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“एक नया नाम”यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग II
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13, 14. (क) प्राचीनकाल में यरूशलेम कैसे एक ऐसा नगर बना जिसने लोगों को सुरक्षा दी? (ख) आज के ज़माने में, सिय्योन की “प्रशंसा पृथ्वी पर” कैसे फैली है?
13 यहोवा से एक लाक्षणिक नया नाम पाकर उसके लोग सुरक्षित महसूस करते हैं। वे जानते हैं कि उसने उन्हें स्वीकार किया है और वह उनका मालिक है। अब यहोवा एक और मिसाल देकर, अपने लोगों से ऐसे बात करता है जैसे वे शहरपनाह से घिरा एक नगर हों। “हे यरूशलेम, मैं ने तेरी शहरपनाह पर पहरुए बैठाए हैं; वे दिन-रात कभी चुप न रहेंगे। हे यहोवा को स्मरण करनेवालो, चुप न रहो, और, जब तक वह यरूशलेम को स्थिर करके उसकी प्रशंसा पृथ्वी पर न फैला दे, तब तक उसे भी चैन न लेने दो।” (यशायाह 62:6,7) बाबुल से वफादार शेष लोगों की वापसी के बाद, यहोवा के ठहराए हुए समय पर वाकई यरूशलेम की ‘प्रशंसा पृथ्वी पर फैली’—क्योंकि यह एक ऐसा नगर बन गया जिसकी शहरपनाह के अंदर लोग महफूज़ रहते थे। इसकी शहरपनाह पर दिन-रात पहरुए पहरा लगाते थे, ताकि नगर की सुरक्षा का ध्यान रखें और खतरे को आते देख नगर के निवासियों को चेतावनी देकर चौकन्ना कर दें।—नहेमायाह 6:15; 7:3; यशायाह 52:8.
14 यहोवा ने हमारे ज़माने में अपने अभिषिक्त पहरुओं के ज़रिए नम्र लोगों को झूठे धर्म की बेड़ियों से आज़ाद होने का रास्ता दिखाया है। इन नम्र लोगों को उसके संगठन में आने का बुलावा दिया गया है, जहाँ उन्हें आध्यात्मिक भ्रष्टता, अधर्मी प्रभावों, और यहोवा के क्रोध से सुरक्षा मिलती है। (यिर्मयाह 33:9; सपन्याह 3:19) ऐसी हिफाज़त के लिए पहरुए वर्ग यानी “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का काम बेहद ज़रूरी है जो “समय पर” आध्यात्मिक “भोजन” देता है। (मत्ती 24:45-47) पहरुए वर्ग के साथ काम करते हुए, “बड़ी भीड़” ने भी सिय्योन की ‘प्रशंसा पृथ्वी पर फैलाने’ में बहुत बड़ी भूमिका निभायी है।—प्रकाशितवाक्य 7:9.
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“एक नया नाम”यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग II
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16. किस तरह यहोवा के सेवक उसे ‘चैन नहीं लेने देते’?
16 यहोवा के सेवकों को लगातार उससे यह प्रार्थना करने के लिए उकसाया जाता है कि उसकी “इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो।” (मत्ती 6:9,10; 1 थिस्सलुनीकियों 5:17) उन्हें उकसाया जाता है: “[यहोवा को] तब तक . . . चैन न लेने दो” जब तक सच्ची उपासना के फिर से कायम होने के बारे में हमारी सारी मनसाएँ और उम्मीदें पूरी न हो जाएँ। यीशु ने प्रार्थना में लगे रहने पर ज़ोर दिया और अपने चेलों से गुज़ारिश की कि वे “रात-दिन [परमेश्वर] की दुहाई देते” रहें।—लूका 18:1-8.
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