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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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6. (क) नदी के दर्शन से लोगों को किस बात का यकीन हुआ होगा? (ख) इस दर्शन से उन्होंने और क्या जाना? (फुटनोट देखें।)
6 जीवन देनेवाला पानी। दर्शन में नदी मृत सागर में जा मिलती है जिससे उसका खारा पानी मीठा हो जाता है। इससे मृत सागर में मछलियों की भरमार हो जाती है, जैसे महासागर या भूमध्य सागर में होती है। यहाँ तक कि मृत सागर के किनारे दो नगरों के बीच मछुवाई का एक बड़ा कारोबार शुरू हो जाता है। ये दो नगर एक-दूसरे से बहुत दूर हैं। यह दिखाता है कि कारोबार कितने बड़े पैमाने पर हो रहा है। स्वर्गदूत यहेजकेल को बताता है, ‘जहाँ कहीं नदी का पानी बहेगा, वहाँ हर तरह का समुद्री जीव ज़िंदा रह पाएगा।’ क्या इसका यह मतलब है कि यहोवा के मंदिर से निकलनेवाला पानी पूरे मृत सागर में मिलकर उसके पानी को मीठा बना देगा? जी नहीं। स्वर्गदूत ने यहेजकेल को बताया कि मृत सागर के कुछ दलदल वाले इलाकों तक नदी का पानी नहीं पहुँचेगा। इसलिए उन इलाकों का पानी “खारा ही रहेगा।”b (यहे. 47:8-11) नदी के दर्शन से लोगों को यकीन हुआ होगा कि शुद्ध उपासना ज़रूर बहाल होगी, जिसकी वजह से उनमें एक तरह से दोबारा जान आ जाएगी। उन्होंने यह भी जाना कि कुछ लोग यहोवा की आशीषों की कदर नहीं करेंगे और न ही लाक्षणिक तौर पर चंगे होंगे।
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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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b बाइबल पर टिप्पणी देनेवाले कुछ लोगों का मानना है कि इन आयतों में किसी अच्छी घटना की बात की गयी है, क्योंकि लंबे समय से मृत सागर से नमक इकट्ठा करने का फलता-फूलता कारोबार चलता आया है। लेकिन ध्यान दीजिए कि भविष्यवाणी में साफ कहा गया है कि वहाँ की कीचड़ वाली जगहों का पानी “खारा ही रहेगा।” वहाँ का पानी बेकार ही रहेगा, क्योंकि यहोवा के मंदिर से जीवन देनेवाला पानी उन जगहों तक नहीं पहुँचेगा। इसलिए ऐसा मालूम पड़ता है कि इन इलाकों का खारापन बुरी बातों को दर्शाता है।—भज. 107:33, 34; यिर्म. 17:6.
c यीशु ने बड़े जाल के उदाहरण में भी कुछ ऐसी ही बात बतायी थी। जाल में भले ही बहुत-सी मछलियाँ फँसती हैं, मगर सारी मछलियाँ “अच्छी” नहीं होतीं। बेकार मछलियों को फेंक दिया जाता है। यह उदाहरण देकर यीशु बताना चाह रहा था कि यहोवा के संगठन की संगति करनेवाले कुछ लोग वक्त के चलते बेकार मछलियाँ साबित होंगे।—मत्ती 13:47-50; 2 तीमु. 2:20, 21.
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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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b बाइबल पर टिप्पणी देनेवाले कुछ लोगों का मानना है कि इन आयतों में किसी अच्छी घटना की बात की गयी है, क्योंकि लंबे समय से मृत सागर से नमक इकट्ठा करने का फलता-फूलता कारोबार चलता आया है। लेकिन ध्यान दीजिए कि भविष्यवाणी में साफ कहा गया है कि वहाँ की कीचड़ वाली जगहों का पानी “खारा ही रहेगा।” वहाँ का पानी बेकार ही रहेगा, क्योंकि यहोवा के मंदिर से जीवन देनेवाला पानी उन जगहों तक नहीं पहुँचेगा। इसलिए ऐसा मालूम पड़ता है कि इन इलाकों का खारापन बुरी बातों को दर्शाता है।—भज. 107:33, 34; यिर्म. 17:6.
