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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1989
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साँप को बेनक़ाब करना

“एक दिन यहोवा परमेश्‍वर के पुत्र उसके सामने उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया।”​—अय्यूब १:६.

१. (अ) शैतान नाम का मूल और मतलब क्या है? (ब) शास्त्रों में “शैतान” कितनी बार घटता है, और कौनसे सवाल पैदा होते हैं?

शैतान नाम का मूल क्या है? उसका मतलब क्या है? उसके बाइबलीय अवस्थापन में, यह तीन इब्रानी अक्षरों से ש (सिन), ט (टेथ), और נ (नून) बनता है। उनके स्वर चिह्नों के साथ, ये अक्षर “शैतान” शब्द बनते हैं, जो, विद्वान एड्‌वर्ड लैंग्टन के अनुसार, “एक ऐसे मूल से उत्पन्‍न है जिसका मतलब है ‘विरोध करना’ या ‘एक विरोधी होना या उसके तौर से कार्य करना।’” (१ पतरस ५:८ से तुलना करें।) हालाँकि शैतान नाम बाइबल में ५० से ज़्यादा बार प्रकट होता है, यह इब्रानी शास्त्रों में सिर्फ़ १८ बार घटती है और तब भी केवल १ इतिहास, अय्यूब और जकर्याह की किताबों में। तो ये सवाल पैदा होते हैं कि मानव कब शैतान के विद्रोह और कार्यकलाप से अभिज्ञ हुआ? शैतान को इब्रानी शास्त्रों में प्रथम बार कब स्पष्टतया प्रकट किया गया है?

२. कौनसा सवाल का जवाब आदम और हव्वा के विद्रोह के तुरन्त बाद नहीं दिया गया?

२ बाइबल सरल और गंभीर शब्दों में व्याख्या देती है कि पाप और विद्रोह इस पृथ्वी पर, एक ऐसी जगह में जो मध्य-पूर्व में एक परादीस-सा बग़ीचे में था, अस्तित्व में कैसे आए। (उत्पत्ति अध्याय २ और ३ देखें।) हालाँकि आदम और हव्वा की अवज्ञा के प्रवर्तक की पहचान एक साँप के तौर से की गयी है, कोई तात्कालिक सुराग़ नहीं दिया गया कि साँप के मुँह से निकली आवाज़ के पीछे असली प्रभावशाली और बुद्धिमान व्यक्‍ति कौन था। फिर भी, आदम को उस परादीस बाग़ से उसके निष्कासन में परिणामित होनेवाली घटनाओं पर मनन करने के लिए बहुत समय था।​—उत्पत्ति ३:१७, १८, २३; ५:५.

३. हालाँकि वह बहकाया न गया, आदम ने कैसे पाप किया, और इस से मनुष्यजाति पर कैसा असर हुआ?

३ ज़ाहिर है कि आदम को पता था कि जानवर मानवी बुद्धि सहित नहीं बोलते। उसे यह भी मालूम था कि हव्वा के प्रलोभन से पहले परमेश्‍वर ने उस से किसी भी जानवर के ज़रिए बातें नहीं की थीं। तो उसकी पत्नी को परमेश्‍वर की अवज्ञा करने को किसने कहा? पौलुस कहता है कि यद्यपि औरत पूर्ण रूप से बहकावे में आ गयी, आदम बहकाया न गया। (उत्पत्ति ३:११-१३, १७; १ तीमुथियुस २:१४) शायद आदम ने समझ लिया कि कोई अदृश्‍य प्राणी परमेश्‍वर की ओर आज्ञाकारिता के बदले एक विकल्प प्रस्तुत कर रहा था। फिर भी, हालाँकि साँप ने खुद उसके सामने प्रस्ताव नहीं रखा, आदम ने अवज्ञा में अपनी पत्नी के साथ मिल जाना चुन लिया। आदम के जान-बूझकर किया गया और ज्ञानकृत कार्य से पूर्णता का ढाँचा टूट गया, पाप का दोष जुड़ गया, और पूर्वबतलाए गए मृत्यु दंड परिणामित हुआ। और इस प्रकार, साँप का माध्यम इस्तेमाल करके, शैतान प्रारंभिक हत्यारा बन गया।​—यूहन्‍ना ८:४४; रोमियों ५:१२, १४.

४, ५. (अ) साँप के विरुद्ध कौनसा भविष्यसूचक न्यायदंड दिया गया? (ब) उस भविष्यद्वाणी में कौन-कौनसी पहेलियाँ सम्मिलित थीं?

