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  • हाकिमों के हाकिम के सामने कौन ठहर सकता है?
    दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें!
    • 21. आज उस “पवित्रस्थान” में कौन हैं जिसे सातवीं विश्‍वशक्‍ति उजाड़ने की कोशिश करती है?

      21 इस पृथ्वी पर बचे हुए ये अभिषिक्‍त मसीही, परमेश्‍वर के नगर “स्वर्गीय यरूशलेम” और शुद्ध उपासना के उसके इंतज़ाम के दूत हैं। (इब्रानियों 12:22, 28; 13:14) इसी मायने में ये अभिषिक्‍त मसीही एक “पवित्रस्थान” में हैं, जिसे यह सातवीं विश्‍वशक्‍ति रौंदकर उजाड़ देना चाहती है। (दानिय्येल 8:13) दानिय्येल इस पवित्रस्थान को “[यहोवा का] पवित्र वासस्थान” भी कहता है। दानिय्येल आगे बताता है: “उसका [यहोवा का] नित्य होमबलि बन्द कर दिया गया; और उसका पवित्र वासस्थान गिरा दिया गया। और . . . अपराध के कारण नित्य होमबलि के साथ सेना भी उसके हाथ में कर दी गई, और उस सींग ने सच्चाई को मिट्टी में मिला दिया, और वह काम करते करते सफल हो गया।” (दानिय्येल 8:11, 12) यह भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई?

      22. दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान सातवीं विश्‍वशक्‍ति ने कौन-सा बड़ा “अपराध” किया?

      22 यह जानने के लिए आइए देखें कि दूसरे विश्‍वयुद्ध में यहोवा के साक्षियों के साथ क्या हुआ। उन्हें बहुत बुरी तरह सताया गया! ये ज़ुल्म सबसे पहले हिटलर के नाज़ीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद पर चलनेवाले देशों में शुरू हुए। लेकिन बहुत जल्द उन्हें हर ऐसे देश में सताया जाने लगा जहाँ ‘बड़ी सामर्थ पानेवाले’ उस छोटे सींग यानी ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति की हुकूमत थी। उसके पूरे साम्राज्य में हर जगह ‘सच्चाई को मिट्टी में मिलाया जाने लगा।’ इस दौरान ब्रिटेन राष्ट्रमंडल के लगभग सभी देशों में परमेश्‍वर के राज्य का प्रचार करनेवालों की ‘सेना’ पर और “सुसमाचार” सुनाने के उनके काम पर पाबंदी लगा दी गई। (मरकुस 13:10) इन राष्ट्रों ने यहोवा के साक्षियों को सैनिक-सेवा में जबरन भरती करने की कोशिश की और उन्हें वह छूट नहीं दी जो आम तौर पर वे दूसरे धार्मिक सेवकों को दे रहे थे। उन्होंने इस बात के लिए बिलकुल लिहाज़ नहीं दिखाया कि ये साक्षी परमेश्‍वर यहोवा के सेवक हैं। अमरीका में लोगों की भीड़ की भीड़ ने जगह-जगह पर यहोवा के कितने ही वफादार सेवकों को मारा-पीटा और बहुतों के साथ वहशियों की तरह बुरा सलूक किया। ऐसा करके इस ब्रिटेन-अमरीकी सातवीं विश्‍वशक्‍ति ने यह कोशिश की कि यहोवा के लोग “नित्य होमबलि” के रूप में अपने परमेश्‍वर को जो स्तुतिरूपी बलिदान या अपने “होठों का फल” चढ़ा रहे थे उसे भी बंद कर दे। (इब्रानियों 13:15) इस तरह इस विश्‍वशक्‍ति ने परमप्रधान परमेश्‍वर की अपनी रियासत, उसके ‘पवित्र वासस्थान’ में घुसने का “अपराध” किया।

  • हाकिमों के हाकिम के सामने कौन ठहर सकता है?
    दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें!
    • “पवित्रस्थान” शुद्ध किया जाता है

      24. दानिय्येल 8:14 हमें क्या यकीन दिलाता है?

