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    यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग I
    • नयी जाति का जन्म

      19. हम यह क्यों कह सकते हैं कि सा.यु.पू. छठी सदी में यशायाह की भविष्यवाणी सिर्फ कुछ हद तक ही पूरी हुई थी?

      19 यशायाह के 35वें अध्याय की भविष्यवाणी, सा.यु.पू. छठी सदी में सिर्फ कुछ हद तक ही पूरी हुई थी। अपने वतन लौटे यहूदियों के बीच फिरदौस जैसे हालात ज़्यादा समय तक नहीं बने रहे। समय के गुज़रते, झूठे धर्म की शिक्षाओं और राष्ट्रवाद की भावना से शुद्ध उपासना भ्रष्ट हो गयी। आध्यात्मिक अर्थ में, यहूदी फिर से शोक मनाने और आहें भरने लगे। आखिरकार, ऐसा वक्‍त आया जब यहोवा ने अपने इन चुने हुए लोगों को ठुकरा दिया। (मत्ती 21:43) यहोवा की आज्ञाओं को फिर से तोड़ने की वजह से उनकी खुशी हमेशा कायम नहीं रही। इन सारे सबूतों से पता लगता है कि यशायाह का 35वाँ अध्याय भविष्य में और भी बड़े पैमाने पर पूरा होनेवाला था।

      20. सामान्य युग पहली सदी में किस नए इस्राएल का जन्म हुआ?

      20 यहोवा के ठहराए हुए समय पर, एक और इस्राएल यानी आत्मिक इस्राएल का जन्म हुआ। (गलतियों 6:16) यीशु ने पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के दौरान इस नए इस्राएल के जन्म के लिए माहौल तैयार किया। उसने शुद्ध उपासना फिर से कायम की और उसकी शिक्षाओं के ज़रिए सच्चाई का जल फिर से बहने लगा। उसने लोगों की शारीरिक और आध्यात्मिक बीमारियाँ ठीक कीं। परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने के ज़रिए जयजयकार के शब्द गूँज उठे। अपनी मौत और पुनरुत्थान के सात हफ्ते बाद, महिमा पाए हुए यीशु ने मसीही कलीसिया की स्थापना की। यही कलीसिया आत्मिक इस्राएल थी और इसके सदस्य यहूदी और दूसरी जातियों के लोग भी थे, जिन्हें यीशु के बहाए गए लहू की कीमत से छुड़ाया गया था। परमेश्‍वर के आत्मिक पुत्रों और यीशु के भाइयों के तौर पर उनका नया जन्म हुआ और उन्हें पवित्र आत्मा से अभिषिक्‍त किया गया।—प्रेरितों 2:1-4; रोमियों 8:16,17; 1 पतरस 1:18,19.

  • फिरदौस की वापसी!
    यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला भाग I
    • 21. पहली सदी की मसीही कलीसिया से जुड़ी किन घटनाओं के बारे में कहा जा सकता है कि ये यशायाह की भविष्यवाणी के कुछ भागों की पूर्ति थी?

      21 आत्मिक इस्राएल के सदस्यों को लिखी एक पत्री में प्रेरित पौलुस ने यशायाह 35:3 के शब्दों का हवाला देते हुए कहा: “ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो।” (इब्रानियों 12:12) इससे पता चलता है कि पहली सदी में भी यशायाह के 35वें अध्याय की भविष्यवाणी पूरी हुई। यीशु और उसके चेलों ने चमत्कारों के ज़रिए वाकई अंधों को आँखें और बहिरों को सुनने की शक्‍ति दी। उनके चमत्कार से ‘लंगड़े’ चलने लगे और गूंगे बोलने लगे। (मत्ती 9:32; 11:5; लूका 10:9) लेकिन इससे भी अहम बात यह थी कि नेकदिल इंसान झूठे धर्म के चंगुल से आज़ाद हुए और उन्होंने मसीही कलीसिया में आध्यात्मिक फिरदौस की आशीष पायी। (यशायाह 52:11; 2 कुरिन्थियों 6:17) बाबुल से लौटनेवाले यहूदियों की तरह, इन आज़ाद लोगों को भी यह एहसास हुआ कि सही नज़रिया बनाए रखना और हिम्मत से काम लेना उनके लिए बेहद ज़रूरी है।—रोमियों 12:11.

      22. आज के ज़माने में, दिल से सच्चाई की खोज करनेवाले मसीही बाबुल के गुलाम कैसे हो गए?

      22 अब हमारे दिनों के बारे में क्या? क्या यशायाह की भविष्यवाणी, आज हमारे ज़माने में मसीही कलीसिया पर और भी अच्छी तरह पूरी होनी थी? जी हाँ। प्रेरितों की मौत के बाद, सच्चे अभिषिक्‍त मसीहियों की गिनती बहुत कम हो गयी और झूठे मसीही, यानी “जंगली दाने” सारी दुनिया में फलने-फूलने लगे। (मत्ती 13:36-43; प्रेरितों 20:30; 2 पतरस 2:1-3) यहाँ तक कि उन्‍नीसवीं सदी के दौरान, हालाँकि सच्चे दिल के लोग ईसाईजगत से अलग होकर शुद्ध उपासना करने लगे थे, मगर अब भी बाइबल के बारे में उनकी समझ में झूठी शिक्षाओं का असर देखा जा सकता था। सन्‌ 1914 में यीशु को मसीहाई राजा के तौर पर विराजमान किया गया मगर इसके कुछ ही समय बाद, सच्चाई की दिल से खोज करनेवाले इन लोगों की दशा इतनी बुरी हो गयी कि उनके लिए कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। भविष्यवाणी में कहे अनुसार, दुनिया के देश इनसे ‘लड़कर जीत गए’ और सुसमाचार सुनाने की इन सच्चे मसीहियों की कोशिशों पर बंदिश लगा दी गयी। इस तरह, वे बाबुल के गुलाम हो गए।—प्रकाशितवाक्य 11:7, 8.

      23, 24. सन्‌ 1919 से परमेश्‍वर के लोगों के बीच यशायाह की भविष्यवाणी किन तरीकों से पूरी हो रही है?

      23 लेकिन, 1919 में हालात बदल गए। यहोवा ने अपने लोगों को कैद से छुड़ा दिया। वे उन झूठी शिक्षाओं को ठुकराने लगे जिनकी वजह से उनकी उपासना पहले भ्रष्ट हो गयी थी। नतीजा यह हुआ कि उन्होंने आध्यात्मिक चंगाई का आनंद लिया। वे आध्यात्मिक फिरदौस में आ गए, जिसकी सरहदें आज भी सारी पृथ्वी पर फैलती जा रही हैं। आज आध्यात्मिक अर्थ में, अंधे देखना और बहिरे सुनना सीख रहे हैं यानी वे जान गए हैं कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा किस तरह काम कर रही है और उन्हें हमेशा यह एहसास रहता है कि यहोवा के करीब रहना कितना ज़रूरी है। (1 थिस्सलुनीकियों 5:6; 2 तीमुथियुस 4:5) सच्चे मसीही अब गूंगे नहीं रहे, इसलिए वे दूसरों को बड़े उत्साह से बाइबल की सच्चाइयाँ बताकर “जयजयकार” कर रहे हैं। (रोमियों 1:15) जो पहले आध्यात्मिक रीति से ‘लंगड़े’ या कमज़ोर थे उनमें अब जोश और खुशी झलक रही है। लाक्षणिक अर्थ में, वे “हरिण की सी चौकड़िया” भरने के काबिल हो गए हैं।

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