४ अदन के विद्रोह के परिणामस्वरूप परमेश्‍वर के एक भविष्यसूचक न्यायदंड दिया गया। उस न्यायदंड में एक “पवित्र भेद” समाविष्ट था जिस से पूर्ण रूप से खोलने के लिए हज़ारों वर्ष लग जाते। परमेश्‍वर ने साँप से कहा: “और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्‍न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।”​—इफिसियों ५:३२; उत्पत्ति ३:१५.

५ इस अत्यावश्‍यक भविष्यवाणी में कई पहेलियाँ समाविष्ट थीं। “स्त्री” दरअसल कौन थी? क्या यह हव्वा थी, या क्या यह हव्वा से ज़्यादा अभिप्राय की एक प्रतीकात्मक स्त्री थी? और, ‘स्त्री के वंश’ और ‘साँप के वंश’ का क्या मतलब था? और वह साँप दरअसल कौन था जिसका वंश स्त्री के वंश से बैर रखता? जैसा कि हम थोड़े ही समय में विचार-विमर्श करेंगे, यहोवा ने प्रकट रूप से निश्‍चय किया कि उसके नियत समय में इन सवालों के पूर्ण जवाब प्राप्त होते।​—दानिय्येल १२:४ और कुलुस्सियों १:२५, २६ से तुलना करें।

स्वर्ग में विद्रोह का अधिक प्रमाण

६. जलप्रलय के कुछ ही समय पहले स्वर्ग में विद्रोह की कैसी सूचना दिखायी दी?

६ जैसे बाइबल इतिहास बढ़ता है, जलप्रलय से पहले, मानवों से एक ज़्यादा ऊँचे स्तर पर विद्रोह की सूचना प्रकट होती है, मनुष्यों के पाप में पतित होने के लगभग १,५०० वर्ष बाद। बाइबल वृत्तांत हमें बताता है कि “परमेश्‍वर के पुत्रों ने मनुष्यों की पुत्रियों को देखा, कि वे सुन्दर हैं; सो उन्होंने जिस जिसको चाहा उन से ब्याह कर लिया।” इन अप्राकृतिक विवाहों की मिश्र संतान “नेफ़िलिम” के तौर से जाने जाते थे, “वे पुत्र शूरवीर होते थे, जिनकी कीर्ति प्राचीनकाल से प्रचलित है।” (उत्पत्ति ६:१-४; “सच्चे परमेश्‍वर के पुत्रों” की पहचान के लिए अय्यूब १:६ से तुलना करें।) लगभग २,४०० वर्ष बाद, यहूदा ने इस घटना पर संक्षेप में टीका किया जब उसने लिखा: “फिर जो स्वर्गदूतों ने . . . अपने निज निवास को छोड़ दिया, उस ने उन को भी उस भीषण दिन के न्याय के लिए अन्धकार में जो सदा काल के लिए है बन्धनों में रखा है।”​—यहूदा ६; २ पतरस २:४, ५.

७. मनुष्यों की बुराई के बावजूद, बाइबल के अनेक ऐतिहासिक किताबों में हम कौनसी कौतुहलजनक लुप्ति पाते हैं?

७ जलप्रलय से पहले के उस समय में, ‘मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गयी थी, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्‍न होता था सो निरन्तर बुरा ही होता था।’ फिर भी उत्पत्ति की प्रेरित किताब में स्वर्गदूतों के विद्रोह और मनुष्यों की दुष्टता के पीछे उस ताक़तवर प्रभाव के तौर से शैतान की पहचान विशेष रूप से नहीं की गयी। (उत्पत्ति ६:५) सचमुच, मूर्तिपूजा और झूठी उपासना में इस्राएल और यहूदा की जातियों के बार-बार के पुनःपतन समेत, उनके सारे इतिहास में, उन घटनाओं के पीछे के अदृश्‍य प्रभाव के तौर से, बाइबल की न्यायियों, शमूएल, और राजाओं की प्रेरित किताबों में शैतान को कभी नामोद्दिष्ट नहीं किया गया है ​—यह खुद शैतान की स्वीकृति के बावजूद भी, कि वह ‘पृथ्वी पर इधर-उधर घूम-फिर’ रहा था।​—अय्यूब १:७; २:२.

८. क्या प्रारंभ में अय्यूब अपने दुःखों में शैतान की भूमिका के बारे में अवगत था? हम कैसे जानते हैं?