      24 हाकिमों के हाकिम के सामने कोई नहीं ठहर सकता, यहाँ तक कि ‘क्रूर दृष्टिवाला’ राजा, ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति भी नहीं! परमेश्‍वर के वासस्थान को उजाड़ने की इस राजा की सारी कोशिशें नाकाम रहीं। क्योंकि स्वर्गदूत कहता है कि ‘दो हजार तीन सौ बार सांझ और सवेरा होने के बाद’ “पवित्रस्थान शुद्ध [“पुनः प्रतिष्ठित,” NHT] किया जाएगा” या “उसकी जीत होगी।”—दानिय्येल 8:13, 14; द न्यू इंगलिश बाइबल।

      25. भविष्यवाणी में बताए गए 2,300 दिन कुल कितना समय था, और ये दिन कब बीते?

      25 स्वर्गदूत ने 2,300 दिन बीतने की भविष्यवाणी की थी। यह समय कितना लंबा था यह समझने में हमें बाइबल की दूसरी भविष्यवाणियाँ मदद करती हैं, जिनसे हमें पता चलता है कि इस भविष्यवाणी में भी 360 दिन एक साल के बराबर हैं। (प्रकाशितवाक्य 11:2, 3; 12:6, 14) इस हिसाब से ये 2,300 दिन कुल मिलाकर 6 साल, 4 महीने, और 20 दिन हुए। लेकिन ये दिन कब बीते? ज़रा ध्यान दीजिए कि सन्‌ 1930 के बाद के सालों में बहुत से देशों में यहोवा के साक्षियों को सताया जाने लगा। और 1939-45 में दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान तो ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति के देशों में साक्षियों पर बड़ी बेरहमी से ज़ुल्म ढाए जाने लगे। किस लिए? क्योंकि वे हर हाल में ‘मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन’ करना चाहते थे। (प्रेरितों 5:29) इसलिए ये 2,300 दिन दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान बीते।b लेकिन भविष्यवाणी के ये 2,300 दिन कब शुरू हुए और कब खत्म?

      26. (क) 2,300 दिनों की शुरूआत कब हुई? (ख) ये 2,300 दिन कब खत्म हुए?

      26 इन 2,300 दिनों के खत्म होने पर ‘पवित्रस्थान पुनः प्रतिष्ठित’ या फिर से शुद्ध किया जाता। इसका मतलब है कि इन 2,300 दिनों के शुरू होने से पहले “पवित्रस्थान” यहोवा की कसौटी के मुताबिक “शुद्ध” था। यह समय था जून 1, 1938, जब इस बात पर ज़ोर दिया गया कि संगठन का हर काम बाइबल में दिए गए परमेश्‍वर के उसूलों के मुताबिक किया जाना चाहिए और इसी सिलसिले में प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में “संगठन” विषय पर जून 1 और जून 15, 1938 में दो लेख छपे थे। लेकिन इसी साल जून, 1938 से ब्रिटेन-अमरीकी विश्‍वशक्‍ति ने परमेश्‍वर के अभिषिक्‍तों के संगठन या पवित्रस्थान को उजाड़ने के लिए उन पर ज़ुल्म ढाना शुरू कर दिया। इसलिए जून 1 या 15, 1938 से इन 2,300 दिनों की शुरूआत हुई। तब से अगर हम 2,300 दिन (यहूदी कैलेंडर में 6 साल, 4 महीने, और 20 दिन) गिनें तो हम यह कह सकते हैं कि ये दिन अक्‍तूबर 8 या 22, 1944 को खत्म हुए। ऐसा कैसे कहा जा सकता है कि इसी वक्‍त ‘पवित्रस्थान को पुनः प्रतिष्ठित’ या फिर से शुद्ध किया गया? इसलिए क्योंकि सन्‌ 1944 में ही एक बार फिर, इतने लंबे समय के बाद परमेश्‍वर के संगठन में बाइबल के उसूलों के मुताबिक काम करने पर पहले से भी ज़्यादा ज़ोर दिया गया। सितंबर 30 और अक्‍तूबर 1, 1944 को पिट्‌सबर्ग, पेन्सिलवेनिया, अमरीका में एक खास सम्मेलन के पहले दिन वॉच टावर सोसाइटी के अध्यक्ष ने जिस विषय पर भाषण दिया वह था, “आज परमेश्‍वर की माँगों के मुताबिक संगठन में सुधार करना।” अक्‍तूबर 2, को सालाना मीटिंग में संस्था की नियमावली (चार्टर) में सुधार किया गया ताकि संगठन का सारा प्रबंध परमेश्‍वर के ठहराए हुए कायदे-कानूनों के मुताबिक हो। और यह भी ध्यान रखा गया कि यह देश के कानून की हद में रहकर किया जाए। और जब संस्था की पत्रिकाओं के ज़रिये सभी कलीसियाओं को अच्छी तरह यह समझाया गया कि परमेश्‍वर के संगठन के अधीन होने के लिए उसकी माँगें क्या हैं, तो यहोवा के साक्षियों की सभी कलीसियाओं में तेज़ी से और अच्छी तरह ये इंतज़ाम लागू किए गए।

