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  • हलकी-हलकी बहती धारा एक नदी बन जाती है!
    सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
  • ‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’
    सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
    • 11 सन्‌ 1919 में यहोवा के सेवकों की गिनती सिर्फ कुछ हज़ारों में थी। उन्हें परमेश्‍वर के वचन की अच्छी खुराक दी गयी, इसलिए वे सच्चाई में मज़बूत होते गए। बाद के दशकों में उनकी गिनती तेज़ी से बढ़ने लगी। आज परमेश्‍वर के लोगों की गिनती 80 लाख से भी ज़्यादा है। उनकी गिनती जिस रफ्तार से बढ़ती गयी, क्या आशीषों की नदी भी उसी रफ्तार से बहती गयी? बिलकुल। सच्चाई के शुद्ध पानी की धारा तेज़ी से बह रही है। पिछले सौ सालों के दौरान परमेश्‍वर के लोगों के लिए अरबों की तादाद में बाइबलें, किताबें, पत्रिकाएँ, ब्रोशर और ट्रैक्ट निकाले गए। जैसे दर्शन में नदी उमड़ती गयी, ठीक उसी तरह सच्चाई का ज्ञान बहुतायत में उपलब्ध कराया जा रहा है। बाइबल की समझ देनेवाली किताबें-पत्रिकाएँ छापकर दुनिया के कोने-कोने तक पहुँचायी जा रही हैं ताकि जो सच्चाई के प्यासे हैं, वे इनसे फायदा पा सकें। इस तरह के प्रकाशन इलेक्ट्रॉनिक रूप में आज jw.org® वेबसाइट पर 900 से ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध हैं। सच्चाई का यह जल नेकदिल वालों पर कैसा असर कर रहा है?

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