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  • यहोवा मेरा भाग है
    प्रहरीदुर्ग—2011 | सितंबर 15
    • यहोवा निजी तौर पर उनका भाग था

      8. बताइए कि लेवी आसाप ने किस परेशानी का सामना किया।

      8 बेशक, लेवी के पूरे गोत्र को यहोवा को अपना भाग बनाना था। लेकिन गौरतलब है कि लेवियों ने निजी तौर पर भी परमेश्‍वर के प्रति अपनी भक्‍ति और भरोसा दिखाने के लिए कहा कि “यहोवा मेरा भाग है।” (विला. 3:24) ऐसा ही एक लेवी था आसाप, जो गायक और रचनाकार था। वह शायद राजा दाविद के ज़माने के आसाप के घराने से था, जो गायकों को निर्देशन देता था। (1 इति. 6:31-43) भजन 73 में हम पढ़ते हैं कि आसाप (या उसका एक वंशज़) एक बार कशमकश में पड़ गया और उन दुष्टों से जलने लगा जो ऐशो-आराम की ज़िंदगी जी रहे थे। उसने यहाँ तक कहा कि “निश्‍चय, मैं ने अपने हृदय को व्यर्थ शुद्ध किया और अपने हाथों को निर्दोषता में धोया है।” ज़ाहिर है परमेश्‍वर की सेवा के लिए उसके दिल में कोई कदर नहीं रह गयी थी और उसने यहोवा को अपना भाग समझना छोड़ दिया था। और “जब तक कि [वह] ईश्‍वर के पवित्रस्थान में” नहीं आया तब तक वह आध्यात्मिक तौर पर परेशान रहा।—भज. 73:2, 3, 12, 13, 17.

  • यहोवा मेरा भाग है
    प्रहरीदुर्ग—2011 | सितंबर 15
    • 11. यिर्मयाह के मन में क्या सवाल उठा और उसका जवाब कैसे दिया गया?

      11 एक और लेवी, भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने ‘यहोवा को अपना भाग’ कहा। आइए देखें जब उसने यह बात कही तो उसका क्या मतलब था। यिर्मयाह लेवियों के शहर अनातोत में रहता था जो यरूशलेम के करीब था। (यिर्म. 1:1) एक बार यिर्मयाह सोच में पड़ गया: दुष्ट लोग क्यों मज़े से जी रहे हैं जबकि धर्मी तड़प रहे हैं? (यिर्म. 12:1) यरूशलेम और यहूदा की हालत देखकर वह “मुक़द्दमा” यानी “शिकायत” (बुल्के बाइबिल) करने पर मजबूर हो गया था। यिर्मयाह जानता था कि यहोवा धर्मी है। यहोवा ने उसे भविष्यवाणियों का ऐलान करने का काम सौंपा और बाद में जब वे पूरी हुईं तब उसे अपने सवाल का जवाब मिल गया। परमेश्‍वर की भविष्यवाणियों के मुताबिक जिन्होंने यहोवा के निर्देशन माने वे ‘जीवित रहे और उनके प्राण बचे।’ जबकि परमेश्‍वर की चेतावनी को नज़रअंदाज़ करके ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीनेवाले दुष्ट खाक में मिल गए।—यिर्म. 21:9.

      12, 13. (क) किस बात ने यिर्मयाह को यह कहने के लिए उभारा कि “यहोवा मेरा भाग है” और उसने कैसा रवैया दिखाया? (ख) इसराएल के सभी गोत्रों को क्यों यिर्मयाह की तरह आशा रखने की ज़रूरत थी?

      12 आगे चलकर जब यिर्मयाह ने अपने देश को उजाड़ पड़ा देखा, तो उसे लगा मानो वह अंधकार में है। उसे लगा जैसे यहोवा ने उसे “मरे हुए लोगों के समान अन्धेरे स्थानों में बसा दिया है।” (विला. 1:1, 16; 3:6) उसने इसराएलियों को पहले से चिताया था कि वे परमेश्‍वर के पास लौट आएँ, मगर इस अड़ियल जाति की दुष्टता इतनी बढ़ गयी कि आखिरकार यहोवा को यरूशलेम और यहूदा को नाश करना पड़ा। हालाँकि यिर्मयाह ने कोई गलती नहीं की थी, फिर भी इस हालात से वह बड़ा दुखी हुआ। इस दौरान उसने परमेश्‍वर की दया को स्मरण किया और कहा: “हम मिट नहीं गए।” वाकई यहोवा की दया हर दिन देखी जा सकती है! ऐसे ही वक्‍त में यिर्मयाह ने ऐलान किया कि “यहोवा मेरा भाग है” क्योंकि भविष्यवक्‍ता के तौर पर यहोवा अब भी उसका इस्तेमाल कर रहा था।—विलापगीत 3:22-24 पढ़िए।

      13 इसराएलियों का देश 70 साल तक उजाड़ पड़ा रहता। (यिर्म. 25:11) लेकिन जब यिर्मयाह ने कहा कि “यहोवा मेरा भाग है” तब उसने परमेश्‍वर की दया पर अपना भरोसा ज़ाहिर किया, जिससे उसे भविष्य के लिए “आशा” मिली यानी इंतज़ार करने का एक ठोस कारण। इसराएल के सारे गोत्र अपनी ज़मीन खो चुके थे, इसलिए उन्हें इस भविष्यवक्‍ता के जैसा रवैया दिखाने की ज़रूरत थी। यहोवा ही उनका आखिरी आसरा था। सत्तर साल के बाद वे वापस अपने देश आए और उन्हें फिर से सेवा करने का सम्मान मिला।—2 इति. 36:20-23.

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