“अपनी तर्क-शक्ति सहित पवित्र सेवा”
“अपने शरीरों को जीवित, पवित्र, और परमेश्वर को स्वीकार्य बलिदान के रूप में चढ़ाओ, अर्थात् अपनी तर्क-शक्ति सहित पवित्र सेवा।”—रोमियों १२:१, NW.
१, २. बाइबल सिद्धान्तों को लागू करना सीखना एक नयी भाषा की दक्षता हासिल करने के समान कैसे है?
क्या आपने कभी एक नयी भाषा सीखने की कोशिश की है? अगर ऐसा किया है, तो आप बेशक सहमत होंगे कि यह मुश्किल काम है। इसमें केवल नए शब्दों को सीखना ही नहीं बल्कि उससे भी ज़्यादा शामिल है। एक भाषा के निपुण प्रयोग में उसके व्याकरण की दक्षता हासिल करना भी शामिल है। आपके लिए यह समझना ज़रूरी है कि शब्द एक दूसरे से कैसे सम्बन्ध रखते हैं और कैसे वे सम्पूर्ण विचार बनने के लिए जुड़ते हैं।
२ परमेश्वर के वचन का हमारा ज्ञान लेना इसी के समान है। इसमें केवल चुनिंदा शास्त्र पाठ सीख लेने से ज़्यादा शामिल है। यूँ कह सकते हैं कि हमें बाइबल का व्याकरण भी सीखना चाहिए। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि कैसे शास्त्रवचन एक दूसरे से सम्बन्ध रखते हैं और कैसे वे सिद्धान्तों का काम करते हैं जिन्हें दैनिक जीवन में लागू किया जा सकता है। इस तरह हम ‘सिद्ध, और हर भले काम के लिए तत्पर’ बन सकते हैं।—२ तीमुथियुस ३:१७.
३. परमेश्वर की सेवा के बारे में, सा.यु. ३३ में कौन-सा परिवर्तन हुआ?
३ मूसा की व्यवस्था संहिता के प्रबन्ध के अधीन, सुनिर्धारित नियमों का सख्ती से पालन करने के द्वारा काफ़ी हद तक वफ़ादारी प्रदर्शित की जा सकती थी। लेकिन, सा.यु. ३३ में, यहोवा ने व्यवस्था को मिटा दिया, दरअसल उस ‘क्रूस पर कीलों से जड़’ दिया जिस पर उसके पुत्र को मारा गया था। (कुलुस्सियों २:१३, १४) तत्पश्चात्, परमेश्वर के लोगों को बलिदान चढ़ाने के लिए और नियमों का पालन करने के लिए एक विस्तृत सूची नहीं दी गयी। इसके बजाय, उन्हें कहा गया: “अपने शरीरों को जीवित, पवित्र, और परमेश्वर को स्वीकार्य बलिदान के रूप में चढ़ाओ, अर्थात् अपनी तर्क-शक्ति सहित पवित्र सेवा।” (रोमियों १२:१, NW) जी हाँ, मसीहियों को परमेश्वर की सेवा में अपने पूरे हृदय, प्राण, मन, और शक्ति से ख़ुद को लगा देना था। (मरकुस १२:३०. भजन ११०:३ से तुलना कीजिए।) लेकिन “अपनी तर्क-शक्ति सहित पवित्र सेवा” करने का क्या अर्थ है?
४, ५. अपनी तर्क-शक्ति के साथ यहोवा की सेवा करने में क्या शामिल है?
४ पद “तर्क-शक्ति” यूनानी शब्द लोगिकोस से अनुवाद किया गया है, जिसका अर्थ है “समझदार” या “अक्लमंद।” परमेश्वर के सेवकों से अपने बाइबल-प्रशिक्षित अंतःकरण को इस्तेमाल करने की माँग की जाती है। अपने फ़ैसलों को पूर्व-स्थापित नियमों के आधार पर करने के बजाय, मसीहियों को बाइबल सिद्धान्तों पर ध्यानपूर्वक विचार करना है। उन्हें बाइबल के “व्याकरण” को, या यह कि इसके विभिन्न सिद्धान्त एक दूसरे से कैसे सम्बन्ध रखते हैं, समझने की ज़रूरत है। इस तरह, वे अपनी तर्क-शक्ति से संतुलित फ़ैसले कर सकते हैं।
५ क्या इसका अर्थ है कि मसीहियों के पास कोई नियम नहीं? यक़ीनन नहीं। मसीही यूनानी शास्त्र मूर्तिपूजा, लैंगिक अनैतिकता, हत्या, झूठ बोलने, प्रेतात्मवाद, लहू के दुरुपयोग, और अन्य अनेक पापों का साफ़-साफ़ निषेध करता है। (प्रेरितों १५:२८, २९; १ कुरिन्थियों ६:९, १०; प्रकाशितवाक्य २१:८) फिर भी, इस्राएलियों से जितनी माँग की गयी थी उससे कहीं ज़्यादा हमें बाइबल सिद्धान्तों को सीखने और लागू करने के लिए अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करने की ज़रूरत है। काफ़ी कुछ एक नयी भाषा समझने की तरह, इसके लिए समय और प्रयास लगता है। हमारी तर्क-शक्ति को कैसे विकसित किया जा सकता है?
