति का अपने पत्नी के साथ कठोरता से व्यवहार करने से पत्नी की आध्यात्मिकता तथा उनकी संतानों की आध्यात्मिकता पर भी विनाशक प्रभाव पड़ सकता है।
१०. पति किन कुछ तरीक़ों से सरदारी को मसीह-समान ढंग से प्रयोग कर सकते हैं?
१० पतियों, आपका परिवार आपकी सरदारी के अधीन उन्नति करेगा, यदि आप इसे मसीह-समान तरीक़े से प्रयोग करेंगे। मसीह कभी भी कठोर या अपमानजनक नहीं था। इसके विपरीत, वह कह सकता था: “मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे।” (मत्ती ११:२९) क्या आपका परिवार आपके बारे में ऐसा कह सकता है? मसीह ने अपने शिष्यों से मित्रों की तरह व्यवहार किया और उन पर विश्वास रखा। (यूहन्ना १५:१५) क्या आप अपनी पत्नी को ऐसा ही सम्मान देते हैं? बाइबल ने “भली पत्नी” के विषय में कहा: “उसके पति के मन में उसके प्रति विश्वास है।” (नीतिवचन ३१:१०, ११) इसका अर्थ है उसे कुछ आज़ादी और छूट देना, अकारण पाबंदियों द्वारा उस पर रोक न लगाना। इसके अतिरिक्त, यीशु ने अपने शिष्यों को अपनी भावनाओं तथा विचारों को प्रकट करने का प्रोत्साहन दिया। (मत्ती ९:२८; १६:१३-१५) क्या आप अपनी पत्नी के साथ ऐसा ही करते हैं? या आप सच-सच प्रकट किये असहमति को अपने अधिकार के विरुद्ध चुनौती के रूप में देखते हैं? अपनी पत्नी की भावनाओं की उपेक्षा करने के बजाय उन पर विचार करने से, आप असल में अपनी सरदारी के लिए उसका आदर बढ़ाते हैं।
११. (क) पिता अपने बच्चों की आध्यात्मिक ज़रूरतों की देख-भाल कैसे कर सकते हैं? (ख) परिवारों की देख-भाल करने में प्राचीनों और सहायक सेवकों को क्यों एक अच्छा उदाहरण पेश करना चाहिए?
११ यदि आप एक पिता हैं, तो आप से यह भी मांग की जाती है कि आप अपने बच्चों की आध्यात्मिक, भावात्मक, और शारीरिक ज़रूरतों पर ध्यान देने में अगुवाई करें। अपने परिवार के लिए एक अच्छा आध्यात्मिक नित्यक्रम रखना इसमें शामिल होता है: उनके साथ क्षेत्र सेवा में काम करना, गृह बाइबल अध्ययन संचालित करना, प्रत्येक दिन के शास्त्रपाठ पर विचार-विमर्श करना। दिलचस्पी की बात है, बाइबल दिखाती है कि एक प्राचीन या एक सहायक सेवक को “अपने घर का अच्छा प्रबन्ध” करनेवाला होना चाहिए। इस प्रकार इन पदों पर सेवा करनेवाले व्यक्तियों को आदर्श पारिवारिक सिर होना चाहिए। जबकि हो सकता है कि कलीसिया की ज़िम्मेदारियों का उन पर भारी बोझ है, तो भी उन्हें अपने परिवारों को प्राथमिकता देनी चाहिए। पौलुस ने दिखाया क्यों: “जब कोई अपने घर ही का प्रबन्ध करना न जानता हो, तो परमेश्वर की कलीसिया की रखवाली क्योंकर करेगा?”—१ तीमुथियुस ३:४, ५, १२.
समर्थन देनेवाली मसीही पत्नियाँ
१२. मसीही प्रबंध में पत्नी कौनसी भूमिका अदा करती है?
१२ क्या आप एक मसीही पत्नी हैं? तब तो आपको भी पारिवारिक प्रबन्ध में एक अत्यावश्यक भूमिका अदा करना है। मसीही पत्नियों को उपदेश दिया जाता है कि वे “अपने पतियों और बच्चों से प्रीति रखें। और संयमी, पतिव्रता, घर का कारबार करनेवाली, भली और अपने अपने पति के आधीन रहनेवाली हों।” (तीतुस २:४, ५) इसलिए आपको अपने परिवार के लिए एक साफ़ और सुखद घर बनाये रखते हुए, एक आदर्श गृह-स्वामिनी बनने का प्रयत्न करना चाहिए। घरेलू काम समय-समय पर थकाऊ हो सकता है, परन्तु यह न तो नीचा काम है और न तुच्छ। पत्नी होने के नाते, आप ‘घरबार संभालती’ हैं और इस विषय में आपको शायद काफ़ी हद तक छूट मिलती है। (१ तीमुथियुस ५:१४) उदाहरण के लिए, “भली पत्नी,” ने घरेलू चीज़ों की खरिदारी की, भूसम्पत्ति के सौदे किये, और यहाँ तक कि एक छोटा सा कारोबार संभालकर आमदनी को बढ़ाया। तो यह आश्चर्य की बात नहीं कि उसने अपने पति की प्रशंसा प्राप्त की! (नीतिवचन, अध्याय ३१) निस्संदेह, उसका सिर होने के नाते उसके पति द्वारा दिये गये बहिर्रेखा के अन्दर ही ऐसी पहल की गई थीं।
१३. (क) कई औरतों के लिए अधीनता क्यों कठिन हो सकता है? (ख) मसीही औरतों का अपने आप को अपने पतियों के अधीन रखना क्यों लाभदायक है?