८ जब हम अय्यूब और उसकी परीक्षाओं के अभिप्रायपूर्ण वृत्तांत पर ग़ौर करते हैं, तब भी हम देखते हैं कि अय्यूब कभी विरोधी, शैतान, को अपनी परीक्षाओं का उत्तरदायी नहीं ठहराता। प्रत्यक्ष रूप से, उस समय वह उस वाद-विषय के बारे में अनभिज्ञ था जो उसके आचरण के नतीजे पर निर्भर था। (अय्यूब १:६-१२) उसने पूर्ण रूप से न समझा कि शैतान ने यहोवा के सामने अय्यूब की खराई को चुनौती देकर संकट स्थिति उत्पन्‍न की थी। इस प्रकार, जब अय्यूब की पत्नी ने उसे इन शब्दों में फटकारा कि “क्या तू अब भी अपनी खराई पर बना है? परमेश्‍वर की निन्दा कर और चाहे मर जाए तो मर जा!” तब उसने सादगी से जवाब दिया: “क्या हम जो परमेश्‍वर के हाथ से सुख लेते हैं, दुःख न लें?” अपनी परीक्षाओं का असली स्रोत जाने बिना, उसने प्रत्यक्षतः सोचा कि ये परमेश्‍वर की ओर से आते थे और इसलिए उन्हें स्वीकार करना चाहिए था। इस प्रकार, यह अय्यूब की खराई की एक कड़ी परीक्षा बनी।​—अय्यूब १:२१; २:९, १०.

९. मूसा के विषय कौनसा तर्कसंगत सवाल उठाया जा सकता है?

९ अब एक सवाल पैदा होता है। अगर, जैसा कि हम मानते हैं, मूसा ने अय्यूब की किताब लिखी और इस प्रकार जानता था कि शैतान पृथ्वी में घूम-फिर रहा था, तो ऐसा क्यों है कि वह पंचग्रंथ की किसी भी किताब में शैतान का नाम लेकर उसका उल्लेख नहीं करता? जी हाँ, इब्रानी शास्त्रों में शैतान का ज़िक्र कभी-कभार ही क्यों होता है?a

शैतान का सीमित प्रदर्शन

१०. इब्रानी शास्त्रों में शैतान को केवल सीमित प्रदर्शन ही किस तरह दिया गया?

१० हालाँकि यहोवा ने दुष्टात्मा-प्रेरित कार्यों की भर्त्सना की, अपनी बुद्धि में उसे यह सुनिश्‍चित करने के लिए प्रत्यक्षतः अच्छे कारण थे कि उसके विरोधी, शैतान, को इब्रानी शास्त्रों में सिर्फ़ सीमित प्रदर्शन ही दिया जाना चाहिए। (लैव्यव्यवस्था १७:७; व्यवस्थाविवरण १८:१०-१३; ३२:१६, १७; २ इतिहास ११:१५) इस प्रकार, यद्यपि इब्रानी लेखकों को शैतान और स्वर्ग में उसकी विद्रोहपूर्ण भूमिका का कुछ तो ज्ञान रहा होगा, वे सिर्फ़ परमेश्‍वर के लोगों और उनके इर्द-गिर्द जातियों के पाप स्पष्ट और उघाड़ने तथा उनकी दुष्टता के विरुद्ध प्रबोधित करने तक ही प्रेरित किए गए। (निर्गमन २०:१-१७; व्यवस्थाविवरण १८:९-१३) शैतान के नाम का उल्लेख बहुत कम होता था।

११, १२. हम कैसे जानते हैं कि इब्रानी लेखक शैतान और उसके प्रभाव के विषय अनभिज्ञ न थे?

११ अदन की घटनाओं, “सच्चे परमेश्‍वर के पुत्रों” का पतन, और अय्यूब की किताब के वृत्तांत का विचार करके, बाइबल के प्रेरित इब्रानी लेखक शैतान के दुष्ट, अलौकिक प्रभाव से अनजान न थे। भविष्यद्वक्‍ता जकर्याह को, जो सामान्य युग पूर्व छठीं सदी के आख़री हिस्से में लिखा करता था, एक दर्शन दिखायी दिया, जिसमें यहोशू महायाजक था “और शैतान उसकी दाहिनी ओर उसका विरोध करने को खड़ा था। तब यहोवा के स्वर्गदूत ने शैतान से कहा: ‘हे शैतान, यहोवा तुझ को घुड़के!’” (जकर्याह ३:१, २) और, सा.यु.पू. पाँचवीं सदी में इस्राएल और यहूदा का इतिहास लिखनेवाले लिपिक एज्रा ने कहा कि “शैतान ने इस्राएल के विरुद्ध उठकर, दाऊद को उसकाया कि इस्राएलियों की गिनती ले।”​—१ इतिहास २१:१.

