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  • जातियों के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति
    यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग I
    • 35, 36. प्राचीनकाल में यशायाह 19:23-25 की भविष्यवाणी के पूरा होने की वजह से, मिस्र, अश्‍शूर और इस्राएल के बीच कैसे संबंध हो सके थे?

      35 इसके बाद यशायाह भविष्य में घटनेवाली एक अनोखी घटना देखता है: “उस समय मिस्र से अश्‍शूर जाने का एक राजमार्ग होगा, और अश्‍शूरी मिस्र में आएंगे, और मिस्री लोग अश्‍शूर को जाएंगे, और मिस्री अश्‍शूरियों के संग मिलकर आराधना करेंगे। उस समय इस्राएल, मिस्र और अश्‍शूर तीनों मिलकर पृथ्वी के लिये आशीष का कारण होंगे। क्योंकि सेनाओं का यहोवा उन तीनों को यह कहकर आशीष देगा, धन्य हो मेरी प्रजा मिस्र, और मेरा रचा हुआ अश्‍शूर, और मेरा निज भाग इस्राएल।” (यशायाह 19:23-25) जी हाँ, एक दिन ऐसा आएगा जब मिस्र और अश्‍शूर आपस में दोस्त होंगे। कैसे?

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    यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग I
    • 37. आज लाखों लोग कैसे इस तरीके से जी रहे हैं जैसे मानो “अश्‍शूर” और “मिस्र” के बीच एक राजमार्ग बना हुआ हो?

      37 आज, अभिषिक्‍त आत्मिक इस्राएलियों में से बचे हुए लोग, “पृथ्वी के लिये आशीष का कारण” हैं। वे सच्ची उपासना को बढ़ावा देते हैं और सब देशों के लोगों में परमेश्‍वर के राज्य का ऐलान करते हैं। इनमें से कुछ देश अश्‍शूर जैसे हैं, जिनमें फौज के बल पर तानाशाही चलती है। दूसरे कुछ देश ऐसे हैं जो थोड़े उदार विचारोंवाले हैं, शायद मिस्र के जैसे जो दानिय्येल की भविष्यवाणी के मुताबिक एक वक्‍त पर “दक्खिन देश का राजा” था। (दानिय्येल 11:5,8) तो इस किस्म के सैन्यवादी और उदारवादी दोनों ही तरह के देशों में से लाखों लोगों ने सच्ची उपासना की राह को अपनाया है। इस तरह, सब देशों में से निकले लोग मिलकर ‘आराधना कर रहे हैं।’ इन अलग-अलग देशों के लोगों के बीच राष्ट्र की दीवारें नहीं उठ खड़ी होतीं। वे एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं और इसलिए सही मायनों में कहा जा सकता है कि ‘अश्‍शूरी मिस्र में आते हैं, और मिस्री लोग अश्‍शूर को जाते हैं।’ मानो इन दो देशों के बीच आने-जाने के लिए एक राजमार्ग बना हुआ है।—1 पतरस 2:17.

      38. (क) इस्राएल “मिस्र और अश्‍शूर” के साथ कैसे ‘मिल’ जाता है? (ख) यहोवा क्यों कहता है, “धन्य हो मेरी प्रजा”?

      38 लेकिन, इस्राएल कैसे “मिस्र और अश्‍शूर” के साथ ‘मिल’ जाता है? “अन्तसमय” की जब शुरूआत हुई तो पृथ्वी पर यहोवा की सेवा करनेवालों में ज़्यादातर लोग, “परमेश्‍वर के इस्राएल” यानी अभिषिक्‍तों में से थे। (दानिय्येल 12:9; गलतियों 6:16) सन्‌ 1935 के करीब, ‘अन्य भेड़ों’ की एक बड़ी भीड़ प्रकट हुई है जिसकी आशा इसी पृथ्वी पर जीने की है। (यूहन्‍ना 10:16क, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9) जिन देशों को भविष्यवाणी में मिस्र और अश्‍शूर कहा गया है, उन देशों में से निकलनेवाले ये लोग धारा की तरह यहोवा की उपासना करने के लिए उसके भवन की ओर बढ़े चले आ रहे हैं और वे दूसरों को भी आने का न्यौता दे रहे हैं। (यशायाह 2:2-4) वे भी अपने अभिषिक्‍त भाइयों की तरह प्रचार करते हैं, उन्हीं की तरह परीक्षाओं से गुज़रते हैं, उन्हीं की तरह वफादारी और खराई बनाए रखते हैं और उसी आध्यात्मिक मेज़ से भोजन खाते हैं, जिससे वे खाते हैं। वाकई, अभिषिक्‍त जन और ‘अन्य भेड़ें,’ “एक ही झुण्ड” हैं और उनका “एक ही चरवाहा” है। (यूहन्‍ना 10:16ख) क्या किसी को इस बात पर शक हो सकता है कि यहोवा उनके जोश और धीरज को देखकर, उनके कामों से खुश होता होगा? तो बेशक वह उन्हें आशीष देकर कहता है: “धन्य हो मेरी प्रजा”!

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