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  • उसने सीखा दया दिखाना
    प्रहरीदुर्ग—2009 | अक्टूबर 1
    • परमेश्‍वर ने योना से तर्क किया। उसने भविष्यवक्‍ता से कहा कि वह उस पौधे के मुर्झा जाने पर क्यों इतना दुखी हो रहा है, जिस पौधे को उसने न तो लगाया, ना ही उसकी देखभाल की। परमेश्‍वर ने आखिर में कहा: “यह बड़ा नगर नीनवे, जिस में एक लाख बीस हजार से अधिक मनुष्य हैं जो अपने दहिने बाएं हाथों का भेद नहीं पहिचानते, और बहुत घरैलू पशु भी उस में रहते हैं, तो क्या मैं उस पर तरस न खाऊं?”—योना 4:10, 11.d

      क्या आप यह समझ पाए कि लौकी के पौधे से यहोवा ने योना को क्या सबक सिखाया? उस पौधे को उगाने में योना ने कुछ भी मेहनत नहीं की थी। मगर जहाँ तक नीनवे के लोगों की बात है, यहोवा उनका जीवनदाता था। और उसने उन्हें जीवित रखा था, जैसे धरती के दूसरे प्राणियों को बचाए रखता है। तो फिर, योना के लिए वह पौधा, नीनवे के 1,20,000 इंसानों और उनके तमाम पालतू जानवरों की ज़िंदगी से ज़्यादा कीमती कैसे हो गया? क्या इसकी वजह यह नहीं थी कि योना स्वार्थी बन गया था? क्या उसने उस पौधे पर सिर्फ इसलिए तरस नहीं खाया, क्योंकि वह उसे छाया दे रहा था? उसी तरह, नीनवे के लोगों पर जब उसका गुस्सा भड़का, तो इसके पीछे भी उसका स्वार्थ था। उसमें घमंड था और उसे अपनी नाक रखने की ज़्यादा चिंता थी।

      दया दिखाने का क्या ही बढ़िया सबक! पर सवाल है कि क्या योना ने इस सबक को अपने दिलो-दिमाग में उतारा? बाइबल की किताब योना, यहोवा के पूछे सवाल पर खत्म होती है। आज भी वह सवाल मानो सवाल बनकर रह गया है। इसलिए कुछ आलोचक शिकायत करते हैं कि योना ने इस सवाल का जवाब कभी नहीं दिया। लेकिन अगर हम गौर करें, तो खुद उसकी किताब इस सवाल का जवाब देती है। वह कैसे? सबूत दिखाते हैं कि योना ने ही यह किताब लिखी है। उसने शायद यह किताब अपने देश लौटने के बाद लिखी होगी। ज़रा कल्पना कीजिए, वह अपने घर पर बैठा अपनी कहानी लिख रहा है। उसकी उम्र ढल चुकी है। वह अब पहले से ज़्यादा नम्र और बुद्धिमान हो गया है। अपनी गलतियों, बगावती और कठोर रवैए के बारे में लिखते वक्‍त उसके दिल में कैसी हूक-सी उठी होगी। इससे साफ है, योना ने यहोवा की बुद्धि-भरी हिदायतों से सबक सीखा। आखिरकार, उसने दया दिखाना सीख ही लिया। क्या हम भी दया दिखाना सीखेंगे? (w09 4/1)

  • उसने सीखा दया दिखाना
    प्रहरीदुर्ग—2009 | अक्टूबर 1
    • d जब परमेश्‍वर ने कहा कि नीनवे के लोग अपने दाएँ और बाएँ हाथों का भेद नहीं पहचानते, तो उसका मतलब था कि वे बिलकुल बच्चों जैसे थे, जो परमेश्‍वर के स्तरों से अनजान होते हैं।

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