अपनी तर्क-शक्ति को विकसित करना
६. बाइबल का अध्ययन करने में क्या शामिल है?
६ पहला, हमें बाइबल के उत्साही विद्यार्थी होना चाहिए। परमेश्वर का उत्प्रेरित वचन “उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।” (२ तीमुथियुस ३:१६) हमें हमेशा किसी समस्या का हल बाइबल की केवल एक आयत में पाने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए। इसके बजाय, हमें शायद एक विशिष्ट स्थिति या समस्या पर प्रकाश डालनेवाले अनेक शास्त्रवचनों पर तर्क करना पड़े। हमें उस मामले पर परमेश्वर का सोच-विचार जानने के लिए एक परिश्रमी खोज करने की ज़रूरत होगी। (नीतिवचन २:३-५) हमें समझदारी की भी ज़रूरत है, क्योंकि ‘समझदार बुद्धि का उपदेश प्राप्त करता है।’ (नीतिवचन १:५) एक समझदार व्यक्ति किसी मामले के प्रत्येक तत्व को अलग कर सकता है और फिर एक दूसरे के साथ उनके सम्बन्ध को देख सकता है। जैसे एक चित्र-खण्ड पहेली में होता है, वह उसके टुकड़े एकसाथ जोड़ता है ताकि वह पूरा चित्र देख सके।
७. अनुशासन के बारे में माता-पिता बाइबल सिद्धान्तों पर कैसे तर्क कर सकते हैं?
७ उदाहरण के लिए, बच्चों का पालन करने के मामले को लीजिए। नीतिवचन १३:२४ (NHT) कहता है कि वह पिता जो अपने पुत्र से प्रेम करता है “यत्न से उसे अनुशासित करता है।” अगर हम केवल इस शास्त्रवचन पर ग़ौर करें, तो इसका कड़ी, कठोर सज़ा देने के लिए ग़लत प्रयोग किया जा सकता है। लेकिन, कुलुस्सियों ३:२१ एक संतुलन प्रदान करनेवाली सलाह देता है: “हे बच्चेवालो, अपने बालकों को तंग न करो, न हो कि उन का साहस टूट जाए।” अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करके इन सिद्धान्तों का सामंजस्य देखनेवाले माता-पिता ऐसे अनुशासन का सहारा नहीं लेंगे जिसे “दुर्व्यवहार” कहा जा सकता है। वे अपने बच्चों के साथ स्नेह, समझ, और गरिमा से व्यवहार करेंगे। (इफिसियों ६:४) अतः, बच्चों का पालन करने में या बाइबल सिद्धान्तों को शामिल करनेवाले किसी भी अन्य मामले में, सभी सम्बन्धित तत्वों पर ध्यानपूर्वक विचार करने के द्वारा हम अपनी तर्क-शक्ति विकसित कर सकते हैं। इस तरह, हम बाइबल सिद्धान्तों का “व्याकरण,” परमेश्वर का जो उद्देश्य था और वह कैसे पूरा किया जाए, यह समझ सकते हैं।
८. जब मनोरंजन की बात आती है तब हम कठोर, हठधर्मी दृष्टिकोण अपनाने से कैसे दूर रह सकते हैं?