१२ इस प्रकार, जकर्याह के समय तक, पवित्र आत्मा से शास्त्रों में शैतान की भूमिका अधिक स्पष्ट होती जा रही थी। लेकिन इस से पहले कि यह दुष्ट प्राणी पूर्ण रूप से परमेश्‍वर के वचन में अनावृत किया जाता, पाँच और शतक गुज़र जाते। शैतान को पूर्ण रूप से अनावृत करने में इस समयनिर्धारण के लिए क्या कारण था, इस विषय, बाइबल के आधार पर, हम कैसा निष्कर्ष निकाल सकते हैं?

पहेली की कुंजी

१३-१५. (अ) कौनसे आधारभूत सत्य यह समझने की कुंजी हैं कि शैतान को इब्रानी शास्त्रों में सीमित प्रदर्शन क्यों दिया गया? (ब) यीशु के आने से, शैतान को किस तरह खुले में लाया गया?

१३ परमेश्‍वर के वचन में विश्‍वास रखनेवाले मसीही के लिए, इन और जो सवाल हमने पहले उठाए, उनकी मूलभूत कुंजी उच्च समीक्षावाद में नहीं पाया जाएगा, मानो बाइबल सिर्फ़ एक साहित्यिक ग्रन्थरत्न हो, मात्र मानवी प्रतिभा का ही परिणाम। यह कुंजी दो आधारभूत बाइबल सच्चाइयों में प्रकट किया गया है। प्रथम, जैसा राजा सुलैमान ने लिखा: “परन्तु धर्मियों की चाल उस चमकती हुई ज्योति के समान है, जिसका प्रकाश दोपहर तक अधिक अधिक बढ़ता रहता है।” (नीतिवचन ४:१८; दानिय्येल १२:४; २ पतरस १:१९-२१ से तुलना करें।) परमेश्‍वर के वचन में सच्चाई परमेश्‍वर के समय के अनुसार, ज़रूरत और उसके सेवकों की ऐसी बातें ग्रहण करने की क्षमता के अनुरूप, धीरे-धीरे प्रकट की जाती है।​—यूहन्‍ना १६:१२, १३; ६:४८-६९ से तुलना करें।

१४ दूसरा आधारभूत सत्य उस बात में समाविष्ट है जो प्रेरित पौलुस ने मसीही चेला तीमुथियुस को लिखा: “सारा पवित्रशास्त्र परमेश्‍वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश . . . के लिए लाभदायक है, ताकि परमेश्‍वर का जन पूरी तरह से सक्षम और हर एक भले काम के लिए लैस हो।” (२ तीमुथियुस ३:१६, १७, न्यू.व.) परमेश्‍वर का पुत्र, यीशु, शैतान को अनावृत करता, और इसका विवरण धर्मशास्त्र में लिखा जाता, और इस प्रकार यह मसीही मण्डली को यहोवा की सर्वश्रेष्ठता के समर्थन में शैतान के विरुद्ध अडिग रहने के लिए लैस करता।​—यूहन्‍ना १२:२८-३१; १४:३०.

१५ इस आधार पर उत्पत्ति ३:१५ की पहेलियाँ धीरे-धीरे अनावृत किए गए हैं। परमेश्‍वर के पवित्र आत्मा, या सक्रिय शक्‍ति, के नियंत्रण में, इब्रानी शास्त्रों ने आनेवाले मसीहा, या वंश, के विषय पर रोशनी की कुछ झलकें दीं। (यशायाह ९:६, ७; ५३:१-१२) इसके अनुरूप, उस में परमेश्‍वर के विरोधी और मनुष्यजाति के शत्रु के नाते शैतान की भूमिका पर रोशनी की छोटी झलकें समाविष्ट हैं। लेकिन यीशु के आने से, जैसे शैतान ने प्रतिज्ञात वंश, यीशु मसीह के विरुद्ध घोर और सीधा कार्य किया, उसे पूर्ण रूप से सामने लाया गया। जैसे मसीही युग की उस पहली सदी में परिस्थितियाँ विकसित हुईं, “स्त्री,” यहोवा का स्वर्गीय आत्मिक संगठन की, और वंश, यीशु मसीह की भूमिकाएँ मसीही यूनानी शास्त्रों में स्पष्ट की गयीं। उसी समय, शैतान, पुराने साँप की भूमिका को और भी पूरी तरह सामने लाया गया।​—प्रकाशितवाक्य १२:१-९; मत्ती ४:१-११; गलतियों ३:१६; ४:२६.

