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  • इतनी ज़्यादा निराशा क्यों?
    प्रहरीदुर्ग—1992 | अक्टूबर 1
    • कटु राजनीतिक वास्तविकताएँ, हिंसा, आर्थिक समस्याएँ, सभी अलग-अलग हद तक निराशा उत्पन्‍न कर सकती हैं। पेशेवर लोग भी इस से मुक्‍त नहीं हैं जैसे वे बढ़ती आर्थिक समस्याओं का सामना करते हुए भी दौलतमंद जीवन-शैली को बनाये रखना चाहते हैं। इसका परिणाम? पुराने समय के राजा सुलैमान ने कहा: “बुद्धिमान मनुष्य को अत्याचार पागल बना देता है।”a (सभोपदेशक ७:७, NW) वस्तुतः, निराशा के कारण बढ़ती हुई संख्या में लोग सबसे आत्यंतिक उपाय ढूंढते हैं—आत्महत्या।

  • इतनी ज़्यादा निराशा क्यों?
    प्रहरीदुर्ग—1992 | अक्टूबर 1
    • a हैरिस, आर्चर, और वॉल्टकी द्वारा संपादित थियोलॉजिकल वर्डबुक ऑफ दी ओल्ड टेस्टामेन्ट (Theological Wordbook of the Old Testament) के अनुसार, जिस शब्द का अनुवाद “अत्याचार” किया गया है, उस के मौलिक भाषा का मूल शब्द “छोटे लोगों पर बोझ डालने, उन्हें रौंदने और कुचलने” से सम्बद्ध है।

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