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  • हर बात का एक वक्‍त होता है
    प्रहरीदुर्ग—2009 | जुलाई 1
    • राजा सुलैमान यहाँ एक इंसान के भाग्य या उसकी ज़िंदगी के अंजाम के बारे में नहीं बता रहा था। वह दरअसल परमेश्‍वर के मकसद की बात कर रहा था और यह कि इंसानों पर उसका क्या असर होता है। हम यह कैसे कह सकते हैं? आगे-पीछे की आयतों को पढ़कर हम इसी नतीजे पर पहुँचते हैं। जब सुलैमान ने कई बातों का ज़िक्र किया और कहा कि हर बात का ‘एक अवसर होता है,’ तब उसने यह भी लिखा: “मैं ने उस . . . काम को देखा है जो परमेश्‍वर ने मनुष्यों के लिये ठहराया है कि वे उस में लगे रहें। उस ने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं।”—सभोपदेशक 3:10, 11.

      परमेश्‍वर ने इंसानों को बहुत-से काम दिए हैं, जिनमें से कुछ का ज़िक्र सुलैमान ने किया है। और परमेश्‍वर ने हमें कोई भी काम चुनने की आज़ाद मरज़ी भी दी है। लेकिन हर काम को करने का एक मुनासिब वक्‍त होता है जिसके चलते हमें अच्छे नतीजे मिलते हैं। मिसाल के लिए सुलैमान ने सभोपदेशक 3:2 में कहा: “बोने का समय, और बोए हुए को उखाड़ने का भी समय है।” किसान जानते हैं कि बीज बोने का सही वक्‍त या मौसम कौन-सा होता है। अगर किसान इस सीधे-से नियम को नज़रअंदाज़ कर बीज सही मौसम में न बोए तो क्या हो सकता है? बहुत मशक्कत करने के बाद भी, फसल अच्छी नहीं होगी। ऐसे में क्या भाग्य को दोष देना सही होगा? बिलकुल नहीं! उसकी फसल अच्छी न होने की वजह यह है कि उसने सही मौसम में बीज नहीं बोया था। दूसरी तरफ, अगर किसान सिरजनहार के ठहराए प्राकृतिक नियमों के मुताबिक काम करे तो वह अच्छी फसल काटेगा।

      इससे हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर ने न तो किसी का भाग्य लिखा है, न ही घटनाओं का अंजाम, बल्कि उसने हर काम के लिए कुछ नियम या सिद्धांत ठहराए हैं। इंसान के कामों का नतीजा उसके ठहराए सिद्धांतों के मुताबिक चलने या न चलने पर निर्भर करता है। अगर एक इंसान अपने कामों का बढ़िया नतीजा चाहता है तो ज़रूरी है कि वह परमेश्‍वर के मकसद और वक्‍त को समझे और उसके मुताबिक काम करे। जो बात बदली नहीं जा सकती और जो पहले से तय है, वह धरती और इंसानों के लिए ठहराया परमेश्‍वर का मकसद है, न कि भाग्य। अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए यहोवा ने कहा: “उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।”—यशायाह 55:11.

  • हर बात का एक वक्‍त होता है
    प्रहरीदुर्ग—2009 | जुलाई 1
    • परमेश्‍वर के नियत समय को समझना

      सुलैमान इस बारे में कुछ सुराग देता है। यह कहने के बाद कि “[परमेश्‍वर] ने सब कुछ ऐसा बनाया कि अपने अपने समय पर वे सुन्दर होते हैं,” वह कहता है उसने “मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्‍न किया है, तौभी जो काम परमेश्‍वर ने किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता।”—सभोपदेशक 3:11.

      इस आयत पर बहुत कुछ लिखा गया है। लेकिन सीधी-सी बात यह है कि ज़िंदगी के किसी-न-किसी मोड़ पर हमारे दिल में यह सवाल ज़रूर उठता है कि हमारे जीने का मकसद और आखिरी मंज़िल क्या है। सदियों से कुछ लोग ऐसे रहे हैं जिनके यह बात गले नहीं उतरती कि एक इंसान सारी ज़िंदगी मेहनत-मशक्कत करे और आखिरकार मौत उसका चुटकियों में सबकुछ हर ले। सभी जीवित प्राणियों में हम इंसान सबसे अनोखे हैं, जो न सिर्फ आज की ज़िंदगी के बारे में बल्कि अपनी जिंदगी के अंत और उससे आगे के बारे में भी सोचते हैं। यहाँ तक कि हमारे अंदर अनंतकाल तक, जी हाँ हमेशा-हमेशा जीने की तमन्‍ना होती है। वह क्यों? क्योंकि ऊपर लिखी आयत बताती है कि परमेश्‍वर ने “मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्‍न किया है।”

      अपनी इसी तमन्‍ना की वजह से लोगों ने मौत के बाद की ज़िंदगी की धारणा पाल रखी है जो उनकी समझ से परे है। कुछ लोग कहते हैं कि हमारे शरीर में कुछ है जो मौत के बाद भी ज़िंदा रहता है। दूसरे लोग पुनर्जन्म के चक्र में विश्‍वास करते हैं। और कुछ ऐसे भी हैं जो सोचते हैं कि सबकुछ ऊपरवाले के हाथ में है जिसकी मरज़ी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। मगर अफसोस, इनमें से कोई भी धारणा उन्हें पूरी तरह संतुष्ट नहीं करती। क्योंकि बाइबल कहती है कि इंसान चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न कर ले पर “जो काम परमेश्‍वर ने किया है, वह आदि से अन्त तक मनुष्य बूझ नहीं सकता।”

      ज़िंदगी और मौत के बारे में युगों से बड़े-बड़े ज्ञानियों और तत्त्वज्ञानियों ने जानने-समझने की बहुत जद्दोजेहद की है, मगर वे नाकाम रहे हैं। लेकिन जैसा कि हमने देखा, हमेशा तक जीने की तमन्‍ना हमारे मन में परमेश्‍वर ने डाली है। तो क्या इसका संतोषजनक जवाब पाने के लिए हमें उसी की ओर नहीं देखना चाहिए? बाइबल परमेश्‍वर यहोवा के बारे में कहती है: “तू अपनी मुट्ठी खोलता, और प्रत्येक प्राणी की इच्छा को सन्तुष्ट करता है।” (भजन 145:16, NHT) इसलिए अगर हम उसके वचन बाइबल में खोजबीन करें तो हमें ज़िंदगी और मौत के बारे में, साथ ही परमेश्‍वर ने धरती और इंसान के लिए जो मकसद ठहराया है उस बारे में ऐसे जवाब मिलेंगे जिनसे हम पूरी तरह संतुष्ट हो सकते हैं।—इफिसियों 3:11. (w09 3/1)

  • चुनाव करने का वक्‍त
    प्रहरीदुर्ग—2009 | जुलाई 1
    • “परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।”—उत्पत्ति 1:27.

      बाइबल के शुरूआती पन्‍नों पर दिए ये शब्द काफी जाने-माने हैं। ये परमेश्‍वर की महान रचनाओं में से एक के बारे में बताते हैं, जो ‘अपने समय पर सुन्दर थी।’ यह रचना थी, पहले सिद्ध जोड़े आदम और हव्वा की। (सभोपदेशक 3:11) उनकी रचना करनेवाले यहोवा परमेश्‍वर ने उनसे कहा: “फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो; और समुद्र की मछलियों, तथा आकाश के पक्षियों, और पृथ्वी पर रेंगनेवाले सब जन्तुओं पर अधिकार रखो।”—उत्पत्ति 1:28.

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