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  • उसने दया दिखाना सीखा
    उनके विश्‍वास की मिसाल पर चलिए
    • 20 परमेश्‍वर ने योना से तर्क किया। उसने भविष्यवक्‍ता से कहा कि वह महज़ एक पौधे के मुरझाने पर दुखी हो रहा है, जिसे न तो उसने लगाया न ही बढ़ाया बल्कि वह एक ही रात में उग आया था। परमेश्‍वर ने आखिर में कहा, “तो क्या मैं उस बड़े शहर नीनवे पर तरस न खाऊँ, जहाँ 1,20,000 से भी ज़्यादा लोग हैं, जो सही-गलत में फर्क तक नहीं जानते और जहाँ बहुत-से जानवर भी हैं?”​—योना 4:10, 11.

      21. (क) यहोवा ने घीए की बेल से योना को क्या सबक सिखाया? (ख) योना की कहानी से कैसे हमें खुद की जाँच का बढ़ावा मिलता है?

      21 क्या आप समझ पाए कि घीए की बेल से यहोवा ने योना को क्या सबक सिखाया? उस पौधे की देखभाल करने में योना ने कोई मेहनत नहीं की थी। मगर जहाँ तक नीनवे के लोगों की बात है, यहोवा उनका जीवनदाता था। उसने उन्हें जीवित रखा था, जैसे वह धरती के दूसरे प्राणियों को भी ज़िंदा रखता है। तो फिर योना के लिए एक पौधा, नीनवे के 1,20,000 इंसानों और उनके तमाम पालतू जानवरों की जान से ज़्यादा कीमती कैसे हो गया? क्या इसकी वजह यह नहीं थी कि योना स्वार्थी बन गया था? वह पौधे पर सिर्फ इसलिए तरस खा रहा था क्योंकि उससे उसे फायदा हो रहा था। उसी तरह, नीनवे के लोगों पर जब उसका गुस्सा भड़का तो इसके पीछे भी उसका स्वार्थ था। उसे अपनी इज़्ज़त की पड़ी थी और वह चाहता था कि वह सही साबित हो। योना की कहानी से हमें खुद की ईमानदारी से जाँच करने का बढ़ावा मिलता है। हममें से ऐसा कौन है जिसके दिल में कभी स्वार्थ न पैदा हुआ हो? इसलिए हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए कि वह सब्र से हमें सिखाता है कि हम कैसे उसकी तरह और भी करुणामय और दयालु बनें और सिर्फ अपने बारे में न सोचें।

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