८ अपनी तर्क-शक्ति विकसित करने का दूसरा तरीक़ा है कठोर, हठधर्मी दृष्टिकोण अपनाने से दूर रहना। एक अनम्य नज़रिया हमारी तर्क-शक्ति के विकास में बाधा डालता है। मनोरंजन के मामले पर ग़ौर कीजिए। बाइबल कहती है: “सारा संसार उस दुष्ट के वश में पड़ा है।” (१ यूहन्ना ५:१९) क्या इसका अर्थ है कि संसार द्वारा बनायी गयी प्रत्येक किताब, फ़िल्म, या टेलिविज़न कार्यक्रम भ्रष्ट और शैतानी है? ऐसा दृष्टिकोण शायद ही तर्कसंगत हो। बेशक, शायद कुछ लोग टेलिविज़न, फ़िल्म, या लौकिक साहित्य से पूरी तरह दूर रहने का चुनाव करें। यह उनका हक़ है, और इसके लिए उनकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए। लेकिन उन्हें भी समान सख़्त स्थिति अपनाने के लिए दूसरों पर दबाव डालने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। संस्था ने बाइबल सिद्धान्तों को बतानेवाले लेख प्रकाशित किए हैं जिससे हमें अपने आराम या मनोरंजन के बारे में बुद्धिमत्ता से चयनात्मक होने में समर्थ होना चाहिए। इन मार्गदर्शनों के आगे जाकर ख़ुद को अनैतिक सोच-विचार, अत्यधिक हिंसा, या प्रेतात्मवाद के प्रभावन में डालना, जो इस संसार के ज़्यादातर मनोरंजन में मौजूद है, बहुत बड़ी मूर्खता है। सचमुच, मनोरंजन के बारे में एक बुद्धिमान चुनाव माँग करता है कि हम बाइबल सिद्धान्तों को लागू करने के लिए अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करें, ताकि हम परमेश्वर और मनुष्य के सामने एक साफ़ अंतःकरण रख सकें।—१ कुरिन्थियों १०:३१-३३.
९. “पूर्ण समझ” का क्या अर्थ है?
९ आज का ज़्यादातर मनोरंजन मसीहियों के लिए स्पष्ट रूप से अनुपयुक्त है।a इसलिए, हमें अपने हृदय को “बुराई से घृणा” करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए, ताकि हम पहली सदी के कुछ लोगों की नाईं न बन जाएँ जो ‘सब नैतिक बुद्धि से सुन्न हो’ गए थे। (भजन ९७:१०; इफिसियों ४:१७-१९, NW) ऐसे मामलों पर तर्क करने के लिए हमें “सच्चे ज्ञान और पूर्ण समझ” की ज़रूरत है। (फिलिप्पियों १:९, NHT) “समझ” अनुवादित यूनानी शब्द “संवेदनशील नैतिक बोध” को सूचित करता है। यह शब्द शाब्दिक मानव इंद्रियों को सूचित करता है, जैसे कि दृष्टि। जब मनोरंजन की या व्यक्तिगत फ़ैसले की माँग करनेवाले किसी अन्य मामले की बात आती है, तब हमारी नैतिक संवित्ति को एकाग्र होना चाहिए, ताकि हम केवल स्पष्ट रूप से बताए गए, भले-और-बुरे के मामलों को ही नहीं, बल्कि उन मामलों को भी समझ सकें जिन्हें उतने स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है। साथ ही, हमें बाइबल सिद्धान्तों को किसी अनुचित हद तक लागू करने से दूर रहना चाहिए और फिर यह आग्रह नहीं करना चाहिए कि हमारे सभी भाई वैसा ही करें।—फिलिप्पियों ४:५.
१०. जैसे भजन १५ में दिखाया गया है, हम यहोवा के व्यक्तित्व को कैसे समझ सकते हैं?
१० हमारी तर्क-शक्ति को विकसित करने का तीसरा तरीक़ा है, यहोवा के सोच-विचार से अवगत होना और उसे अपने हृदय में गहराई से बिठाना। अपने वचन में, यहोवा अपने व्यक्तित्व और स्तरों को प्रकट करता है। उदाहरण के लिए, भजन १५ में हम उस प्रकार के व्यक्ति के बारे में पढ़ते हैं जिसे यहोवा अपने तम्बू में रहने के लिए आमंत्रित करता है। ऐसा व्यक्ति धार्मिकता का पालन करता है, हृदय से सच बोलता है, अपने वचन का पक्का है, और ख़ुद का हित साधनेवाला नहीं होता। इस भजन को पढ़ते वक़्त, अपने आपसे पूछिए, ‘क्या ये गुण मेरा वर्णन करते हैं? क्या यहोवा मुझे अपने तम्बू मे रहने के लिए आमंत्रित करेगा?’ हमारी समझ शक्ति बढ़ जाती है जैसे-जैसे हम यहोवा के मार्गों और सोच-विचार के सामंजस्य में बन जाते हैं।—नीतिवचन ३:५, ६; इब्रानियों ५:१४.