c यीशु ने बड़े जाल के उदाहरण में भी कुछ ऐसी ही बात बतायी थी। जाल में भले ही बहुत-सी मछलियाँ फँसती हैं, मगर सारी मछलियाँ “अच्छी” नहीं होतीं। बेकार मछलियों को फेंक दिया जाता है। यह उदाहरण देकर यीशु बताना चाह रहा था कि यहोवा के संगठन की संगति करनेवाले कुछ लोग वक्त के चलते बेकार मछलियाँ साबित होंगे।—मत्ती 13:47-50; 2 तीमु. 2:20, 21.
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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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12. (क) सच्चाई जानने से लोगों को कैसे फायदा हुआ है? (ख) इस दर्शन से हमें क्या चेतावनी मिलती है? (फुटनोट भी देखें।)
12 जीवन देनेवाला पानी। यहेजकेल को स्वर्गदूत ने बताया था, ‘जहाँ कहीं नदी का पानी बहेगा, वहाँ हर तरह का जीव ज़िंदा रह पाएगा।’ यह बात आज कैसे पूरी हो रही है? आज सच्चाई का जल लाखों लोगों तक पहुँच रहा है और वे इसे स्वीकार करके फिरदौस जैसे माहौल में जी रहे हैं। ऐसे लोगों पर जीवन के जल का बढ़िया असर हो रहा है। सच्चाई जानने से उन्हें नयी ज़िंदगी मिल गयी है और वे यहोवा पर मज़बूत विश्वास पैदा कर पाए हैं। दर्शन से हमने यह भी सीखा कि कुछ लोग बाद में सच्चाई के मुताबिक चलना छोड़ देते हैं। उनका दिल मृत सागर के दलदल और कीचड़ वाले इलाकों जैसा हो जाता है, इसलिए वे सच्चाई की कदर नहीं करते और उसके मुताबिक जीना छोड़ देते हैं।c मगर हमें ध्यान रखना है कि हमारे अंदर ऐसा रवैया न पैदा हो।—व्यवस्थाविवरण 10:16-18 पढ़िए।
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‘जहाँ कहीं नदी बहेगी, वहाँ हर जीव ज़िंदा रह पाएगा’सारी धरती पर यहोवा की शुद्ध उपासना बहाल!
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14, 15. (क) दलदली जगहों के बारे में जानकर हमें क्या सबक मिलता है? (ख) आज हम कैसी आशीषें पा रहे हैं?
14 इस दर्शन से हमें एक चेतावनी भी मिलती है। याद कीजिए कि जो-जो जगह दलदली थीं, वहाँ का पानी मीठा नहीं हुआ बल्कि खारा ही रहा। इससे हम सीखते हैं कि हमारे अंदर ऐसा कोई रवैया नहीं पैदा होना चाहिए जिससे यहोवा की आशीषों की धारा हम तक न पहुँचे। अगर ऐसा होगा, तो हम भी दुनिया के लोगों की तरह बीमार हालत में ही रहेंगे। (मत्ती 13:15) इसके बजाय हम आशीषों की इस नदी से लुत्फ उठाते रहना चाहते हैं। आज हम कई तरीकों से ये आशीषें पा रहे हैं। जैसे, परमेश्वर के वचन की अनमोल सच्चाइयों की समझ हमें मिल रही है, हमें दूसरों को भी ये सच्चाइयाँ सिखाने का मौका मिला है और हमें सही मार्गदर्शन, सलाह और दिलासा देने के लिए प्राचीन भी हैं जिन्हें विश्वासयोग्य दास ने प्रशिक्षण दिया है। जब हम इन सारी आशीषों की कदर करते हैं, तो हम मानो उस नदी का शुद्ध पानी पीकर तृप्त होते हैं। जहाँ-जहाँ आशीषों की यह नदी बहती है, वह रोग दूर करती है और जीवन देती है।
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