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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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ख़ुशी—हाथ आनी इतनी मुश्‍किल

क्रोध, चिंता और हताशा लंबे अरसे से वैज्ञानिक जाँच का विषय रहे हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में बड़े-बड़े वैज्ञानिकों ने प्रोत्साहक और अभिलषित मानव अनुभव—ख़ुशी—पर काफ़ी शोध किया है।

कौन-सी बात लोगों को ज़्यादा ख़ुशी दे सकती है? ज़्यादा जवान, ज़्यादा अमीर, ज़्यादा तंदुरुस्त, ज़्यादा लंबा, या ज़्यादा दुबला होना? सच्ची ख़ुशी की कुंजी क्या है? अधिकतर लोग इस प्रश्‍न का उत्तर देना असंभव नहीं तो कठिन ज़रूर पाते हैं। यह देखते हुए कि इतने लोग ख़ुशी पाने में असफल हैं, कुछ लोग इसका उत्तर देना शायद ज़्यादा आसान पाएँ कि कौन-सी बात ख़ुशी की कुंजी नहीं है।

लंबे अरसे से, बड़े-बड़े मनोवैज्ञानिकों ने ख़ुशी की कुंजी के तौर पर आत्म-केंद्रित होने के सिद्धांत की सिफ़ारिश की है। उन्होंने दुःखी लोगों को प्रोत्साहित किया कि सिर्फ़ अपनी व्यक्‍तिगत ज़रूरतों को पूरा करने पर ध्यान लगाएँ। मनोचिकित्सा में इस प्रकार के आकर्षक नारे इस्तेमाल किये गये हैं, “अपने भाव व्यक्‍त कीजिए,” “अपने आपसे परिचित होइए” और “अपने आपको पहचानिए।” फिर भी, जिन विशेषज्ञों ने इस मानसिकता को बढ़ावा दिया उन्हीं में से कुछ अब यह मानते हैं कि ऐसी आत्म-केंद्रित मनोवृत्ति स्थायी ख़ुशी नहीं लाती। अहंवाद तो दुःख-दर्द लाएगा ही। स्वार्थ ख़ुशी की कुंजी नहीं है।

दुःख की कुंजी

जो सुखविलास का पीछा करके ख़ुशी ढूँढ़ना चाहते हैं वे इसे ग़लत जगह ढूँढ़ रहे हैं। प्राचीन इस्राएल के बुद्धिमान राजा सुलैमान के उदाहरण पर विचार कीजिए। बाइबल की सभोपदेशक नामक पुस्तक में, वह समझाता है: “जितनी वस्तुओं के देखने की मैं ने लालसा की, उन सभों को देखने से मैं न रुका; मैं ने अपना मन किसी प्रकार का आनन्द भोगने से न रोका क्योंकि मेरा मन मेरे सब परिश्रम के कारण आनन्दित हुआ; और मेरे सब परिश्रम से मुझे यही भाग मिला।” (सभोपदेशक २:१०) सुलैमान ने अपने लिए घर बनवाये, दाख की बारियाँ लगवायीं, बाग़-बाग़ीचे लगवाये और जलकुंड खुदवाये। (सभोपदेशक २:४-६) एक बार उसने पूछा: “खाने-पीने और सुख भोगने में मुझ से अधिक समर्थ कौन है?” (सभोपदेशक २:२५) सबसे अच्छा गाने-बजानेवाले उसका मनोरंजन करते थे और उसे देश की सबसे सुंदर स्त्रियों की संगति का सुख प्राप्त था।—सभोपदेशक २:८.

मुद्दा यह है कि जब सुखविलास की बात आयी तब सुलैमान पीछे नहीं हटा। जीवन में भरपूर सुख भोगने के बाद वह किस निष्कर्ष पर पहुँचा? उसने कहा: “तब मैं ने फिर से अपने हाथों के सब कामों को और अपने सब परिश्रम को देखा, तो क्या देखा कि सब कुछ व्यर्थ और वायु को पकड़ना है, और संसार में कोई लाभ नहीं।”—सभोपदेशक २:११.

