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  • उसने अपनी गलतियों से सबक सीखा
    उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए
    • 18, 19. (क) समुंदर की गहराइयों में योना का क्या हुआ? (ख) वह किस तरह का जीव रहा होगा? (फुटनोट भी देखें।) (ग) इन सारी घटनाओं के पीछे किसके हाथ था?

      18 फिर अचानक उसे पास में कुछ हिलता हुआ दिखायी दिया। वह कोई काला-सा बड़ा जीव था जो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ रहा था। जैसे ही वह योना के पास आया उसने अपना बड़ा-सा मुँह खोला और योना को निगल गया!

      योना समुंदर में डूब रहा है और पास में एक बड़ी मछली तैर रही है

      यहोवा ने “एक बड़ी मछली भेजी कि वह योना को निगल जाए”

      19 योना ने सोचा कि अब यही मेरा अंत है। मगर यह क्या, मैं तो अभी-भी ज़िंदा हूँ! उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था। उस जीव ने न तो उसे चबाया, न ही हज़म कर गया। योना ने घुटन तक महसूस नहीं की। उसकी साँसें अब भी चल रही थीं, जबकि वह जगह ऐसी थी जहाँ कोई ज़िंदा नहीं बच सकता। धीरे-धीरे योना का दिल यहोवा के लिए विस्मय से भर गया। बेशक योना के परमेश्‍वर यहोवा ने ही “एक बड़ी मछली भेजी कि वह योना को निगल जाए।”c​—योना 1:17.

      20. योना की प्रार्थना से हमें उसके बारे में क्या पता चलता है?

      20 अब योना मछली के पेट में था। धीरे-धीरे वक्‍त बीतता गया। वहाँ उस गहरे अंधकार में उसके पास सोचने के लिए बहुत समय था। काफी सोचने के बाद उसने यहोवा से प्रार्थना की। उसकी यह पूरी प्रार्थना योना की किताब के दूसरे अध्याय में दर्ज़ है और इससे हमें योना के बारे में काफी कुछ पता चलता है। इस प्रार्थना में उसने भजनों की किताब से कई हवाले दिए, जो दिखाता है कि योना को शास्त्र का अच्छा ज्ञान था। इस प्रार्थना से उसके एक अच्छे गुण के बारे में भी पता चलता है, वह है एहसानमंदी। योना ने अपनी प्रार्थना के आखिर में कहा, “मैं तेरा धन्यवाद करूँगा और तुझे बलिदान चढ़ाऊँगा, जो मन्‍नत मैंने मानी है उसे पूरा करूँगा। हे यहोवा, उद्धार करनेवाला तू ही है।”​—योना 2:9.

      21. (क) योना ने उद्धार के बारे में क्या सीखा? (ख) हमें कौन-सी अहम बात हमेशा याद रखनी चाहिए?

      21 योना ने एक अहम बात सीखी कि सिर्फ यहोवा ही अपने सेवकों का उद्धार कर सकता है। वह कहीं पर भी और किसी भी वक्‍त उनका उद्धार कर सकता है, क्योंकि जब योना “मछली के पेट में” था, जहाँ से बचने की कोई उम्मीद नहीं थी, तो वहाँ भी यहोवा ने उसकी प्रार्थना सुनी और उसकी जान बचायी। (योना 1:17) केवल यहोवा ही एक इंसान को तीन दिन और तीन रात एक बड़ी मछली के पेट में ज़िंदा और सही-सलामत रख सकता है। हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि यहोवा की ‘बदौलत ही हम साँस ले रहे हैं।’ (दानि. 5:23) जी हाँ, हम अपनी हर साँस के लिए, अपने पूरे वजूद के लिए यहोवा के कर्ज़दार हैं। तो क्या हमें इसके लिए एहसानमंद नहीं होना चाहिए? जब यहोवा ने हमें ज़िंदगी दी है तो क्या हमारा फर्ज़ नहीं बनता कि हम उसकी आज्ञाएँ मानें?

      22, 23. (क) किस तरह योना की परख हुई कि वह एहसानमंद है या नहीं? (ख) गलती करने पर हमें योना की तरह क्या करना चाहिए?

      22 क्या योना ने सबक सीखा और यहोवा की आज्ञा मानकर अपनी एहसानमंदी दिखायी? तीन दिन और तीन रात के बाद, वह मछली योना को सीधे समुंदर के किनारे ले गयी और उसे “सूखी ज़मीन पर उगल दिया।” (योना 2:10) सोचिए, योना को किनारे तक तैरने की ज़रूरत भी नहीं पड़ी! हाँ, उसे किनारे से आगे का रास्ता ज़रूर ढूँढ़ना पड़ा। फिर जल्द ही उसे यह दिखाने का मौका मिला कि वह यहोवा का एहसानमंद है या नहीं। योना 3:1, 2 में लिखा है, “यहोवा ने दूसरी बार योना से कहा, “जा! उस बड़े शहर नीनवे को जा और उसे वह संदेश सुना, जो मैं तुझे बताता हूँ।” इस बार योना ने क्या किया?

  • उसने अपनी गलतियों से सबक सीखा
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    • c जब बाइबल का अनुवाद इब्रानी भाषा से यूनानी में किया गया, तो “मछली” के लिए जो इब्रानी शब्द था उसका अनुवाद “डरावना समुद्री जीव” या “बहुत बड़ी मछली” किया गया। हालाँकि यह ठीक-ठीक पता नहीं लगाया जा सकता कि वह किस तरह का समुद्री जीव था, मगर देखा गया है कि भूमध्य सागर में इतनी बड़ी-बड़ी शार्क मछलियाँ हैं जो एक पूरे इंसान को निगल सकती हैं। दूसरे महासागरों में इससे भी बड़ी-बड़ी शार्क मछलियाँ हैं, जैसे व्हेल शार्क। इस शार्क की लंबाई 45 फुट या उससे भी ज़्यादा हो सकती है!

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