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‘प्रसन्नता का समय’यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग II
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8. मसीहा के अपने ही लोगों ने उसके साथ क्या किया, मगर वह अपनी कामयाबी का फैसला किस पर छोड़ता है?
8 लेकिन, क्या यह सच नहीं कि यीशु की अपनी ही जाति के ज़्यादातर लोगों ने उसे तुच्छ जानकर ठुकरा दिया था? जी हाँ। कुल मिलाकर इस्राएल जाति ने, यीशु को परमेश्वर के अभिषिक्त दास के रूप में कबूल नहीं किया। (यूहन्ना 1:11) यीशु ने धरती पर जो भी काम किए उसकी उस समय के लोगों ने कदर नहीं की, यहाँ तक कि उन्हें तुच्छ समझा। इस मामले में मसीहा की असफलता उसके अगले शब्दों से ज़ाहिर होती है: “मैं ने तो व्यर्थ परिश्रम किया, मैं ने व्यर्थ ही अपना बल खो दिया है।” (यशायाह 49:4क) लेकिन मसीहा निराश हो जाने की वजह से ऐसा नहीं कहता। उसके अगले शब्दों पर ध्यान दीजिए: “तौभी निश्चय मेरा न्याय यहोवा के पास है और मेरे परिश्रम का फल मेरे परमेश्वर के हाथ में है।” (यशायाह 49:4ख) मसीहा की सेवकाई कामयाब रही या नाकाम, इसका फैसला इंसान नहीं बल्कि परमेश्वर करेगा।
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‘प्रसन्नता का समय’यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग II
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10 आज, यीशु के चेले भी कभी-कभी सोच सकते हैं कि वे व्यर्थ ही परिश्रम कर रहे हैं। कुछ जगहों में ऐसा लग सकता है कि वे प्रचार में जितने घंटे बिताते हैं और जितनी मेहनत करते हैं, उसके हिसाब से उन्हें मिलनेवाला प्रतिफल ना के बराबर है। मगर फिर भी, यीशु की मिसाल याद करके वे हिम्मत पाते हैं। प्रेरित पौलुस के शब्दों से भी उन्हें हौसला मिलता है: “सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।”—1 कुरिन्थियों 15:58.
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