      27. इस बात का क्या सबूत है कि दूसरे विश्‍व युद्ध के दौरान ज़ुल्म ढाए जाने के कारण परमेश्‍वर के लोगों के लिए ‘नित्य होमबलि’ चढ़ाना बहुत मुश्‍किल हो गया था?

      27 सन्‌ 1939 में जब दूसरे विश्‍वयुद्ध के दौरान 2,300 दिनों का यह समय चल रहा था, तब परमेश्‍वर के लोगों पर इस कदर ज़ुल्म ढाए जा रहे थे कि उनके लिए परमेश्‍वर के वासस्थान में ‘नित्य होमबलि’ चढ़ाना बहुत मुश्‍किल हो गया था। सन्‌ 1938 में दुनिया भर में साक्षियों के काम की निगरानी करने के लिए वॉच टावर संस्था की 39 शाखाएँ थीं लेकिन सन्‌ 1943 तक इनमें से सिर्फ 21 ही रह गईं। इस दौरान राज्य की खुशखबरी सुनानेवालों की गिनती में भी बहुत कम बढ़ोतरी हुई।

      28, 29. (क) जब दूसरा विश्‍व युद्ध खत्म होने पर था तब यहोवा के संगठन में क्या-क्या हुआ? (ख) “पवित्रस्थान” को उजाड़ने की दुश्‍मन की कोशिशों के बारे में क्या कहा जा सकता है?

      28 जैसा हमने देखा, दूसरे विश्‍वयुद्ध के आखिरी महीनों में यहोवा के साक्षियों ने दोबारा यह संकल्प किया कि वे परमेश्‍वर के संगठन में बाइबल के उसूलों के मुताबिक काम करके परमेश्‍वर की हुकूमत को बुलंद करेंगे। इसी को ध्यान में रखते हुए सन्‌ 1944 में साक्षियों ने अपने काम का बेहतर इंतज़ाम करने और संगठन में निगरानी के इंतज़ाम में सुधार करने के लिए ठोस कदम उठाए। दरअसल अक्‍तूबर 15, सन्‌ 1944 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) में एक लेख आया जिसका शीर्षक था, “अंत के दिनों में काम पूरा करने के लिए संगठित।” प्रचार के काम के बारे में इस लेख और ऐसे ही दूसरे लेखों ने यह ज़ाहिर किया कि 2,300 दिनों का समय खत्म हो गया है और ‘पवित्रस्थान पुनः प्रतिष्ठित’ हो गया है।

      29 “पवित्रस्थान” को उजाड़ने की दुश्‍मन की सारी कोशिशें पूरी तरह नाकाम रहीं। इस पृथ्वी पर बचे हुए ‘पवित्र लोगों’ और उनके साथ “बड़ी भीड़” की भारी जीत हुई। (प्रकाशितवाक्य 7:9) और तब से इस ज़मीन पर परमेश्‍वर के पवित्र लोगों के आध्यात्मिक प्रदेश या परमेश्‍वर के वासस्थान को उसी तरह पुनः प्रतिष्ठित किया गया है जैसे परमेश्‍वर चाहता है और उसमें दिन-रात यहोवा की पवित्र सेवा की जा रही है।

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