११. फरीसियों ने कैसे ‘न्याय को और परमेश्वर के प्रेम को टाल दिया’?
११ इसी विशिष्ट क्षेत्र में फरीसी बुरी तरह चूक गए। फरीसी व्यवस्था की पारिभाषिक रूपरेखा जानते थे, लेकिन वे इसका “व्याकरण” नहीं समझ सके। वे व्यवस्था के सैकड़ों विवरण मुँहज़बानी बोल सकते थे, लेकिन वे उसे देनेवाले के व्यक्तित्व को समझने से चूक गए। यीशु ने उन्हें कहा: “तुम पोदीने और सुदाब का, और सब भांति के साग-पात का दसवां अंश देते हो, परन्तु न्याय को और परमेश्वर के प्रेम को टाल देते हो।” (लूका ११:४२) अपने अनम्य मन और कठोर हृदय के कारण फरीसी अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करने से चूक गए। उनका असंगत तर्क तब प्रदर्शित हुआ जब उन्होंने सब्त के दिन बालें तोड़कर दाने खाने के लिए यीशु के शिष्यों की आलोचना की; फिर भी, उसी दिन बाद में, उनके अंतःकरण ने उन्हें ज़रा भी नहीं कचोटा जब उन्होंने यीशु की हत्या करने की साज़िश की!—मत्ती १२:१, २, १४.
१२. एक व्यक्ति के रूप में यहोवा के साथ हम अधिक सामंजस्य में कैसे बन सकते हैं?
१२ हम फरीसियों से भिन्न होना चाहते हैं। परमेश्वर के वचन के हमारे ज्ञान से हमें, एक व्यक्ति के रूप में यहोवा के साथ अधिक सामंजस्य में बनने के लिए मदद मिलनी चाहिए। हम यह कैसे कर सकते हैं? बाइबल या बाइबल-आधारित साहित्य का एक अंश पढ़ने के बाद, कुछ लोगों को ऐसे सवालों पर विचार करने के द्वारा मदद मिली है, ‘यह जानकारी मुझे यहोवा और उसके गुणों के बारे में क्या सिखाती है? मैं दूसरों के साथ अपने व्यवहार में यहोवा के गुणों को कैसे प्रदर्शित कर सकता हूँ?’ ऐसे सवालों पर मनन करना, हमारी तर्क-शक्ति को विकसित करता है और हमें “परमेश्वर का अनुकरण करने वाले” बनने में समर्थ करता है।—इफिसियों ५:१, NHT.
परमेश्वर और मसीह के दास, मनुष्य के नहीं
१३. फरीसियों ने नैतिक तानाशाहों की तरह कैसे कार्य किया?
१३ प्राचीनों को उनकी देखभाल में दिए गए लोगों को उनकी तर्क-शक्ति का प्रयोग करने देना चाहिए। कलीसिया के सदस्य मनुष्यों के दास नहीं हैं। पौलुस ने लिखा: “यदि मैं अब तक मनुष्यों को ही प्रसन्न करता रहता, तो मसीह का दास न होता।” (गलतियों १:१०; कुलुस्सियों ३:२३, २४) इसके विपरीत, फरीसी लोगों को यह विश्वास कराना चाहते थे कि परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त करने से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण था मनुष्य की स्वीकृति प्राप्त करना। (मत्ती २३:२-७; यूहन्ना १२:४२, ४३) फरीसियों ने नैतिक तानाशाह बनने के लिए ख़ुद को नियुक्त किया, वे अपने ख़ुद के नियम बनाते थे और इस आधार पर दूसरों का न्याय करते थे कि वे किस हद तक उनका पालन करते हैं। फरीसियों का अनुकरण करनेवाले लोग अपने बाइबल-प्रशिक्षित अंतःकरण के प्रयोग में कमज़ोर पड़ गए, और परिणामस्वरूप मनुष्य के दास बन गए।
१४, १५. (क) प्राचीन ख़ुद को झुण्ड के सहकर्मी कैसे दिखा सकते हैं? (ख) प्राचीनों को अंतःकरण के मामलों से कैसे निपटना चाहिए?