पवित्र भेद अनावृत

१६, १७. “मसीह के पवित्र भेद” में क्या क्या सम्मिलित था?

१६ प्रेरित पौलुस ने ‘मसीह के पवित्र भेद’ के बारे में विस्तृत रूप से लिखा। (इफिसियों ३:२-४; रोमियों ११:२५; १६:२५) यह पवित्र भेद उस सच्चे “वंश” से संबंधित था जो अन्त में पुराने साँप, शैतान इब्लीस को कुचल देता। (प्रकाशितवाक्य २०:१-३, १०) भेद में यह वास्तविकता सम्मिलित थी कि यीशु उस “वंश” का पहला और प्राथमिक सदस्य था लेकिन उस “वंश” की संख्या पूरा करने के लिए, उसके साथ पहले यहूदिया में से और फिर सामरियों और अन्यजातियों में से अन्य लोग, “सह-वारिस” एकत्र होते।​—रोमियों ८:१७; गलतियों ३:१६, १९, २६-२९; प्रकाशितवाक्य १४:१.

१७ पौलुस व्याख्या देता है: “और समयों में मनुष्यों की सन्तानों को ऐसा नहीं बताया गया था, जैसा कि आत्मा के द्वारा अब उसके पवित्र प्रेरितों और भविष्यद्वक्‍ताओं पर प्रगट किया गया है।” और वह भेद क्या था? “अर्थात्‌ यह, कि मसीह यीशु में सुसमाचार के द्वारा अन्यजातीय लोग मीरास में साझी, और एक ही देह के और प्रतिज्ञा के भागी हैं।”​—इफिसियों ३:५, ६; कुलुस्सियों १:२५-२७.

१८. (अ) पौलुस कैसे दिखाता है कि “पवित्र भेद” का मतलब प्रकट करने के लिए समय की ज़रूरत थी? (ब) यह प्रकटन “पुराने साँप” से संबंधित समझ पर कैसे असर करता?

१८ पौलुस प्रभावित हुआ कि सब को छोड़कर उसे “मसीह के अगम्य धन का सुसमाचार” घोषित करने “और सब पर यह बात प्रकाशित” करने “कि उस भेद का प्रबन्ध क्या है, जो सब के सृजनहार परमेश्‍वर में आदि से गुप्त था,” उपयोग में लाया गया। या जैसे कि उसने कुलुस्सियों से कहा: “[वह] पवित्र भेद को जो समयों और पीढ़ियों से गुप्त रहा, परन्तु अब उसके उन पवित्र लोगों पर प्रगट हुआ है।” (न्यू.व.) तार्किक रूप से, अगर “वंश” से संबंधित वह भेद आख़िरकार प्रकट किया गया था, तो इस में बड़े विरोधी, “पुराने साँप” का पूरी तरह बेनक़ाब होना भी सम्मिलित होता। प्रत्यक्ष रूप से, यहोवा ने शैतान के साथ उस वाद-विषय को मसीहा के आने तक सर्वोपरि करना पसन्द नहीं किया। और शैतान को बेनक़ाब करने के लिए उस वंश, खुद मसीह यीशु से बेहतर और कौन हो सकता था?​—इफिसियों ३:८, ९; कुलुस्सियों १:२६.

यीशु विरोधी को परदाफ़ाश करता है

१९. यीशु ने विरोधी को किस तरह अनावृत किया?

१९ अपनी सेवकाई के प्रारंभ में, यीशु ने प्रलोभक को इन शब्दों में सख़्ती से ठुकरा दिया: “हे शैतान दूर हो जा! क्योंकि लिखा है, कि तू यहोवा अपने परमेश्‍वर को प्रणाम कर, और केवल उसी की उपासना कर।” (मत्ती ४:३, १०) एक अलग अवसर पर, यीशु ने अपने प्रति हिंसात्मक इरादे रखनेवाले निन्दात्मक धार्मिक शत्रुओं का, उनके प्रवर्तक की भर्त्सना करके और उसे अदन में उस साँप के पीछे की ताक़त के तौर से बेपरदा करके, भांडाफ़ोड किया, यह कहते हुए: “तुम अपने पिता इब्लीस से हो, और अपने पिता की लालसाओं को पूरा करना चाहते हो। वह तो आरंभ से हत्यारा है, और सत्य पर स्थिर न रहा, क्योंकि सत्य उस में है ही नहीं: जब वह झूठ बोलता, तो अपने स्वभाव ही से बोलता है; क्योंकि वह झूठा है, बरन झूठ का पिता है।”​—यूहन्‍ना ८:४४.

