यहोवा ने अपना नाम क्यों प्रकट किया?
१९६४ में पोलैंड में प्रकाशित “नए करार” की एक वृत्ति ने इस प्रश्न का उत्तर एक विचार-उत्तेजक रीति से दिया। रोमन कैथोलिक चर्च की मुद्रण-अनुमति के अधीन, लुब्लिन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, डॉ. स्टॅनिस्लॉ लॅक ने ग़ौर किया:
“मुक्ति प्राप्त लोग मानव-जाति के सामने परमेश्वर के नाम के लिए ज़िम्मेदार हैं।” यह इस्राएलियों की ज़िम्मेदारी थी कि ऐसे प्रयत्न करें जिस से “अन्यजाति याहवे [यहोवा] के नाम की स्तुति करें और उसकी निन्दा न करें। याहवे का एक अर्थ है . . . उस नाम को स्वीकार करनेवालों की ओर दिखाई गई प्रतिक्रिया के आधार पर संसार का न्याय किया जाएगा।” प्रोफेसर ने घोषणा की, “याहवे का नाम राष्ट्रों में महान होगा . . . वह सारे संसार में फैल जाएगा। मूसा के लिए उस नाम . . . की भवितव्यता यही थी।”
जी हाँ, जैसे मलाकी १:११ भविष्यवाणी करता है: “‘अन्यजातियों में मेरा नाम महान होगा,’ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” और आज विश्व भर में उस नाम की घोषणा कौन करते हैं ताकि “जो कोई यहोवा का नाम लेगा, उद्धार पाएगा”? यहोवा के गवाह! “उसके नाम के लिए एक लोग,” जी हाँ, जो “उसके नाम का सम्मान करते हैं,” उनकी ओर जनता की प्रतिक्रिया उन्हीं के लिए जीवन-मृत्यु का सवाल है। यहोवा और उनके गवाहों की ओर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?—प्रेरितों २:२१; १५:१४; मलाकी ३:१६-१८ से तुलना करें।