वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • “यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है”
    यहोवा के करीब आओ
    • 17, 18. (क) यशायाह पर उसके दर्शन का पहले क्या असर पड़ा? (ख) यहोवा ने यशायाह की हिम्मत बँधाने के लिए साराप को कैसे इस्तेमाल किया, और साराप ने जो किया उसका क्या अर्थ था?

      17 लेकिन, परमेश्‍वर के इतना पवित्र होने की वजह से क्या हमें खुद को उसके सामने बहुत छोटा महसूस करना चाहिए? जवाब है, बेशक महसूस करना चाहिए। हम यहोवा के आगे वाकई बहुत छोटे हैं, इतने छोटे कि हम उसके साथ खुद की तुलना करने की बात तक नहीं सोच सकते, कहाँ यहोवा और कहाँ हम। लेकिन क्या इस एहसास की वजह से हम परमेश्‍वर से दूर चले जाएँगे? गौर कीजिए कि जब साराप यहोवा की पवित्रता का ऐलान कर रहे थे, तो यशायाह ने क्या कहा। “मैं ने कहा, हाय! हाय! मैं नाश हुआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!” (यशायाह 6:5) जी हाँ, यहोवा की सर्वोच्च पवित्रता ने यशायाह को याद दिलाया कि वह किस कदर पाप में पड़ा हुआ असिद्ध इंसान है। पहले तो, परमेश्‍वर का वह वफादार सेवक इस एहसास की वजह से बेहाल हो गया और हिम्मत हार बैठा। मगर यहोवा ने उसे उस हाल में छोड़ नहीं दिया।

      18 एक साराप ने फौरन इस भविष्यवक्‍ता की हिम्मत बँधायी। कैसे? यह शक्‍तिशाली आत्मिक प्राणी उड़कर वेदी के पास गया, वहाँ से जलता हुआ कोयला उठाकर उसे यशायाह के होठों से छुआया। इससे शायद आपको लगे कि यशायाह के लिए यह वाकया हिम्मत दिलानेवाला तो नहीं मगर दर्दनाक ज़रूर रहा होगा। मगर याद रखिए कि यह एक दर्शन है, और इसकी घटनाओं का गहरा लाक्षणिक अर्थ है। यशायाह एक वफादार यहूदी था। वह अच्छी तरह जानता था कि हर दिन मंदिर की वेदी पर पापों के प्रायश्‍चित्त के लिए बलिदान चढ़ाए जाते थे। और उस साराप ने प्यार से यशायाह को याद दिलाया कि चाहे वह “अशुद्ध होंठवाला” यानी एक असिद्ध इंसान है, फिर भी वह परमेश्‍वर के सामने शुद्ध ठहर सकता है।a यहोवा, एक असिद्ध और पापी इंसान को पवित्र मानने के लिए तैयार था—कम-से-कम कुछ हद तक।—यशायाह 6:6, 7.

  • “यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है”
    यहोवा के करीब आओ
    • a “अशुद्ध होंठवाला,” ये शब्द इस्तेमाल करना बिलकुल सही है, क्योंकि बाइबल में अकसर होंठों को, भाषा या बोली के लिए लाक्षणिक अर्थ में इस्तेमाल किया जाता है। असिद्ध इंसानों में, बहुत-से पाप इसलिए होते हैं क्योंकि हम अपनी ज़बान का सही तरह से इस्तेमाल नहीं करते।—नीतिवचन 10:19; याकूब 3:2, 6.

हिंदी साहित्य (1972-2025)
लॉग-आउट
लॉग-इन
  • हिंदी
  • दूसरों को भेजें
  • पसंदीदा सेटिंग्स
  • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
  • इस्तेमाल की शर्तें
  • गोपनीयता नीति
  • गोपनीयता सेटिंग्स
  • JW.ORG
  • लॉग-इन
दूसरों को भेजें