उस बुद्धिमान राजा के निष्कर्ष आज तक सही हैं। अमरीका जैसे धनी देश का उदाहरण लीजिए। पिछले ३० सालों के दौरान, अमरीकियों ने अपनी भौतिक संपत्ति, जैसे गाड़ियाँ और टॆलिविज़न, दोगुनी कर ली है। फिर भी, मानसिक-स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, अमरीकी कोई ज़्यादा ख़ुश नहीं हैं। एक सूत्र के अनुसार, “उसी अवधि में, हताशा दरें बढ़ गयी हैं। किशोर आत्महत्या तिगुनी हो गयी है। तलाक़ दरें दोगुनी हो गयी हैं।” क़रीब ५० भिन्‍न-भिन्‍न देशों के लोगों के मध्य पैसे और ख़ुशी के बीच संबंध का अध्ययन करने के बाद शोधकर्ता हाल में ऐसे ही निष्कर्षों पर पहुँचे हैं। संक्षिप्त में कहें तो आप ख़ुशी ख़रीद नहीं सकते।

इसके विपरीत, धन की खोज को उचित ही दुःख की कुंजी कहा जा सकता है। प्रेरित पौलुस ने चिताया: “जो धनी होना चाहते हैं, वे ऐसी परीक्षा, और फंदे और बहुतेरे व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते हैं, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती हैं और विनाश के समुद्र में डूबा देती हैं। क्योंकि रुपये का लोभ सब प्रकार की बुराइयों की जड़ है, जिसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हुए कितनों ने विश्‍वास से भटककर अपने आप को नाना प्रकार के दुखों से छलनी बना लिया है।”—१ तीमुथियुस ६:९, १०.

न तो धन, तंदुरुस्ती, जवानी, सुंदरता, अधिकार, न ही इनमें से कई बातों का मेल स्थायी ख़ुशी की गारंटी दे सकता है। क्यों नहीं? क्योंकि हमारे पास बुरी बातों को होने से रोकने की शक्‍ति नहीं। राजा सुलैमान ने उपयुक्‍त ही कहा: “मनुष्य अपना समय नहीं जानता। जैसे मछलियां दुखदाई जाल में बझतीं और चिड़ियें फन्दे में फंसती हैं, वैसे ही मनुष्य दुखदाई समय में जो उन पर अचानक आ पड़ता है, फंस जाते हैं।”—सभोपदेशक ९:१२.

हाथ न आनेवाला लक्ष्य

कितना भी वैज्ञानिक शोध क्यों न किया जाए, यह ख़ुशी लाने का कोई मानव-निर्मित फ़ार्मूला या नीति नहीं तैयार कर सकता। सुलैमान ने यह भी कहा: “फिर मैं ने धरती पर देखा कि न तो दौड़ में वेग दौड़नेवाले और न युद्ध में शूरवीर जीतते; न बुद्धिमान लोग रोटी पाते न समझवाले धन, और न प्रवीणों पर अनुग्रह होता है; वे सब समय और संयोग के वश में हैं।”—सभोपदेशक ९:११.

उपर्युक्‍त शब्दों से सहमत होनेवाले अनेक लोगों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि सचमुच के ख़ुशहाल जीवन की अपेक्षा करना अव्यावहारिक है। एक प्रमुख शिक्षक ने कहा कि “ख़ुशी एक काल्पनिक स्थिति है।” दूसरे मानते हैं कि ख़ुशी की कुंजी एक बड़ा रहस्य है और इस रहस्य को सुलझाने की क्षमता शायद थोड़े से ही रहस्यवादियों तक सीमित हो जो बौद्धिक रूप से प्रतिभाशाली हैं।

फिर भी, ख़ुशी की खोज में, लोग तरह-तरह की जीवन-शैलियाँ आज़माकर देखना जारी रखते हैं। अपने पूर्वजों की असफलता के बावजूद, आज भी अनेक लोग अपने दुःख का इलाज समझकर धन, अधिकार, तंदुरुस्ती, या सुखविलास का पीछा करते हैं। खोज जारी है क्योंकि अंदर-ही-अंदर अधिकतर लोग मानते हैं कि स्थायी ख़ुशी मात्र एक काल्पनिक स्थिति नहीं है। वे आशा करते हैं कि ख़ुशी सच न होनेवाला सपना न हो। तो फिर आप शायद पूछें, ‘मैं इसे कैसे प्राप्त कर सकता हूँ?’

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