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‘मेरी आज्ञाएँ मान और जीता रह’प्रहरीदुर्ग—2000 | नवंबर 15
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वह कहती है, “इसलिये अब चल हम प्रेम से भोर तक जी बहलाते रहें; हम परस्पर की प्रीति से आनन्दित रहें।” वह उसे अपने साथ सिर्फ लज़ीज़ खाना खाने के लिए नहीं बुला रही है। वह वादा कर रही है कि उस पर अपना सबकुछ लुटा देगी। उस नौजवान को यह न्यौता बहुत ही अनोखा और लुभावना लगता है! उसे और उकसाने के लिए, वह कहती है: “क्योंकि मेरा पति घर में नहीं है; वह दूर देश को चला गया है; वह चान्दी की थैली ले गया है; और पूर्णमासी को लौट आएगा।” (नीतिवचन 7:18-20) वह उसे यकीन दिलाती है कि डरने की कोई बात नहीं है, क्योंकि उसका पति व्यापार करने के लिए गया हुआ है और कुछ दिनों तक वह घर लौटनेवाला नहीं। किसी जवान को अपने वश में करने में यह औरत कितनी माहिर है! “ऐसी ही बातें कह कहकर, उस ने उसको अपनी प्रबल माया में फंसा लिया; और अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से उसको अपने वश में कर लिया।” (नीतिवचन 7:21) ऐसे लुभावने बुलावे का विरोध यूसुफ जैसा उसूलों का पक्का आदमी ही कर सकता था। (उत्पत्ति 39:9, 12) क्या इस नौजवान ने भी वही किया?
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‘मेरी आज्ञाएँ मान और जीता रह’प्रहरीदुर्ग—2000 | नवंबर 15
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जिस “पराई स्त्री” को राजा ने देखा उसने उस जवान को ‘प्रेम से जी बहलाने’ का बुलावा देकर फँसा लिया। क्या आज भी बहुत से जवानों को खासकर लड़कियों को इसी तरीके से बहकाया नहीं जाता? मगर इस बात पर गौर कीजिए: जब कोई आपको नाजायज़ संबंधों के लिए न्यौता देता है तो क्या वह आपसे सच्चा प्यार करता है या सिर्फ अपनी वासना पूरी करना चाहता है? जो आदमी किसी स्त्री से सचमुच प्यार करता है वह उसे मसीही उसूलों को तोड़ने और अपने विवेक के खिलाफ काम करने के लिए उस पर दबाव क्यों डालेगा? सुलैमान सलाह देता है, ‘तेरा मन ऐसे मार्ग की ओर न फिरे।’
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