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  • हमारे “देश” पर यहोवा की आशीष
    प्रहरीदुर्ग—1999 | मार्च 1
    • १५. क्या बात दिखाती है कि हर कोई जीवन पाने के लिए परमेश्‍वर के इंतज़ाम को स्वीकार नहीं करेगा और ऐसे लोगों का क्या अंजाम होगा?

      १५ बेशक, आज सभी लोग जीवन के संदेश को सुनना नहीं चाहते, न ही मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान जी उठनेवालों में से सभी लोग इसे सुनना चाहेंगे। (यशायाह ६५:२०; प्रकाशितवाक्य २१:८) स्वर्गदूत ऐलान करता है कि सागर के कुछ भागों की चंगाई नहीं होती। ये बेजान जगहें या दलदल, “खारे ही रहेंगे।” (यहेजकेल ४७:११) हमारे समय में, जिन लोगों को यहोवा का जीवन देनेवाला जल दिया जाता है उनमें से सभी लोग इसे स्वीकार नहीं करते। (यशायाह ६:१०) ऐसे सभी लोग जो आध्यात्मिक रूप से बेजान और बीमार रहना पसंद करते हैं, अरमगिदोन में खारे ही रहेंगे यानी हमेशा के लिए नाश हो जाएँगे। (प्रकाशितवाक्य १९:११-२१) लेकिन, इस जल को लगातार पीनेवाले लोग यह उम्मीद रख सकते हैं कि वे बच निकलेंगे और इस भविष्यवाणी को आखिरी बार पूरा होता हुआ देखेंगे।

  • हमारे “देश” पर यहोवा की आशीष
    प्रहरीदुर्ग—1999 | मार्च 1
    • १८ मसीह के हज़ार साल के राज्य में तन-मन की सारी बीमारियाँ और तकलीफें दूर की जाएँगी। यह बात दर्शन में पेड़ों से ‘जाति जाति के लोगों के चंगा होने’ से दिखाई गई है। मसीह और १,४४,००० जन परमेश्‍वर द्वारा किए गये इंतज़ाम का फायदा हम तक पहुँचाएँगे जिसका नतीजा यह होगा कि “कोई निवासी न कहेगा कि मैं रोगी हूं।” (यशायाह ३३:२४) और उस वक्‍त यह नदी की धारा अपनी आखिरी सीमा तक फैल जाएगी। तब इसका और ज़्यादा चौड़ा और गहरा होना ज़रूरी हो जाएगा ताकि नई दुनिया में जी उठनेवाले करोड़ों या शायद अरबों लोग इसमें से जीवन का शुद्ध जल पी सकें। दर्शन में, नदी ने मृत सागर को चंगा किया और जहाँ कहीं उसका पानी पहुँचा वहाँ जीवन फलने-फूलने लगा। उसी तरह नयी दुनिया में स्त्री और पुरुष सही मायनों में जीने लगेंगे, क्योंकि छुड़ौती से मिलनेवाले फायदों पर विश्‍वास जताने की वज़ह से उन्हें आदम से विरासत में मिली मौत से चंगा किया जाएगा। प्रकाशितवाक्य २०:१२ में भविष्यवाणी बताती है कि तब “पुस्तकें” खोली जाएँगी जिनसे उस वक्‍त जी उठनेवालों को ज़्यादा समझ और रोशनी मिलेगी। अफसोस की बात है कि उस नयी दुनिया में भी कुछ लोग चंगा नहीं होना चाहेंगे। ये विद्रोही “खारे ही रहेंगे,” यानी हमेशा के लिए नाश कर दिए जाएँगे।—प्रकाशितवाक्य २०:१५.

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