१३ परन्तु, अपने आपको अपने पति के अधीन करना शायद हर समय आसान न हो। सभी पुरुष आदर के योग्य नहीं बनते हैं। और आप शायद वित्त-व्यवस्था को संभालने, योजना करने, या सुव्यवस्थित करने के मामलों में काफ़ी योग्य हों। शायद आप लौकिक नौकरी करती हैं और पारिवारिक आमदनी में आपका बड़ा योगदान है। या शायद आपने अतीत में किसी तरीक़े से पुरुष की तानाशाही का कष्ट उठाया है और अब आपको पुरुष के अधीन होना कठिन लगता है। फिर भी, अपने पति के लिए “गहरा सम्मान,” या “भय” दिखाना, परमेश्वर की सरदारी के लिए आपके आदर को प्रदर्शित करता है। (इफिसियों ५:३३, NW; १ कुरिन्थियों ११:३) अधीनता आपके परिवार की सफ़लता के लिए भी अत्यावश्यक है; यह आपकी सहायता करेगी कि आप अपने विवाह को बेकार के तनाव और खिंचाव का विषय न बनाए।
१४. एक पत्नी क्या कर सकती है यदि वह अपने पति द्वारा किए निर्णय से असहमत है?
१४ परन्तु, क्या इसका यह अर्थ हुआ कि यदि आप महसूस करती हैं कि आपका पति आपके परिवार के बेहतरी के विरुद्ध निर्णय ले रहा है, तब आप चुप रहें? ज़रूरी नहीं। इब्राहीम की पत्नी सारा चुप नहीं रही जब उसने अपने पुत्र, इसहाक, के हित के प्रति ख़तरा देखा। (उत्पत्ति २१:८-१०) वैसे ही, आप शायद समय-समय पर अपने विचार को व्यक्त करने के फ़र्ज़ को महसूस करें। यदि यह “ठीक समय पर” आदरपूर्ण ढंग से किया जाए, तो एक भक्त मसीही आदमी इसे ज़रूर सुनेगा। (नीतिवचन २५:११) परन्तु यदि आपके प्रस्ताव को ग्रहण नहीं किया गया और किसी बाइबल सिद्धांत का गम्भीर उल्लंघन नहीं हुआ, तो क्या अपने पति की इच्छाओं के विरुद्ध जाना आत्म-पराजयी न होगा? याद रखिए, “हर बुद्धिमान स्त्री अपने घर को बनाती है, पर मूढ़ स्त्री उसको अपने ही हाथों से ढा देती है।” (नीतिवचन १४:१) अपने घर को बनाने का एक तरीक़ा है अपने पति की सरदारी को सहयोग देना, उसकी सफ़लताओं की प्रशंसा करते हुए उसकी ग़लतियों से शांन्त तरीक़े से निपटना।
१५. अपने बच्चों के अनुशासन और प्रशिक्षण में एक पत्नी किन तरीक़ों से भाग ले सकती है?
१५ अपने घर को बनाने का एक और तरीक़ा है अपने बच्चों के अनुशासन और प्रशिक्षण में भाग लेना। उदाहरण के लिए, आप पारिवारिक बाइबल अध्ययन को नियमित और प्रोत्साहक बनाए रखने में अपनी भूमिका को पूरा कर सकती हैं। हर अवसर पर—यात्रा करते समय या सिर्फ़ उनके साथ ख़रीदारी करते समय—परमेश्वर की सच्चाइयों को अपने बच्चों के साथ बाँटने के मामले में ‘अपना हाथ न रोकिए।’ (सभोपदेशक ११:६) सभाओं में उनकी टीका-टिप्पणी और थियोक्रैटिक मिनिस्ट्री स्कूल में उनके भाग को तैयार करने में उनकी सहायता कीजिए। उनकी संगति पर नज़र रखिए। (१ कुरिन्थियों १५:३३) ईश्वरीय स्तर तथा अनुशासन के मामलों में, अपने बच्चों को जानने दीजिए कि आप और आपके पति एक हैं। बच्चों को अपना उद्देश्य पूरा करवाने के लिए, आपके और आपके पति के बीच लड़ाई करवाने न दीजिए।
१६. (क) कौनसा बाइबलीय उदाहरण एक-जननी और अविश्वासियों से विवाहित लोगों को प्रोत्साहन देने के काम आता है? (ख) ऐसे लोगों को कलीसिया के दूसरे लोग कैसे सहायता दे सकते हैं?
