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  • परखे गए—मगर यहोवा के वफादार निकले!
    दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें!
    • यरूशलेम के राजपुत्र

      7, 8. दानिय्येल 1:3, 4 और 6 से हम दानिय्येल और उसके तीन साथियों के बारे में क्या-क्या जान सकते हैं?

      7 बाबुल में यहोवा के मंदिर से सिर्फ सोना-चाँदी और खज़ाना ही नहीं लाया गया था बल्कि जैसा हम पढ़ते हैं: “तब राजा [नबूकदनेस्सर] ने अपने खोजों के प्रधान अशपनज को राजपुत्रों और कुलीन पुरुषों सहित कुछ ऐसे इस्राएली जवानों को लाने की आज्ञा दी, जिनमें कोई खोट न हो, वरन्‌ सुन्दरता और सब प्रकार के ज्ञान में निपुणता प्रकट हो, जो बुद्धि से परिपूर्ण और अत्यन्त समझदार हों, तथा जिनमें ऐसी योग्यता हो कि राजमहल में सेवा कर सकें।”—दानिय्येल 1:3, 4, NHT.

      8 इनमें कौन-कौन था? हम पढ़ते हैं: “उन में यहूदा की सन्तान से चुने हुए, दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, और अजर्याह नाम यहूदी थे।” (दानिय्येल 1:6) वैसे तो दानिय्येल और उसके साथियों के घराने के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है लेकिन इस आयत से हमें दानिय्येल और उसके साथियों के घरानों के बारे में थोड़ी-बहुत जानकारी ज़रूर मिलती है। जैसे कि वह “यहूदा की सन्तान” यानी राजाओं के वंश से थे। चाहे वे खुद राजाओं के बच्चे न भी हों तौभी हम इतना ज़रूर कह सकते हैं कि वे इज़्ज़तदार, शाही घरानों से थे। उस वक्‍त ये तीनों, ‘जवान’ या किशोर ही थे। लेकिन इतनी छोटी-सी उम्र में वे न सिर्फ शरीर और दिमाग से तंदुरुस्त थे बल्कि वे बेहद ज्ञानवान, बुद्धिमान, समझदार और काबिल भी थे। बेशक दानिय्येल और उसके साथी यरूशलेम के चुनिंदा राजपुत्रों में से थे।

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    दानिय्येल की भविष्यवाणी पर ध्यान दें!
    • नौजवानों को बदलने की ज़बरदस्त कोशिशें

      10. इन नौजवान यहूदियों को क्या-क्या सिखाया गया और क्यों?

      10 अब इन मासूम नौजवानों के दिलो-दिमाग को वश में करने की ज़बरदस्त कोशिशें की गईं। नबूकदनेस्सर चाहता था कि ये नौजवान इस कदर बाबुल के तौर-तरीके सीख लें कि पूरी तरह से बाबुल के समाज में समा जाएँ। इसलिए उसने हुक्म दिया कि इन्हें ‘कसदियों के शास्त्र और भाषा की शिक्षा दी जाए।’ (दानिय्येल 1:4) लेकिन यह शिक्षा कोई मामूली पढ़ाई-लिखाई नहीं थी। दी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया बताती है कि इसमें “सूमेरी, आक्कादी, अरामी . . . और कई और भाषाओं को सीखना और इनमें लिखी ढेरों किताबों का गहरा अध्ययन करना शामिल था।” इन “ढेरों किताबों” में इतिहास, गणित, खगोल-विज्ञान और बाकी कई किताबें थीं। लेकिन, “इसके साथ धर्म शास्त्रों का अध्ययन भी करना होता था, जिनमें से ज़्यादातर शकुन विद्या, और ज्योतिष-विद्या के बारे में थीं।”

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