२०. शैतान को बेपरदा करने में यीशु को क्या आधार था?

२० यीशु शैतान की निन्दा करने में इतना कायल क्यों हो सकता था? वह उसे इतनी अच्छी तरह कैसे जान सकता था? इसलिए कि वह स्वर्ग में शैतान के साथ सहास्तित्ववान रहा था! उस व्यक्‍ति के सर्वश्रेष्ठ प्रभु यहोवा के विरुद्ध अहंकार से विद्रोह करने से भी पहले, यीशु, वचन होने के नाते, उसे जानता था। (यूहन्‍ना १:१-३; कुलुस्सियों १:१५, १६) उसने अदन में साँप के ज़रिए उसके धूर्त कार्य देखे थे। उसने भ्रातृ हत्या करनेवाले कैन पर उसका चालाक प्रभाव देखा था। (उत्पत्ति ४:३-८; १ यूहन्‍ना ३:१२) बाद में, यीशु यहोवा की स्वर्गीय अदालत में उपस्थित था “जब यहोवा परमेश्‍वर के पुत्र . . . उपस्थित हुए, और उनके बीच शैतान भी आया।” (अय्यूब १:६; २:१) हाँ अवश्‍य, यीशु उसे पूरे का पूरा जानता था और वह जो था उस रूप को बेपरदा करने के लिए तैयार था​—झूठा, हत्यारा, निन्दक, और परमेश्‍वर का विरोधी!​—नीतिवचन ८:२२-३१; यूहन्‍ना ८:५८.

२१. कौनसे सवालों के जवाब बाक़ी हैं?

२१ चूँकि ऐसा शक्‍तिशाली शत्रु मनुष्यजाति और उसके इतिहास को प्रभावित कर रहा है, अब सवाल ये हैं कि: मसीही यूनानी शास्त्रों में शैतान को किस अधिक हद तक बेपरदा किया गया है? और हम किस तरह उसकी धूर्त योजनाओं का प्रतिरोध करके अपनी मसीही खराई कायम रख सकते हैं?​—इफिसियों ६:११, किंग्‌डम इंटर्लीनियर.

[फुटनोट]

a अपनी किताब द डेविल​—पर्सेप्शन्स ऑफ़ ईवल फ्रॉम ॲन्टिक्विटी टू प्रिमिटिव क्रिस्‌चिॲनिटी में प्राध्यापक रस्सेल कहता है: “यह वास्तविकता कि इब्लीस (का विषय) पुराने नियम में पूर्ण रूप से विकसित नहीं किया गया, आधुनिक यहूदी और ख्रीस्ती धर्मविज्ञान में उसके अस्तित्व को अस्वीकार करने का कोई आधार नहीं। वह तो मूलभूत कुतर्क होगा: यह धारणा कि किसी शब्द की सच्चाई​—या उसकी संकल्पना​—अपने सबसे प्रारंभिक रूप में पायी जाएगी। उलटा, ऐतिहासिक सच्चाई समय के साथ साथ विकास है।”​—पृष्ठ १७४.

क्या आप याद करते हैं?

◻ उत्पत्ति ३:१५ से संबंधित कौनसी पहेलियों की व्याख्या देना ज़रूरी था?

◻ इब्रानी शास्त्रों में स्वर्ग में विद्रोह का क्या प्रमाण है?

◻ कौनसे दो सत्य हमें यह समझने की मदद करते हैं कि इब्रानी शास्त्रों में शैतान का इतना कम उल्लेख क्यों किया गया है?

◻ “मसीह का पवित्र भेद” का शैतान के प्रकटन और उसकी भूमिका से क्या संबंध है?

[पेज 22 पर तसवीरें]

प्रलय-पूर्व दुनिया में शैतान का प्रभाव मनुष्यजाति के बीच स्पष्ट रूप से प्रकट था

[पेज 23 पर तसवीरें]

यह शैतान था​—एक असली व्यक्‍ति​—जिसने अय्यूब की खराई के विषय परमेश्‍वर को चुनौती दी

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