१४ मसीही प्राचीन आज जानते हैं कि झुण्ड मुख्यतः उनके प्रति जवाबदेह नहीं है। प्रत्येक मसीही को अपना बोझ ख़ुद उठाना है। (रोमियों १४:४; २ कुरिन्थियों १:२४; गलतियों ६:५) यह उचित है। वाक़ई, अगर झुण्ड के सदस्यों को मनुष्य के दास होना था, जो आज्ञा मानते केवल इसलिए कि उन पर नज़र रखी जा रही थी, तो वे तब क्या करते जब वे लोग कहीं आस-पास नहीं होते? पौलुस फिलिप्पियों की वजह से आनन्दित हुआ: “जिस प्रकार तुम सदा से आज्ञा मानते आए हो, वैसे ही अब भी न केवल मेरे साथ रहते हुए पर विशेष करके अब मेरे दूर रहने पर भी डरते और कांपते हुए अपने अपने उद्धार का कार्य्य पूरा करते जाओ।” वे सचमुच मसीह के दास थे, पौलुस के नहीं।—फिलिप्पियों २:१२.
१५ अतः, अंतःकरण के मामलों में, प्राचीन उनकी देखभाल में दिए गए लोगों के लिए फ़ैसले नहीं करते। वे किसी मामले में शामिल बाइबल सिद्धान्तों को समझाते हैं और फिर उसमें शामिल व्यक्तियों को फ़ैसला करने के लिए अपनी ख़ुद की तर्क-शक्ति का प्रयोग करने देते हैं। यह एक गंभीर ज़िम्मेदारी है, लेकिन एक ऐसी ज़िम्मेदारी जो ख़ुद उस व्यक्ति को उठानी चाहिए।
१६. समस्याओं के निपटारे के लिए इस्राएल में कौन-सी व्यवस्था मौजूद थी?
१६ उस समय पर ग़ौर कीजिए जब यहोवा ने इस्राएल को मार्गदर्शित करने के लिए न्यायियों को इस्तेमाल किया। बाइबल कहती है: “उन दिनों में इस्राएलियों का कोई राजा न था; जिसको जो ठीक सूझ पड़ता था वही वह करता था।” (न्यायियों २१:२५) फिर भी यहोवा ने ज़रिया प्रदान किया कि उसके लोग मार्गदर्शन प्राप्त करें। प्रत्येक शहर में पुरनिए थे जो सवालों और समस्याओं के लिए प्रौढ़ मदद प्रदान कर सकते थे। इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के नियमों में लोगों को शिक्षित करने के द्वारा लेवीय याजकों ने भलाई के प्रभाव का काम किया। जब ख़ासकर कठिन मामले उठते, तब महायाजक ऊरीम और तुम्मीम के माध्यम से परमेश्वर से परामर्श ले सकता था। शास्त्रवचनों पर अंतर्दृष्टि (अंग्रेज़ी) टिप्पणी करती है: “उस व्यक्ति के पास जिसने इन प्रबन्धों का फ़ायदा उठाया, जिसने परमेश्वर के नियमों का ज्ञान हासिल करके उसे लागू किया, अपने अंतःकरण के लिए एक विश्वस्त मार्गदर्शक था। ऐसे मामले में उसे ‘जो ठीक सुझ पड़ता था’ वह करने का बुरा परिणाम नहीं होता। यहोवा ने लोगों को इच्छुक या अनिच्छुक मनोवृत्ति दिखाने और मार्ग अपनाने की इजाज़त दी।”—खण्ड २, पृष्ठ १६२-३.b
१७. प्राचीन कैसे दिखा सकते हैं कि वे ख़ुद के नहीं, बल्कि परमेश्वर के स्तरों के अनुसार सलाह देते हैं?
१७ इस्राएली न्यायियों और याजकों की तरह, कलीसिया प्राचीन समस्याओं के लिए प्रौढ़ मदद प्रदान करते हैं और बहुमूल्य सलाह देते हैं। कभी-कभी, वे ‘सब प्रकार की सहनशीलता, और शिक्षा के साथ उलाहना देते, और डांटते, और समझाते’ भी हैं। (२ तीमुथियुस ४:२) वे ऐसा अपने ख़ुद के नहीं, बल्कि परमेश्वर के स्तरों के अनुसार करते हैं। यह कितना प्रभावकारी होता है जब प्राचीन एक उदाहरण रखते हैं और हृदय तक पहुँचने का प्रयास करते हैं!
१८. प्राचीनों के लिए हृदय तक पहुँचना ख़ासकर प्रभावकारी क्यों है?