१६ यदि आप एक-जननी हैं या आपका पति अविश्वासी है, तो शायद आपको ही आध्यात्मिक तौर से अगुवाई करनी पड़े। यह कठिन हो सकता है और कभी-कभी हतोत्साहित भी। परन्तु हार न मानिए। तीमुथियुस की माता, यूनीके, एक अविश्वासी पति के होते हुए भी, “बालकपन से” उसे पवित्र शास्त्र सिखाने में सफ़ल रही। (२ तीमुथियुस १:५; ३:१५) और हमारे बीच में बहुतेरे समान सफ़लता का आनन्द ले रहे हैं। यदि आपको इस विषय में कुछ सहायता की ज़रूरत है, तो आप प्राचीनों को अपनी ज़रूरतें बता सकती हैं। वे शायद प्रबन्ध कर सकें कि कोई आपको सभाओं में पहुँचने में और क्षेत्र सेवा में जाने के लिए सहायता करे। शायद वे दूसरों को प्रोत्साहित करें कि वे मनोरंजक सैर या पार्टियों में आपके परिवार को सम्मिलित करें। या शायद वे ऐसा प्रबन्ध करें कि एक अनुभवी प्रचारक एक पारिवारिक अध्ययन शुरू करने में आपकी सहायता करे।
क़दरदान बच्चे
१७. (क) युवक कैसे पारिवारिक हित के प्रति सहयोग दे सकते हैं? (ख) इस विषय में यीशु ने क्या उदाहरण पेश किया?
१७ मसीही युवक इफिसियों ६:१-३ की सलाह पर अमल करके परिवार के हित के प्रति सहयोग दे सकते हैं: “हे बालको, प्रभु में अपने माता-पिता के आज्ञाकारी बनो, क्योंकि यह उचित है। अपनी माता और पिता का आदर कर (यह पहिली आज्ञा है, जिस के साथ प्रतिज्ञा भी है)। कि तेरा भला हो, और तू धरती पर बहुत दिन जीवित रहे।” अपने माता-पिता को सहयोग देने से, आप यहोवा के लिए अपना आदर प्रदर्शित करते हैं। यीशु मसीह परिपूर्ण था और आसानी से तर्क कर सकता था कि अपरिपूर्ण माता-पिता के अधीन होना उसके आन के विरुद्ध था। फिर भी, वह “उन के वश में रहा; . . . और यीशु बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया।”—लूका २:५१, ५२.
१८, १९. (क) अपने माता-पिता का आदर करने का क्या अर्थ है? (ख) घर कैसे विश्रान्ति की जगह बन सकता है?
१८ क्या आपको भी इसी प्रकार अपने माता-पिता का आदर नहीं करना चाहिए? “आदर” का यहाँ अर्थ विधिवत् नियुक्त किये अधिकारी को स्वीकार करना है। (१ पतरस २:१७ से तुलना कीजिए.) चाहे एक व्यक्ति के माता-पिता अविश्वासी हों या एक अच्छा उदाहरण रखने में असफ़ल हों, ज़्यादातर परिस्थितियों में ऐसा आदर उचित है। आपको अपने माता-पिता का आदर और भी अधिक करना चाहिए यदि वे अनुकरणीय मसीही हैं। यह भी याद रखिए कि आपके माता-पिता द्वारा दिए गए अनुशासन और निर्देशन का उद्देश्य आप के ऊपर अत्याधिक पाबंदियाँ लगाना नहीं है। इस के बदले, वे तो आपको बचाए रखने के लिए हैं ताकि आप ‘जीवित रहें।’—नीतिवचन ७:१, २.
१९ फिर, परिवार क्या ही प्रेममय प्रबंध है! जब पति, पत्नी, और बच्चे सब पारिवारिक जीवन के लिए परमेश्वर के नियमों पर चलते हैं, तब घर एक आश्रय, विश्रान्ति की जगह, बन जाता है। फिर भी, संचार और बच्चों के प्रशिक्षण से संबद्ध समस्याएँ उठ सकती हैं। हमारा अगला लेख विचार-विमर्श करता है कि इन में से कुछ समस्याओं को कैसे सुलझाया जा सकता है।
क्या आपको याद है?
▫ बाइबल समयों में परमेश्वर का भय माननेवाले पतियों, पत्नियों, और बच्चों ने कौनसा नमूना रखा था?
▫ पति की भूमिका पर मसीही धर्म ने क्या रोशनी डाली?
▫ मसीही परिवार में पत्नी को कौनसी भूमिका अदा करनी चाहिए?
▫ मसीही युवक परिवार के हित के प्रति कैसे सहयोग दे सकते हैं?
[पेज 20 पर तसवीरें]
“उस समय के दुराचारी नैतिक आचार की तुलना में, मसीही धर्म में और कुछ भी इतना अनूठा और सख़्त प्रतीत नहीं होता था, जितना कि विवाह के विषय में मसीही दृष्टिकोण। . . . [इससे] मानवजाति के लिए एक नया युग शुरू हुआ।”
[पेज 21 पर तसवीरें]
मसीही पति अपनी पत्नियों को प्रोत्साहित करते हैं कि वे अपने विचारों को व्यक्त करें, और वे उनके विचारों की क़दर करते हैं