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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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1, 2. यहेजकेल 47:1-12 के मुताबिक यहेजकेल क्या देखता है और स्वर्गदूत उसे क्या बताता है? (शुरूआती तसवीर देखें।)
यहेजकेल मंदिर के दर्शन में एक और अनोखी बात देखता है। इस पवित्र भवन से एक नदी बह रही है जिसका पानी बिल्लौर जितना साफ है। कल्पना कीजिए कि यहेजकेल उसकी बहती धारा के साथ-साथ चल रहा है। (यहेजकेल 47:1-12 पढ़िए।) यह धारा मंदिर की दहलीज़ से शुरू होती है, जहाँ यह हलकी-हलकी बहती है। फिर यह मंदिर के पूरबवाले दरवाज़े के पास से होती हुई निकलती है। मंदिर का दौरा करानेवाला स्वर्गदूत अब यहेजकेल को पानी की धारा के साथ-साथ आगे ले जा रहा है। जैसे-जैसे वे मंदिर से दूर जा रहे हैं, स्वर्गदूत दूरी नापता जाता है और बीच-बीच में यहेजकेल से पानी की धारा पार करने के लिए कहता है। यहेजकेल देखता है कि नदी गहरी होती जा रही है। आगे चलकर वह इतनी गहरी हो जाती है कि अब यहेजकेल उसे चलकर पार नहीं कर सकता, उसे तैरना होगा।
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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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5. नदी के बारे में जानकर यहूदियों की चिंताएँ क्यों दूर हो गयी होंगी?
5 जब यहूदी अपने देश लौटते, तो क्या वे उम्मीद कर सकते थे कि सबको भरपूर आशीषें मिलेंगी? अगर उन्हें इस बात की चिंता रही होगी, तो नदी के दर्शन से उनकी चिंताएँ दूर हो गयी होंगी। दर्शन में पानी की जो धारा शुरू में हलकी-हलकी बह रही थी, वह आगे गहरी होती गयी और बस दो किलोमीटर आगे जाकर एक उमड़ती नदी बन गयी। (यहे. 47:3-5) दोबारा बसाए गए देश में लोगों की आबादी चाहे जितनी भी बढ़ जाए, उन्हें कभी यहोवा की आशीषों की कमी नहीं होगी। नदी के दर्शन से उन्हें यकीन हुआ होगा कि उन्हें लगातार और भरपूर आशीषें मिलती रहेंगी।
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