१८ हृदय हमारी मसीही गतिविधि का “इंजन” है। इसलिए बाइबल कहती है: “जीवन का मूल स्रोत वही है।” (नीतिवचन ४:२३) हृदय को उत्तेजित करनेवाले प्राचीन पाएँगे कि इसके द्वारा कलीसिया के लोग भी परमेश्वर की सेवा में यथासंभव कार्य करने के लिए प्रेरित हुए हैं। वे स्व-प्रवर्तक होंगे, जिन्हें दूसरों द्वारा हमेशा कोंचे जाने की ज़रूरत नहीं है। यहोवा बाध्य आज्ञाकारिता नहीं चाहता। वह ऐसी आज्ञाकारिता की तलाश करता है जो प्रेम से भरे हुए हृदय से निकलती है। झुण्ड के लोगों को अपनी तर्क-शक्ति को विकसित करने में मदद देने के द्वारा, प्राचीन ऐसी हृदय-प्रेरित सेवा को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
“मसीह का मन” विकसित करना
१९, २०. हमारे लिए मसीह का मन विकसित करना महत्त्वपूर्ण क्यों है?
१९ जैसे बताया गया है, परमेश्वर के नियमों को केवल जानना काफ़ी नहीं है। “मुझे समझ दे,” भजनहार ने याचना की, “तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूंगा और पूर्ण मन से उस पर चलूंगा।” (भजन ११९:३४) यहोवा ने अपने वचन में “मसीह का मन” प्रकट किया है। (१ कुरिन्थियों २:१६) उस व्यक्ति के रूप में जिसने अपनी तर्क-शक्ति से यहोवा की सेवा की, यीशु ने हमारे लिए एक परिपूर्ण आदर्श छोड़ा। उसने परमेश्वर के नियमों और सिद्धान्तों को समझा, और उन्हें पूर्ण रूप से लागू किया। उसके उदाहरण का परीक्षण करने के द्वारा, हम ‘भली भांति समझने की शक्ति पाएंगे कि उसकी चौड़ाई, और लम्बाई, और ऊंचाई, और गहराई कितनी है। और मसीह के उस प्रेम को जान सकेंगे जो ज्ञान से परे है।’ (इफिसियों ३:१७-१९) जी हाँ, बाइबल से हम यीशु के बारे में जो सीखते हैं, वह केवल बहुत सारे तथ्यों को जानना ही नहीं बल्कि उससे भी अधिक है; यह हमें एक स्पष्ट चित्र देता है कि ख़ुद यहोवा कैसा है।—यूहन्ना १४:९, १०.
२० अतः, जब हम परमेश्वर के वचन का अध्ययन करते हैं, हम मामलों पर यहोवा के सोच-विचार को समझ सकते हैं और संतुलित फ़ैसले कर सकते हैं। इसके लिए परिश्रम करना होगा। हमें परमेश्वर के वचन के उत्साही विद्यार्थी बनना चाहिए, और ख़ुद को यहोवा के व्यक्तित्व और स्तरों के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए। हम मानो एक नया व्याकरण सीख रहे हैं। लेकिन, जो ऐसा करते हैं, वे पौलुस की इस सलाह का पालन कर रहे होंगे, “अपने शरीरों को जीवित, पवित्र, और परमेश्वर को स्वीकार्य बलिदान के रूप में चढ़ाओ, अर्थात् अपनी तर्क-शक्ति सहित पवित्र सेवा।”—रोमियों १२:१, NW.
[फुटनोट]
a यह उस मनोरंजन को सम्मिलित नहीं करेगा जिसमें पैशाचिक, अश्लील, या परपीड़क-कामुक विषय, या तथाकथित पारिवारिक मनोरंजन है जो स्वच्छंद या अनुज्ञात्मक विचारों को बढ़ावा देता है जिन्हें मसीही स्वीकार नहीं कर सकते।
b वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित।
आपने क्या सीखा?
◻ परमेश्वर की सेवा के बारे में सा.यु. ३३ में कौन-सा परिवर्तन हुआ?
◻ हम अपनी तर्क-शक्ति कैसे विकसित कर सकते हैं?
◻ झुण्ड के लोगों को परमेश्वर और मसीह के दास होने में प्राचीन कैसे उनकी मदद कर सकते हैं?
◻ हमें “मसीह का मन” क्यों विकसित करना चाहिए?
[पेज 23 पर तसवीरें]
प्राचीन दूसरों को अपनी तर्क-शक्ति का प्रयोग करने में मदद देते हैं